poonam agrawal
किस्मत
June 20, 2024 in Poetry on Picture Contest
ऊपर वाले ने लिख भेजी, सबकी अलग कहानी है
किसी को दिया;गम ए बुढ़ापा, कहीं तड़पती जवानी है
किसी को दिया दिनभर कणभर, कहीं आँखों में पानी है
तस्वीर नहीं; फुटपाथ वाले, बचपन की यह कहानी है
पैदा हुआ तो परिवार को, खुशनुमा नहीं; हुआ अहसास
ना ही बजायी गयी थालियां, गालीयों का था अट्टाहास
तब तक सब कुछ था स्वर्णिम, जब तक उपलब्ध स्तनपान
बढ़ने लगे बचपन ओर, होने लगा जीवन का दुर्गम ज्ञान
सोने को है गोद धरती की, आसमाँ की चादर है
ढकने को तन फटे पुराने, चिथड़ों की कातर है
सर्दी गर्मी की परवाह नहीं, डर बारिश का लगता है
फुटपाथ पर गाड़ी चढ़ाने वाले, अमीरजादे का लगता हैं
रोज क्षुधा की आग बुझाने, हाथ फैलाते है
सिग्नल देख रुकती गाड़ी पर, दौड़ कर जाते है
कोई मारे कोई दुत्कारे, कई आँख दिखाते हैं
जो मिल जाये इक रुपया तो, फुले ना समाते है
अभावों में भी भाव खुशियों का ढूंढ ही लाते है
तरस ना खाना हम पर साहब, हम भी मेहनत का खाते हैं
आज सुखी रोटी की जगह, बहना फल ले आयी है
मिल बाँट कर पार्टी करने, काम छोड़ बुलाने आयी है
खुद की भूख छिपायी है
2020—–21
January 1, 2021 in Poetry on Picture Contest
आती जाती हैं ये लहरें, सिर्फ निशां छोड़ जाती है
रेत के ऊपर हर पल नयी, कहानी ये लिख जाती है
टकराकर किनारों से, हर पल नया उठना होगा
बीस बीस के बाद इक्कीस की, इबारत गढ़ना होगा
याद रखों इसी सागर में, अमृत विष के प्याले हैं
याद रखों इसी सागर में, छुपे सुनामी छाले हैं
दिखता शांत किन्तु हृदय में, भाटे ज्वार से पाले है
अपने सीने में राज इसने, दफन अनेक कर डाले है
ठीक बीस भी सागर की इन शांत लहरों सा दिखता था
सुनामी को हृदय में अपने, दे रखा इक कोना था
ज्वार भाटे सी उठी सुनामी, नाम इसका कोरॉना है
पिया विष का प्याला सब ने, बीस का यही रोना है
अब आया है इक्कीस देखो, संग यह वैक्सीन लाया है
लॉक डाउन से जूझता सूरज, सागर से उग आया है
जो आया है इक्कीस तो अब, सब कुछ ही इक्कीस होगा
ख़तम हुए दिन जीरो के बस, अब आगे बढ़ना होगा
बढ़ते बढ़ते आगे हमको, याद यह रखना होगा
भूले ना हम बीस की भूले, यादों को सहेजना होगा
इस सागर में जानवर विषैले, थाल मोती के भी सजे
मंथन यह हमको ही करना, कैसे साल इक्कीस का सजे
प्रवासी की पीड़ा
June 10, 2020 in Poetry on Picture Contest
भारतवासी बना प्रवासी, कैसा किस्मत का खेल है
मजदूरों की भीड़ से भरी, यह भारतीय रेल है
घर जाने की जल्दी में, मची ये रेलमपेल है
भाग रहे गृह राज्यों में ये, जैसे यहां कोई जेल है
ना ही खाना ना ही छत है, भागना ही इक रास्ता है
लाकडाउन ने कर दी सबकी, हालत बड़ी खस्ता है
मरे भूख से या कॉविड से, डर नहीं बिल्कुल लगता है
बस अपनो के बीच कैसे भी, पहुंचे उसकी चेष्टा है
सरकारों की मजबूरी है, मानवता शर्मिन्दा है
जिसने विकास की नींव लगाई, हालत ज्यो भीखमंगा है
आओ हम सब हाथ बढ़ाए, कोविड़ से लडना सिखलाये
ना समझे हम उन्हें प्रवासी, इक सूत्र में बंध जाये
Maker Sankranti
January 8, 2020 in साप्ताहिक कविता प्रतियोगिता
त्यौहारों का देश हमारा, पर्व अनेक हम मनाते है
हर उत्सव में संदेश अनेक है, विश्व को हम बतलाते हैं
अब पौष मास में निकल धनु से, मकर में सूरज आया है
और संग अपने लौहरी एवम् मकर सक्रांति लाया है
सक्रांति आते ही हर छत पर, रौनक छाने लगती है
हर बच्चे को सुबह सुबह, याद छत कि आने लगती है
रंग बिरंगी डोर पतंग से, आसमां को सजाते है
और अपने अरमानों को, पंख भी संग लगाते है
हर बुजुर्ग इसी दिन बचपन, को फिर से जी सकता है
खा कर तिल गुड, पेंच लगा कर, यादें ताजा कर सकता है
दान धर्म करने का इससे, शुभ अवसर ना आता है
हर कोई बिना गंगा स्नान ही, पुण्य प्राप्त कर पाता है
लेकिन पक्षियों के लिये यह , त्यौहार बड़ा सिरदर्दी है
हर पतंग की डोर उनके, लिए बड़ी बेदर्दी है
साथ ही इस दिन हर माँ को, चिंता यही सताती है
भागे बच्चा छत पर अकेला, इस बात से वह घबराती है
अनेकाएक रंगो से है, जैसे एक आसमान सजा
बिना कोई भेदभाव के, इसका पतंग उस छत पर गिरा
राम रहीम की पेंच बहाने, पतंग गले लग जाती है
मौज मस्ती सदभाव की क्रांति, सक्रांति फैला जाती है
यह कैसा नया साल है
January 1, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
यह कैसा नया साल है, यह कौनसा नया साल है
ना मौसम खुशगवार है, ना छाई वासंती बहार है
ना फसलें नयी आई है, संग शुभ मिती ना लाई है
ना कोई पर्व त्यौहार है, ठंड से सबका बुरा हाल है
फिर कैसा नया साल है, यह कैसा नया साल है
सब रजाई में दुबके है, बाहर निकले इक्के दुक्के है
ना ऊर्जा उत्साह उल्लास है, ना पवित्रता का भास है
मौज मस्ती हुड़दंग बाजी 31st नाईट कि शान है
फिर कैसा नया साल है, यह कैसा नया साल है
इसे संग अंग्रेज़ यहां ले आये, पिछलग्गू फिर मनाते आये
सिर्फ तारीख ही बदली है, जो रोजाना बदलती है
हमारा विक्रम संवत उनसे, आगे कई साल है
फिर कैसा नया साल है, यह कैसा नया साल है
नव वर्ष होता तब यह, जब नवल सृजन नव काज होता
नव वर्ष होता तब यह, जन में नवल उमंग संचार होता
आज कैलेंडर हमने बदला, जो नव वर्ष का नहीं प्रमाण है
यह नहीं हमारा साल है, यह कैसा नया साल है
चेत्र शुक्ल प्रतिपदा को आओं मिल मनाते हैं,
सृष्टि रचना दिवस, नवरात्र दरबार हम सजाते है
हर हृदय को फिर नव संवत्सर याद दिलाते है
कि वही हमारा साल है, हाँ यही नया साल है
Ehasaas
December 25, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
काश कि हर इंसा को होता, किसी की भूख का एहसास
काश कि हर इंसा को होता, अपमान की तकलीफ़ का एहसास
काश कि हर इंसा को होता, किसी के दर्द का एहसास
काश कि हर इंसा को होता, किसी को खोने का एहसास
काश कि हर इंसा को होता, किसी की खुशी का एहसास
काश कि हर इंसा को होता, किसी को पा लेने का एहसास
काश कि हर इंसा को होता, किसी के प्यार का एहसास
काश कि हर इंसा को होता, किसी के दूर जाने का एहसास
काश कि हर इंसा को होता, खुद के आत्मबल का एहसास
काश कि हर इंसा को होता, खुदा के वजूद का एहसास
काश कि हर इंसा को होता, किसी के साथ का एहसास
काश कि हर इंसा को होता, दुआओं की ताकत का एहसास
फिर कभी ना होते दंगे, ना कोई फसाद
फिर कभी ना होता अलगाव, ना ही भेदभाव
फिर कोई ना भूखा सोता, देश में मेरे आज
वसुधैव कुटुंबकम् का भाव सच में, हो जाता साकार
Baarish
December 24, 2019 in शेर-ओ-शायरी
ए बारिश तेरे रूप अनेक, तू समझ किसे ही ना आती
कभी तरसाए मौसम में, कभी बेमौसम बरस जाती
आते जाते आँसू कभी , खुशी और गम के दे जाती
कल्पना तेरे बिना जीवन की, संभव ना हो पाती
Sathi
December 24, 2019 in शेर-ओ-शायरी
ख्वाबों में जिसको देखा था मैंने, हकीकत में साथ वो रहने लगा है
सोचा था साथ कौन देता है अब, हर कदम साथ वो चलने लगा है
दिल की बातें किसे सुनाती, बिन बोले सब कुछ समझ लेता है
करता नहीं कोई नशा मै तो, सुरूर बन फिर भी छाने लगा हैं
Karwa chauth
December 24, 2019 in Other
इक रात चांद यूं पूछ बैठा, इक सुहागन नारी से
क्यों करती मेरी पूजा तुम, यूं सज धज तैयारी से
क्यों रहती भूखी दिन भर तुम, करती इंतजार चढ़ अटारी से
पहले मेरा फिर पति का, क्यों देखती चेहरा बारी बारी से
ना तो मैं तारों के जैसा, बिना दाग के दिखता हूं
ना वृक्षों कि भांति मैं, छांव फल किसी को देता हूं
मुझ तक तो आ पहुंचा मानव, सूरज जैसा ना अपराजित हूं
फिर क्यों पूजा तुमने मुझको, जानने को मैं लालायित हूं
सुनकर चंद्र कि बातें सारी, मुस्कुराकर उसे समझाती है
क्या हैं राज इस पूजा के पीछे, आज सभी बतलाती हैं
पूजने को तो पुजू तारा, पर पल में साथ छोड़ देता है
किसी ने कुछ मांगा तो जगह से, फट से टूट चल पड़ता है
छांव फल देदे वृक्ष भले पर, होता अस्तित्व अस्थायी है
है सूरज स्थायी भले पर, स्वभाव में बड़ी गरमाई है
ना मैं चाहूं क्रोधी और संग में सदा उन्हें चाहूं
जैसे शिव के भाल तुम सजे, वैसे सजाना उन्हें चाहूं
जैसे हो तुम शांत, सौम्य शीतल, रूप उनका वैसा चाहूं
चांद ना छोड़ता साथ चांदनी का, राज समझाना उन्हें चाहूं
जैसे मानव ने तुम्हे है जीता, दिल उनका जीतना चाहूं
हां छलनी के जरिये गुण तुम्हारे सारे, ट्रांसफर उनमें करना चाहूं
Tum bin
December 24, 2019 in गीत
तुम बिन मैं एक बूँद हूँ,
तुम मिलो तो सागर बन जाऊँ…
तुम बिन मैं एक धागा हूँ,
तुम मिलो तो चादर बन जाऊँ…
तुम बिन मैं एक कागज हूँ,
तुम मिलो तो किताब बन जाऊँ…
तुम बिन मैं इक चिंगारी हूँ,
तुम मिलो तो ज्योति बन जाऊँ…
तुम बिन मैं एक सुर हूँ,
तुम मिलो तो संगीत बन जाऊँ…
तुम बिन मैं एक मोती हूँ,
तुम मिलो तो माला बन जाऊँ…
तुम बिन मैं एक सांस हूँ,
तुम मिलो तो जीवन बन जाऊँ…
तुम बिन मैं केवल शब्द हूँ,
तुम मिलो तो प्रेमग्रंथ बन जाऊँ…
सर्दी
December 11, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
वसंत को कहा अलविदा, ग्रीष्म और वर्षा काल बीता
अब शरद और हेमंत अायी, सर्दी शिशिर तक छाई
ये सर्द सर्द सी राते, इसकी बड़ी अजीब है बातें
कहीं मुस्कान अोस सी फैलायी, कहीं दर्द दिल को दे आयी
जब संग ये मावठ लाती, बारिश संग उम्मीद जगाती
रबी की फसले हर इक, खेतों की शान बढ़ाती
बर्फिली हवाओं बीच, करता किसान रखवाली
लेकिन जब पाला गिरता, फिकी हो जाती दीवाली
माना व्यापार है बढ़ता, शादी का सीजन खुलता
संक्रांत क्रिसमिस, न्यू ईयर, सर्दी के आंचल में खिलता
लेकिन कुछ को सरदर्दी, लगने लगती है सर्दी
जब ना हो जेब में पैसा, और ठिठुराने लगे बेदर्दी
बच्चों का अजीब सा नाता, यह मौसम उन्हें बड़ा भाता
छुट्टियां यह कई ले आता, जब शीतकालीन सत्र है आता
अस्पतालों में भी हरदम, तैयार रहती डॉक्टर की फौज
कोई ना कोई कहीं, बीमार पड़ता हर रोज
यह खट्टी मीठी सर्दी, सबके मन को बड़ी भाये
गर्मी में सोचे कब आये, सर्दी में पीछा कब छोड़ जाये
कभी आ जाती टाइम पर, कभी हो जाती है लेट
इंडिया की सर्दी ग्रेट, सब करते इसका वेट
महात्मा गांधी
September 27, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
गांधी नहीं सिर्फ नाम है, वो देश का मान है
नोटों पर देख तस्वीर, ना सोचो खास इंसान है
वो हममें से ही आने वाला बिल्कुल आम इंसान है
सिर्फ और सिर्फ भारत में ही, बसती उनकी जान है
आंख पर चश्मा, हाथ में लाठी, सत्य अहिंसा पहचान है
नायक नहीं वे जननायक, अंग्रेज़ो मे खौफ उनकी पहचान है
हर जन गण में जगाना प्रेरणा, उनकी ताकत का राज है
कठिनाईयों को पीठ नहीं दिखाना, सीखने की जरूरत उनसे आज है
मुख पर राम; दिल में राम, पर सम्मान सभी धर्मो का था
जातिवाद,रंगवाद मिटा, वो नायक बना कर्मो से था
वो था अकेला चल पड़ा तो पीछे, जुड़ता गया इक पूरा रेला था
इक आग उसने जला दी ऐसी, बस हर ओर देशभक्तों का मेला था
उम्र के साथ कमजोर ना पड़कर, रुकना नहीं सिर्फ बढ़ना है
इक ही जीवन देश को अर्पण, करना उनसे सीखना है
सिर्फ शस्त्रो से ही युद्ध का, निर्णय कभी ना होता है
सीखना उनसे सत्य के संग ही, जीवन सत्य होता है
आज पितृ पुरुष वह महानायक, रहता राजघाट समाधि में
गांधीगिरी का घोल दिया रस, देश कि पूरी आबादी में
इनके ऋण से देश कभी , उऋण नहीं हो सकता है
इनके चरणों की धूल से पावन, कुछ भी नहीं हो सकता है