दीपावली

November 4, 2021 in ग़ज़ल

जो सितारों को मुँह चिढाएँगे,
आज वो दीप हम जलाएँगे।

आँख दुनिया की चौंधियाएँगी,
इस कदर रोशनी लुटाएँगे।

जीते हैं अबभी जो अँधेरों में,
उनको हम रोशनी में लाएँगे।

जो हैं रूठे उन्हें लगाके गले,
दिल की हम दूरियाँ मिटायेंगे।

उम्रभर दिल को उजाले देगी,
आस की एक लौ जलाएँगे।

©अनु..✍️

हृदय

September 29, 2021 in मुक्तक

हृदय
देह के जीवित रहने में
सहायक एक अंग मात्र नहीं है..!!

अपितु,
यह वो स्थान है
जहाँ प्रस्फुटित होते हैं
उन कोमल भावनाओं के अंकुर..,
जो बनाती हैं
एक साधारण मनुष्य को देवतुल्य..!!

ख़्याल रखिये अपने हृदय का
क्योंकि हृदय की शिथिलता,
वास्तव में शिथिलता है मानवता की..!!

~ अनु उर्मिल ‘अनुवाद’..✍️

बेटियाँ

September 26, 2021 in ग़ज़ल

फूल की महकी कली हैं बेटियाँ,
नूर सी सबको मिली हैं बेटियाँ।

रंजिशो औ’ नफ़रतों के दौर में,
आज भी कितनी भली हैं बेटियाँ।

मतलबी लोगों की फ़ैली भीड़ में,
हाथ थामे संग चली हैं बेटियाँ।

चंद सिक्कों के लिए ससुराल में,
रोज़ ही ज़िन्दा जली हैं बेटियाँ।

ज़ुल्म सह लेती हैं वो हँसते हुए,
घर में नाज़ों से पली हैं बेटियाँ।

अपने सपनों के नए आकाश में,
पंछी बन उड़ने चली हैं बेटियाँ।

~ अनु उर्मिल ‘अनुवाद’

ख़ुमार

July 5, 2021 in ग़ज़ल

तेरे दीवानों में नाम मेरा भी शुमार न हो
ये कैसे मुमकिन है तुमसे मुझे प्यार न हो।

एक लम्हा भी ऐसा मेरा गुज़रता नहीं,
कि मैं सोचूँ तुम्हें और मुझे ख़ुमार न हो।

मेरी वो रात बहुत बदनसीब होती है,
जिस रात ख़्वाब में मुझको तेरा दीदार न हो।

डूब के दरिया में भी कोई प्यासा ही मर जाये,
ऐ ख़ुदा कोई इस तरह भी लाचार न हो।

मेरी नसीहतों की नहीं कोई भी परवाह इसको
कि दिल किसी का इतना भी बेकरार न हो।
©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’

पिता दिवस

June 20, 2021 in मुक्तक

जीवन भर
बिना थके,मुस्कुराते हुए
अपने संघर्षरत बच्चे को
कांधे पर उठाकर चलने वाले
पिता का पर्याय बन सके,
ऐसा बिंब,
रचा ही नहीं गया अबतक काव्यशास्त्र में।

दरअसल,कविताओं में
इतना सामर्थ्य नहीं कि वे उठा सकें
‘पिता’ शब्द का भार अपने कंधो पर..!!

©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’
(20/06/2021)

रात भर

June 15, 2021 in ग़ज़ल

झील के आगोश में कल चाँद फिर ढ़लता रहा।
एक सितारा चाँदनी में रात भर जलता रहा।

रात भर इक शक़्ल मेरी आँख में पलती रही,
रात भर अंगड़ाइयों का दौर फिर चलता रहा।

हसरतों की आग में फिर ख़ाक़ इक लड़की हुई,
रात भर कल जुगनुओं में ज़िक्र ये चलता रहा।

हम लकीरों में तुम्हें ढूँढा किये कल रात भर,
रात भर दीवानगी का दौर ये चलता रहा।

ये उदासी की चुभन और दूरियों का दर्द ये,
अश्क बनकर रात भर ये आँख में पलता रहा।

अनु..✍️

वादा

June 2, 2021 in मुक्तक

जब ज़िन्दगी कर रही होगी
अंत निर्धारित हमारी कहानियों का
जब वक्त की धुंध छँट जायेगी और
साफ़ नज़र आने लगेगा चेहरा मौत का..!!

जब उम्मीदों के पखेरूओं को रिहाई देकर
नियति के आगे नतमस्तक हो जाओगे तुम
जब वक्त के निर्मम पैरों के नीचे
दबे सपनों की लाशें समेट रहे होंगे तुम..!!

जब दुःख का रंग गहरा कर
जज़्ब हो चुका होगा तुम्हारी आत्मा में
जब तुम्हारे भीतर का ख़ालीपन
एक चेहरा लिए खड़ा होगा तुम्हारे सामने..!!

तब भी, हाँ तब भी
तुम्हारी राह के अँधेरे मिटाती मिलूँगी मैं
आख़िरी साँस तक
तुम्हारे दिल का द्वार खटखटाती मिलूँगी मैं..!!

©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’

प्रतिक्षा का पुल

May 30, 2021 in मुक्तक

मेरा इंतज़ार एक पुल है
असमर्थताओं के उस उफनते दरिया पर
जो बह रहा है हम दोनों की दुनियाओं के बीच..!

जिससे गुज़रकर एक दिन
मेरी आँखों मे पलते मखमली सपनें
उतरेंगे वास्तविकता के धरातल पर..!!

प्रिय! मेरी प्रतीक्षा का पुल
निर्मित है उम्मीदों की मिट्टी से
जो आधार बनेगा हमारे सुखद मिलन का..!!

©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’
(30/05/2021)

तुम्हारे हाथ

May 30, 2021 in मुक्तक

नदियाँ- सागर, सहरा- पहाड़, पानी-प्यास,
सूखा- बरसात, तितली-फूल, छाया- धूप
पंछी- आकाश, जंगल- उजाड़
सबकी पीड़ाओं को
आश्रय दिया है तुम्हारे हाथों ने

कहो प्रेम!
मेरे विस्थापित अश्रु
अछूते क्यों हैं अब तक तुम्हारे हाथों से
मेरी देह की निष्प्राण होती संवेदनाएँ
प्रतीक्षा कर रही हैं तुम्हारे स्पर्श की संजीवनी की

मेरे लिए सबसे सुंदर दुनिया
बसेगी तुम्हारी हथेलियों की परिधि के बीच
और सबसे सुंदर अंत होगा
तुम्हारी लकीरों में ख़ुद को तलाशते हुए मिट जाना

एक अनवरत नीरवता
जो बसी है तुम्हारे और मेरे बीच
जब भी खुले मेरे होंठ उसे भंग करने की कोशिश में
उन्हें रोक दिया तुम्हारी उँगलियों की अदृश्य थाप ने

मग़र एक दिन
मैं स्वर दूँगी इस नीरवता को
चूमकर तुम्हारी गर्म हथेलियों को..!!

©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’
(29/05/2021)

नज़दीकियाँ

May 24, 2021 in मुक्तक

क्या मापदंड हैं
नज़दीकियों के
कितनी नगण्य है
दो लोगों के बीच स्थित भौगोलिक दूरी
जिनके दिल धड़कते हैं एक ही लय में..!!
और कितना अर्थहीन है
उन दो लोगों के बीच का सामीप्य
जिनके दिलों के बीच
कभी न पटने वाली खाई है..!!

मैं कितनी दूर हूँ तुमसे
तुम कितने नज़दीक हो मेरे?
मुझे ख़ुद से
कितना दूर कर गया है तुम्हारा सामीप्य..!!
मैंने समय के हाथों में सौंप दिया है
इन प्रश्नों को परिभाषित करने का दायित्व
और अब मैं उन्मुक्त हूँ
उसे जीने के लिए जो घट रहा है हमारे बीच..!!
©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’
(24/05/2021)

तूफ़ान

May 19, 2021 in मुक्तक

सागर के सीने पर उठने वाले
ये विकराल तूफ़ान,
वास्तव में उसकी पीड़ाएँ हैं,
जो रह-रह के उद्वेलित होती रहती हैं,
उस नदी की प्रतीक्षा में
जिसे सागर में विलीन होने के पहले ही
सोंख लिया किसी प्यासे रेगिस्तान ने..!!
©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’

नियति

May 12, 2021 in मुक्तक

पलक झपकते ही
खो हो गए कितने ही मुस्कुराते चेहरे,
जो कल तक थे हमारी कहानी का हिस्सा
जैसे किसी चलचित्र में क्षण में बदल जाते हैं दृश्य…!!

कितना कुछ बाक़ी रह गया
जो कहा जाना था
जो सुना जाना था..!!
जिसे टाल दिया गया आने वाले कल पर,
वो अब रहेगा सदा ही मन के धरातल पर
ग्लानि का पर्वत बन कर..!!

किसी का अचानक चले जाना
संकेत है कि स्वघोषित ईश्वर मानव
वास्तव में कितना बौना है अपनी नियति के आगे..!!

©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’
(12/05/2021)

सुख

May 11, 2021 in मुक्तक

केवल आकार का अंतर होता है
आग की लपट और चिंगारी में
परन्तु समान होता हैं उनका ताप और गुणधर्म
उसी प्रकार सुख भी
चाहे छोटा हो या बड़ा,
हो क्षणिक या दीर्घकालिक,
उसकी प्रकृति में आनन्द ही होता है..!!
महान सुख की लालसा के वशीभूत मानव
तिलांजलि दे देता है अनेको छोटे सुखों की
और जब जीवन की साँझ में
पलटता है ज़िन्दगी की किताब के पन्ने
तो पाता है पश्चतापों की अनगिनत कहानियाँ

©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’
(11/04/2021)

अपराजिता

May 9, 2021 in मुक्तक

माँ,
तुम्हारे बारे में लिखना कठिन है
या यूँ कहूँ कि ये असमर्थता समानुपातिक है
उस सहजता के जिससे तुम
मेरे मौन के पीछे छिपी गहरी उदासी पढ़ लेती हो..!!

तुम जलती रहीं निरन्तर एक दीप की तरह
मेरे जीवन के अँधेरे मिटाने को
ख़ुद के भीतर से तो खत्म चुकी हूँ कब की
पर एक तुम ही हो जिसने अब तक बचा रखा है
मुझे अपनी मुट्ठियों में..!!
क्योंकि एक स्त्री हार मान सकती है परन्तु एक माँ नहीं
मुझे विश्वास है कि तुम संजोये रखोगी
मुझे अंत तक..!!

निस्संदेह ये दुनिया एक अन्तहीन समर है
और माँ एक ‘अपराजेय योद्धा’..!!

©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’
(09/04/2021)

वहम

May 8, 2021 in मुक्तक

कभी-कभी
आसपास पानी होने का भ्रम
चंद साँसों का इजाफ़ा कर देता है
तड़पकर मरते हुए
किसी प्यासे मुसाफ़िर की ज़िन्दगी में
तुम भी
मेरे जीवन में एक मरीचिका की तरह हो
तुम कहीं नहीं हो मगर
तुम्हारे साथ होंने का वहम काफ़ी है
जीवन की दुष्कर राहें नापने के लिए..!!
©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’
(08/04/2021)

प्रेम और सौंदर्य

April 25, 2021 in मुक्तक

आकाश की सुंदरता बढ़ाता कपासी बादल नहीं
धरती का प्रियतम है वह काला बादल जो
अपने प्रेम से करता है धरा का शृंगार..
कानों में रस घोलती सुरीली तान फूटती है
काली कुरूप कोयल के कण्ठ से..!!

कलियों का संसर्ग होता है कुरूप भ्रमर से
कोमल गुलाब पनपता है काँटों के बीच,
वहीं कमलदल फूलते हैं कीचड़ में..
गहरी चंचल आँखों से कहीं अधिक गहन प्रेम
पाया जाता है किसी की प्रतीक्षा से
पथराई सूनी आँखों में…!!

हम प्रेम को खोजते हैं अपनी शर्तों, आकांक्षाओं
और नियमावलियों की परिधि में
परंतु प्रेम हमारे समक्ष आता है समस्त निर्धारित
मानदण्डों की सीमाएँ लांघ कर
अपनी दृष्टि पर लालसाओं का आवरण डाले
हम..उसे पहचान नहीं पाते..!!

विरोधाभासों में कहीं अधिक प्रबल होती है
प्रेम की उत्पत्ति की संभावना…!!
वास्तव में प्रेम की व्याख्या अधूरी है इस तथ्य की स्वीकार्यता के बिना..
“प्रेम में सौंदर्य है, किन्तु प्रेम केवल सौंदर्य में नहीं है”..!!

©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’
(25/04/2021)

हे धरित्री

April 22, 2021 in मुक्तक

हे धारित्री,
पञ्च महाभूतों में से एक तुम,
तुमसे ही उत्पन्न होकर भी मानव
अछूता रहा तुम्हारी सहनशीलता के गुण से..!!
काश! तुम्हारे धैर्य का अंशमात्र भी
वह आत्मसात कर पाता अपने भीतर तो
आज प्रश्नचिन्ह न लगा होता उसके अस्तित्व पर..!!

©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’

तुम्हारी आँखे

April 7, 2021 in मुक्तक

कल अचानक ही तुम्हारी तस्वीर पर आकर
ठहर गईं मेरी निगाहें…
और मैं उलझकर रह गयी तुम्हारी
आँखों के तिलिस्म में ..!!

गहरी ख़ामोशी समेटे हुए सागर सी ये तुम्हारी आँखे,
साक्षी हैं ज़िन्दगी के न जाने कितने तूफानों,
न जाने कितने ही चक्रवातों की,
दर्द के लाखों मोती रोज ही मिलते हैं
इस सागर की तलहटी में..!!

जानते हो एक दिलचस्प किस्सागोई करती हैं ये,
तुम्हारे होंठों से कहीं ज़्यादा कहानियाँ बसती
हैं तुम्हारी आँखों में,
तुम्हें पता है, एक पूरी ज़िन्दगी बिताई जा सकती है
इन्हें पढ़ते हुए..!!

उदासियों द्वारा कत्ल की गई शामों के लहू में डूबी
ये तुम्हारी कत्थई आँखे जब भी नम होती होंगी
तो अमावस के अंधेरों से लड़ते हुए किसी
सुर्ख तारे सी चमकती होंगीं,
जब तुम हँसते होंगे तो हजारों जुगनू झिलमिलाते
हुए नज़र आते होंगे इनमें…!!

तुम्हारी इन आँखों को निहारते हुए अचानक ये
एहसास हुआ कि ईश्वर का निवास इंसान के
हृदय में नहीं बल्कि आँखों में होता है.. !!

सुनो! अगर कल को ज़िन्दगी से हारी हुई कोई
तलाश तुम्हारी आँखों मे पनाह माँगे न तो
उसे निराश मत करना,
क्योंकि मैं चाहती हूँ कि ये दुनिया इस तथ्य को जाने
कि इस क़ायनात में अब भी एक महफूज़ जगह है
और वो है ‘तुम्हारी आँखे’…!!

©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’

रंगमंच

March 27, 2021 in मुक्तक

दुनिया के रंगमंच में कुछ किरदार ऐसे
होते हैं जो कभी किसी का ध्यान
आकर्षित नही कर पाते…
मगर उनके बिना अधूरी है कहानी
की खूबसूरती…!!
वो कभी नहीं करते प्रयास कहानी का
नायक बनने का…
मगर पूरी तत्परता से निभाते हैं अपना
किरदार बिना किसी सराहना
की उम्मीद किये…!!
और एक दिन ज़िन्दगी की पेचीदा पटकथा
में उलझकर खो जाते हैं नेपथ्य में…!!

मैं तुम्हारी दुनिया के रंगमंच का शायद
वही किरदार हूँ..!!

©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’
(27/03/2021)

कविता

March 21, 2021 in मुक्तक

असम्भव है तुम्हें परिभाषा के
दायरे में बांधना..
तुम हो वो सागर, जिसमें विलीन होता
है व्याकुलता का दरिया..
या निष्प्राण मन के भीतर बसी नीरवता को
चीर के उपजी स्नेहमय अनुगूँज..!!
एक बजंर हृदय के धरातल पर सहसा
फूटता हुआ भावों का सोता..
या फिर एक नज़रिया, जो हर दृष्टिगोचर
में अंतर्निहित वास्तविक सत्य को
उजागर करने का..!!

कविता! तुम पर्याय हो मेरे लिए
‘सार्थकता’ की अनुभूति का..!!

©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’
(21/03/21)

गौरैया

March 20, 2021 in मुक्तक

गौरैया,
जाने कहाँ उड़ गई तुम
अपने मखमली परों में बाँध के
वो सुबहें, जो शुरू होती थी तुम्हारी
चहचहाहटों के साथ और वो शामें,
जब आकाश आच्छादित होता था तुम्हारे
घोसलों में लौटने की आतुरता से…!!

वो छत पर रखा मिट्टी का कटोरा सूखा पड़ा है
न जाने कब से…
आँगन में नहीं बिखेरे जाते अब पूजा की
थाली के बचे हुए चावल…!!
एक मुद्दत से नहीं देखा मैंने तुम्हें अपना
नीड़ बुनते…
और तुम्हारा अपने बच्चों को खाना खिलाने
का दृश्य भी अब धुंधलाने लगा है
मस्तिष्क के पटल से…!!

अब जब मशीनों के शोर से घुटन होने
लगती है तो कानों को याद आता
है तुम्हारा चहचहाना..!!
सोचती हूँ कोई बच्ची कैसे जान पाएगी
कि क्या होता है चिड़ियों की तरह
आकाश में उड़ना…!!

हे प्रकृति की मासूम प्रतिनिधि! हम
तुम्हारे अपराधी हैं..
हम लालची इंसानों ने छीना तुमसे तुम्हारा
आवास, तुम्हारे हिस्से का आकाश,
और तुम्हारी परवाज़…!!
दया आती है मुझे हम इंसानों की लाचारी पर ,
हमें हर चीज का महत्व समझ तो आता है,
मगर उसे खो देने के पश्चात..!!

©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’
(20/03/2021)

सुनो वनिता

March 8, 2021 in मुक्तक

संसार द्वारा रचित तुम्हारी महानता
के प्रतिमान वास्तव में षड्यंत्र हैं
तुम्हारे विरुद्ध…!!
तुम सदा उलझी रही स्वयं को उन
प्रतिमानों के अनुरूप ढालने में
और वंचित रही अपने सुखों से..!!

सुनो वनिता!
जब तक तुम अनभिज्ञ हो इस तथ्य से कि
“तुम्हारा सुख तुम्हारी महानता में नहीं
वरन तुम्हारे साधारण होने में है”…
तब तक ये सृष्टि हो नहीं सकेगी
तुम्हारे योग्य…!!

©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’
(08/03/2021)

मरीचिका

March 6, 2021 in मुक्तक

सुंदरता के प्रति हमारा उन्माद इतना
अधिक रहा है कि हमनें तकनीकों
का सहारा लेकर हर वस्तु को
सुंदर बनाने का भरसक
प्रयास किया…!!

जबकि हमें बदलनी चाहिए थी अपनी
दृष्टि जो रचती है भेद सुंदरता
और असुन्दरता का !!

दुर्भाग्य से हम विफ़ल रहे हैं समस्याओं
के वास्तविक मूल को पहचानने में और
भटकते रहते हैं अपने मन द्वारा
रचित मरीचिकाओं में..!!

©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’
(06/03/2021)

एहसास

March 5, 2021 in मुक्तक

कुछ एहसास हैं जो आकर ठहर गये हैं
ज़बान की नोंक पर…
होंठो की सीमाएँ लाँघने को आतुर,
बस उमड़ पड़ना चाहते हैं एक
अंतर्नाद करते हुए…!!

मगर उन एहसासों के पैर बंधे हुए हैं
एक डर की ज़ंजीर से…!!
वही जाना-पहचाना डर “उसे खो देने का”
जिसे पाया है बड़ी मुश्किल से
या फिर इस भ्रम के टूट जाने का
कि हाँ! वो मेरा है…!!

सच कुछ एहसास कितने बदनसीब होते हैं
लफ्ज़ों के साँचे में ढलते ही बिखेर कर
रख देते हैं ख्यालों की खूबसूरत दुनिया को..!!
कुछ रुई के फाहों से कोमल सपनें खो
देते हैं अपनी धवलता उन शब्दों के
पैरों तले दबकर..!!

आख़िर कितना न्यायसंगत है उन एहसासों
को हकीकत के धरातल पर उतारना
बेहतर यही है कि वो दम तोड़ दें
हलक के भीतर ही….!!

©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’
(05/03/2021)

वचन

February 22, 2021 in गीत

जब कभी भी टूटे ये तंद्रा तुम्हारी,
जब लगे कि हैं तुम्हारे हाथ खाली!

जब न सूझे ज़िन्दगी में राह तुमको,
जब लगे कि छलते आये हो स्वयं को!

जब भरोसा उठने लगे संसार से ,
जब मिलें दुत्कार हर एक द्वार से!

जग करे परिहास और कीचड़ उछाले,
व्यंग्य के जब बाण सम्भले न सम्भाले!

ईश्वर करे जब अनसुना तुम्हारे रुदन को,
जब लगे वो बैठा है मूंदे नयन को!

न बिखरना, न किसी को दोष देना,
मेरे दामन में स्वयं को सौंप देना..!!

अपने नयनों में प्रणय के दीप बाले,
मैं मिलूँगी तब भी तुम्हें बाहें पसारे!!

©अनु उर्मिल’अनुवाद’

मातृभाषा

February 21, 2021 in ग़ज़ल

दर्द बनके आँखो के किनारों से बहती है!
बनकर दुआ के फूल होंठो से झरती है!!

देती है तू सुकून मुझे माँ के आँचल सा!
बनके क़भी फुहार सी दिल पे बरसती है!!

खुशियाँ ज़ाहिर करने के तरीक़े हज़ार है!
मेरे दर्द की गहराई मगर तू समझती है!!

जाऊँ कहीं भी मैं इस दुनिया जहान में!
बन कर मेरी परछाईं मेरे साथ चलती हैं!!

होगी ग़ुलाम दुनिया ये पराई ज़बान की !
मेरी मातृभाषा तू मेरे दिल में धड़कती है!!

©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’

क़िताबें

February 17, 2021 in मुक्तक

जब भी मन घिर जाता है अपने
अंतर्द्वंदों की दीवारों से,
जब मस्तिष्क के आकाश में छा
जाते हैं बादल अवसादों के…!!
तब
छांट कर संशय के अँधियारों को,
ये जीवन को नई भोर देती हैं,

‘किताबें’…..मन के बन्द झरोखें
खोल देती हैं..!!

©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’

प्रेम और विज्ञान

February 14, 2021 in मुक्तक

एक महान विज्ञानी का कथन है…
‘हर क्रिया की बराबर किंतु विपरीत
प्रतिक्रिया होती है’..!!
प्रेम करने वाले इस तथ्य के जीवंत
उदाहरण हैं….
समाज ने जितनी तत्परता से रचे हैं
प्रेमियों को एक दूजे से दूर
करने के षड्यंत्र…
प्रेम उतने ही वेग से गहरी पैठ बनाता
गया है प्रेमियों के हृदयों में…!!
वास्तव में विज्ञान के समस्त सिद्धांतों
की व्याख्या हेतु प्रेम सर्वोत्तम
माध्यम है…!!

©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’

पुलवामा शहीदों को नमन

February 14, 2021 in गीत

याद है हमको प्रेम दिवस ऐसा भी एक आया था!
थी रक्तरंजित वसुंधरा, और आकाश थरथराया था!!

एक कायर आतंकी ने घोंपा था सीने पर खंजर!
ख़ून बहा कर वीरों का, बदला था वादी का मंजर!!

चालीस जवानों का काफ़िला चीथड़ों में बदल गया!
था ऐसा वीभत्स नज़ारा कि हृदय देश का दहल गया!!

गूँजी दसों दिशाओं में माताओं की भीषण चीत्कारें!
ख़ून नसों का उबल गया, आँखो से थे बरसे अंगारे!!

भारत की रूह पे दुश्मन ने गहरा ज़ख्म लगाया था!
लेकिन वीरों की हिम्मत को डिगा नहीं वो पाया था!!

भारत के जांबाजों ने भी फिर ऐसा पलटवार किया!
दुश्मन के घर में घुसके आतंकियों का संहार किया!!

सैनिक जब अस्त्र उठाता है, तब देश सुरक्षा पाता है!
वो देश के मान की रक्षा में सरहद पर शीश कटाता है!!

प्रेमोत्सव मनाने वालों सुनो, जी भर जश्न मनाना तुम!
जो मिटे हैं देश की रक्षा में ,उनको भूल न जाना तुम!!

©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’
(14/02/2021)

चुम्बन

February 13, 2021 in मुक्तक

वो भटकता रहा लफ़्ज़ दर लफ़्ज़
गढ़ने को परिभाषायें प्रेम की,
रिश्तों की, विश्वास की…!!

और
मैंने अंकित कर दिया हर एहसास
उसके दिल में सिर्फ चूम के
उसके माथे को…!!

‘दरअसल चुम्बन, आलिंगन और प्रेमल
स्पर्श मानव को सृष्टि द्वारा प्रदत्त
सर्वश्रेष्ठ भाषाएँ है..!!’

©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’
(13/02/2021)

आलिंगन

February 12, 2021 in मुक्तक

सांसारिक कुचक्रों में उलझ कर
अपनी मौलिकता से समझौता
करते मानव सुनो..!!
अपने भीतर हमेशा बचा कर रखना
इतना सा प्रेम…!!
कि
जब भी कोई व्यथित हृदय तुम्हारा
आलिंगन करे तो उस प्रेम की
ऊष्मा से पिघलकर आँसू बन
बह उठे उसके मन में जमी
पीड़ाओं की बर्फ…!!

©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’
(12/02/2021)

वचन

February 11, 2021 in मुक्तक

यदि बाँधने जा रहे हो किसी को
वचनों की डोर से, तो इतना
स्मरण रखना

कहीं झोंक न दे वचन तुम्हारा
उसे उम्र भर की अनन्त
प्रतीक्षा में…

क्योकि,
प्रतीक्षा वह अग्नि है जो भस्म कर
देती है स्वप्नों और उम्मीदों के
साथ-साथ मनुष्य की
आत्मा को भी…!!

©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’

रिक्तता

February 8, 2021 in मुक्तक

निकाल कर फेंक दिया है मैने
अपने भीतर से
हर अनुराग, हर संताप…
अब न ही कोई अपेक्षा है बाक़ी
औऱ न ही कोई पश्चाताप..!!

मैं मुक्त कर चुकी हूँ स्वप्न पखेरुओं
को आँखो की कैद से…
वो उड़ चुके हैं अपने साथ लेकर मेरे
हृदय के सारे विषादों को..

अब मेरे अंतस में है एक अर्थपूर्ण
मौन और रिक्तता..
रिक्तता जो स्वयं में है परिपूर्ण
जो पूरित है सुखद वर्तमान से…!!

वर्तमान,जो स्वतंत्र है विगत की परछाइयों से
जो भयमुक्त है भविष्य की आशंकाओं से
जो आच्छादित है असीम संतोष से…!!

संतोष,जिसके मूल में है एक स्वीकारोत्ति
“मेरी हर तलाश का अंत मुझमें निहित है।”

©अनु उर्मिल’अनुवाद’

दोहरा चरित्र

January 29, 2021 in मुक्तक

जब भी प्रेम करने वालों को कोसा गया
मैंने बंद कर लिए अपने कान…
जब भी प्रेमियों पर अत्याचार किये गए
मैंने मूँद लीं अपनी आँखें…!!

जब भी किसी प्रेमी युगल ने देखा मेरी तरफ
उम्मीद से, मैंने उन्हें निराश किया..
अखबारों में आये दिन छपने वालीं
प्रेमियों के कत्ल की खबरें भी
रहीं मेरे दिल पर बेअसर…!!

अपनी कविताओं में प्रेम के क़सीदे
पढ़ने वाले हम….
प्रेम की ताकत का बखान
करने वाले हम…
अपने लेखन में प्रेमियों की हिमायत
करने वाले हम…
अपने जीवन मे क़भी डटकर खड़े नहीं हो
पाते सच्चा प्रेम करने वालों के साथ…!!

वास्तव में प्रेम पर लिखीं गईं हमारी सारी
कविताएं कोशिशें हैं अपनी धिक्कारती हुई
अंतरात्मा की आवाज़ को दबाने की…!!
दरअसल हम बेचारे हैं
निश्चित ही हम दोहरे चरित्र के मारे हैं…!!

©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’

सुख दुःख

January 27, 2021 in मुक्तक

एक विरोधाभास रहा है
हमेशा से हमारी कल्पनाओं
और वास्तविकता के बीच..!!

जहाँ कल्पनाएं सुख की मीठी नदी है,
वहीं वास्तविकता दुःख का खारा सागर..!!

मगर हम हमेशा
वास्तविकता की अवहेलना कर
चुनते हैं कल्पनाओं की नदी में गोते लगाना!!

ये जानते हुए भी कि
अनेकों नदियाँ अपना अस्तित्व खोकर
भी मिटा नहीं सकती सागर के खारेपन को..!!
©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’

लड़कियाँ

January 24, 2021 in ग़ज़ल

घर आँगन में फूलों सी खिलती हुई लड़कियाँ!
फ़ीकी दुनिया में मिसरी सी घुलतीं हुई लड़कियां!!

उदासियों की भीड़ में हँसती हुई मिलती हैं!
ज़िम्मेदारी के बोझ तले पिसती हुई लड़कियाँ!!

ढल जाती हैं पानी सी हर बार नए आकार में!
रिश्ते निभाके ख़ुद से बिछड़ती हुई लड़कियाँ!!

लड़ रही हैं आज ख़ुद को बचाने के लिए!
मंदिर में देवियों सी पुजती हुई लड़कियाँ!!

निकल रही हैं खोल से अब पंख नए ले कर!
तितली बन आकाश में उड़ती हुई लड़कियाँ!!

©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’

अभिलाषा

January 23, 2021 in मुक्तक

ये सृष्टि हर क्षण अग्रसर है
विनाश की ओर…
स्वार्थ, वासना और वैमनस्य की बदली
निगल रही हैं विवेक के सूर्य को..!!

सुनो! जब दिन प्रतिदिन घटित होतीं
वीभत्स त्रासदियाँ मिटा देंगी मानवता को
जब पृथ्वी परिवर्तित हो जाएगी असंख्य
चेतनाशून्य शरीरों की भीड़ में…!!

जब अपने चरम पर होगी पाशविकता
और अंतिम साँसे ले रहा होगा प्रेम…
जब जीने से अधिक सुखकर लगेगा
मृत्यु का आलिंगन…!!

तब विनाश के उन क्षणों में भी तुम्हारी
उँगलियों का मेरी उँगलियों में उलझना,
पर्याप्त होगा मुझमें जीने की उत्कण्ठ
अभिलाषा जगाये रखने के लिए..!!

©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’
(23/01/2021)

नैराश्य

January 15, 2021 in मुक्तक

खुशियां सदा अमावस की रात की
आतिशबाजी की तरह आईं
मेरे जीवन में…
जो बस खत्म हो जाती है क्षण भर की
जगमगाहट और उल्लास देकर…
और बाद में बचता है तो एक लंबा
सन्नाटा और गहन अँधेरा….

वहीं नैराश्य मेरे जीवन में आया किसी
धुले सफ़ेद आँचल पर लगे
दाग की तरह ..!!
जो शुरुआत में तो बुरा लगता है परंतु
धीरे धीरे लगने लगता है उस आँचल
का अभिन्न हिस्सा…!!

वस्तुतः ‘नैराश्य’ मेरा स्थायी भाव है
जो बस है मेरी कांतिहीन आँखो
में प्रतीक्षा बनकर…!!

©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’

जज़्बात

January 2, 2021 in ग़ज़ल

यूँ अपने जज़्बात नुमाया क्यों करते हो !
मेरी ख़ातिर अश्क बहाया क्यों करते हो !!

क़िस्मत के लिक्खे से मैं भी वाकिफ़ हूँ !
बातों से मुझको बहलाया क्यों करते हो !!

जब साथ तुम्हारा है ही नहीं मुक़द्दर में !
फिर मेरे ख़्वाबों में आया क्यों करते हो !!

भूल के तुमको जिसने जीना सीख लिया !
उसकी ख़ातिर नींदें ज़ाया क्यों करते हो !!

अपना बनकर दुनिया ज़ख़्म लगाती है !
सबको अपने राज़ बताया क्यों करते हो !!

पत्थर दिल इंसानों की इस बस्ती में !
तुम शीशे के महल बनाया क्यों करते हो !!

©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’

यादें

December 21, 2020 in ग़ज़ल

बीते कल की परछाई है और तुम्हारी यादें हैं
मैं हूँ, मेरी तन्हाई है और तुम्हारी यादें हैं..!!

सर्द अंधेरी इन रातों में थोड़ी सी मदहोशी है
टूटी सी इक अंगड़ाई है और तुम्हारी यादें हैं!!

छूके तुमको आने वाली इन मदमस्त हवाओं ने
भीनी खुशबू बिखराई है और तुम्हारी यादें हैं…!!

ख्वाब तुम्हारे देखने वाली चंचल सी इन आँखों मे
दर्द की बदली घिर आई है और तुम्हारी यादें हैं.!!

©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’
(21/12/2020)

प्रेम

November 25, 2020 in ग़ज़ल

राहें हमारी मिलने के आसार नहीं हैं!
कैसे कहूँ तुम्हारा इंतजार नहीं है!!

मेरी हर दलील को ठुकरा चुका है ये!
इस दिल पे मेरा कोई इख्तियार नही है!!

ख़्वाबों में तुमसे रोज़ मुलाक़ात है मेरी!
अफसोस हक़ीकत में ही दीदार नहीं है!!

रूह के हर जर्रे में शामिल हो तुम ही तुम!
और कहते हो लकीरों में मेरी प्यार नहीं है!!

©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’

बदल रही है ज़िंदगी

November 22, 2020 in ग़ज़ल

बदल रही है ज़िंदगी, बदल रही हूँ मैं..!
तुम इश्क हो तुम्ही में ढल रही हूँ मैं!!

नरमी तुम्हारे हाथों की ओढ़े हुए हैं धूप..!
तपिश में इसकी बर्फ़ सी पिघल रही हूँ मैं!!

जाना तुम्हें तो ख़ुद का कुछ होश न रहा!
गिरती हूँ कभी और क़भी संभल रही हूँ मैं!!

ख़ुद से छिपाती हूँ मैं अपने दिल का हाल!
लगता है जैसे हाथों से निकल रही हूँ मैं..!!

रस्ता भी मेरा तुम हो मंजिल भी तुम ही हो!
जाऊँ जिधर भी तुम से ही मिल रही हूँ मैं..!!

n 3^07 !
© अनु उर्मिल ‘अनुवाद’

दुःख

November 9, 2020 in मुक्तक

मैं हमेशा दुःख से कतराती रही,
इसे दुत्कारती रही
मगर ये दुःख हमेशा ही मिला है
मुझसे बाहें पसारे…!!

मैं भटकती रही चेहरे दर चेहरे
सुख की तलाश में…
और वो हमेशा रहा एक परछाई की तरह
जो दिखती तो है मगर क़भी कैद
नही होती हाथों में…!!

दुःख बारिशों में उगी घास की तरह है जिसे
हज़ार बार उखाड़ कर फेंको मगर ये उग
ही जाता हैं दिल की जमीं पर..!!

सुख ने हमेशा छला है मुझे एक
मरीचिका की तरह…
मगर दुःख ने मुझे सिखाया है स्थायित्व,
लाख ठोंकरों के बाद भी
दामन थामे रहना…!!

©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’
(09/11/2020)

प्रेम का सागर

November 3, 2020 in मुक्तक

उसकी आँखों में झलकता है,
उसके दिल मे बसे सागर का चेहरा !!

दुःख की उद्दंड लहरें अक्सर छूकर,
भिगोती रहती हैं पलकों के किनारों को !!

उस सागर की गहराई में बिखरे हैं,
बीते हुए लम्हों की यादों के लाखों मोती !!

वो सागर है प्रेम का मगर अधूरी उसकी प्यास है,
एक राह से भटकी नदिया से मिलन की उसको आस है!!

©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’
(03/10/2020)

वो लड़का

October 15, 2020 in Other

उसके आँसू का संचय कर ईश्वर
समंदर रचता है।
प्रतीक्षा की पावन अग्नि में वो
आहुतियों सा जलता है…!!

जिसकी उदासी के रंग में ढलकर
हुई ये रातें काली हैं,
बीतें लम्हों की सोहबत में जिसने
इक लंबी उम्र गुजारी है..!!

वो जब भी कलम उठाता है, दर्द
संवर सा जाता है,
जिसकी मोहब्ब्त का सुरूर पल-पल
बढ़ता जाता है…!!

वो हर दिन हर पल चाहत की
नई इबारतें गढ़ता है
वो लड़का न कमाल मोहब्ब्त
करता है..!!

©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’

क्या बेटी होना गुनाह है

October 11, 2020 in Other

क़भी कोख़ में ही मार डाला उसे,
कभी काट के फेंक दिया खलिहानों में!!

कभी बेंच दिया उसे देह के बाज़ारों में ,
क़भी सरेराह नोचा सड़कों और चौराहों पे!!

जब जी चाहा पूजा देवियों सा,
कभी अपमानित किया उसे गालियों से!!

आगे बढ़ने की चाहत की तो दीवारों में क़ैद हुई,
कभी मान की ख़ातिर उसको झोंक दिया अंगारों में!!

दुर्गा,काली की धरती पर कैसी ये विडंबना ,
इस देश में बेटी होना क्यों है एक गुनाह.. ??

©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’

विचार के जुगनू

October 11, 2020 in Other

कभी कभी मेरे मन के अंधेरे कमरे में
न जाने किस झरोखे से चले आते हैं
जुगनुओं से झिलमिलाते विचार…!!

मैं अपना हाथ बढ़ाकर कोशिश करती हूँ
उन्हें छू लेने की और वे छिटककर
आगे बढ़ जाने की…!!

बड़ी जद्दोजहद के बाद जब अपनी हथेलियों
में क़ैद कर लेती हूँ इक चमकता विचार…
तब उसे रख देती हूँ किसी कोरे कागज पर
ताकि उसकी रोशनी से कुछ पल के
लिये ही सही मिट सके मेरे
मन का अंधकार..!!

© अनु उर्मिल ‘अनुवाद’

प्रेम की बारिश

October 7, 2020 in Other

सुनो! अपने घर की छत से देर
तक जिस आसमान को
निहारा करते हो न..

उस आसमान के एक छोटे से टुकड़े में
अपने दिल में बसे प्रेम का इक कतरा
भर कर इन हवाओं के साथ
मेरे पास भेज दो…

जब वह प्रेममय बादल मुझपर बरसेगा तो
उसकी बारिश में भीग कर फिर से हरी
हो जायेगी मुद्दतों से बंजर पड़ी
मेरे दिल की ज़मीं..!!
©अनु उर्मिल ‘अनुवाद’

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