रुख़्सत कुछ इस तरह हो गए

September 4, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

रुख़्सत कुछ इस तरह हो गए
वो जिंदगी से मेरी,

मानो बिन मौसम की बरसात
झट से गिरकर तेज़ धूप सी खिला जाती हो,

कम्बख़त मुझे थोड़ा तो भींग लेने देते
कुछ देर उसके जाने के बाद
उसके होने का एहसास तो कर लेता।।

-मनीष

आज गिर गई बूँदें हज़ार

September 4, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज गिर गई बूँदें हज़ार,
क़ुदरत ने बड़ा शोर मचाया है,

समझा था उसकी ख़ुशियों का फुहार है ये
वो तो देखते ही देखते तबाही का मंज़र सा ले आया।।

-मनीष

तेरी हर बात में मजेदारी है

September 4, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

तेरी हर बात में मजेदारी है
तेरी हर याद बड़ी प्यारी है,

मुश्किल के वक़्त तू हँसा देती है
और मेरी हर बदमाशियों को तू छुपा देती है

ये प्यार, ये दुलार तेरा हमेशा सबसे ऊपर रहेगा
भाई-बहन के प्यार का ये पावन त्यौहार
हमेशा तेरे प्यार को समर्पित रहेगा।।

-मनीष

गम की अँधेरी रात में

August 22, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

गम की अँधेरी रात में,
तू दिल को बेकरार न कर

आसमान के वही तारे
एक रोज़ चाँदनी रात भी लाएँगे

तू थोड़ा इंतज़ार तो कर।।

-मनीष

क्या हिम्मत रखता था तू

August 17, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

क्या हिम्मत रखता था तू
डरता था न मौत से,
ठान लिया जब जीतने की
सफलता मिली हर ओर से
तेरे रुतबे ने ही तो
कइयों को राजनीति से प्रेम कराया है,

अटल हमेशा अटल रहेगा
उसने हर दिल में नाम कमाया है।।

-मनीष

रण में उतर जा

August 15, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

रण में उतर जा
प्रण कर ले,
लड़ते जा तब तक
जब तक तू कीचड़ के ढेर में कमल स न खिले,
मंज़र कैसा भी हो,
ताकत अपनी झोंक दे
हिम्मत को हमेशा आगे रखकर
मुश्किलों को तू दबोच दे
हैरान कर दे दुनिया को
अपने नेक कामों से
छा जा दुनिया में तू
हर इंसान के सम्मानों से,
भूलना मत तू खिला कीचड़ के ढेर में से है
तेरा नाम हमेशा हमेशा बुलंद रहेगा
क्योंकि तेरी इज़्ज़त तेरे प्रेम से है।।

-मनीष

आजादी

August 15, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

सालों पहले मिली आजादी के बाद भी
आज हम खुद से लड़ रहे हैं
हम कैसे मान लें कि हम
प्रगति की ओर आगे बढ़ रहे हैं,

कहीं सरहद पर पूरे उत्साह से खड़ा जवान
देश की सेवा के अवसर से गरवांवित है
तो कहीं देश के सीने में शिक्षा देते संस्थानों
की छाती पे खड़े होकर कोई आज़ादी के नारे लगा रहा,

पक्ष-विपक्ष के इतिहास को बार-बार
देश को सँभालने वाले दोहरा रहे हैं
समझ नहीं आता क्यों इतने लंबे समय बाद भी
एक दूसरे के अच्छे काम की सराहना नहीं कर पा रहे हैं

बिकता मीडिया बार-बार गुमराह करने की
कोई कसर न छोड़ने को तैयार है
विद्या मानकर पूजने वाले कार्य
के साथ ये कैसा व्यवहार है,

समझ नहीं आता इनके रोमटे कैसे खड़े हो जाते हैं
जन-गण-मन गाने में
बड़ी सोच में पड़ जाता हूँ मैं
अच्छे बदलाव को थोड़ा भी करीब न पाने में,

आशा है और उम्मीद है
मेरा देश एक दिन फिर आज़ाद होगा
सही और गलत में रुपयों की ताकत के बावजूद भी
कोई भेदभाव न होगा,

अपना जीवन त्याग चुके हर एक वीर को
मेरा खूब सम्मान है, आज हमारे सुकूँ के
पीछे न जाने कितनों का बलिदान है।।

-मनीष

अभी हम नशे में नहीं हैं इसलिए खुशियों भरा संदेश लिख पाए

August 6, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

अभी हम नशे में नहीं हैं इसलिए खुशियों भरा संदेश लिख पाए,

नहीं तो दर्द लिखकर स्याही ख़त्म कर देने में हम माहिर हैं।।

वो कहती है

July 30, 2018 in मुक्तक

वो कहती है
लिखा हुआ आज सुना दो

मैंने सिर्फ इतना ही कहा

जुबाँ लड़खड़ा जाएगी
एहसास बड़े गंभीर हैं

-मनीष

मैं ज्यादा तो नहीं

July 26, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

मैं ज्यादा तो नहीं
थोड़ी सी बात तुझसे कहना चाहता हूँ,

यार तो तुम अब भी लंगोटिया हो,
बस समय के फेर में थोड़ा तुमसे कम रूबरू हो पाता हूँ

विद्यालय के गलियारों में लम्हें जो गुजारे हैं हमने
तुम क्या सोचते हो
ये रंगीन रातें मुझसे दूर कर देंगी मेरे अपने

मुसीबत को तो तू “टेंशन मत ले बे” कह के भगा देता था,
चिंता के समय को तू खुद हँसता हुआ टाल देता था

दिल में तो तू बहुत है
पर चंद शब्दों में बयाँ करना चाहता हूँ
मैं ज्यादा तो नहीं थोड़ी सी बात तुझसे कहना चाहता हूँ,

मुलाकात हमारी पक्की रहती थी
सुबह के विद्यालय पहुँचने पर
वो डेस्क सूनी-सूनी सी लगती कभी तेरे न होने पर
शायद रोज़ी कमाने के लिए
मैं अकेले जिंदगी की कक्षा में समय गुजार रहा हूँ
तुझे हर पल याद करके बस ये लम्हे काटते जा रहा हूँ

हैल्लो, हाय करने तक के समय में
आज हम सिमित हो गए है,

अर्सों गुजरने के बाद
रस्ते में कभी टकरा जाते हैं

कभी जो दोस्त दिन भर न छोड़ पाते थे
आज मिलने को तरसते नज़र आते हैं,

बस ज्यादा नहीं मैं थोड़ा कहना चाहता हूँ
जिम्मेदारियों के बोझ के बावजूद भी
मैं तेरा यार हमेशा रहना चाहता हूँ।।

-मनीष उपाध्याय

कोई तंग है, कोई हैरान है

July 16, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

कोई तंग है, कोई हैरान है
जिंदगी आज कुछ इस तरह से परेशान है

चेहरे हँस रहे है
फिर भी रौनक उनमें कम है
शायद मन ही मन वो बहुत उलझा सा
खुद में ही कहीं गुम है,

सपनों को पूरा करने के लिए वो हर सुबह निकलते हैं
दिन भर एक धुन में रहने के बाद
वो रात की नींद से लड़ते हैं

छोटे-छोटे बच्चों को खेलता देखता हूँ
तो सब भूल जाता हूँ
जीवन की इस दौड़ में भटक सा गया हूँ
बार-बार मैं मन को यही समझाता हूँ

बड़ी दौलत और शौहरत बना लेने के बाद भी
आज वो थोड़े से सुकून के लिए परेशान है,

कोई तंग है, कोई हैरान है
जिंदगी आज कुछ इस तरह से परेशान है

वो भटक सा गया है उसे रास्ता नहीं मिल रहा
आँखे खुली होने के बाद भी
उसे सिर्फ अँधियारा ही मिल रहा,

मेरे आशियाने में आज चंद लोग ही बचे हैं
सपने पूरे करते-करते आज वो अकेले ही खड़े हैं,

अज़ीब सी उलझन में है ये मन
की सब कुछ खो देने के बाद जो पाया
क्या वही है जीवन का अनमोल धन,

एक डर के साथ इस भीड़ में वो भी आगे बढ़ रहा है,
हालातों से लड़ने वाले क़िस्सों को सुन
वो भी आगे बढ़ रहा है,
सबसे आगे निकल जाने को
वो समझ रहा अपनी शान है

कोई तंग है, कोई हैरान
जिंदगी आज कुछ इस तरह से परेशान है।।

-मनीष

वो बचपन वाला मैदान

July 10, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

वो बचपन वाला मैदान आज भी मेरे इंतज़ार में
मुझसे मिलने को तरस रहा है,

अब तो बादल भी गुस्से में है मेरे यार
मेरे न होने पे वो सिर्फ गरज रहा है,
सिर्फ गरज रहा है।।

-मनीष

इतने गर्म शहर में भी चुभ सी रही हैं

June 19, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

इतने गर्म शहर में भी चुभ सी रही हैं,
ये सर्द हवा, ये शीतल सा पानी, ये सुकूँ भरी छाओं

ऐ दोस्त

कितना भटक स गया है न ये मन
की मैं सुकून में भी सुकूँ भरा “मैं” नहीं ढूंढ़ पा रहा हूँ।।

-मनीष

ज़माने से बेपरवाह रहती है

May 25, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

ज़माने से बेपरवाह रहती है
दुनिया के दिखावे से अंजान है

माँ तू ऐसी क्यों है
जो मेरी खुशियों में अपनी खुशियाँ संजोए रहती है।।

– मनीष

तेरा प्यार अनंत है माँ

May 13, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

हर पल मेरी परवाह करते

थकती क्यों तू न है,

माँ मुझको इतना बतला दे

तेरा भी क्या सपना है।।

 

चंदा मामा के किस्से कहकर

कैसे हँसते-हँसते तू लोरियाँ सुनाती थी

माँ मझको इतना बतला दे

इतना स्नेह कैसे तू लूटा पाती थी

 

तुझसे जो थोड़ा दूर हो जाऊँ

पल-पल मझसे तू पूछते जाती थी

कैसा है बेटा कहकर,

खाना समय से खा लेने की सलाह दे जाती थी

 

मेरे सपने को अपना कहकर

निस्वार्थ प्रेम जो तूने दिखलाया

हर पल प्यार के मायने को

तूने बेहतर ढंग से समझाया

 

मेरी कोशिश हर पल है तुझको इतना सुकूँ दूँ

जब-जब तू हँस दे ख़ुशियों से,

मन को मेरे भी मैं तब सुकूँ दूँ,

 

तेरा प्यार अनंत है माँ,

अब शब्दों में कितना वर्णन करूँ

ईश्वर की इस अद्भुत रचना को मैं बस

अब तो हर पल नमन करूँ।।

 

-मनीष

कितना भी ज़िद्दी बन जाऊँ

May 13, 2018 in Other

कितना भी ज़िद्दी बन जाऊँ,
माँ थोड़ा भी न गुस्सा होती है,

एक निवाला अपने हिस्से का खिलाकर
माँ फिर चैन से सोती है।।

-मनीष

न तुम हो न हम हैं

May 4, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

न तुम हो न हम हैं
फिर भी वो एहसास हर दम है,

इशारों से बातें करना,
मंद-मंद न चाह के भी मुस्कुराना,
तेरी हर एक हलचल को
मुझे तेरे करीब लाना,
जिंदगी आज कुछ इस तरह से ही संग है

न तुम हो न हम हैं
फिर भी वो एहसास हर दम है

कभी ज़ोर से चिल्लाना
फिर मन ही मन उस गुस्से से दुखी हो जाना,
हँसते-हँसते आँखों का नम हो जाना
तेरे प्यार की ताक़त हर पल मेरे संग है

न तुम हो न हम हैं
फिर भी वो एहसास हर दम है

बार-बार बिखरना और फिर संभलना
रिश्ते की मजबूती को बखूबी ढंग से समझना
लड़ के झगड़ के भी याद सिर्फ एक दूसरे को करना
प्यार को निभाने का तुझमे बखूबी ढंग है

तू नहीं रहेगा तो क्या फर्क पड़ेगा
वो झगडे वाला प्यार होगा
बस इसी बात का ही थोड़ा हर्ज़ होगा
वो यादें हमेशा मेरे प्यार को जिन्दा रखेंगी
बस उन्ही यादों के सहारे तेरा और मेरा मरते दम तक संग होगा

न तुम होगे, न हम होंगे
फिर भी वो एहसास हर दम होगा

– मनीष

जीवन में तू ताकत देना उठने की,

April 29, 2018 in Other

कितना भी गिरूँ जीवन में तू ताकत देना उठने की,

ऐ खुदा

अस्त सूरज सा खूबसूरत दिखूँ
और चढ़ते सूरज सा ऊर्जावान।।

-मनीष

कुछ संघर्ष को भी सीख ले

April 21, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुछ संघर्ष को भी सीख ले
फिर जिंदगी को तू जीत ले,

कभी मुश्किलों की हार से
कभी तजुर्बे की मार से
हौसला थोड़ा सा डिग जाएगा
फिर भी तू लड़ता जाएगा

कुछ संघर्ष को भी सीख ले
फिर जिंदगी तू जीत ले

जीत की क्या बात है
हार के बाद जो मिली
वो हमेशा खास है
कभी तोड़ के फिर मरोड़ के
अपनी आत्मा में तू झाँक के
अपनी हिम्मत को फिर जोश से सींच ले
कुछ संघर्ष को भी सीख ले
फिर जिंदगी तू सीख ले

-मनीष

कोख़ से मैं कितना बचती रही

April 16, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

कोख़ से मैं कितना बचती रही,
दुनिया में ला कर तुमने ठुकराया,

शर्म मुझे है ऊपरवाले की इस रचना पर
जहाँ जिस्म के भूखों को मैंने कदम-कदम पे पाया।।

-मनीष

जालियाँवाला बाग़ 13 अप्रैल

April 13, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

#जालियाँवाला_बाग़ #13अप्रैल

कुछ दाग़ लगे जो इतिहास पे,
वो दर्द बहुत दे जाते हैं,

किस्से जब उसके सामने आते
रूह तब-तब फिर काँप सी जाती है

रोती है आत्मा मेरी भी
जब जिक्र उस मंजर का आ जाता है

क्रूरता के बद्तर ढंग को
जलियाँ वाला बाग़ की बातें सामने ला जाती हैं

नमन करता हूँ दिल से मैं भी उस कांड में हुए शहीदों को
देश की ताकत कम न होने देने वाले देश के अद्भुत वीरों को।।

-मनीष

सुकूँ

March 25, 2018 in शेर-ओ-शायरी

सुकूँ कुछ ऐसा मिलना चाहिए जिंदगी को,

जैसे तेरे नर्म हाँथो पे मेरे हाँथ होने का एहसास हो।।

-मनीष

ख़ुशियों के पल में तो …

March 25, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

ख़ुशियों के पल में तो
ख़ुशियों ने बख़ूबी साथ निभाया,

और जब-जब मन निराश हुआ
तब-तब क़लम के माध्यम से बनी
कविता ने शांति का एहसास कराया,

मैं अपनी कलम के हर एक सफर को नमन करता हूँ
मेरे लेख को समझने वाले हर एक सदस्य का आज विश्व कविता दिवस पर तहे दिल से आभार व्यक्त करता हूँ।

-मनीष

सफरनामा

March 18, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

#सफरनामा

जहाँ इंसान दुःखी होता है

वहाँ ही सिर्फ अल्लाह या भगवान् के नाम से मिलता है

नहीं तो सिर्फ और सिर्फ आगे बढ़ो का फ़रमान मिलता है।।

-मनीष

हार जीत

March 16, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

कल हार थी, आज जीत है
आज जीत कर भी मैं अधूरा सा हूँ,

ये जिंदगी की कैसी रीत है।

-मनीष

तेरी पहली पंक्ति में

March 16, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

तेरी पहली पंक्ति में
मैंने तुझे शीशे सा टूटता हुआ देखा,

और जब तूने दूसरी और अंतिम पंक्ति लिखी
तो उसी शीशे के टुकड़ों को ज़मीन पर बिखरते हुए देखा,

तेरे लेख से मैंने तुझको बार-बार करीब से देखा,
जब-जब देखा तुझे शीशे की तरह टूटता हुआ ही देखा।।

-मनीष

जिंदगी कटती नहीं बिना खुद को आजमाने से

March 16, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुछ परेशानी से
तो कुछ संघर्ष की कहानियों से,
जीवन नहीं कटता
बिना दुःख और दर्द की निशानियों से,

कभी टूटता तन, तो कभी रूठता मन
लम्हे कितने भी खूबसूरत क्यों न हों,
हर खूबसूरती के पीछे छिपा है
लंबे समय तक हुआ एक-एक पल का दम

तुम कितना भी पस्त हो और कितना भी लस्त हो जाओ
हार मत मानो इस तरह की स्थिति सामने आ जाने से
क्योंकि जिंदगी नहीं कटती
बिना दुःख और दर्द की निशानियों से,

घर बनने में क्या समय लगता,
महल बनने में जो देरी होती,
जीवन को घर से आगे का सोचकर
महल तैयार करने की ठान,
डर न तू किसी संघर्ष के पैमाने से

जिंदगी कटती नहीं बिना खुद को आजमाने से।।

-मनीष

‘हम’

March 14, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

इतना चाहने पे भी तू सनम न हुआ,

बस यही तो गम है कि तू ‘हम’ न हुआ
की तू ‘हम’ न हुआ।।

-मनीष

कई क़िस्से, कई बातें

March 11, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

कई क़िस्से, कई बातें
फिर हँसती खिलखिलाती मुलाकातें,

उन दिनों की एक-एक यादें
आज भी मेरे साथ हैं,

तू जो छोड़कर चला गया
अब क़लम ही एक विश्वास है,

तेरे इश्क़ के अनुभव लिखने पे
अंजानो में भी हम खास हैं,

तेरा जो छूटा साया
क़लम ने दुनिया से मिलवाया,

चंद शब्द लिखकर हमने
कई लोगों के दिल में जगह बनाया,

तेरे इश्क़ का अनुभव मेरे जीवन का एक प्रमाण है
”वाह” जब-जब कोई साथी कहेगा उसमे तेरा भी सम्मान है।।

-मनीष

भारतीय रेल

March 11, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

#भारतीय_रेल

लोहे की खिड़की पे सिर रखकर,
सपनो को करीब से देखा है,

पहियों के रफ़्तार से,
अनुभव को भरपूर जीता है

इस तरह यादें समेटे सफर चलता जा रहा,
भारतीय रेल का ये साथ अनूठा
अब हमसे न भूला जा रहा,

-मनीष

माँ तेरे प्यार को कैसे लिखूँ

March 10, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

माँ तेरे प्यार को कैसे लिखूँ,
प्यारे से दुलार को कैसे लिखूँ,

सुबह का जगाना और रात लोरी सुनना
पल पल पूछे खाना खाले जो चाहे वही बनवाले
फिर बोले घर जल्दी आना देर हो जाए तो पहले बतलाना,

इस प्यारे से व्यवहार को कैसे लिखूँ
माँ तेरे प्यार को कैसे लिखूँ

मेरे कष्ट में तू टूट सी जाती,
खुद की तकलीफ को झट से छुपाती,
मुश्किल में तू मुस्काती,
मेरी जीत में फिर उछल सी जाती

तेरे इस एहसास को कैसे लिखूँ
माँ तेरे प्यार को कैसे लिखूँ

निस्वार्थ प्रेम की परिभाषा तू बख़ूबी सिखलाती है
मेरे जीवन के सपनों को अपने सपने बतलाती,
थोड़ा भी मायूस होने पे तू भरपूर जोश हम में भर जाती है
अपनी दिन भर की मेहनत से तू घर में बहार ला जाती है

तेरे इस प्यारे से आभार को कैसे लिखूँ
माँ तेरे प्यार को कैसे लिखूँ

-मनीष

जिंदगी भी कितनी अजीब है

March 10, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

जिंदगी भी कितनी अजीब है
एक लंबे संघर्ष के बाद ही
खूबसूरत सी जीत है,

आँधी की तबाही के पहले
हर बार सन्नाटा सा होता
रौशनी तभी जीत पाती है
सामने उसके जब अँधियारा होता,

जिंदगी कितनी अजीब है
दुःखी होते मन को
हर बात पे कुछ न कुछ कम सा नज़र आता
और जीत के जश्न में वही मन सब कुछ भूल सा जाता

सूरज की क़द्र तभी खूब होती
जब सर्द हवा का कहर हर जगह बरपा सा होता,
अन्न की कीमत इंसान तभी समझ पाता
जब अपना सा कोई सड़क किनारे भूँखा नज़र में आता,

धन दौलत की ताक़त में इंसान मौत को ही भूल जाता
एहसास तभी होता जब ज़िगर का टुकड़ा कोई हमेशा के लिए दूर चला जाता,

जिंदगी कितनी अजीब है,
हर विपरीत परिस्थति में ही जीवन के सच की जीत है।।

-मनीष

क़ाबिल

March 10, 2018 in शेर-ओ-शायरी

मैं भी अब कुछ करने के क़ाबिल हो गया हूँ,

रुपयों से खुशियाँ खरीदने की दौड़ मे मैं भी शामिल हो गया हूँ

#पहलीनौकरीकीख़ुशीमे

-मनीष

तेरी शान से ही तो हर पल मेरी शान है

March 8, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

महिला दिवस पर प्रत्येक महिला को समर्पित ये छोटा सा लेख।।

तेरी शान से ही तो हर पल मेरी शान है,
जहाँ-जहाँ तू कदम रखे वहाँ मेरा सम्मान है,
निःस्वार्थ भाव से सेवा करके
तू माँ होने का बख़ूबी अर्थ समझाती है,
तो बेटी के रूप में ईश्वर का अस्तित्व दिखलाती है,
जब तू ब्याह कर नए घर में आती है,
तब मानो उस घर की तक़दीर ही बदल जाती है,

तिरंगा को ऊँचा करके तू देश को गर्व कराती है,
विपदा से निपटने के लिए तू ज्वाला सी बनकर डटी रही,
चाँद को तूने जीत लिया, मेहनत में हर पल तू लगी रही

तेरे दिन-रात मेहनत की दुनिया पूरी सानी है,
एक महिला के रूप में सृष्टि तुझको जानी है
तेरे इस रुतबे को मैं हर पल सलाम करता हूँ
महिला दिवस क्या मैं हर दिन तुझको प्रणाम करता हूँ।।

-मनीष

इंसान की शक्ल में आज हैवान नज़र आया

March 5, 2018 in ग़ज़ल

इंसान की शक्ल में आज हैवान नज़र आया,
की मैख़ाने के करीब कोई बदजुबान नज़र आया,

कोई ज़माने पे इलज़ाम लागते नज़र आया
तो कोई खुद को ही ऊपरवाले का पैगाम बतलाया,

मैंने तब खुद को यह समझाया
फ़िक्र न कर इनकी ये जोश
चार बूँद के नशे से ही तो उभर कर आया

किसी ने खूब नाम कमाकर भी अपने आप को ध्वस्त पाया,
तो किसी ने इश्क़ में धोखे के नाम पर बार-बार जाम छलकाया,

सुकूँ इस बात का मैंने जरूर पाया,
की इंसान के चंद कष्टों और दुःखों को
मैख़ाने की ताक़त ने दुनिया को दिखाया

फिर भी बार-बार मैं मैख़ाने की चौखट पे
इंसान के रूप में एक हैवान को ही पाया।।

-मनीष

क्यों मन हर पल रोता है

March 3, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

क्यों मन हर पल रोता है,
डरता क्यों उससे जो होता है,
तेरी हिम्मत तेरे हाँथो,
फिर भी दहसत में क्यों सोता है,
अपना एक तू लक्ष्य बना
हर सफर का अंत एक दिन तो होता है,
समय से क्यों घबराकर मन हर पल क्यों रोता है,

मुश्किलों से न तू अपना अंत समझ
इसके पार ख़ुशियों का झरोखा है
लक्ष्य को हासिल कर लेगा तू जब
तब कहेगा हर मुश्किल में भी एक मौका है
इस बात को लेकर बढ़ता चल मन तू
क्यों हर पल फिर रोता है,

-मनीष

जिंदगी संग तो हर दिन की यारी है

March 3, 2018 in शेर-ओ-शायरी

जिंदगी संग तो हर दिन की यारी है,

तुम खुद ही बता दो मौत कब मिलने की तैयारी है।।

-मनीष

रंग बिरंगी होली

March 2, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

इस रंग बिरंगी होली की हर बात बहुत ही निराली है,
जहाँ-जहाँ तक नज़रें जाती, मस्ती की हर तरफ तैयारी है,
माँ के हाँथ के पकवानों को चखने
किसी की घर जाने की तैयारी है,
बचपन को जीवंत कर देने किसी ने
पिचकारी फिर से थामी है,
इन सब बात के आनंद में खो जाने की अब बारी है
इस रंग बिरंगी होली की हर बात ही निराली है

फिर मुखौटे के पीछे छुपकर,
शरारत फिर से कर जाने की तैयारी है,
गुलाल कहकर कड़क रंग से
रंग देने की फिर से कुछ ने ठानी है,

होलिका संग अपने मन के मैलों को दहन कर
कोई नई शुरुआत के लिए उत्साहित है,
दुश्मनी को भूलकर
फिर से अबीर के तिलक लगाने की बारी है
आरंभ करो ख़ुशियों के इस त्यौहार का
हर बात इसकी बहुत निराली है

-मनीष

आइना आज मुझे मुझसे मिलाया

May 27, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

आइना आज फिरसे सामने आया,  बीत चुके समय की उन मुश्किलों और गलतियों को मुझसे रूबरू कराया,

थोड़ा हंसाया और थोड़ा रुलाया,

जब बीते हुए पलों का चेहरा सामने आया

तब गुम हो चुकी यादों को मैंने गले लगाया

जब-जब मैं गिरा आईने ने मुझे मेरी ताकत का एक खूबसूरत चेहरा मेरे सामने लाया

मेरे हौसले के चेहरे को आईने ने हमेशा हँसता हुआ दिखाया

समय आगे बढ़ता गया और यादों का अंबार लगता गया

पर जहाँ-जहाँ आइना चेहरे के सामने आया

हमेशा वो गुजर चुकी यादों के चेहरे को आईने ने करीब से दिखाया”

-मनीष उपाध्याय

हमेशा मुस्कुराते रहो

November 27, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

26/11 के शहीदों को नमन, श्रद्धांजलि

November 26, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

मुश्किल है उस समय को याद करना
याद फिर भी आ जाती है

रोते तड़पते लोगो की तस्वीर सामने आ जाती है
आतंक के शैतानो को सबक अपने सिखाया है

अपनी जान देकर भी कइयों की जान बचाई है
२६/११ की रात्रि को मुम्बई मई मे ताकत जगाई है

२६/११ के शहीदों को नमन, श्रद्धांजलि.

Those days are gone….

November 25, 2016 in English Poetry

The days are gone,
When we used to play in a small veranda which looked like a large playground.
The days are gone,
When we used to share our lunch-box in each and every corner of the classroom, the happiness of which was more than anything.
The days are gone,
When the bicycle ride felt like a flight.
The days are gone, when a single penny would make us more happy than the big notes.
The days are gone,
When we were free to do anything and everything that made us happy.
The days are gone,
When everything looked easy and joyous.
The days are gone,
When you were sad and crying and at that moment there was someone behind you, who would make you happy.
But the experience of those days always makes me happy, makes me hopeful, and forces me to try to recreate those moments.
-Manish Upadhyay

एक कदम कुछ खास लोगो के लिए!!!!

November 21, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

मुश्किल है ये सफर फिर भी हौसला कभी भी डिगता नहीं
ठण्ड परीक्षा लेती है पर ये हौसला कभी भी झुकता नहीं
चार दीवारी के सपनो को हम कहा से जाने
इस नीले आकाश को ही अपना छत हमेशा माने
सर्दी में ठिठुरते शरीर की उम्मीदें मात न खाती है
कभी अलाव की गर्मी जीने की राह दिखा जाती है
दिन तो काट जाती है लेकिन रात बहुत तड़पाती है
घटते हुए तापमान के एहसास से रूह काँप सी जाती है
कभी सर्दी की तेज़ हवाएं जीना सा मुश्किल कर जाती है
फिर भी अगले दिन का सूरज एक आस सी जगा सा जाता है
ताकत की न सही, इंसान होने की तो हममे समानता है
मानवता के मतलब को इंसान ही तो जानता है
आओ  मिलकर हम सब हाथ बढ़ाये और
ठंडी से ठिठुरते लोगो को उनके साथ होने का एहसास कराएँ
-मनीष उपाध्याय

रो देता है मन मेरा भी!!

September 20, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

दुखी हो जाता है मन मेरा भी

जब जब दुखी तुझे मैं पाता हूँ

क्या बोलूँ मैं दर्द मेरा

टूट सा पूरा जाता हूँ

 

कभी सुनकर खबर शहीदों की आत्मा मेरी भी रोती है

एक माँ को बार-बार टूटता देख तकलीफ मुझे भी  होती है

 

हर पल धर्म पर लड़ते लोग

समझ मुझे न आते हैं

भाईचारे की भावना को ये सब शर्मशार कर जाते हैं

 

माँ बेटी की इज्जत करना हमारी संस्कृति ही हमे सिखलाती है

फिर भे रो देता है मन मेरा

जब निर्भया जैसी घटना की, खबर कान में आती है

 

हँसते खेलते बच्चों को देख, मन खुशियों से भर जाता है

फिर भी रो देता है मन मेरा

जब सड़क किनारे बच्चा कोई भूख़ा नज़र में आता है

 

मेरी और तुम्हारी कोशिश से ही

सब कुछ बदल सा जाएगा

ये रोता मन हम सब का

फिर से कभी न रो पाएगा

 

सरहद पर खुशियां होगी

भूखा फिर न कोई रह पाएगा

भय के बदल छट जाएंगे और

फिर ये देश एक हो जाएगा

 

– मनीष उपाध्याय

I learn a lot from you.

September 5, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

You taught me the meaning of love

and You taught me the meaning of life

Whenever I fall you taught me

How to stand and look forward to win

Sometimes during the class and

Sometimes between the rows

Whenever I see you, met you,

I see the god in you

You are the portrait of my dreams and

You are the power of my soul

I always be indebted to whatever I learn from you

Words are not enough to tell my love towards you

But caring like a son and teaching like a mother is always worth to describe my love towards you

– Manish Upadhyay

हमेशा मुस्कुराते रहो

September 3, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम धरती हो, तुम आसमान हो और तुम ही ये जाहां हो

सूरज सा तेज और चाँद की चांदनी की तरह ही तो तुम ही हम सब की शान हो

मुश्क़िलों जैसी चीज़ों का ना कोई एहसास

हँसते खिलखिलाते चेहरो में दमकता सा आत्मविश्वास

तुम्ही तो हम सब की आस हो

हार जीत तो जिंदगी का एक हिस्सा है

पर तुम्हारा हर चीज़ से लड़ने का हौसला जीत से कही ज्यादा खास है

सुन्दर सी मुस्कान और चेहरे की मासूमियत हमेशा मुझे तुम्हारे और करीब लाती है

सीखने का जूनून और कुछ नया जानने की ललक मुझे तुमसे हमेशा कुछ न कुछ सीखा जाती है

बस इसी तरह हँसते रहो मुस्कुराते रहो,

मस्त रहो और हमेशा खुशियां मनाते रहो

मुश्किल समय को जीना और समझना सीखो

बस इसी उत्साह के साथ आगे बढ़ते रहो

और हमेशा अपने माता पिता का सिर गर्व से ऊँचा करते रहो |

– मनीष उपाध्याय

बचपन की यादों के झरोकों से

August 8, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

वो समय की भी क्या बात थी,

जब मुश्किलों की कोई रात थी

हम उछलते थे  कूदते थे

और खुशियों की धुन में हमेशा खो से जाते थे

 

जब बड़ी बड़ी गलतियां भी

रबर से मिटा दी जाती थी

और टिफ़िन के खाने की महक

मन को भर सा देती थी

 

वो समय की भी क्या बात थी

जब कोई भी चीज़ में आगे निकलने की होड़ होती थी

हम नाचते थे झूमते थे

और उस हर एक पल को दिल में समेट सा लेते थे

जब चाँद जैसी मंजिल भी करीब लगती थी

और अपने से बड़ो की बातें कुछ कुछ सिखने की राह दिखाती  थी

 

समय गुजर सा गया है और जिंदगी समिट सी गई

मैं यादों के झरोकों को जब भी करीब से देखने की कोशिश करता हूं

तो हमेशा तुम्हारी कमी महसूस करता हूं

चाँद को देखता हूं तो वो बीते हुए दिनों को याद करके मुस्कुरा देता हूं

छोटेछोटे बच्चो को स्कूल जाते देखना हमेशा मेरे बचपन के दिनों को दोबारा जिन्दा सा कर देता

 

वो भी एक दौर था हमारा

और ये भी एक दौर है

दोस्त

 

जिंदगी हो या हो तुम हमेशा मेरे लिए खास रहोगे मेरे यारा

इस जनम की तरह अगले जनम भी हम वही जिंदगी जिएंगे दोबारा

ONLY MOTHER CAN..

July 18, 2016 in English Poetry

You teach me how to speak

You teach me how to eat

Whenever I felt low

You teach me how to be strong

You are the one who teaches me

how to behave and care each and everyone

You are the sunshine of my day

and you are the moon of my night

You always the one who knows me best

You are the one who teach me how to dream and

How to work for achieving those dreams

You are the strongest women I ever see in any situation

You are my god, you are my heartbeat

You are the one who lived in my heart more than my words

I can’t tell you enough, give you enough and

tell you enough to show how much you mean to me

You are my life, you are my love and you are everything for me

 

Thanks mom for teaching me a true meaning of love and care.

-Manish Upadhyay

मैंने जिंदगी को करीब से देखा है!!

July 18, 2016 in शेर-ओ-शायरी

मैंने सपनो को टूटते हुए देखा है

मैंने अपनों को रूठते हुए देखा है

मेरी क्या औकात है तेरे सामने

ऐ जिंदगी

मैंने तो अपने आप को हे अपने आप से टूटते हुए देखा है

– मनीष

Get well soon #Hanumanthappa

February 10, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

I started dreaming when you falling asleep

I worked day and night to make proud of my country

I never afraid about the height of the mountain

Or the deepness of the sea

and fly like a vulture,

swim like a whale,

And now my story become an example for each and everyone

This is my life friend

You do not compare my dream under the scale of your imagination

As i am ready to crack the deepness of the ocean of ice

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