
Pragya
आरजू
February 23, 2020 in शेर-ओ-शायरी
करी थी आरजू एक जो पूरी ना हुई
पर एक सबक दे गई किसी को
इतना नजदीक मत लाओ
कि वह आपकी शुभ -ओ-शाम जाए
क्या हुआ
February 23, 2020 in शेर-ओ-शायरी
क्या हुआ अगर आप हमसे
खफ़ा हो गये ।
सांसे थम गई सपनें जुदा हो गए
तुम्हें क्या पता
February 22, 2020 in मुक्तक
तुम्हें क्या पता के हमें
छोड़ कर तुमने क्या खोया है
कोहिनूर को शीशा समझ कर
तुमने हीरा खोया है।
सिर्फ़ उसे पाने की खातिर
जो चन्द दिनों के लिए
तेरा है।
मात खा गए हम
February 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
मात खा गए हम आज
ज़िन्दगी की आरज़ू में ।
मौत भी ना नसीब हुई
इश्क की आरज़ू में ।
समझते थे प्यार को
खूबसूरत ग़ज़ल हम
दर्द ही पाये हर कदम पर
जीते थे बस तेरे ही नाम पर ।
हम भी ना रोते अगर
उनकी तरह रिश्तों में दिमाग़ लगाते।
हर सितम को दिल जीते रहे
दर्द को आंसुओं में पीते रहे ।
धोखे को भी वफ़ा माना
प्यार किया इतना के तुझे खुदा माना।
ना आते झांसे में अगर तो
क्यूँ बहाते आखों से झरने हम यूँ ।
रुबाई
February 22, 2020 in ग़ज़ल
कभी सोचा ना हो वह काम हो जाता है,
जो करीब है वह दूर चला जाता है।
मासूम सा चेहरा इन नाज़ुक-ए- हथेलियों से,
हिना का रंग-चंद अश्कों से उतर जाता है।
फरेब करने वाले खुश रहते हैं नसीहत से,
ईमान ताउम्र का गम खरीद लाता है।
ना कुछ पास था बस सच्ची मोहब्बत थी,
अब तो प्यार करने वाला भी बेईमान नजर आता है।
ना सोंच पास है जो कल भी नजर आएगा,
साया है करीब आके बड़ी दूर चला जाता है।
जो लब-ए- रुखसार बोलने में थर-थराते हैं,
उन्हीं के हाथों से तेरा जनाजा सजाया जाता है।
एक उम्रभर
February 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
जिसे अपना समझकर
चाहतें रहे एक उम्र भर
जिसे अपना कहकर
इतराते रहे एक उम्र भर
जिससे आईने में देखकर
शर्माते रहे एक उम्र भर
जिसे अपनी हर दुआ में
खुदा से मांगते रहे उम्र भर
जिसे अपनी हर कामयाबी में
साथ पाकर दिल को भरमते
रहे एक उम्र भर।
जिसे दिल के हर कोने में बिठाकर
रिश्ता निभाते रहे एक उम्र भर
जिसे मोहब्बत का खुदा समझकर
यादों के अंजुमन चढ़ाते रहे एक उम्र भर
जिसे पाना नामुमकिन था उसी से
मुलाकातों के गुल खिलाते रहे एक उम्र भर
जिसे सुनकर अपने लब-ए-रुखसार पर
तबस्सुम लाते रहे एक उम्र भर
जिसके हाथों से मेरी तबाही लिखी थी
उसी को अपना बनाते रहे एक उम्र भर
उसी ने यारों गमे जिंदगी जुदाई दी
जिसकी मोहब्बत की दास्तां सुनाते रहे एक उम्र भर।
रूठ जाना भी
February 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
रूठ जाना भी
भला है तुम्हारा
मुझे मनाने का
मौका तो मिलता है
कर देते हो नज़रंदाज़
मुझे सताने का मौका तो मिलता है….
कर जाते हो जो
बेवफाई की बातें
उन्हें पहचानने का
मौका तो मिलता है……
आलोक हो
February 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
आलोक हो महाकाल तुम
मेरे जीवन का आधार तुम
कल्पना की दहलीज़ पर
आये हो बन मेहमान तुम…..
मीत हो तुम प्यार का संगीत हो
और धीरज का दमकता गीत हो
रूबरू होने का मौका नहीं मिला
फिर भी पहचान की लकीर हो….
कुछ पंक्तियाँ याद आ रही हैं
उन सभी की तदबीर हो तुम
कभी भी कोई बात नहीं हुई
ज़िंदादिली की तस्वीर हो तुम ….
वफा की कीमत और भी बढ़ गई
जब से बन कर आये मेरी तकदीर हो तुम।
सलीका
February 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
जान लेते अगर मनाने
का सलीका तुम तो
चंद दिन ज़िन्दगी के
तेरी चाहत में और
कुर्बान कर देते
और रो लेते कुछ रातें
तुम्हारी यादों में तड़पकर
कुछ और तुम्हें जान लेते
और बदनाम होते
इश्क में आपके
और गढ़ लेते हम
दिल की रचनाएं
कुछ भी ना मिला
मुझे तुमसे बस आंसुओं के सिवा
उलझी रातों के सुलझे
ख्वाबों के सिवा
किताबों में रखे
सूखे गुलाबों के सिवा
बेवफाई और रुसवाई के सिवा
गुमनामी की जिंदगी
और बेबसी के सिवा
तुमने कुछ नहीं दिया
मैंने उम्मीद भी नहीं की
है गुजारिश इतनी
February 22, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
है गुजारिश इतनी ही
के अब और ना रुलाओ तुम
किये जिन्दगी भर सितम
अब और ना सताओ तुम
नहीं हूँ पत्थर मैं
इन्सान की ही मूरत हूँ
जान कर बेजान
अब और ना ज़ुल्म ढाओ तुम
पत्थर पर भी निशान पड़ जाते हैं
पत्थर से भी बद्तर मुझे
अब ना बनाओ तुम
इन्सान हूँ इन्सान की
तरह पेश आओ
अबला से दुर्गा मुझे ना
बनाओ तुम
है इतनी ही गुज़ारिश
मुझसे प्यार से पेश
आओ तुम।
अच्छा हुआ जो
February 22, 2020 in शेर-ओ-शायरी
अच्छा हुआ जो तुमसे
मुलाकात नहीं हुई
मुझे कितनी शिकायतें हैं
तुम मेरी आँखों में पढ़ लेते।
दर्द
February 20, 2020 in शेर-ओ-शायरी
दर्द की आह में तड़पते हैं
तुमसे मिलने को तरसते हैं
है इतनी गमगीन ज़िन्दगी फिर भी
तुम हाल पूछते हो तो कह देते हैं के अच्छे हैं ।
हिन्दुस्तान
February 11, 2020 in गीत
करते हैं बहुत प्यार
हम हिन्दुस्तान से अपने
रहता है बहुत फक्र हिन्दुस्तान पर अपने
इसकी एकता अखंडता पर
हमको नाज़ है
लहराता है तिरंगा हिन्दुस्तान पर अपने ।
वचन दिवस
February 10, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
गुजारिश करते हैं हम आज
तुमसे एक मानोगे?
लुटाओगे मुझ पर जान
मेरी ही बात मानोगे।
नही जाओगे तुम दूर अब
गैरों की बाहों में
सजाओगे नहीं सपनें
तुम अब दूजी फिज़ाओं में ।
इस वचन दिवस पर
इतनी ही इल्तिजा है तुमसे
रहोगे बस मेरे हमदम
रहोगे बस मेरे हमदम।
कभी-कभी
February 10, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
कभी -कभी तो आते हैं
तुमसे मिलने!
यूँ मुँह ना फेरो हमसे
रूठे हो तो रूठे रहो
नज़रें तो मिलाओ हमसे।
इतना गुस्सा भी ठीक नहीं साहिब!
यूँ मलाल लिये बैठे हो
सज़ा देनी है तो दे देदो मगर
खता क्या हो गयी है ये तो बताओ हमसे।
कभी – कभी
February 10, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
कभी -कभी तो आते हैं
तुमसे मिलने!
यूँ मुँह ना फेरो हमसे
रूठे हो तो रूठे रहो
नज़रें तो मिलाओ हमसे।
इतना गुस्सा भी ठीक नहीं साहिब!
यूँ मलाल लिये बैठे हो
सज़ा देनी है तो दे देदो मगर
खता हो गयी है ये तो बताओ हमसे।
दिल रोंक लेता है
January 19, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
रोज सोचते यही है उनसे
तोड़ देंगे सारे नाते
याद में उनकी नहीं कटेगी
रो-रोकर मेरी रातें
फ़ैसला जब करते हैं
हम दिल रोक लेता है
मेरी आँखों से बहे समंदर
घुटती हूं अंदर ही अंदर
दर्द है जब हद से बढ़ जाता
दिल रोक लेता है
दिल रोक लेता है
January 19, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
रोज सोचते यही है उनसे
तोड़ देंगे सारे नाते
याद में उनकी नहीं कटेगी
रो-रोकर मेरी रातें
फ़ैसला जब करते हैं
हम दिल रोक लेता है
मेरी याद से बहे समंदर
घुटती हूं अंदर ही अंदर
दर्द है जब हद से बढ़ जाता
दिल रोक लेता है
हाथ की लकीरें
January 19, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
कुछ तो खेल है
हाथ की लकीरों का
हाथ ना आया
लगाया हाथ जिसमें
न पाने की तमन्ना थी
मिला हरदम वही मुझको
जुस्तजू जिसकी थी हमने
उसी से हाथ धो बैठे
जिंदगी बन गई वीरान
और पथरा गई आंखें
अरमां पड़ गए ठंडे
सपने हो गए सपने
किसी ने था कहा हमसे
सब है खेल किस्मत का
हमें भी आ गया ऐतबार
लड़े जब हम मुक़द्दर से
मंजिल है नहीं आसान
बहुत मशरूफ है राहें
कोसते कुछ है किस्मत को
कुछ बनाते हैं खुद राहें
ना हारेंगे कभी हिम्मत
मुश्किलें कैसी भी आएं
जीत जाएंगे हम दुनिया
दो कदम रोज चल करके
दिखा देंगे सभी को हम
आख़िर क्या थे क्या हैं हम
बुलंद है हौसले अपने
मुकद्दर भी बदल देंगे
लोग जो हंसते हैं हम पे
नजर झुक जाएगी उनकी
कुछ तो बात है हममें
वो भी मान जाएंगे
हाँथ की लकीरें
January 19, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
कुछ तो खेल है
हाथ की लकीरों का
हाथ ना आया
लगाया हाथ जिसमें
न पाने की तमन्ना थी
मिला हरदम वही मुझको
जुस्तजू जिसकी थी हमने
उसी से हाथ धो बैठे
जिंदगी बन गई वीरान
और पथरा गई आंखें
अरमां पड़ गए ठंडे
सपने हो गए सपने
किसी ने था कहा हमसे
सब है खेल किस्मत का
हमें भी आ गया ऐतबार
लड़े जब हम मुक़द्दर से
मंजिल है नहीं आसान
बहुत मशरूफ है राहें
कोसते कुछ है किस्मत को
कुछ बनाते हैं खुद राहें
ना हारेंगे कभी हिम्मत
मुश्किलें कैसी भी आएं
जीत जाएंगे हम दुनिया
दो कदम रोज चल करके
दिखा देंगे सभी को हम
आख़िर क्या थे क्या हैं हम
बुलंद है हौसले अपने
मुकद्दर भी बदल देंगे
लोग जो हंसते हैं हम पे
नजर झुक जाएगी उनकी
कुछ तो बात है हममें
वो भी मान जाएंगे
गुलामी की जंजीरे
January 19, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
गुलामी की जन्जीरों में
जकड़े है ज़िस्म मेरा
इस दिल का सौदा
करें भी तो कैसे।
जिस्म तो जिस्म
रूह भी है बेबस
तुझे मोहब्बत का सजदा
करें भी तो कैसे।
तुम सोचोगे सब बहाने हैं मेरे
जब दोस्त ही कर बैठे बग़ावत
तो अपनी सदाकत की नुमाइश
करें भी तो कैसे।
तुम्हें तो अर्सा हुआ है
हम पर इल्जाम लगाए हुए
जब तुम्ही बन बैठे अदावती
तो हम वफा की गुजारिश
करें भी तो कैसे।
सजा दे देता है जहां
बिना अर्जी सुने
तुम तो साथ नहीं
हम यह मुकदमा लड़ जाएं
भी तो कैसे।
हम गुलामी की जंजीरे
भी तोड़ सकते हैं मगर
खयालातों को आजाद
करें भी तो कैसे।
तेरे दिल में पहले से
कोई रहता है,हम उसमें
बसर कर जायें भी तो कैसे।
इतने पहरे जो तुमने लगा रखे हैं
तू ही बता! तेरे दिल में
आशियां बनाए भी तो कैसे।
कुछ तो खेल है
January 9, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
कुछ तो खेल है
हाथ की लकीरों का
हाथ ना आया
लगाया हाथ जिसमें
न पाने की तमन्ना थी
मिला हरदम वही मुझको
जुस्तजू जिसकी थी हमने
उसी से हाथ धो बैठे
जिंदगी बन गई वीरान
और पथरा गई आंखें
अरमां पड़ गए ठंडे
सपने हो गए सपने
किसी ने था कहा हमसे
सब है खेल किस्मत का
हमें भी आ गया ऐतबार
लड़े जब हम मुक़द्दर से
मंजिल है नहीं आसान
बहुत मशरूफ है राहें
कोसते कुछ है किस्मत को
कुछ बनाते हैं खुद राहें
ना हारेंगे कभी हिम्मत
मुश्किलें कैसी भी आएं
जीत जाएंगे हम दुनिया
दो कदम रोज चल करके
दिखा देंगे सभी को हम
आख़िर क्या थे क्या हैं हम
बुलंद है हौसले अपने
मुकद्दर भी बदल देंगे
लोग जो हंसते हैं हम पे
नजर झुक जाएगी उनकी
कुछ तो बात है हममें
वो भी मान जाएंगे
दिल रोक लेता है
January 9, 2020 in शेर-ओ-शायरी
रोज सोचते यही है उनसे
तोड़ देंगे सारे नाते
याद में उनकी नहीं कटेगी
रो-रोकर मेरी रातें
फ़ैसला जब करते हैं
हम दिल रोक लेता है
मेरी याद से बहे समंदर
घुटती हूं अंदर ही अंदर
दर्द है जब हद से बढ़ जाता
दिल रोक लेता है
इबादत
January 9, 2020 in शेर-ओ-शायरी
पता नहीं इबादत
के किस मोड़ पर हूं
तेरी जरूरत भी नहीं
तेरी कमी भी है
होठों पर हंसी और
आंखों में नमी भी है
तेरे जाने का मलाल भी नहीं
तेरे आने का इंतजार भी है
तलब
December 28, 2019 in शेर-ओ-शायरी
तबल ऐसी कि साँसो में
बसा लें उन्हें किस्मत ऐसी
की दीदार को मोहताज हैं हम।
तुम्हें चाहा था
December 28, 2019 in शेर-ओ-शायरी
तुम्हें चाहा था आवाज सुनकर
मुस्कुराती थी तेरे ख्वाब बुनकर
अब जान गयी दर्द क्या होता है
अक्सर हँस देती थी इश्क की बात सुनकर।
यूँ ना मिला कर
December 26, 2019 in शेर-ओ-शायरी
यूँ ना मिला कर
रकीबों की तरह
साथ चल फलसफ़े
की तरह……
हिचिकियाँ रात भर आईं….
और सोने ना दिया
तूने याद किया हो
जैसे दिलबरोँ की तरह….
मेरी प्रेरणा तुम हो
December 26, 2019 in शेर-ओ-शायरी
मेरे लफ्जों में तभी तक दम है
जब तक तुम हो, तब तक हम हैं।
मेरी प्रेरणा तुम हो,मेरी कविता तुम हो
जब तक दिल है तब तक तुम हो।
एहसास
December 25, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
एहसास की दहलीजों पर
कुछ शब्दों के घेरे हैं
इस प्यार की राह में अक्सर
कुछ दर्द तेरे-मेरे हैं
तुम दूर कहीं ना जाओ
पल-पल ये दिल कहता है
वीरान है तुझ बिन दुनिया
एहसास ये हम करते हैं
तुम आओगे बाहों में
इस आस में हम बैठे हैं
गुजरोगे जिन गलियों से
हम फूल बिछा बैठे हैं
है आज ये तुमसे कहना
तुम बस मेरे ही रहना
चाहें कुछ भी हो जाये
फरियाद ये हम करते है
तुम दूर हो मुझसे फिर
भी एहसास यही होता है
वीरान है तुझ बिन दुनिया
महसूस ये हम करते हैं
प्रज्ञा के दिल की धड़कन
बस गीत है एक ही गाती
तुम बस मेरे हो जाओ
आमीन ये हम करते हैं
शब्द-सुनहरे
December 22, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
एक दौर वो भी गुजरा है!
जब हम कागज और कलम
लेकर सोते थे।
यादों में पल-पल भीगा
करती थीं पलकें ,
अभिव्यक्ति के शब्द
सुनहरे होते थे।
ना दूर कभी जाने की
कसमें खाई थीं
मिलने के अक्सर वादे
होते रहते थे।
कोई यूं ही कवि
नहीं बनता है यह सच है
हम भी तो पहले
कितना हंसते रहते थे।
मिल ही जायेगी मंज़िल!!
December 21, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
ए दिल! गम ना कर
मिल ही जायेगी मज़िल।
यूं मायूस हो जाना अच्छी
बात नहीं ।
कितने कदम रोज़ चलती हूँ
तेरी और,
तुम उतना ही दूर
नज़र आती हो
ये तो अच्छी बात नहीं
हौंसला बुलंद है अपना
पाही लूंगी तुम्हें
तुम रोज़ रुलाती हो
अच्छी बात नहीं ।
तुम्हे पाना ही मेरा
फ़ितूर है मेरा
जब तक तुम नहीं
मिल जाती हो
जीने को जीते हैं
हंसने को हँसते हैं ।
जीवन की बगिया
December 21, 2019 in मुक्तक
फूलों से भी ज्यादा
कोमल है ह्रदय
शब्दों के बाण से मत छेदो
प्रेम की रसधार से जीवन की
बगिया सींचो

लम्हों को जी लो
December 20, 2019 in शेर-ओ-शायरी
लम्हों को जी लो
दिल कहता है
जो आज में जीता है
वो ही कल खुश रहता है ।
तो मुस्कराईये और
अपना कल बनाइए ।
सरकारी नौकरी
December 19, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
हम सरकारी नौकरी
के पीछे पागल हैं,दीवाने हैं
हम भविष्य की चिंता में
देखो दीवाने हैं,मस्ताने हैं ।
लोग समझते यही रहे
हमें आखिर कौन-सा रोग लगा?
हम बेरोजगारी रोग से पीड़ित है
हमें गवर्नमेंट जॉब का नशा चढ़ा।
सब नाहक ही हमसे रूठ गए
सब कहते हैं हम भूल गए
पर सच्चाई कोई क्या जाने!
हम पर क्या बीती रब जाने।
हम रोज ही फार्म भरते हैं
बस पेपर देते रहते हैं
कोई रिजल्ट ना आए हाथ
बस कोर्ट के चक्कर करते हैं।
हम तीन साल के थे तब से
बस ‘अ,आ,इ,ई ‘करते हैं
जब रात में सब सोते हैं
हम टीईटी-सीटेट पढ़ते हैं।
हम सोच-सोच कर सूख गए
सुपर टेट का रिजल्ट कब आएगा?
अब तो भैंस जलेबी खाएगी
और बंदर पान चबाएगा ।
अब प्रज्ञा शुक्ला कहती है
दिवा-स्वप्न देखना बंद करो
सरकारी के पीछे मत भागो
कुछ रोजी-रोटी का प्रबंध करो।
मेरा हृदय
December 19, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
बीती रात जब मैं यादों
के आगोश में जाने लगी
कल्पना के स्वर्ग में
तुमको जरा पाने लगी
तभी मेरा ह्रदय
वेदना की आग में तपने लगा
और यों कहने लगा
‘तुम भी क्या अनोखी चीज़ हो’
ना समझ पा रहा हूं मैं
खुद उलझाने अपनी बना
फँसती हो तुम, रोती हो तुम
और फिर बेचैन हो
रात भर जगती हो तुम
तुमसे मेरा रिश्ता कितना
पुराना है जानती हो?
मैंने तुमको कितनी दफा
यूं ही पल-पल मरते देखा है
और लाखों बार फिर
खुद में ही हंसते देखा है
ना जाने कितनी बार
देखा रतजगे करते हुए
कौमुदी में बैठ सपनों
को यूंही सँजोते हुए
पूस की रात
December 16, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
कभी ना भूलेगी वो
पूस की रात…….
ठंडी सर्द हवाओं और
बारिश की बूंदों के साथ……
मैं और मेरी तन्हाई
बस दो ही थे।
उस दिन वो
बारिश की नर्मी
और चादर की
सिलवट वैसी ही थी
जैसी मैनें छोड़ी थी …..
मौसम कितना भीगा सा था
उस पूस की रात में
बारिश की बूंदों ने
मन के सारे घावों
पर मरहम लगा दिया था…….
मैं और मेरी तन्हाई बस
डूबने वाले ही थे
तुम्हारी यादों के
समंदर में………
अचानक मैंने देखा कि
एक बुलबुल काफी
भीगी हुई कांप रही थी
बारिश में भीग गई थी शायद…….
मुझे ऐसे देख रही थी
मानो मुझसे कह रही हो
मुझे आज यहीं रहने दो
एक रात का आसरा दे दो……
मैं एकटक उसी को
देखती रही ।
सुबह जब आंख खुली
तो देखा धूप बारिश की बूंदों पर
चमक रही थी …..
बारिश बंद थी ,
वह बुलबुल भी जा चुकी थी
शायद मेरे उठने से पहले ही
चली गई थी वो……..
लेकिन उसका एक
पंख पड़ा था
शायद मुझे एक रात
का नजराना या निशानी दे गई थी …….
उस पंख को
जब मैंने उठाया तो
लिखा था कि ‘फिर आऊंगी’……
आज फिर आ गयी ‘पूस की रात’
मुझे फिर से उस बुलबुल का
इन्तज़ार है…
मुझे कभी ना भूलेगी
वो बुलबुल वो बारिश और
वो पूस की रात ………
इशारा
December 16, 2019 in शेर-ओ-शायरी
जीने को इशारा दे दो
डूबते को सहारा दे दो
अर्सा हुआ तुझे देखे हुए,
इन नजरों को नजारा दे दो।
इशारा
December 16, 2019 in शेर-ओ-शायरी
जीने को इशारा दे दो
डूबते को सहारा दे दो
अर्सा हुआ तुझे देखे हुए,
इन नजरों को नजारा दे दो।
🌹🌹🌹इशारा🌹🌹🌹
December 16, 2019 in शेर-ओ-शायरी
जीने को इशारा दे दो
डूबते को सहारा दे दो
अर्सा हुआ तुझे देखे हुए,
इन नजरों को नजारा दे दो।⚘⚘⚘⚘
🌹🌹 वो पूस की रात 🌹🌹
December 16, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
🌹🌹कभी ना भूलेगी वो 🌹🌹
पूस की रात…….
ठंडी सर्द हवाओं और
बारिश की बूंदों के साथ……
⚘⚘⚘
मैं और मेरी तन्हाई
बस दो ही थे।
⚘⚘⚘
उस दिन वो
बारिश की नर्मी
और चादर की
सिलवट वैसी ही थी
जैसी मैनें छोड़ी थी …..
⚘⚘⚘
मौसम कितना भीगा सा था
उस पूस की रात में
बारिश की बूंदों ने
मन के सारे घावों
पर मरहम लगा दिया था…….
⚘⚘⚘
मैं और मेरी तन्हाई बस
डूबने वाले ही थे
तुम्हारी यादों के
समंदर में………
⚘⚘⚘
अचानक मैंने देखा कि
एक बुलबुल काफी
भीगी हुई कांप रही थी
बारिश में भीग गई थी शायद…….
⚘⚘⚘
मुझे ऐसे देख रही थी
मानो मुझसे कह रही हो
मुझे आज यहीं रहने दो
एक रात का आसरा दे दो……
⚘⚘⚘
मैं एकटक उसी को
देखती रही ।
सुबह जब आंख खुली
तो देखा धूप बारिश की बूंदों पर
चमक रही थी …..
⚘⚘⚘⚘⚘
बारिश बंद थी ,
वह बुलबुल भी जा चुकी थी
शायद मेरे उठने से पहले ही
चली गई थी वो……..
⚘⚘⚘
लेकिन उसका एक
पंख पड़ा था
शायद मुझे एक रात
का नजराना या निशानी दे गई थी …….
⚘⚘⚘
उस पंख को
जब मैंने उठाया तो
लिखा था कि ‘फिर आऊंगी’……🦜🦜🦜
⚘⚘⚘
आज फिर आ गयी ‘पूस की रात’
मुझे फिर से उस बुलबुल का
इन्तज़ार है……
⚘⚘⚘
मुझे कभी ना भूलेगी
वो बुलबुल वो बारिश और
‘पूस की रात’…………….. 🧤
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
कभी तो
December 14, 2019 in शेर-ओ-शायरी
कभी तो इन गलियों में
आकर तो देखो,
माना बहुत अन्धेरा है ।
शायद तुम्हारे आने से
मेरा जहान रौशन हो जाये।
परछाई
December 14, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
मिल जाती परछाई भी
अगर तुम पीछे मुड़ कर
देख लेते।
दूर हो जाती गलतफहमी की
ठंडक ।
अगर तुम यादों की धूप में
दो पल खुद को
सेंक लेते।
गीत लिखूं
December 13, 2019 in गीत
देख कर आज मौसम की ये मस्तिया, दिल में हलचल सी कुछ अब होने लगी। देख कर नूर सा तेरा मुखडा प्रिये, मन में बेताबिया सी है उठने लगी। इस पवन ने शरारत कुछ ऐसी की है, तेरी जुल्फो से उलझने की कोसिस की है। बूंद पानी ने भी कुछ गलतिया की है, तेरी होठों पे आने की कोसिस की है। तेरी आँखो में काज़ल की है घटा, तेरे मुखड़े पे है छायी सावन की घटा। तेरे श्रृंगार के गीत को मैं लिखूं, तुझे देखूँ तो देखता ही रहूँ। तेरी साँसों में ऐसे सम जाउ मैं, छोड़ कर सब तेरा हो जा मैं। तुझको मैं सार जीवन का लिखु प्रिये, गीत लिखु तो लिखु मैं तुझको प्रिय।।
वो खिड़कियाँ
December 12, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
तुम्हारी चादर में लिपटे
कुछ शक के दाग थे।
तुम मेरी मंज़िल और
तुम्ही हमराज थे।
क्या थे दिन और
क्या लम्हात थे।
कुछ अंजाम और
कुछ आगाज़ थे।
इल्जाम लगा किस्मत और हालात पर हम तो, बचपन से ही बर्बाद थे।
सुबह हुई तो देखा
तकिये पर पड़े सूखे,
अश्कों के दाग थे।
वो खिड़कियाँ अब
बन्द ही रहती हैं ,
जिनके दीदार के कभी
हम मोहताज़ थे।
अभिनन्दन
December 10, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
सुबह के सूर्य को अभिनन्दन
देवों के देव को अभिनन्दन ।
है अपनी जीत को अभिनन्दन
है अपनी हर को अभिनन्दन ।