आज़ादी

August 16, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

स्वतंत्रता दिवस काव्य पाठ प्रतियोगिता:-

दृढ़ निश्चय लेके निकले
मुसीबत को निकाला जड़ से उखाड़
ये देश भक्त हुए दुनिया में विख्यात
जब लहू से लिखा इन वीरो ने भारत माँ का नाम

करने आये थे व्यापार
और कर रहे थे देश को बर्बाद
देश के वीरो ने किया
इन अंग्रेज़ो से हमे आज़ाद

कठिन था हराना
मजबूत थे जज्बात
अंग्रेज़ो पे फ़तेह पाकर
इस देश को किया आबाद

मुसीबत की लेहरो को
अपने जोश से मोड़ दिया
जिस घमंड से आये थे अंग्रेज़
उस घमंड को भी भारत के वीरो ने तोड़ दिया

गाँधी ,नेहरु ,पटेल , सुभाष ने
इस देश को आज़ादी दिलाई
भगत , राजगुरु और , सुखदेव की
क़ुरबानी से हर देशवासी की आँखे भर आई,

दिखाई एकता की ताकत
हुआ भारत विख्यात पूरे जहान में
बुरी नज़र वालो दूर रहना
ऐसे और वीर है इस हिंदुस्तान में

फेहराओ तिरंगा
याद रखो उन वीरो को
भारत माँ की रक्षा
की तोड़के अंग्रेज़ो की जंजीरो को

देश का त्यौहार है आया
खुशियाँ मनाओ और बांटो मिठाइयाँ
आप सभी देशवासियो को
स्वतंत्रता दिवस की खूब बधाइयाँ

– अंशुल ओझा

माखन चोर 🙏

August 8, 2020 in Poetry on Picture Contest

छूप छूप के खाये माखन
है ये माखन चोर
बड़ा नटखट है
प्यारा नंद किशोर

घुसे घर में मित्रो के संग
देखी माखन की मटकी
देखा खूब सारा माखन
सबकी नज़र उसी पे अटकी

खाये माखन मस्ती में मित्रो के साथ
देखा आ रही माँ यशोदा
भागे सब इधर उधर
बच गए सब
बस माखन चोर का पकड़ लिया हाथ

पकड़ के कान्हा के कान को दिया कस
बह रहा कटोरी से माखन का रस
बोले क्यों नहीं समझता तू
बहुत बदमाशी करली अब बस

छलका के आंसू
दिखाई भगवन ने लीला
देख आंसू माता ने
अपना हाथ कर दिया ढीला

मन मोहित रूप देख
माँ ने लगाया नंदलाल को गले
माता का सुख पाके
फिर कान्हा माखन चोरी करने चले

– हिमांशु ओझा

दोस्ती

July 30, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

ना गम है
ना दर्द है
जो बिताया दोस्तों के साथ
वो ही सुनहरा वक्त है

ना है कोई खून का रिश्ता
फिर भी निभाते ये दिलवाले है
एक दूसरे में खुश रहते
ये मस्त मतवाले है

चाहे दिन हो या रात हो
कोई दुःख लगा ना पाए हाथ
अगर दोस्तों का साथ हो

कई सफल कहानियो के पीछे
दोस्तों का भी साथ होता है
जरुरी नहीं की हर बार
औरत का ही हाथ होता है

दोस्तों के बगैर
जीना भी क्या जीना
वो दोस्त ही क्या
जो ना हो कमीना

ज़िन्दगी बीत जाती है
बस रह जाते है कर्म
ज़िन्दगी जीना सीखा दे
वो ही है दोस्ती का धर्म

– हिमांशु ओझा

Happy friendship day dosto🥳🥳🥳👍🏻🥰

दिल बेचारा

July 26, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम्हारे जाने से
रो पड़ा जगत सारा
आओ देखे दिल बेचारा

हर मूवी की तरह
इस मूवी से भी
जीत लिया तुमने दिल हमारा
आओ देखे दिल बेचारा

जिस बॉलीवुड ने
तुम्हे दुत्कारा
उसको कर देंगे बेसहारा
आओ देखे दिल बेचारा

तुम्हारी स्माइल पे
जगत अपना दिल है हारा
आओ देखे दिल बेचारा

– हिमांशु ओझा

जमाना

July 24, 2020 in शेर-ओ-शायरी

ना रुकेगा ये वक्त
ना जमाना बदलेगा
सुख जायगा जब पेड़
तो ये परिंदा ठिकाना बदलेगा

– हिमांशु ओझा

तबियत

July 22, 2020 in शेर-ओ-शायरी

इज़्ज़त कमाने निकला था
गुरुर कमा आया
पैसे कमाने के चकर में
तबियत बिगड़ आया

– हिमांशु ओझा

लगाव

July 19, 2020 in Other

दिल में लगा एक घाव हो गया
हर प्रश्न का जवाब हो गया
हमे पता ना चला
शायद हमे भी उनसे लगाव हो गया !

देर तक सोते थे
अब खुली आँखों का ख्वाब हो गया
उसके आने से ज़िन्दगी में
सब कुछ लाजवाब हो गया

मुझे समझने वाला वो
खुली किताब हो गया
ज़िन्दगी की दौड़ में जीता
वो खुशियों का ख़िताब हो गया

अभी मिले ही थे
नजाने कहा गायब हो गया
उसके ना मिलने पर
आँखों से आंसू निकले
तब हमे पता चला
हमे भी उनसे लगाव हो गया

अब उठ नौजवान

June 26, 2020 in शेर-ओ-शायरी

अब उठ नौजवान
तुझे कुछ करना है
जगमगाते दीप से
सूरज की तरह चमकना है

दिल जो कहे
वो करना है
ज़िंदा मछली की तरह
धारा के विपरीत तैरना है

ज़िन्दगी गिराएगी
कभी भटकाएगी
कहदे अपने होसलो से
हर हाल में मंज़िल तक पहुंचना है

अब उठ नौजवान
तुझे कुछ करना है

हार भी जाये तो गम मत करना
अपनी राह पर चलते रहना
क्यूंकि हार की रात कितनी घनी हो
पर जीत का सवेरा तो होना है

ना डर तू
ना घबरा तू
अपने होसलो के पंखो को फैलाके
परिंदे की तरह आसमान में उड़ना है

अब उठ नौजवान
तुझे कुछ करना है

अपने गमो को पीछे छोड़
तुझे आगे बढ़ना है
अब उठ नौजवान
तुझे कुछ करना है

ये जीत तो मिटटी है
हाथ में आते ही फिसलेगी
मेहनत के पसीने से
इस मिटटी को कठोर बनाना है

अब उठ नौजवान
तुझे कुछ करना है

इस ज़िन्दगी के सागर में
कई तूफान आएंगे
अपने हौसले की नाव को मजबूत बना
इस सागर को पार करना है

अब उठ नौजवान
तुझे कुछ करना है

पहले कदम में
तेरा मन बहकेगा
कुछ और करने को कहेगा
पर याद रखना अपना वादा
जो अपने आप से किया था
चाहे गिर जाऊ राहो में कई बार
पर मंज़िल की नज़रो से नहीं गिरना है
अब उठ नौजवान
तुझे कुछ करना है

समझता हूँ तेरी
राहे आसान नहीं
रख भरोसा उस ऊपर वाले पर
अगर उन्होंने रास्ता दिखाया है
तो उनकी दया से ही तू मंज़िल तक पहुंचना है
अब उठ नौजवान
तुझे कुछ करना है

कर तप पूरी लगन से
तुझे ध्रुव तारा बनाना है
अपने आने वाली पीढ़ी का
मार्गदर्शक बनना है
अब उठ नौजवान
तुझे कुछ करना है

– हिमांशु ओझा

पिताजी

June 22, 2020 in शेर-ओ-शायरी

अपने सुख दुःख की पोटली को
रख किनारे में
हमारे सुख दुःख को
अपना जीवन बनाया
पिताजी ने ही हमे सब कुछ सिखाया

कल तक चलना नहीं आता था
चलना आपने सिखाया
आज ज़िन्दगी की दौड़ में
दौड़ रहा हूँ
संभलना आपने सिखाया
पिताजी ने हमे सब कुछ सिखाया

कभी प्यार से
कभी डांट के
हमे सही गलत का मतलब बताया

खाकर ठोकर
रह ना जाये हमारा दिल कमजोर
इस दिल मजबूत बनाया
पिताजी ने हमे सब कुछ सिखाया

नमन 🙏

June 20, 2020 in शेर-ओ-शायरी

जिनके नाम से दुश्मन
थर थर कांपा करते है
बलिदान हुए वीर जवानो को
हम सब नमन करते है

ये सच्चे देश भक्त है
ऐसे नहीं जायेंगे
दुश्मनो को
अपनी रूह से भी हराएंगे

देश को जगमगाये
ये वो अमरदीप है
देश के लिए मर मिटे
ये वो शहीद है

वो चले गए
अब हमे उनकी राह पर चलना है
उनकी तरह अपने देश के लिए कुछ करना है

हमारी सुरक्षा के लिए
सीमा पर तैनात ये रहते है
सभी वीर जवानो को
हम सब नमन करते है

जय हिन्द 🙏

नमन 🙏

June 18, 2020 in Other

जिनके नाम से दुश्मन
थर थर कांपा करते है
बलिदान हुए वीर जवानो को
हम सब नमन करते है

ये सच्चे देश भक्त है
ऐसे नहीं जायेंगे
दुश्मनो को
अपनी रूह से भी हराएंगे

देश को जगमगाये
ये वो अमरदीप है
देश के लिए मर मिटे
ये वो शहीद है

वो चले गए
अब हमे उनकी राह पर चलना है
उनकी तरह अपने देश के लिए कुछ करना है

हमारी सुरक्षा के लिए
सीमा पर तैनात ये रहते है
सभी वीर जवानो को
हम सब नमन करते है

जय हिन्द 🙏

सच्ची ख़ुशी

June 16, 2020 in Other

पथ पथ ख़ुशी की खोज में भटकता रहता हूँ
उसके नूर के लिए तरसता रहता हूँ
वो है हमसे खफा
उस से मिलने के लिए
भेस बदलता रहता हूँ

पैसा पा लिया
शोहरत पा ली
फिर भी सोचता हूँ
कहा मिली ख़ुशी
उसको ही खोजता हूँ

असली नकली ख़ुशी में क्या फर्क है
बस वही समझता रहता हूँ

दर दर भटक के थक गया
अपनी ज़िन्दगी से पक गया
आखिर में सोचा
दिल की सुन लेता हूँ
दिल बोला सुनो मेरी बात
क्यों भटकता हो दरबदर
ख़ुशी तो तुम्हारे साथ

ये सुन झाँका अपने मन के भीतर
सोचा कितना बड़ा हूँ बेवकूफ
सच्ची में ख़ुशी तो है अपने अंदर

फंदे

June 14, 2020 in शेर-ओ-शायरी

दो गज के फंदे से
खुदको क्यों मार गए
इस बेरहम दुनिया ने अब क्या किया
जो खुद से ही हार गए

चंद शब्द कहता हूँ
RIP सुशांत सिंह राजपूत के लिए
🙏🙏

दुःख

June 13, 2020 in शेर-ओ-शायरी

वो इंसान अपने हर काम में फंसता है
जो दुसरो के दुःख पे हँसता है !

तुझे कुछ कर दिखाना है

June 13, 2020 in शेर-ओ-शायरी

भूतकाल के डर को
वर्तमान में ख़तम कर
भविष्य आगे भड़ाना है
तुझे कुछ कर दिखाना है
तुझे कुछ कर दिखाना है

दुनिया के जाल से निकलकर
तुझे अपना मान बढ़ाना है
तुझे कुछ कर दिखाना है

तेरा मन तुझे रोकेगा
तेरे हर काम पे टोकेगा
अपने इरादों के पंखो को फैलाये
तुझे उड़के दिखाना है
तुझे कुछ कर दिखाना है

दिल से किया काम
तेरे काम आएगा
कर मेहनत
तेरा भी वक्त आएगा

हर हाल में मंज़िल को तुझे पाना है
तुझे कुछ कर दिखाना है

– हिमांशु ओझा

ऐ ज़िन्दगी

June 11, 2020 in शेर-ओ-शायरी

ऐ ज़िन्दगी मैंने तुझको दिया क्या है
तेरे लिए किया क्या है
तूने मेरे गम पे खुशियों के वस्त्र ढक दिए
तेरे लिए मैंने सिया किया है

ना रखा तुझे खुश
ना रखा ऐशो आराम में
हर पल तुझसे माँगा
तुझे दिया क्या है

मैं पराया मांगू हर चीज़ स्वार्थ में
तू अपना समझ कर दे निस्वार्थ में
आखिर समझ नहीं आया
ये रिश्ता क्या है

तूने हर वक्त साथ दिया
मेने हर कीमती वक्त है खोया
तू तो हर वक्त मेरे लिए ही जिया है
पर ऐ ज़िन्दगी मैंने तुझको दिया क्या है

नकाब

June 11, 2020 in शेर-ओ-शायरी

कोई किसी के सुख में सुखी ना होये
ना होये किसी के दुःख में दुखी
बदल रहे नकाब बस कुछ मतलबी

मजदूर

June 9, 2020 in Poetry on Picture Contest

हमारा कसूर क्या था
आखिर क्यों मजदुर हुए हम
दर दर भटकने पर
मजबूर हुए हम

इस महामारी से तकरार है
रोजी रोटी की दरकार है
अपनों से मिलने के लिए
बेक़रार हुए हम

मरने का खौफ नहीं
अपनों के साथ जीने मरने की खायी है कसम
इस कसम को निभाने के लिए
नाराज रास्तो पे चल पड़े हम

जिन्दा रहे तो कीड़ों-मकोड़ों
से रेंगते नजर आयेंगे ।
मर गए तो ये सवाल,
तुझसे पूछे जायेंगे ।

मेरा कसूर बता,
क्यों मजदूर हुए हम ।

सच झूठ

June 9, 2020 in Other

एक दिन रस्ते पर मिले दो नौजवान
मैंने पूछा दोनो से क्या है आपका शुभ नाम
पहला बोला मेरा नाम है सच
सब सोचते मैं हूँ ढीठा
दूसरा बोलै मेरा नाम है झूठ
दुसरो से बोलता हूँ मीठा

झूठ बोले सच होता है मेरे नीचे
ये बोले सामने
मैं बोलू पीठ पीछे

हम दोनों से चलती है दुनिया की हर रीत
झूठ हो जाये कितना भी बड़ा
पर सच जाता हमेशा जीत

हर रस्ते पे हमसे मिलना होगा
हम में से एक को तुम्हे चुनना होगा
सच को चुनने से
कुछ वक्त में मिल जायगा आराम
झूठ चुनने से
कुछ वक्त में ज़िन्दगी हो जायगी हराम

Shayri

June 8, 2020 in शेर-ओ-शायरी

हर बीमारी का हल दवा नहीं होती
हर छोटी चीज़ रवा नहीं होती
भुज जाते है दीये कभी तेल की कमी से
हर बार कुसूरवार हवा नहीं होती
– हिमांशु ओझा

टुटा दिल

June 6, 2020 in काव्य प्रतियोगिता

आज मेरी हैसियत तुमने दिखा दी
तुम्हारी नज़रो में मेरी कीमत तुमने दिखा दी
कल तक तो पूछती थी खैरियत
आज मेरी बुरी किस्मत तुमने दिखा दी

मेरे साथ जीने मरने की कस्मे खाती थी
मेरे साथ हर पल समय बिताती थी
मैं कमजोर क्या हुआ
मेरी औकात तुमने दिखा दी

मैं भूल जाऊ ये मुमकिन है
मेरा दिल तुम्हे भूल जाये ये नामुमकिन है
मेरा दिल कितना कमजोर है
आज ये हकीकत तुमने दिखा दी

जान

June 6, 2020 in काव्य प्रतियोगिता

मेरे दिल की आन हो तुम
मेरे मन की शान हो तुम
थोड़ी नादान हो
पर मेरी जान हो तुम

मुस्कुराओ तो फूल खिल जाये
तुम्हारी ख़ुशी में मुझे सब मिल जाये
इस अंजानी दुनिया में
मेरी पहचान हो तुम

तुम्हे बस देखता रहू वारि वारि
तुझमे ही मेरी दुनिया सारी
तुमसे ही महके ज़िन्दगी
मेरी गुल-ए-गुलज़ार हो तुम
– हिमांशु ओझा

रिश्ते

June 5, 2020 in काव्य प्रतियोगिता

सब रंगो का मेल होते है
दुःख सुख में साथ होते है
बुरे हो या अच्छे
रिश्ते तो रिश्ते होते है

रिश्तो के भी कई नाम होते है
किसी की माता तो किसी के पिता
किसी की जीवनसाथी तो किसी के दोस्त होते है
रिश्ते तो रिश्ते होते है

रिश्तो ने ही हमे जीना सिखाया
उनके कारण ही हमने सब कुछ पाया
उन्होंने ही हर रस्ते पे मदत की
हमारे मंज़िल पहुंचने पर उन्होंने ही जशन बनाया

रिश्ते निभाना ही हमारा पहला धर्म है
यही पहला और यही आखरी कर्म है
मत समझ धन दौलत को रिश्ते से बड़ा
क्युकी ये बहुत बड़ा अधर्म है

अँधेरे में ये दीये होते है
दुसरो के खातिर जीये होते है
डूबी ज़िन्दगी के ये नाव होते है
दुसरो की ख़ुशी में अपनी ख़ुशी देखने वाले
आखिर रिश्ते तो रिश्ते ही होते है
– हिमांशु ओझा

सपना

June 5, 2020 in काव्य प्रतियोगिता

तेरे नैनो में यु समाता हूँ
बंद आंखे तो क्या
खुली आँखों में भी दिख जाता हूँ
तेरी अनहोनी को होनी कर
मैं सपना कहलाता हूँ

प्रगति का प्रथम चरन
तेरा मैं ही बढ़ाता हूँ
तेरे मन का आईना हूँ
तेरी हकीकत दिखाता हूँ

कभी पूरी नींद दिलाता हूँ
तो कभी बीच नींद में ही जगाता हूँ
तुम्हारा नजरिया हूँ
अच्छा तो कभी बुरा कहलाता हूँ

आमिर गरीब में समानता दिखाता हूँ
गरीब को भी विदेश घुमा लाता हूँ
मेरे को देखने में क्या जाता है

मजा तो तब आये
मेहनत कर मुझे पूरा कर जाओगे
सिर्फ मुझको देखके
ना कुछ पाए थे ना कुछ पाओगे

– हिमांशु ओझा

इंसानियत भूल जाते है

June 4, 2020 in काव्य प्रतियोगिता

इंसान ही इंसानियत भूल जाते है
जिसको मानते है भगवान
उसको ही मार आते है

ये सिर्फ भगवन को जानते है
पर उनकी कहा मानते है
चंद पैसो के लिए
ये खुद बीक जाते है

इस महामारी से भी कुछ ना सीखा
उस मासूम के जान के बदले तुझे पैसा ही दिखा

अरे मुर्ख
उसके साथ एक नन्ही है जान ये तो सोचा होता
चंद पैसो के बदले उस मासूम को देखा होता
ऐसे कर्मो से ही धरती पे विनाश है आते
इंसान ही इंसानियत है भूल जाते

पता ना चलिया है

June 3, 2020 in काव्य प्रतियोगिता

वक्त वक्त देख वक्त का
पता ना चलिया है
जब चले पता
तब तक वक्त निकलया है

सोच सोच के राह का
पता न चलिया है
जब चले पता
तब तक मंज़िल छुटिया है

क्रोध क्रोध में क्रोध का
पता ना चलिया है
जब चले पता
तब तक रिश्ता चला गया है

लोभ लोभ में लोभ का
पता ना चलिया है
जब चले पता
तब तक सब ख़तम हो गया है

मै मै में मै का
पता ना चलिए है
जब चले पता
तब तक पुण्य ख़तम हो गया है
– हिमांशु ओझा

वक्त

June 2, 2020 in काव्य प्रतियोगिता

मत कहो की वक्त नहीं
कही वक्त न कह दे हम तो है पर तुम नहीं
– हिमांशु ओझा

प्यार एक तरफ़ा

June 1, 2020 in काव्य प्रतियोगिता

खुदा ने सुनी मेरी
जो आपको यहाँ पंहुचा गए
हमे तो खबर ना हुई
आप कब हमारे दिल में आ गए

गहरे समुन्दर में
प्यार की नईया पार हो जाये
हमारी तो हां है
बस उनकी भी हां हो जाये

ज़िन्दगी में एक पल सुनहेरा आता है
प्यार की घडी में
इंतज़ार कहलाता है

तुम्हारे बोल में भी एक नगमा हो गया
तुम्हे हो ना हो
हमे प्यार एक तरफ़ा हो गया

ये दिल सनम तेरा हो गया
तेरे लिए मेरा प्यार ग़हरा हो गया

हमने अपने दिल को तेरी और कर लिया
भले ही ना जाने तू हमे
तेरी पसंद ना पसंद पे हमने गौर कर लिया

तुझसे इज़हार करने से शर्माता हूँ
तुझको खो ना दू
ये सोचके घबराता हूँ

हमारा मिलना जरुरी नहीं
पर ज़िद है मेरी
ज़िद भी ख़तम कर दू
अगर इसमें ख़ुशी है तेरी

तुझको देख प्यार पहली दफा हो गया
तुम्हे हो ना हो
हमे प्यार एक तरफ़ा हो गया

हिमांशु के कलम की जुबानी

अवसर

May 30, 2020 in काव्य प्रतियोगिता

ये धरती पे अंधकार है छाया
देख सूरज नया सवेरा है लाया
तेरी ज़िन्दगी में नया अवसर है आया
जो करे कोशिश
अवसर उसने ही पाया

कर कोशिश उस अवसर को पाने की
कर कोशिश हर डर को हराने की
तू भी जा सकता है चाँद पर
बस देरी है हौसला जगाने की

रह मत चुप एक बिल में
खुलके कर जो हो तेरे दिल में
पता नहीं कब मिले मौका
कर कुछ अच्छा हर दिन में

कुछ मिले ना मिले
तेरी कोशिश करता चल
भले ना मिले मंज़िल
तेरे रस्ते सुहाने करता चल

हिमांशु के कलम की जुबानी

जन्मदिन

May 29, 2020 in काव्य प्रतियोगिता

आज मेरा जन्मदिन है
आप लोगो ने मुझे बहुत कुछ सिखाया उसके लिए धन्यवाद्

छोटी बहन

May 28, 2020 in काव्य प्रतियोगिता

सुने घर में फिर बाजी किलकारी
आंगन में पायल छनकारी
टुकुर टुकुर देख
आ रही छोटी बहन प्यारी

सामने उसको पाए
सारे दुःख दूर हो जाये
जब भी वो मुस्कुराये
खुशियों की लहर है आये

फिर आयी खुशिया जो थी थमी
आगई घर की लक्ष्मी
बढ़ाई घर की रौनक
जिसकी थी कमी

तेरी मुस्कान पे दुनिया तेरे नाम हो जाये
तू रोये तो पूरा घर है हिल जाये
तुझको देख मिल जाती है खुशिया सारी
मेरी बहन है प्यारी

हिमांशु के कलम की जुबानी

श्याम

May 27, 2020 in काव्य प्रतियोगिता

अनजान सी रुक्मणि बेचैन सी मीरा
राधा ही जाने श्याम की पीड़ा

हिमांशु के कलम की जुबानी

गुरु

May 23, 2020 in काव्य प्रतियोगिता

ना था रस्ते का पता
ना थी मंज़िल की चाहत
थके ज़िन्दगी से
गुरु के चरणों में मिली राहत

माता पिता ने चलना सिखाया
मिला ना मंज़िल का कोई अता
गुरु के चरणों में शीश झुकाकर
मिला सही गलत का पता

गुरु का रखो मान
उनका ना करो अपमान
गुरु के ज्ञान को धारण कर
अर्जुन बन गया धनुर्धारी महान

गुरु के ज्ञान को स्वीकार करो
इस ज्ञान से अपना उद्धार करो
हर क्षण इनका गुण गाकर
इनके चरणों को प्रणाम करो

गुरु के ज्ञान से सब ठीक हो जायगा
इस ज्ञान रूपी दीपक से
अज्ञान का अंधकार हार जायगा
ज़िन्दगी की दौड़ में
ये ज्ञान काम आ जायगा

हिमांशु के कलम की जुबानी

दोस्ती

May 22, 2020 in काव्य प्रतियोगिता

कभी बुलाये प्यार से
कभी बुलाये मजाक से
ज़िन्दगी की हर घडी ये साथ देती है
दोस्ती होती ही ऐसी है

दिल होवे गम में
तो ये बात करे नरम में
छोटी ख़ुशी में भी
पार्टी मांगे जमके
मूड चाहे जैसा हो ये मज़ाक करती है
दोस्ती होती ही ऐसी है

किसी से हुई मारपीट हो
किसी ने कर दिया चीट हो
ये उसको भी पछाड़ देती है
दोस्ती होती ही ऐसी है

ये ना बुलाये कभी नाम से
दूसरा उड़ाए मजाक तो
गया वो काम से
हर बात में ये पास होती है
दोस्ती होती ही ऐसी है

दोस्ती की रीत तो पुरखो से चली आयी है
विभीषण जैसा मित्र पाकर श्री राम ने रावण पर विजय पायी है
दोस्त हर वादा निभाता पूरा है
दोस्त ही नहीं तो जीवन अधूरा है
परिवार भेजे सही राह पे तो मंज़िल ये पहुँचती है
दोस्ती होती ही ऐसी है

हिमांशु के कलम की जुबानी

श्री राम

May 20, 2020 in काव्य प्रतियोगिता

कथा सुनाऊ पुरुषोत्तम श्री राम की
विष्णु रूपी अयोध्या पति नाथ की
त्रेता युग में जनम हुआ
राजा दशरथ के महल में
अयोध्या हुआ पूरा चहल पहल में

सुमित्रा से जनम हुआ लक्ष्मण और शत्रुघ्न का
जनम हुआ कैकेयी पुत्र भरत का
खुशियों की लहर उठी
आये भाई श्री राम के

ग्रंथो का ज्ञान मिला गुरु वशिस्ठ की कृपा से
शास्त्रों का ज्ञान मिला गुरु विश्वामित्र की दया से

आयी घडी खुशियों की
सबका जीवन सफल है हो गया
राम का सीता से मिलन हो गया
विधाता ने इस सुन्दर जोड़ी को है जोड़ दिया
सीता के लिए श्री राम ने शिव धानुष है तोड़ दिया

मंथरा ने शब्द भरे केकयी के कान में
भरत बने युवराज और राम जाये वन में
भरत ने ठुकराई बात
रखी पादुका श्री राम की सिंघासन पे
चौदह साल के लिए चल दिये श्री राम लक्ष्मण और सीता वन में

मर्यादा मन में है पाले
वस्त्र धारी वल्कल वाले
जनकनन्दिनी का संगी।
सेवक जिसका बजरंगी।

था व्यभिचारी, वामाचारी।
वो रावण बड़ा अहंकारी
लाकर उसको पंचवटी।
मन में हर्षाया कपटी

मिथ्यावादी फैलाकर जाल
बुला बैठा लंका में काल
कमल नयन फूटी ज्वाला
महापाप रावण ने कर डाला

दानव बोला अंत में
जो विजय पताका नाम है
वो राम है , वो राम है

इंसा में बसा भगवान है
शत्रु को क्षमादान है
सर्वाधिक दयावान है
मर्यादा की पहचान है
नर नारी का सम्मान है
हिंदुत्व का अभिमान है

हिमांशु के कलम की जुबानी

कोरोना

May 19, 2020 in काव्य प्रतियोगिता

चंद लम्हो की ज़िन्दगी में अब और क्या- क्या होना है
ब्रष्टाचार क्या कम था जो आगया कोरोना है
गरीब खा रहे मांगके और अमीरो के पास सोना है
मिडिल क्लास की किस्मत में तो रोना ही रोना है
इस परेशानी में पूरा जाहां है रो दिया
कितनो ने अपने परिवार को है खो दिया
सारे देशो में ये लॉकडाउन है शुरू हो गए
जो जहा थे वो वही है रुक गए
घर जाते वक़्त कुछ रस्ते में ही मर गए
और घरवाले है की घर में बैठे बैठे थक गए
फिर भी इरादों में कमी नहीं लाएंगे
नियम पालन कर इसको हम हराएंगे
विदेशी को छोड़ अपनी संस्कृति अपनाएंगे
जोड़ लेंगे हाथ पर हाथ नहीं मिलाएंगे
वक़्त- वक़्त पर हाथ हम धोते जायेंगे
बहार जाते वक़्त मास्क पहन जायेंगे
किसी अज्ञात चीज़ को हाथ नहीं लगाएंगे
सुनो डॉक्टर, पुलिस तुमसे कुछ कह रहे
बहार रहकर सबकी रक्षा है ये कर रहे
अपनी जानपर खेलकर इस बीमारी से लड़ रहे
निकलो मत घर से सबको है ये कह रहे
बरतो सावधानी डरो मत सबको ये बता रहे
पूरी कोशिश करके बीमारी को जड़ से है ये मिटा रहे
यह सुनके पूरा देश बोले आज
में भी इनका साथ दूंगा
ये जो बोले उस नियम का पालन करूँगा
रहकर घर पे अपनी और अपने देश वासियो की रक्षा करूँगा
हम देश वासियो को अब साथ मिलकर चलना है
चंद लम्हो की ज़िन्दगी में अब और क्या- क्या होना है

भुआ

May 18, 2020 in काव्य प्रतियोगिता

बैठे थे गुमसुम से एक टक निहार के
दादी आयी बोली फिर
भुआ आ रही है ससुराल से
ये सुनके खुश हुए की भुआ हमारी आएगी
उनके आने से इस घर की रौनक बढ़ जाएगी
अपने साथ वो मेरे भाइयो को भी लाएगी
हम सबको वो खेल खिलाएगी
मेरे लिए वो स्पेशल ड्रेस भी लाएगी
भुआ भतीजे का तो रिश्ता ही न्यारा है
एक रिश्ते में ये कई रिश्ते निभाती है
प्रेम बरसाने में तो वो माँ बन जाती है
बड़ी बहन की तरह हर मुश्किल में मदत कर जाती है
तारीफ में उनकी तो शब्द कम पड़ जायेंगे
नदी क्या सातो सागर भर जायेंगे
भुआ हमारी निभाती हर रीत है
भुआ हमारी प्रेम का प्रतिक है

दादी माँ

May 17, 2020 in काव्य प्रतियोगिता

आंगन में बैठी एक टक निहार लेती है
चलती धीरे पर काम तेजी से कर लेती है
पढ़ना कम आता है पर दुनिया का पाठ पढ़ा देती है
डॉक्टर नहीं पर हर दर्द ठीक कर देती है
दादी माँ की बात ही निराली है
तुम्हे मिले सबसे ज्यादा इसलिए बादमे वो खाती है
तुम सो चैन से इसलिए बादमे वो सोती है
दिखा ख़ुशी का चेहरा अपने दुःख में अंदर ही अंदर रोती है
साक्षात् भगवन भी इनसे मार्ग दर्शन लेता है
सफल वो ही ज़िन्दगी में जो इनसे आशीर्वाद लेता है
चारो धाम का पुण्य मिले जो इनकी सेवा करता है
जो इनके साथ रहे वो किसी मुश्किल से नहीं डरता है
माँ का दर्जा ऊंचा है
पर इनका उनसे भी ऊँचा है
इनके बताने पर ही सही दिशा पर चलती दुनिया सारी है
दादी माँ की बात ही निराली है

हिमांशु के कलम की जुबानी

उठ भी जा ना

May 16, 2020 in काव्य प्रतियोगिता

चल अब उठ भी जा ना
अभी कुछ काम नहीं फिर भी क्यों तू थकता है
मुश्किलों को देख के इतना क्यों डरता है
सिख कुछ सूरज , चाँद से
खुद वक़्त पे है आते
पुरे जहान में वक़्त पे रौशनी है फैलाते
अगर ये नहीं उठते वक़्त पे
तो कहा तू उठा करता
ना कही देख पाता सिर्फ सो जाया करता
चल अब उठ भी जा ना
सिख किसान , डॉक्टर , सैनिक से कुछ
कितनी मेहनत करता है
सब काम के बाद भी समय पे ये उठता है
मेहनत करने वाला ही चैन की नींद सोता है
अगर ये नहीं उठते वक़्त पे
तो ना कभी चैन से खाता और ना सो पाया करता
चल अब उठ भी जा ना
बुजर्गो से सीख कुछ
कितनी जल्दी उठ रहे
रिटायर्ड हो गए पर अपना काम कर रहे
जल्दी उठ कर ये पूजा पाठ कर रहे
अगर ये नहीं उठते वक़्त पे
तो तुझे कौन उठाया करता
खुद मेहनत कर तेरी चीज़े कौन लाया करता
तू जीवन के हर कदम पे सफल हो ये दुआ कौन किया करता
चल अब तो उठ जा ना

दिल तुम्हारी और

May 15, 2020 in काव्य प्रतियोगिता

आज भी वो दिल तुम्हारी और जाता है
जो तुमने तोड़ दिया था
आज भी तुम्हारे गुण गाता है
जिसका मुँह चुप कर दिया था
आज भी तुम्हारी गलियों में रहता है
जिसको कही और छोड़ दिया था
ये दिल सब जनता है
पर कहा मानता है
ये आज भी तुम्हारी आवाज सुनना चाहता है
जिस से तुम बोलती नहीं
खूब समझाया पर माना नहीं
वो किसी की दिल लगी को सजा समझने लगे ,
दो पल रूत के गुज़ारे , तो जफ़ा समझने लगे
अपने दिल से बोला आ तुझे जोड़ देता हु
ज़िन्दगी के पहिये को ख़ुशी की और मोड़ देता हु
इस नर्क से तेरा नाता तोड़ देता हु
पर दिल को कहा समझ में आता है
आज भी वो दिल तुम्हारी और जाता है

हिमांशु की कलम जुबानी

दिल

May 14, 2020 in काव्य प्रतियोगिता

दिल में जगह की कमी नहीं होती
यह तो खुला आसमान है
खूब पंख फैलाओ यहाँ बाटने वाली जमीन नहीं होती

हम सब

May 14, 2020 in काव्य प्रतियोगिता

आओ इस कल्पना की दुनिया में खो जाये
हम सब एक हो जाये
ये जात पात सब मिट जाये
आओ सब अपने दुःख सुख में एक हो जाये
आओ इस कल्पना की दुनिया में खो जाये
हमारे सपनो में भी पंख लग जाये
खुद खुश रहे और दुनिया में ख़ुशी फैलाये
हम ज़िन्दगी में खूब उचे उड़े
पर धरती को ना भूल जाये
इस दुनिया के समुन्दर में तेर हम सफलता के मोती ले आये
कभी डॉक्टर बन जाये तो कभी सैनिक बन जाये
अपने देश के लिए कुछ कर जाये
हम सब एक हो जाये
आओ इस कल्पना की दुनिया में खो जाये

हिमांशु के कलम की जुबानी

mere dil

May 13, 2020 in काव्य प्रतियोगिता

मेरे दिल से आज एक आवाज आयी
बोलै बहार मत जाना मेरे भाई
वरना पुलिस करेगी पिटाई
पुलिस और डॉक्टर कर रहे है कोरोना से लड़ाई
कोरोना के चाकर में कुछ की रुक गयी है शादी और सगाई
सबकी रुक गयी है कमाई
सबको मिलकर हटानी है इस देश से कोरोना की परछाई
सरकार की मनो बात जो उन्होंने है बताई
आओ घर में रहकर जीते इस कोरोना की लड़ाई
मेरे दिल से आज एक आवाज आयी

हिमांशु के कलम की जुबानी

मेरे पास

May 11, 2020 in काव्य प्रतियोगिता

धीरे से मेरे पास आ जाता है कोई
मेरे दिल को लुभा जाता है कोई
मेरे कान में मीठे स्वर बोल
परछाई बन जाता है कोई
मेरा मन ज़रा बेचैन है
उसको ज़रा सा भी नहीं चैन है
दर्शन दे मन शांत कर जाता है कोई
धीरे से मेरे पास आ जाता है कोई

हिमांशु के कलम की जुबानी

माँ

May 10, 2020 in काव्य प्रतियोगिता

Happy mothers day
हर सफलता के पीछे माँ का सहारा है दोस्तों
डूबती नैया पार लगदे वो किनारा है दोस्तों
माँ के आशीर्वाद से जीवन सफल हो जायगा
माँ के प्यार से सब ठीक हो जायगा
सेवा करो माँ की जीवन का हर शून्य ख़तम हो जायगा
अपमान मत करो माँ का वर्ण हर पुण्य ख़तम हो जायगा
माँ शब्द बोलने से चारो धाम हो जायगा
हर व्यक्ति बस यही गुण गाएगा दोस्तों
हर सफलता के पीछे माँ का सहारा है दोस्तों

written by – himanshu ojha

kuch baat to hai tum me

May 7, 2020 in काव्य प्रतियोगिता

Kuch baat to hai tum me jo mujhe tumhari or le jaati hai

Tumhari rooh ko meri rooh se har waqt milati hai

Yaad me tumhari kabhi hasati hai to kabhi rulati hai

Badi kambhaqt hai tumhari yaad sapne me bhi aa jaati hai

Jaha jau waha tumhari parchai dikh jati hai

Tumhare naino ki sundarta is dil me samati hai

Tumhari katilana muskan pe jaan si atak jaati hai

Kuch to baat hai tum me jo mujhe tumhari or le jaati hai

Haal Bataeye

April 24, 2020 in काव्य प्रतियोगिता

Samundar kehta hai nadi se zara mujhme mil jayeye
Aaram se bathiye zara apna haal to bataeye
Wo bole haal to bata denge zara ek cup chai to layeye
Sirf chai se baat nhi banegi zara nashta bhi to khaeye
Mata ji ki tabiyat kaisi haii ye bataeye
Apne sath unko bhi humare leke ayeye
wo sab to thik hai apna haal to bataeye

suneye meri kavita

April 21, 2020 in काव्य प्रतियोगिता

Shayri – Kiske khwaabo me raat bhar jag rahe ho
Kya baat hai aaj bade khush lag rahe ho
POEM
Suneye zara meri kavita shuru me karta hu
Garmi ka waqt hai thodi thandi baat me karta hu
In dino sabki sundar kavitaye me padhta hu
Kavita likhna ap sabse hi to me sikhta hu
Fir jake apni kavita apke samne rakhta hu
Desh ka naujavan hu
Tirangee se pyar karta hu
Ap sabhi ki tarah me bhi uspe marta hu
Bharat mata ki jai har bar me yeh kehta hu
Kisike liye bura na bolu har bar me yeh sochta hu
Kaisi lagi meri kavita jo me likhta hu
Kya kavita ke dhaage me shabd sahi pirota hu
Suneye zara meri kavita shuru me karta hu

THANK YOU

Desh Sankat

April 20, 2020 in काव्य प्रतियोगिता

Desh Sankat

Ye desh me kaisa sankat hai aa gaya
Kuch ko kar raha bimar or kuch ko maut ki nind sula gaya
Ye sadko pe kaisa sanata hai chaa gaya
Ye desh me kaisa sankat hai aa gaya
Ab aya hai to use hume harana hai
Markar nhi hath jodkar usse bhagana hai
Bahar bulaye kitna par ghar par rehke use harana hai
Khud to khush rehna or dusro ko khush karna hai
Bure waqt me ekta banaye rakhna hai
Desh ke veero me doctor upar aa gaya
Khud ki janpar khel kar dusro ko bacha gaya
Senik sarhad pe desh ki raksha hai karte
Andar se police ne hai is bimari se bacha diya
Sabji wala ho ya rashan wala ya ho newspaper wala
In sab ne us waqt madat ki jab pura desh ghabra gaya
Ye desh me kaisa sankat hai aa gaya

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