हर दम रहें वो अच्छे

September 26, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

कैसे हो पूछता हूँ
कहते हैं खूब अच्छे
हर बार पूछता हूँ,
कहते हैं खूब अच्छे।
भीतर का दर्द जो है
वो भी बता न पाए
हम भी न पूछ पाये
बस बोल बोलने हैं
दो बोल बोल आये।
कैसे हैं क्या पता वो
ज्यादा न पूछ पाये।
दायरे बने हैं सबके
दायरे में हम घिरे हैं,
बस मन से चाहते हैं,
हर दम रहें वो अच्छे।

कूलंकषा बहती रही

September 26, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

कूलंकषा बहती रही,
निज राह में, किस चाह में,
साथ बहते रहे कण
पर न जाने किस चाह में।
बीतता चलता रहा
क्षण निरंतर राह में
दे गया खुशियां किसी को,
कुछ रहे बस आह में।
रोकना चाहा समय को
रोकनी ने राह में,
फिर भी किनारे से निकल वह
बह चला निज राह में।

विहग

September 26, 2021 in मुक्तक

गा रहे गीत ये विहग प्यारे
न जाने कौन सी हैं भाषाएं
मस्त हैं खेलते हैं आपस में
न कोई गम न कोई आशाएं।

मन

September 26, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

नफरतों ने दिशा बदल डाली
मन घिरा जाल में स्वयं अपने
बांटी नफरत तो पाई नफरत थी
फिर भी मन में रही है कुछ गफलत।
अपनी मेहनत का फल मिलेगा ही
कटु रहे या भले ही मीठा हो,
ऐसा है कौन इस जमाने में
जिसने ठोकर से कुछ न सीखा हो।

मन के घोटक

September 26, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

मन के घोटक में बैठ कर दौड़ा
किस दिशा में कहाँ चला राही,
इस तरफ उस तरफ धरा-अंबर
आया क्या हाथ में बता छनकर।
खूब रख ईप्सा चला दौड़ा,
वैसी ले दीक्षा चला दौड़ा,
मन में सुरपति की कामना लेकर
रात दिन वह चला, चला दौड़ा।
इस इला में कदम रखे तन ने
आस में भूल वह गया सब कुछ
बस जरा सा हवा उठी मन में
उस हवा संग वह उड़ा, दौड़ा।

अब भी

September 26, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

अब भी ऐसे ख्याल आते हैं
बिछुड़े गम गीत बन के आते हैं,
जो फिसल कर गिरे थे हाथों से
दाने मडुवे के गिरा जाते हैं।
जिनसे उम्मीद न थी वे ही मिले
स्वप्न के घोर वन में साथ हमें
एक दूजे को बस निहारा था,
उस जगह पर यही सहारा था।
जब पलक तक नहीं झुका पाये
प्यार से प्यार को लुभा पाये
आँख खोली नहीं, नहीं देखा,
अश्रु बूंदों को वो सुखा आये।

छुपाओ ना

September 26, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

उलाहना के भाव पढ़ लो ना
घट रही दूरियां बढ़ा लो ना,
हाँ कहो ना कहो जरा बोलो
उठ रहा दिल में जो बता दो ना।
बेवजह इस तरह से दिल में
आ रहे बोल को छुपाओ ना
नफ़रतें हैं तो उनको आने दो
मन के बक्से में यूँ छुपाओ ना।
अब भी नजरें हमारी ओर घुमा
बैर में चाहतें बुलाओ ना,
तीर-तरकश से अंग शोभित कर,
इस कदर आज तुम लुभाओ ना।

मुहब्बत

September 25, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

पूरब को पत्र भेजा,
पश्चिम पहुँच रहा है,
भेजी जिसे मुहब्बत
नफरत समझ रहा है।
खाली पड़ी थी थैली
भर दी थी उसमें दौलत
हम चाहते थे भरना
दिल में जरा मुहब्बत।

आँचल में तेरे ओ माँ!

September 25, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

आँचल में तेरे ओ माँ!
कितना स्नेह है ना,
सब कुछ भरा हुआ है
मन में तेरे दुआ है।
तेरी दुआ से ओ माँ!
हर पथ है मेरा रोशन,
तूने दिया है इतना
अनमोल मुझको जीवन।
तेरे चरण में मेरा
वंदन है मेरी ओ माँ!
कितना स्नेह है ना
आँचल में तेरे ओ माँ।

सुन्दर हरितिमा यह

September 25, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

सुन्दर हरीतिमा यह
फैली हुई धरा में,
देती सुकून मन को,
लगता है हूँ हरा में।
लहलाते पेड़ डाली
महकी हुई धरा में
देती सुकून मन को
लगता है हूँ हरा मैं।
अब फूल खिल सकेंगे
बस सब्र कर ले मन तू
पतझड़ मना किया है
आँसू जमा किया है।
गर कल बरस न पाए
बादल हो जब जरूरत,
तब काम आ सके कुछ
धरती में यह मुहब्बत।
झकझोरने लगा है
भंवरा मुझे वो नीला,
पिघला रहा बरफ है,
करता है भाव गीला।

हृदय की धड़कने

September 25, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

नयनों की पुतलियां
झपकी अनेक बार
हृदय की धड़कनें
धड़की अनेक बार,
पंजों के मोड़ जाने
कब-कब खुले जुड़े
सच्चे के सामने कब
कर खुले जुड़े।
साँसें स्वयं चली,
आशा कभी बनी
आशा कभी गली,
पाने को प्रेम मन यह
फिरता रहा गली।

धूल उड़ रही है

September 25, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

धूल उड़ रही है
बरसात में भी,
कशिश रह गई है
मुलाकात में भी।
दिन लग रहा है
इस रात में भी,
बिछुड़े से लग रहे हैं
मुलाकात में भी।
सब रह नहीं गया है
अब हाथ में भी,
कुछ न पाए उनसे
मुलाकात में भी।

आड़े आता है

September 25, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

आगे बढ़ने की ललक में
घमंड आड़े आता है,
इंसान बढ़ना चाहता है
दम्भ आड़े आता है।
जिसके भीतर बारिश तो हो
पर दम्भ उग आए,
उसे साफ करना होता है
वरना वह आड़े आता है।
बारिश का मौसम धीरे-धीरे
ठंडे जाड़े लाता है,
फूलों को उगने में मन का
कंटक आड़े आता है।

प्रातः होनी ही है कल

September 24, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

फुरसतों के पल
न जाने हैं कहाँ आजकल
गर वो होते तो हमें
मिलते जरा मुश्किल के हल।
खूब बारिश हो चुकी
सूखे पड़े हैं जल के नल,
आज जो भी न हो
प्रातः होनी ही है कल।

सादा लिफाफा

September 24, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

तब की बातें अलग थी
जब हम भी
बिना पते के,
पाती लिखा करते थे।
बुझते हुए दीये को
बाती दिया करते थे।
हम सादा लिफाफा
भेज दिया करते थे,
वे उस पर अपना नाम
लिख लिया करते थे।

पल को लुभा जाती हैं

September 23, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

ख्वाहिशें मेरी
मुझे स्वप्न नित दिखाती हैं
एक पूरी हुई
अन्य उभर आती हैं।
जिनको मालूम नहीं
पता मेरी निगाहों का
नैन के तीर मेरे
दिल में चुभा जाती हैं।
उड़ रही तितलियां
दूर बहुत ऊँचे में
हिला के पंख
मेरे पल को लुभा जाती हैं।
हवाएँ चल रही हैं
बिन किये आवाज कोई,
जाते जाते वो मेरे
होंठ सूखा जाती हैं।

प्रेम

September 23, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम ककड़ी सी शीतल
मैं नमक सा स्वाद,
मिर्च सी बहस से
होता है विवाद।
मुहब्बत नहीं है अपवाद
क्यों करना समय बर्बाद
आओ स्नेह को कर दें आबाद।
खुशियों के पुष्प खिलेंगे
जब मूल में होगी
मुहब्बत की खाद।

सिपाही

September 22, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

सीमा में तैनात सिपाही
तुझे सलाम है,
देश के लिए की जा रही
तेरी सेवा बेमिसाल है।
सीमा सुरक्षित है तब
हम सुरक्षित हैं,
तू सीमा में खड़ा है सिपाही!
तब हम सुरक्षित हैं।

राम का नाम

September 22, 2021 in मुक्तक

वो न जाने क्यों
अपना लगता है,
कभी बीते कल में देखा
सपना लगता है।
तुम कुछ भी कहो
गाओ बजाओ,
लेकिन मुझे सबसे अच्छा
राम का नाम
जपना लगता है।

पावन हृदय

September 22, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

खुशफहमियाँ पास रख लो
गलतफहमियाँ दूर कर लो,
पावन रखो हृदय
नफरत दूर रख लो।
नफरत का कड़वापन,
द्वेष की दीवारें,
तोड़ कर मिल लो गले,
बस मुहब्बत ही फले।

कुर्सी

September 22, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुर्सी
आप भी निराली हो,
तरह तरह के लोगों के लिए
तरह-तरह की छवि वाली हो।
अलग-अलग लोग
अलग अलग तरह की कुर्सी,
छोटी-बड़ी, कच्ची-पक्की
स्टाइलिश, साधारण
लकड़ी की
प्लास्टिक की,
कठोर, आरामदायक।
हर तरह की हो,
कुर्सी तुम
तरह-तरह की हो।

लड्डू

September 22, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

लड्डू
कितने मीठे हो तुम
गोल-गोल,
पीले-पीले, लाल-लाल
बेमिसाल।
गणपति के प्यारे हो,
रसना के दुलारे हो,
खुशियों के सहारे हो,
खुशी में प्यारे हो,
शुभ अवसर पर
खाये जाते हो,
सफलता पर बांटे जाते हो,
लड्डू तुम
बहुत प्यारे हो,
मीठे-मीठे, गोल, गोल।

पितृ पक्ष

September 21, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

पितृ पक्ष आया है
श्रद्धा का पक्ष है,
विस्मृति पर अब
स्मृति लानी है।
उन्हें याद करना है
जन्म दे गए जो,
पाल-पोस कर हमें
बड़ा कर गए जो,
हमें सौंप संसार,
विदा हो गए जो,
श्रद्धा का तर्पण
जरा जल जरा तिल
पितरों की सेवा में
समर्पित रहे दिल।

फूल करेले के

September 21, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

फूल करेले के हैं
फल बहुत कड़वे हैं,
पाने तुझे ओ मंजिल !
छिल गए तलवे हैं।
खूब बारिश हुई
मुहब्बत की,
आ गई बाढ और मलवा है,
ऐसा लगता है घोंट कर रिश्ते
आज हमने बनाया
हलवा है।

फूल करेले के

September 20, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

फूल करेले के हैं
फल बहुत कड़वे हैं,
पाने तुझको ओ मंजिल !
छिल गए तलवे हैं।
खूब बारिश हुई
मुहब्बत की,
आ गई बाढ और मलवा है,
ऐसा लगता है घोंट कर रिश्ते
आज हमने बनाया
हलवा है।

बरसात की ऋतु

September 20, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

अब धीरे-धीरे समेटने लगी है
वह अपने साजो – सामान को,
तपती गर्मी से झुलसती धरती को
नहलाने आयी थी,
प्यासे प्राणियों को
खूब पानी पिला गई।
धरती पर पड़े बीजों को उगा गई।
ये बरसात की ऋतु थी
जो तन मन को नहला गई।
धरती को महका गई।

गुनगुना दे

September 20, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

गुनगुना दे
कोई तराना तू,
सीख ले प्यार को
निभाना तू।
अपने मन को
पहुंचने दे मुझ तक,
दूर से मत मुझे
लुभाना तू।
कोरे कागज में
नाम मत लिखना,
खाली छाया की भांति
मत दिखना।
गर कहीं हो
सजा हुआ मेला
बिन मुहब्बत के मोल
मत बिकना।

भारत देश हमारा

September 20, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

भारत देश हमारा,
खूब फले-फूले,
चारों तरफ हरियाली हो
जन मन में खुशहाली हो,
महके आँगन आँगन
महक उठे कोना कोना,
खुशियों का उगना
खुशियों को बोना।
अपना अपना
फर्ज निभाएं सब,
उन्नति होगी तब।

कविता

September 18, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

कविता तुम ही तो
साथी हो, संवेदना हो,
प्रेम हो, लगाव हो,
जुड़ाव हो,
भावों का प्रवाह हो।
बिछुड़न की आह हो,
दिल की चाह हो।
संगीत की गान हो,
सुर की तान हो,
शरीर में जान हो,
जीवन का अरमान हो,

संसार

September 15, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

मन तेरे से पहले भी संसार
अपनी मस्त चाल चलता था
बाद में भी संसार
अपनी गति में चलता जायेगा।
सुबह, दोपहर शाम
अपनी गति में होते जायेगी,
मौसम ठंडा, गर्मी, बारिश
अपनी गति से आयेगी।
कुछ वर्षों तक
अच्छे और बुरे कर्मों की
याद रहेगी जनमानस में,
धीरे-धीरे भूल वो यादें
अपनी गति में रम जाती है।
यादें भी मिट जाती हैं।

सुबह

September 15, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

सुबह तुम
बहुत मनोहर हो,
शीतल, शांत, साफ हो
बहुत मनोरम हो।
उड़गन का चहचहाना हो
नए फूलों का खिलना हो,
नई किरणों से मिलना हो
नई आशा जगाना हो,
बीती को भुलाना हो,
नया आगाज करना हो,
सुबह उपयुक्त हो सचमुच
बहुत सुंदर, मनोहर हो।

खिलने भी दे

September 14, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

विष मेरे भीतर
जमा मत जमा होना,
तनिक भी नहीं,
जरा भी नहीं।
न चाह कर भी तू
बिछाने लगता है परतें,
जिससे शिखर के बजाय
नीचे की तरफ
खींचती हैं गरतें।
प्रेम की धारा को
सैलाब बनने दे,
निकल जाये सब गर्द बाहर
भर जायें गरतें,
जमें मुहब्बत की परतें।
हवा चारों तरफ की
उड़ा कर ले आती है
न जाने कब धूल,
जो जमा देती है
मेरे मन की खिड़कियों में
परतें,
साफ की, फिर जमा।
कुछ दिन के बाद फिर वही हाल,
व्यक्तित्व बेहाल।
कब जमी धूल
पता ही नहीं चल पाता,
धूल की परत से दबा मन का गुलाब,
खिल नहीं पाता।
विष अब रहने भी दे,
अमृत सा कुछ
बनने भी दे,
कांटों के बीच
गुलाब खिलने भी दे,
व्यक्तित्व महकने भी दे,
इंसान सा बनने भी दे।

हिंदी दिवस 14 सितम्बर

September 14, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

हिंदी दिवस 14 सितंबर
आज मनाया जाता है,
राजभाषा बनी थी हिंदी,
भारत के मस्तक की बिंदी,
इस बिंदी की चमक बढ़ाने
दिवस मनाया जाता है।
खूब बधाई, खूब बधाई
इस अवसर पर आप सबको,
विश्व भर में फैले हिंदी
जय हिंदी की आज कह दो।

हिंदी दिवस

September 14, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

हिंदी दिवस
आया है मित्रों,
आपको शुभकामना,
खूब फूले खूब खिल जाये
यही शुभकामना।
यह हमारी शान है
पहचान है,
अभिमान है।
वाङ्गमय में है भरा
खूब सारा ज्ञान है।

हिंदी दिवस की है बधाई

September 14, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

हिंदी दिवस की है बधाई
खूब सारी आप सबको,
मातृभाषा के दिवस की
है बधाई आप सब को।
आज के ही दिन बनी थी
राजभाषा हिन्द की,
एकता में बांधने की
एक आशा हिन्द की।

दर्द

September 13, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

नहीं भुलाता है मन
दर्द मिला हो जिस पथ
चल रहे थे स्वयं की गति में
छिला था कंटक बन पग।
लहूलुहान हो गया था मन
लगाई मरहम पट्टी
वैद्य बनकर जिसने
दर्द दूर किया था
अपना बन,
उसे भी नहीं भुला पाता,
दूर नहीं रख पाता
मन से।

हरियाली

September 13, 2021 in मुक्तक

तुम्हारी तरह
खूबसूरत,
हरियाली, खुशहाली
चारों तरफ,
खिली हुई है,
प्रेम की हवा चल रही है,
दर्द की दवा बन रही है,
यूँ ही दिखते रहना
नजरों के सामने ही रहना
ऐसा कह रही है।

बेरोजगारी

September 13, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुछ तो करना होगा

बेरोजगारी को मिटाने के लिए

कुछ नई नीतियाँ

कुछ नए प्रयास,

करें जिससे युवा अहसास

कि जीवन की गाड़ी

वो भी चला लेंगे,

दो रोटी कमा लेंगे।

खरा सोना

September 13, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक जैसी नहीं रहती
परिस्थितियां
सुधरती हैं बिगड़ती हैं
परिस्थितियां
परिस्थितियां हैं जिनसे
हर प्राणी जूझता आया
उन्हीं ने है तपाया
और खरा सोना बनाया है।
चमक खाली नहीं होती
वरन खाकर थपेड़ों को
किया संघर्ष होता है।

इरादा

September 12, 2021 in मुक्तक

उम्मीद छोड़ कर तुम
थक हार कर न बैठो
जब तक न पा सको तुम
तब तक न हार बैठो।
पाने का यदि इरादा
सचमुच रखोगे मन में,
पा लोगे मन की मंजिल
तुम आजमा के देखो।

जागते हुए सो जाता है

September 11, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

नींद भी आखिर
बनाई क्या रब ने
पूरा इंसान खो जाता है,
दिन भर संघर्ष करता है
रात को सो जाता है।
कभी-कभी असलियत में
सपने बो जाता है,
हँसते हँसते रो जाता है,
जागता हुआ भी सो जाता है।

पहले की जैसी ही

September 11, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

मौसम तुम भी
बदलते रहे, बदलते रहे।
कभी सुखा गए,
कभी अंकुर उगाकर
फूल खिलाकर
फल लगाकर,
फल पकाकर,
बांट गए।
फिर पतझड़ बना गए।
फिर नई कोपलें फूटी
पुरानी धारणाएं टूटी,
नई जुड़ी, फिर वैसी ही,
पहले की जैसी ही।

हिल जाना

September 11, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

गुलाब खिल जाना,
सुंगध मिल जाना
हवा चले जब भी,
पात हिल जाना,
पता चले कि गीली मिट्टी है,
भावना लिख दी है,
कहीं है रेत पड़ी
कहीं पे गिट्टी है।
कहीं हैं ठोस ईंटें
कहीं भरी सीटें,
भवन तो बन गया है
चलो ताली पीटें।

अंग दान

August 14, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

सोच बिंदास है आपकी
दान है यह महा दान है,
दान अंगों का करने की
सोच का दिल से सम्मान है।
मुक्ति की चाह में खाक होकर
उड़ते रहे हम धुँवा बन
सीमित रहे निज हितों तक
खुद की सेवा में खपता रहा तन।
दान अंगों का कर आपने
नव दिशा दी है इंसान को
कुछ नया कर गुजरने के पथ पर
भेजा है इंसान को।
— डॉ0 सतीश चंद्र पाण्डेय

भरम पाल बैठा हूँ

August 8, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

जमाना खराब है,
भरम पाल बैठा हूँ।
आगे सुधार होगा,
आशा में बैठा हूँ।
गलत ही गलत है,
नहीं कुछ सही है,
सब कुछ गलत है
भरम पाल बैठा हूँ।
खुद ही सही हूँ,
बाकी गलत हैं,
मुग्ध हूँ स्वयं में
भरम पाल बैठा हूँ।

कोपल दया की अब तो

August 8, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

कोपल दया की अब तो,
उग जा,
नमी नमी है,
बरसात का यौवन,
किस बात की कमी है।
अब तो हवा भी सूखी-सूखी
नहीं है बिल्कुल।
आकाश भी है गीला
गीली हुई जमीं है।
अब भी तुझे प्रतीक्षा
किसकी है तू बता दे,
ममता दया के अंकुर
कह दे कहाँ कमी है।

सावन उन्हें भिगो दे

August 8, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

सावन उन्हें भिगो दे
सूखे पड़े हैं जो दिल
राही हैं प्रेम के जो
मिल जाये उनको मंजिल।
मुस्कान उनके लब पर
उस वक्त जाये खिल
जिस वक्त रास्ते में
हमको वो जायें मिल।
रिश्ते फटे-पुराने
उस वक्त जाएं सिल,
जिस वक्त रास्ते में
हमको वो जाएं मिल।

न्याय

August 6, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

न्याय जरूर करेगी
यहाँ की अदालत,
गर अपना पक्ष रख सकेगा मन,
अन्यथा ऊपर रब की अदालत
है तो सही,
वो न्याय दे देगी,
यदि मन उस पर लगा सकेगा लगन।

मुस्कुराहट

August 5, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

मुस्कुराहट फूल का ही रूप है
मुस्कुराओ और खुशबू को बिखेरो
खुद रहो खुश और सबको प्रेम दो
नफरतों को छोड़कर बस प्रेम दो।
खूब भीगो नेह की बरसात में,
धुन में गाओ खूब झूमो राग में
मन रखो पावन, रखो निर्मल नयन
मत रखो अपने कदम तुम दाग में।

सावन आया है जबसे

August 2, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

बूंदें टपक रही हैं नभ से
सावन आया है जब से
कोपल फूटी है चाहत की
सावन आया है जब से।
जिनकी राहें देख रहे थे
मेरे नयन उन्हीं ने आकर
पूरा घेर लिया मन तब से
सावन आया है जबसे।
कविता निकल रही है लब से
सावन आया है जब से,
उनसे बढ़ने लगी करीबी
सावन आया है जब से।
सूखे सूखे रहते थे हम
मन मे रहते ही थे कुछ गम
अब तो खुश रहते हैं हम
सावन आया है जब से।

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