मित्र साथ रखिये

April 1, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

सुगंध के लिए
इत्र पास रखिये
कठिन समय के लिए
मित्र पास रखिये।
विपत्ति में हौसला रखिये,
हँसी-मजाक का भी
शौक सा रखिये।
दुखों को आप हल्के में रखिये
अन्यथा रोज सकते में रहिए।
ईश दरबार में
झुकते रहिए,
छोड़ चिंताएं सभी
काम करते रहिए।

क्यों है

March 31, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

आदमी आज परेशान इतना क्यों है,
लुटा सा देखता अरमान क्यों है,
खुद के घर में बना मेहमान क्यों है,
इंसान है तो फिर बना हैवान क्यों है।
धड़कता दिल बना बेजान क्यों है,
जानता है सभी कुछ फिर बना अंजान क्यों है।

तभी सार्थक है लिखना

March 31, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेरे लिखे से उजाला हो जाये
कुछ भी नहीं तो
उठें चिंगारिया,
किसी को जिन्दगी का
रास्ता मिल जाये।
अंधेरे में भटकता
अगर मन हो किसी का
मेरी दो पंक्ति उसको
रास्ता दे आये।
तभी सार्थक है लिखना
किसी काम आये,
मेरी पहचान छोड़ो
जमाना लाभ पाये।
देख अदना सा कवि हूँ
मगर संदेश मेरा,
अडिग रह राह अपनी,
न बन चिंता का डेरा।
साथ लाये नहीं कुछ
साथ जाये नहीं कुछ
बताकर सब गए हैं
पुराने कवि यही सच।
किसी को ठेस देने
कलम मेरी उठे मत
शुद्ध साहित्य सेवा
रहे केवल मेरा पथ।

घिस-घिस रेत बनते हो

March 31, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

अहो पत्थर! नदी से
घिस- घिस रेत बनते हो,
धूल बह जाती है,
तुम ही तुम शेष रहते हो।
नदी की नीलिमा में
तुम बहुत ही श्वेत लगते हो।
भवन निर्माण में
तुम्हीं मजबूत बनते हो।
फिर भी नजीरों में जमाना
भावनाहीनों की तुलना
पत्थरों से कर
निरा अपराध करता है।
बोल कर पत्थर का दिल
पत्थर का वो अपमान करता है।

अनुभव सिखायेगा

March 31, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

ईंट फेंकेगा आप पर कोई
आप उस ईंट को संभाल कर रखना,
कभी भवन बनाओगे
या कुछ सृजन करोगे,
काम आयेंगी वे ईंट और पत्थर।
आंख में रेत झौंके
आपके अगर कोई,
सच का चश्मा लगाना
आँख की नदी के
किनारे खड़े हो,
एकत्र कर लेना वह रेत।
सच का भवन बनाते वक्त,
रेत काम आयेगी।
जिन्दगी बतायेगी,
जमाना बतायेगा,
किस परिस्थिति में क्या करना है
अनुभव सिखायेगा।

मुस्कुराहट ही बड़ी पहचान है

March 31, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम्हारी मुस्कुराहट की
अजब सी बात देखी आज मैंने
दर्द में डूबा हुआ मन
दर्द सारा भूलकर,
फूल खुशियों के उगाने को
बढ़ाता है कदम।
मुस्कुराहट ही बड़ी पहचान है
इंसान की।
जानवर हँसते नहीं
शोभा है यह इंसान की।
खूब हँसते ही रहो,
औरों को भी मुस्कान दो,
मेहनत करो हँसते रहो
पूरा करो अरमान को।
यूँ जीवन में कभी पल
दर्द के भी लाजमी हैं,
हिम्मत नहीं छोड़ो कभी
दर्द में मुस्कान लो।

ईश ऐसा वर मुझे दे

March 31, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

ईश ऐसा वर मुझे दे
ईर्ष्या से दूर बैठूँ,
पंक्तियाँ लिख दूँ वहाँ
जिस ओर थोड़ा दर्द देखूँ।
देख अनदेखा नहीं
कर पाऊँ पीड़ा दूसरे की,
बल्कि खुद महसूस
कर पाऊँ मैं पीड़ा दूसरे की।
मैं किसी के काम आऊँ
सीख यह मिलती रहे,
उठ मदद कर दूसरे की
आत्मा कहती रहे।
ईश मेरा मन करे
कुछ इस तरह की बात बस
बस रहूँ सेवा में रत
कोई नहीं हो कशमकश।

नेह, प्रेम, सम्मान

March 31, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

जहां नहीं संतोष मन
छोड़ दीजिए राह,
उलझन की हर वस्तु की
छोड़ दीजिये चाह।
छोड़ दीजिये चाह
साथ में साथ मित्र का
जिसको केवल याद
रहता सौरभ इत्र का।
कहे सतीश जाना,
तुम दिल खोल वहां
नेह प्रेम सम्मान
का खूब स्थान हो जहां।

देख रहा दर्पण मनुज

March 31, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

देख रहा दर्पण मनुज
करने निज पहचान,
बाहर तो सब दिख गया
भीतर से अंजान।
भीतर से अंजान,
खिली लालिमा देख कर
मुस्काया मन ही मन
देखा जब सुन्दर तन।
कहे सतीश बाहर
भीतर रह तू एक,
आंख बंद कर निज
अंतस के भीतर देख।

बात हो रोजगार की

March 31, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

बात हो रोजगार की, भरें युवा के जख्म,
जगे नया उत्साह अब, नयी बजे कुछ नज्म।
नयी बजे कुछ नज्म, खिले माथा यौवन का,
सिंचित कर हर फूल, खिले भारत उपवन का,
कहे लेखनी न्याय हो अब यौवन के साथ,
बेकारी हो दूर, यही हो पहली बात।

क्यों रखना है भेद

March 31, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

मत भूलो सब एक हैं, क्यों रखना है भेद,
मानव हैं मानव सभी, क्यों रखना संदेह।
क्यों रखना संदेह, न कोई बड़ा न छोटा,
भेदभाव ने मनुज कुल का गला है घौंटा।
कहे सतीश सब एक, देख यह जन्म और गत,
सभी एक से मानव हैं तू भेद बना मत।

पानी बचाओ

March 30, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

कई माह बीत गये
बारिश नहीं हुई।
सूखी धरा के अधर
ताकते हैं नभ को।
प्राणी हैं व्याकुल
जल की कमी से,
सब तरफ है सूखा
प्यास आज सबको।
पौधे झुलस कर
मुरझा गए हैं,
कब होगी बारिश
देखते हैं नभ को।
पानी बिना जीवन
कुछ भी नहीं है,
पानी से ज्यादा
कुछ भी नहीं है,
अतः आज ऐसा
नारा लगाओ
पानी बचाओ
पानी बचाओ।

मैल को धो डालिये

March 30, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

बीज बोना है तुम्हें,
सद्भाव का बो डालिये,
साफ हो मन, साफ हो तन,
मैल को धो डालिये।
यूँ ही मंजिल जीत लेंगे
भ्रम को मत पालिये,
हो सके तो आप हृदय में
मुहब्बत पालिये।
यदि कहीं कोई दुखी
मिल जाये तुम्हें राह में
मान मौका आप उसकी
कुछ मदद कर डालिये।

दुआ खूब पाता रहेगा

March 30, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

जाग इंसान उनकी मदद कर
है सहारे की जिनको जरूरत,
भूख से जो बिलखता है बचपन
आगे रहकर तू उसकी मदद कर।
क्या करेगा कमा करके इतना
क्या करेगा जमा करके इतना,
तू कमा खूब लेकिन कमाई
तू गरीबों में थोड़ा लगा ले।
कब तलक यूँ नजर फेर लेगा,
दान में भी जरा सा लगा ले।
साथ धेला नहीं जा सकेगा
सब यहाँ का यहां ही रहेगा,
गर जरा सा मदद को बढ़ेगा,
तू दुआ खूब पाता रहेगा।

होली की सबको बधाई

March 29, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

होली की सबको बधाई
अनेकों शुभकामनाओं के साथ।
रंग भरा हो जीवन सबका
खुशियां पायें आप। बधाई
होली की सबको बधाई।
गम का साया, पास न फटके
कोई बनता काम न अटके,
कदम बढ़ें निष्पाप। बधाई
होली की सबको बधाई।
बच्चे ऊंची शिक्षा पायें
यौवन को रोजगार मिले
निर्धन को धन, सबको सुखी तन
राम नाम का जाप।
अनेकों शुभकामनाओं के साथ। बधाई।
होली की सबको बधाई।
———– डॉ0 सतीश चंद्र पाण्डेय, चंपावत।

नशे को दूर भगाओ

March 28, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

नशा नहीं, जिन्दगी बचाओ
त्यौहारों के समय इस तरह
मत जीवन पर दांव लगाओ।
नशा स्वयं से दूर भगाओ।
झगड़े और फसादों की जड़
मद्यपान विवादों की जड़,
अपनी हानि नशे से होती,
इज्जत सबके आगे खोती
मानो इसको एक बीमारी
भरी समस्या इसमें सारी।
नशा न लो जिन्दगी बचाओ।
तन के भीतर कोमल अंग हैं
मद्यपान से सारे तंग हैं,
थोड़ी देर आनन्द रहेगा,
बाकी सब कुछ मंद करेगा।
अतः नशे को दूर भगाओ
जीवन को खुशहाल बनाओ।

होली की धूम मची है

March 28, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

होली की धूम मची है
घर – घर आँगन,
रंग है बिखरा,
रंग से जोबन रूप है निखरा।
मन की उमंग सजी है,
होली की धूम मची है।
रंग है उनका
खिल गया हम पर,
जो भी लगाया
फब गया हम पर,
प्रेम की पंक्ति रची है
होली की धूम मची है।
आप भी आओ
हम संग खेलो
प्रेम के प्रेम बदले
प्रेम को ले लो,
प्रेम की जोत जगी है।
होली की धूम मची है।
ढोल-मृदंग, मजीरा बाजे
राधा नाचे, कन्हैया नाचे
धुन प्यारी सी बजी है।
होली की धूम मची है।

होली में हम रम गए

March 27, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

होली में हम रम गए
पूछ न पाये बात,
कैसे हो कितना लगा
रंग बताओ आज।
रंग बताओ आज
कौन सा रंग लगा है,
प्रेम और माधुर्य
आज हर अंग सजा है
कहे लेखनी रंग
रंगा हो जीवन का पल
यही मिले आपको
अद्भुत होली का पल।

यह कैसी है हुड़दंग

March 26, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

होली है
पावन त्यौहार
उड़ रहे हैं रंग
मगर यह कैसी है हुड़दंग,
कई पड़े हुए हैं
सड़क पर नालियों पर
पीकर शराब,
कर दी है उन्होंने
अपने पारिवारिकजनों की
खुशियाँ खराब।
लगी में दौड़ा रहे हैं
अनियंत्रित वाहन,
राहगीरों पर
फेंक रहे हैं
हो-हल्ले का पाहन।
पवित्र होली
में स्वयं का अपवित्र चेहरा
दिखाकर मौहल बिगाड़ रहे हैं
और दिनों की खुंदक
त्यौहार में निकाल रहे हैं।

किसी को दुःख न मिले

March 26, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

सब पायें नवरंग
किसी को दुख न मिले भगवान।
भरपेट भोजन, वसन ढका तन,
आस चढ़े परवान।
किसी को दुःख न मिले भगवान।
जीवन सबका खुशियों भरा हो
सूखे न मन कोई,
हरा ही हरा हो,
खूब उगें धन-धान।
किसी को दुख न मिले भगवान।
समरसता हो
लोगों के भीतर,
भेदभाव सब दूर रहे
मानव एक समान।
किसी को दुख न मिले भगवान।
सब राजा हैं
सब प्रजा हैं
कोई न समझे मालिक खुद को
सब हैं यहाँ मेहमान।
किसी को दुःख न मिले भगवान।
सब पायें नवरंग
किसी को दुःख न मिले भगवान।

मीठी सी बोली सुना दे

March 26, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

चल गुजिया ही खिला दे
मीठी सी बोली सुना दे
समझेंगे खेल ली होली,
पोत दे लालिमा रोली।
भूल जा सारी शर्म पुरानी
झिझक से काहे होली मनानी,
आज हमें है रस्म निभानी
चल गुजिया ही खिला दे
मीठी सी बोली सुना दे।
रंग से तर हैं लोग बिरज के
मन में लहर सी उठी है इधर से
हमको भी होली रंगा दे,
चल गुजिया ही खिला दे।

पानी में भी रंग है

March 26, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

पानी में भी रंग है, बेरंगा मत देख,
ज्योति जगा ले नयन में, अंधियारा मत देख,
अंधियारा मत देख, रोशनी खोज डाल अब,
रंग खोज ले और अहमिका छोड़ डाल अब।
कहे लेखनी देख, और कर ले नादानी,
होली में मत फेर , इस तरह पानी-पानी।

बह रही प्यार की सरिता

March 26, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

बह रही प्यार की सरिता
कहे मन लिख डालूँ एक कविता
सारा नेह निचोड़ दूँ इसमें
खिल जाये सुन वनिता ।
डोर हमारी और तुम्हारी
मजबूती से बंधी रहे यह
गीत उगें बस, नेह भरे ही,
राग भरे हों ललिता।
लिख डालूँ एक कविता।
प्यार की बह जाये सरिता।
सुर में सुर और ताल मिलाकर
मन के भीतर प्रेम बसाकर
उमंग का मृदङ्ग
खूब बजाकर,
लिख डालूँ एक कविता।

मन बाहर ले आओ

March 26, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

छोड़ो बात दूजे की
मनाओ अपने मन में होली,
खेल सको तो खेलो हमसे
मन बाहर ले आओ।
बाहर-भीतर एक ही रंग हो
अलग-अलग नहीं डालो।
भीतर स्याह बाहर दिलकश
ऐसा मुझे न बनाओ,
मन बाहर ले आओ,
अगर नहीं प्रिय तुमसे हो यह
त्याग मुझे, निज पथ लो,
मैं पाहन तुम भी
बन शिलखंड,
ऐसे ही समय बिता दो।
मन बाहर ले आओ प्रीतम
छोड़ो बात दूजे की
छोड़ो बात दूजे की
मनाओ मेरे संग में होली।

हँसी के फूल खिला दे

March 25, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

होली में फूल खिला दे
हँसी के, होली में फूल खिला दे।
प्यारे-प्यारे रंग-बिरंगे
फूल ही फूल खिला दे। हँसी के—
ढंग-बेढंदी हुई जिंदगानी,
होली में ढंग दिला दे।
हँसी के होली में फूल खिला दे।
फैली निराशा जिनके पथ में
आस की ज्योति जगा दे।
हँसी के होली में फूल खिला दे।
हारे-थके जो व्यथित पड़े हैं
उनमें जोश जगा दे।
हँसी के, होली में फूल खिला दे।
बिछुड़ गए हैं जिनके प्रियतम
होली में आज मिला दे।
हँसी के, होली में फूल खिला दे।

बिखर रही है लाल अरुणिमा

March 25, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

छवि तेरी मन भाये
सुबह सब ओर मनोहर कोमल सी,
बिखर रही है लाल अरुणिमा
मिहिका बिखरी मुक्ता सी।
जागूँ देखूँ स्वच्छ सुबह को
त्याग अवस्था सुप्ता सी।
तेरी मन भाये सुबह
सब मनोहर कोमल सी।
छवि तेरी मन भाये सुबह।
चहक रहे हैं खगवृन्द धुन में
महक रहे हैं पुष्प आँगन में
बिखर रही हैं भानु की किरणें
साफ, मनोहर, कोमल सी।
छवि तेरी मन भाये
मनोहर कोमल सी।
नोट – प्राकृतिक सौंदर्य पर लिखने का एक प्रयास।

गाऊँ गीत मनाऊँ होली

March 24, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

गाऊँ गीत मनाऊँ होली
खुशी मनाऊँ मन ही मन
रंग की रौनक जहाँ तहाँ हो
खूब सजाऊँ अपना तन।
लाल व पीले, हरे, गुलाबी
सारे रंग उड़ाऊँ मैं,
खुद का चोला खुद ही रंग लूँ
मन से तन को भिगाऊँ मैं।
बनकर खूब रंगीन सा पुतला
होली आज मनाऊँ मैं।
जो आये रंगों को लेकर
उसको खूब रिझाऊं मैं।

सुन्दर तेरी रचना

March 24, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

सुन्दर तेरी रचना
अति सुन्दर तेरी रचना विधाता
रंग बिरंगी सृष्टि रची,
जा में नाना तरह
जीवजाति बसी।
नाना तरह की, विविध तरह
जीवन ज्योति जगी।
अति सुन्दर तेरी रचना विधाता,
कल-कल करती नदिया-झरने
वन-उपवन, फुलवारी सजी
अति सुंदर तेरी रचना विधाता
अति सुन्दर तेरी रचना।
प्यार मुहब्बत,
भावना कोमल,
दया-ममता सब ओर सजी।
अति सुन्दर तेरी रचना विधाता
अति सुंदर तेरी रचना।

रंग भरी यह कविता (हरिगीतिका)

March 23, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेरे गीतों में बह आई, रंग भरी नव सरिता,
खूब बहारें भरकर गाई, रंग भरी यह कविता।
खूब अबीर गुलाल उड़ायें, गायें और बजायें।
जीवन की सारी उलझन को, आओ दूर भगायें।
खुश रहना ही असल जिन्दगी, है सबको समझायें,
सब लोगों को हर्षित कर दें, खुद मन में हरषाएँ।

मारी नहीं पिचकारी(होली पर )

March 23, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

गाली न दे मुझे आली
नहीं मारी तुझे पिचकारी
मैंने मारी नहीं पिचकारी,
भर कर रंग, चला कुंज गलियन,
मारी नहीं पिचकारी।
शायद तुझको भूल हुई है
या यह मेरी राह नई है,
मगर यही सच मेरा
रंग नहीं यह मेरा,
नहीं, मैंने मारी नहीं पिचकारी।
मेरा रंग बड़ा अनजाना,
जिसको खुद ही नहीं पहचाना।
मगर आयी अब होली,
तेरी कान पड़ी मीठी बोली,
हाँ, मारी मैंने पिचकारी
तुझे मारी मैंने पिचकारी।

भस्म करूँ खामियाँ स्वयं की

March 23, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

पावक उग आ तू मेरे मन में,
भस्म करूँ खामियाँ स्वयं की,
एक- एक कर खोज -खोज कर
दुर्बलताएँ दूर करूँ निज।
बहुत हो चुका डगमग डगमग
अस्थिर मन अस्थिर तन लेकर
भटक रहा जो इधर-उधर अब
सारी उलझन दूर करूँ निज।
नहीं किसी से गलत कहूँ मैं
नहीं किसी की गलत सुनूँ मैं,
खुलकर राह चुनूँ मैं अपनी
बाधाएं सब दूर करूँ निज।
अपनी बातें, अपनी राहें
अपनी खुशियाँ, अपनी आहें
अपना प्यार, मुहब्बत अपनी
दूजे को भी नेह करूँ नित।

सत्य पथ चलता रहूँ

March 23, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

लब खुलें तो सत्य बोलें
अन्यथा पट बन्द हों,
ईश ऐसी शक्ति देना,
भाव में नव छन्द हों ।
याचना है ईश तुझसे,
काम से मतलब मुझे हो,
और राहों और बातों से
नहीं मतलब मुझे हो।
सत्य की हो बात जो भी
वो मेरे मन दर्ज हो,
राह देना पथ भटकते को
मेरा एक फर्ज हो।
कोई कुछ भी बोल दे
मैं कर्मपथ चलता रहूँ
दूसरों से भी उसी पथ में
चलो कहता रहूँ।
कोई माने या न माने
सत्य में कहता रहूँ
प्यार पाऊँ, ठेस पाऊँ
सत्य पथ चलता रहूँ।

ओ याद! भूली बिसरी

March 23, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

आ बैठ पास मेरे
ओ याद! भूली बिसरी,
आ अश्रु! नैन में आ
या मुँह में आ जा मिश्री।
बीते पलों की खुशबू
तू उड़ कहाँ गई है,
ओ मन की लालसा तू
धुल कहाँ गई है।
बांधी थी जो सहेजे,
भर पोटली में यादें,
वो पोटली न जाने
खुल कहाँ गई है।
यादों में रह गई हैं
यादें थी जो पुरानी
उनमें भी कोई यादें
यादें कहाँ रही हैं।
खो जाओ मत यूँ यादो
आओ जरा बैठो,
रोऊँ, हँसूँ मैं तुम पर
आओ ना, बैठ जाओ।

मन बना पाहन

March 23, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

मन बना पाहन
न कारण है पता,
तोय के धोए से
केवल धुल गया।
फिर मरुत से भाप
बनकर उड़ गया,
राज भीतर का वो
भीतर रह गया।
यामिनी भीतर ही
बैठी रह गयी,
दामिनी बाहर
चमकती दिख रही।
अब जलधि का
कौन मंथन कर सके
उस अमिय की आस
केवल रह गयी।
हाँ, नहीं विष की
कमी है दोस्तों,
व्याल चारों ओर
काफी उग गये।
खुद के भीतर भी
फणी प्रवृति आ,
और पर मन विष
उगलता रह गया।
मैं स्वयं वनराज
खुद को मानकर
पाशविक कृत्यों को
करता रह गया।

बाद में आयेगी गर्मी

March 23, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

आजकल सो पा रहा है
वह जरा फुटपाथ पर,
ठंड कम लगने लगी
ठिठुरन हुई कम आजकल।
बीते दिन जाड़ों में रोया
रात भर सिकुड़ा सा सोया
बच गया बस जैसे-तैसे
सोच मन में खूब रोया।
धीरे-धीरे ऋतु बदल कर
माह सम मौसम का आया
उग रहे मधुमास में
चैन उसने भी है पाया।
बस यही हैं चैन के दिन
बाद में आयेगी गर्मी,
सोचकर कैसे कटेगी
सोच ने मन है डराया।

एकजुटता

March 23, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

बालों में लगे रबर की तरह
खिंचे चले जा रहे तो तुम,
खिंच रहे हो मगर बांध रहे हो
सभी को एकजुट,
जिससे निखर रही है चोटी,
एकजुटता से ही हम
छूँ सकते हैं चोटी,
मुश्किलें कर सकते हैं आसान
सफलता पा सकते हैं मोटी।

अब लगो उत्थान में

March 23, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

खूब बातें हो गई हैं,
अब लगो उत्थान में,
देश आशा में लगा है,
मत चलो अवसान में।
खूब दूजे पर उछाला
कीच अब रहने भी दो,
एक दूजे को समन्वित
बात तुम रखने भी दो।
सब चलो मिलजुल के राही
देश को बढ़ने भी दो,
छोटी-छोटी बात को तुम
मत करो, रहने भी दो।
ताड़ तिल का मत बनाओ
आड़ ओछी छोड़ दो,
पिस न पाए आम जनता
दाढ़ अपना तोड़ लो।
बस चुनावों तक रहे यह
एक दूजे पर निशाना,
बाद में मिलकर चलो सब
देश है आगे बढ़ाना।

जीवन में सद्कर्म कर सकूँ(हरिगीतिका छन्द)

March 22, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

जीवन में सद्कर्म कर सकूँ, यह शक्ति तू दे मुझे,
झूठ को नित करूँ उजागर, यह शक्ति तू दे मुझे।
गा सकूँ खुले मन से गाने, उल्लास भाव अपना,
हे ईश! मुझे वर देना तुम, देखूँ सच का सपना।
रात को रात दिन को दिन कह, लिख पाऊं सच्चाई,
कुछ करूं न कर पाऊँ बातें, करूं जरा अच्छाई,
निरुत्साहितों को दे पाऊँ, गर उत्साह जरा सा,
तब मेरा जीवन मुझे लगे, सफल व भरा भरा सा।

अभिवादन सम्मान

March 22, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

निद्रा में था रात भर, उठूँ धरूँ अब ध्यान,
मात-पिता गुरु देव का, अभिवादन सम्मान,
अभिवादन सम्मान, बड़ों का करूँ पूज लूँ,
ले उनसे आशीष, राह में कदम बढ़ा लूँ।
कहे कलम आशीष, एक अनमोल है मुद्रा,
उसे पास रख कदम बढ़ा तू त्याग दे निद्रा।

ले खुशी के रंग(गीतिका छन्द)

March 21, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

ले खुशी के रंग सबको, रंग देना सीखिये,
रंग उनका रंग अपना, मिल सके यह कीजिये।
रंग मन में रंग तन में, रंग जीवन सींचिये,
बेरंग जीवन जूझते , रंग उनको दीजिये।
दर्द में डूबे हुये को, कुछ सहारा कीजिये,
नफरतों को त्यागकर तुम, प्रेमरस को पीजिये।
दूर कोई जा न पाये, पास सबको खींचिये,
नेह रंगों से सभी की, वाटिका को सींचिये।

इंसानियत को सीखना ही होगा

March 21, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

सब कुछ सिखा देगा इंटरनेट
मगर संस्कार तो घर से ही सीखने होंगे,
छोटे बच्चों को खेल लगाना,
उनकी चाहत को पहचानना,
उनकी भूख-प्यास का अहसास
ये सब तो सीखने ही होंगे।
बुजुर्गों का अदब,
उनका सम्मान,
कोई निर्णय लेने से पहले
उनकी भी राय ले लेना,
उनकी जरूरतों का ख्याल रखना
यह सब तो सीखना ही होगा।
दूसरे की पीड़ा को महसूस करना
दया भाव, मुहोब्बत करना,
निरीहों पर स्नेह लुटाना
यह सब तो सीखना ही होगा।
इंसान हो इंटरनेट के अलावा
इंसानियत को सीखना ही होगा।

खिल गई है सुबह

March 21, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

खिल गई है सुबह
जाग जा अब पथिक
हाथ-मुँह धो ले,
न कर आलस अधिक।
काम पर लग गई है दुनिया
चींटीं से लेकर हाथी तक
अपना चुके हैं,
मेहनत का पथ।
उड़गन भी
नित्यकर्म पूरा कर,
चल पड़े हैं ड्यूटी पर,
उठ तू भी,
लिख दे चार शब्द
प्राकृतिक ब्यूटी पर।
रात का अंधेरा बीत गया
सुबह हो गई जवाँ,
उठ जुट जा तू भी
समय मत गँवा।

जो दान भूखे को दे सकेगा

March 20, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

जो दान भूखे को दे सकेगा
असल में सच्चा धनी वही है,
जमा किया बस जमा किया तो
वो सच में कुछ भी धनी नहीं है।
कमाओ लाखों करोड़ों चाहे,
जरा सा उसमें से दान कर लो,
दया धरम ही है साथ जाता
ये सच की बातें हैं कान धर लो।

मुझ में मधुमास

March 20, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

तू रंग कैसा लगा गया है
मुझ में तो
मधुमास सा आ गया है।
ये पीले-पीले व लाल फूलों
से मेरा तन-मन सजा गया है।
खिला के भीतर के फूल मेरे
रंगों का उपवन सजा गया है।
वो कह रहा है कि होली आई
होली से पहले रंगा गया है।

मीठी सी लोरी गाकर सुनाना

March 20, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

अगर मैं रूठूँ
मुझे मनाना,
अगर मैं टूटूँ
मुझे उठाना,
सहारा मेरा बने
मैं तेरा,
यही तो जीवन का है फ़साना।
अगर है दूरी
तो पास लाना,
जरा सा मनुहार से बुलाना,
मीठी सी लोरी गाकर सुलाना,
समय को खुशियों में ही बिताना।

हमेशा सच ही सैल्यूट पाये

March 20, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

जो राह सच्ची चलेगा मित्रों
भले ही गाली वो लाख खाये
मगर है ईश्वर का न्याय ऐसा,
हमेशा सच ही सैल्यूट पाये।
कभी भी जीवन में तुम किसी का
बुरा न करना, बढ़े ही जाना,
कभी भी मेहनत से मत भटकना
चले ही जाना कदम बढ़ाना।
अनेक छींटाकशी भी होगी
अनेक कमियां दिखाई देंगी,
मगर तुझे हिम्मत रख हमेशा
स्वयं की राहें बनानी होंगी।
बना के सीढ़ी, पहुंच के मंजिल
खुशी तुझे भी मनानी होंगी।

मुहब्बतों में मुझे झुका दे

March 20, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

तू टिमटिमा मत चमकते तारे
बिना रुके रोशनी दिखा दे,
अंधेरा घनघोर सा घिरे जब
तू कर उजाला मुझे सिखा दे।
चलूँगा कैसे अंधेरी राहें,
मुझे तू सारी कला सिखा दे,
मनाने प्रीतम को क्या लिखूं अब
दो बात अच्छी मुझे लिखा दे।
अगर कलम से गलत लिखूं तो
मुझे बताये बिना मिटा दे।
अकड़ न जाऊँ कभी किसी से
मुहब्बतों में मुझे झुका दे।

ये गुनगुनाहट कहाँ हुई है

March 20, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

ये गुनगुनाहट कहाँ हुई है
जो लेखनी ने बयान की है,
जो ध्वनि सुनी थी कभी मुहोब्बत की
आज फिर से सुनाई दी है।
निगाहों से मिलने को निगाहें
पलक झपकते मिला ही दी हैं।
सुहाना मौसम सुहाने पल-क्षण,
ये आहटें सी सुनाई दी हैं।
कभी हैं खट्टे फलों सी खुशबू
कभी वे लगती मिठाई सी हैं।
जो कह रहे हैं वो कुछ नहीं है
असल की बातें छुपाई सी हैं।
बयां न कर पाये थे मुहब्बत
मगर जिगर में सजाई सी हैं।

सलामी कुबूल हो

March 20, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

बाजार में प्रविष्ट करते ही
छोटे-छोटे बच्चे पीछे लग जाते थे,
बाबू जी दे दो, माताजी दे दो,
भैया जी दे दो, दीदी जी दे दो।
स्कूल का समय होता
लेकिन वे माँग रहे होते।
पेट की खातिर हाथ फैला रहे होते।
तभी युवा अजय ओली की
स्नेहिल नजर पड़ी उन पर,
मानवता की भावी पीढ़ी
भीख मांग रही थी इस कदर।
पर्वतीय बाजार में
छोटे बच्चे ठंड में
भूखे प्यासे, नंगे पैर
दौड़ रहे थे मांगने के लिए
राहगीरों के पीछे-पीछे
दृश्य दयनीय था,
हृदय पसीज गया उस
समाजसेवी युवक का,
उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में
संकल्प लिया उसने,
खुद भी नंगे पांव चलकर,
निरीह बच्चों के दर्द को मिटाने का।
लाखों रुपये की नौकरी का
छोड़कर पैकेज,
नंगे पांव निकल पड़ा वह युवक
देने मैसेज।
आज पिथौरागढ़ में बच्चे
भीख मांगते नहीं दिखते हैं।
अब उनके पढ़ने व खाने की
व्यवस्था कर दी है, उस युवक ने
हजारों किमी की पैदल यात्रा कर
देश भर में बच्चों के लिए
जागरूक कर रहा है समाज को
ऐसे कर्मठ युवा को
कवि की कविता की
सलामी कुबूल हो।
———– डॉ0 सतीश चंद्र पाण्डेय, जेआरएफ-नेट, पीएचडी, संप्रति- चिकित्सा विभाग, चंपावत।

आकाश

March 20, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

बिम्ब बनाना चाहता हूँ
तेरा आकाश,
मगर कहाँ से शुरू करूँ
सोच रहा विश्वास।
सोच रहा विश्वास,
इस कदर विस्तृत है तू
आदि अंत का नहीं
पता बस विस्तृत है तू।
कहे लेखनी भानु,
चमकता जीवनदायी,
चंदा-तारे, नखत,
सभी ने छवि बिखरायी।

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