ये दो मज़हब की लड़ाई नहीं है दोस्त

June 19, 2018 in शेर-ओ-शायरी

ये दो मज़हब की लड़ाई नहीं है दोस्त,
यहाँ प्यार की शमशीर पर दो जानें लगी हैं।। राही (अंजाना)

छोड़कर मेरे घर को जब जाने लगा बादल

June 19, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

छोड़कर मेरे घर को जब जाने लगा बादल,

मुझसे मुँह मोड़ कर जब जाने लगा बादल,

रोका पर बारिश के संग वयस्त लगा बादल,

शायद धरती से मेरे गांव की रुष्ट लगा बादल,

जब देखकर हालात भी नहीं झुकता लगा बादल,

बनाकर फंदा रस्सी से मैने खींच लिया बादल।।

राही (अंजाना)

शैलेन्द्र जीवन से एक दिन शिला खण्ड जब टकराया

June 19, 2018 in ग़ज़ल

शैलेन्द्र जीवन से एक दिन शिला खण्ड जब टकराया,

पिता की छाया हटी तो जैसे संकट मुझपर गहराया,

संस्कारों का दम्ब था मुझमें सब धीरे-धीरे ठहराया,

मेरे कन्धों पर परिवार का जिम्मा जैसे बढ़ आया,

बचपन से ही कवि ह्रदय ने मेरे दिल को धड़काया,

बस इसी विधा में लगकर मैंने अपने मन को बहलाया,

बहुत रहा पल-पल उलझा इन सम्बंधों की उलझन में,

फिर किसी तरह से शैलेन्द्र जीवन को अपने मैंने सुलझाया।।

राही (अंजाना)

वो कागज़ की कश्ती वो लहरों की हस्ती

June 19, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

वो कागज़ की कश्ती वो लहरों की हस्ती,

वो छोटी सी बस्ती में हम बच्चों की मस्ती,

वो कहाँ खो गई है मैं ये सोंचता हूँ,
वो कहाँ सो गई है मैं ये सोंचता हूँ,

वो जो दिखती थी आँखों से हंसती सी बच्ची,

वो रखती थी बांधे जो रिश्तों की रस्सी।।
राही (अंजाना)

पलकें

June 19, 2018 in शेर-ओ-शायरी

बहुत ही हल्की हो गई हैं पलकें मेरी,
अरसों बाद कोई उतरा है मेरी पलकों से आज।।
राही (अंजाना)

वक्त

June 18, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

वक्त कैसा भी हो हाथ से छूट ही जाता है,
रिश्तों के समन्दर में यहाँ
हर कोई डूब ही जाता है,
चोंच में दाने खिलाता है जो पंछी,
एक दिन तनहा छोड़ ही जाता है।।
राही अंजाना

बेगुनाह

June 18, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

उस बेगुनाह ने बस सरल रस्ते बनाये थे,
एक दूजे से जोड़ने को कुछ रिश्ते बनाये थे,
सरदार खुद बन बैठे गुनाह ऐ अज़ीम करके,
जिस इंसान के उस मालिक ने साँचे बनाये थे।।
राही (अंजाना)

खेल खेलना सीख लो तो हर खेल अच्छा लगेगा

June 14, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

खेल खेलना सीख लो तो हर खेल अच्छा लगेगा,
ज़िन्दगी की इस बिसात पर हर मोहरा सच्चा लगेगा,

मोहब्बत तो रंग है चढ़ा के देख लो एक बार,
इसके बाद कोई और रंग तुम्हें पक्का नहीं लगेगा।।
राही (अंजाना)

बिन निज भाषा के ज्ञान के बजे ना कोई बीन

June 14, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

बिन निज भाषा के ज्ञान के बजे ना कोई बीन,
अंग्रेजी जो भी पढ़े होवे हिय से हीन,
संस्कारों की खेती अब न कर पाये कोई दीन,
हिन्दी को अपनी कोई ले न हमसे छीन।।
राही (अंजाना)

शब्दों का क्या है इनकी तो कोठरी बहुत बड़ी है

June 14, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

शब्दों का क्या है इनकी तो कोठरी बहुत बड़ी है,
तेरी खामोशी भी पर्याप्त है इनके कद के आगे।।
राही (अंजाना)

एक छोटी सी शीशी में गिरतार हो गई

June 14, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक छोटी सी शीशी में गिरतार हो गई,

भला कैसे ये जिंदगी शर्मोसार हो गई,

यूँ तड़पी बेहद फिर तार-तार हो गई,

बेरुखी दुनियाँ भी तो बार-बार हो गई,

क्यों छिपती-छिपाती मेरी लाज एक दिन,

हर किसी की नज़रों के आर पार हो गई।।

राही (अंजाना)

सृष्टि के नियनों को बदला नहीं करते

June 14, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

सृष्टि के नियनों को बदला नहीं करते,
रात हो तो उसे दिन कहा नहीं करते,

फूलों की चाहत में वृक्ष बोया नहीं करते,
जिंदगी के सच से हम मुकरा नहीं करते।।
राही (अंजाना)

अंकुर विस्तार पाकर व्रक्ष रूप धर लेता है

June 14, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

अंकुर विस्तार पाकर व्रक्ष रूप धर लेता है,
जिंदगी का ये पौधा कभी विश्राम नहीं लेता है,
सिकुड़ जाते हैं रिश्ते तो सिकुड़ जाने दो इन्हें,
जिंदगी जिंदगी है मान लो इसे कोई थाम नहीं लेता है।।

पकड़ न सही पर साथ चल सकते हैं

June 14, 2018 in शेर-ओ-शायरी

पकड़ न सही पर साथ चल सकते हैं,
हम वक्त के पहिये के आस पास चल सकते हैं।।
राही (अंजाना)

ज़िन्दगी एक रेस है जिसमे दौड़ना ही होगा

June 14, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

ज़िन्दगी एक रेस है जिसमे दौड़ना ही होगा,

वक्त रहते वक्त का मुँह मोड़ना ही होगा,

कालचक्र का काम है चलना, चलेगा दोस्तों,

हमें अपने मन को एक बार फिर टटोलना ही होगा,

ऋतुएँ परिवर्तित हों इससे पहले ही सुन लो,

हवाओं के रुख से तुम्हें फिर बोलना ही होगा।।

राही (अंजाना)

सिफ़त माँ के मेरे बड़े साफ़ नज़र आते हैं

June 14, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

सिफ़त माँ के मेरे बड़े साफ़ नज़र आते हैं,
तामील दिलाने को मुझे जब वो खुद को भूल जाती है,

पहनाती है तन पर मेरे जिस पल कपड़े मुझे,
वो सर से खिसकता हुआ अपना पल्लू भूल जाती है,

बेशक मुमकिन ही नहीं एक पल जीना जिस जगह,
वहीं ख़्वाबों की एक लम्बी चादर बिछा के भूल जाती है।।

राही (अंजाना)

हर कदम पर साथ निभाते हो

June 14, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

हर कदम पर साथ निभाते हो,
तुम मुझको बहुत सताते हो,

पर जैसे भी हो सच कहती हूँ,
तुम बस मेरे मन को भाते हो,

छोटी छोटी बातों पर तुम,
मुझको टोका करते हो,

सही राह पर हर दम तुम
मुझको मोड़ा करते हो,

बड़े गुणी हो माना है मैने,
तुम सबसे अलग लुभाते हो,

मेरे दिन की खबर नहीं पर
रातों में,
हर पल ख़्वाबों में तुम आते हो।।

राही (अंजाना)

तोड़ कर हर ज़ंज़ीर तूने हौंसला दिखाया है

June 14, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

तोड़ कर हर ज़ंज़ीर तूने हौंसला दिखाया है,

जो बुत बन चुके थे उन्हें भी तूने बोलना सिखाया है,

जुदा रही तू जैसे चाँद की चांदनी से सदियों,

फिर बखूबी तूने सबको अपना रूतबा दिखाया है,

बहुत सहमी सी रही तू घूँघट में छिपकर,

फिर दुनियाँ को बेपरवाह अपना चेहरा दिखाया है,

शक्ल ऐ इंसा पर चढ़ें जानवर के मुखौटे को,

देर से मगर तसल्ली से तूने ये पर्दा हटाया है।।
राही (अंजाना)

शर्तिया ऐसा कोई बन्धन नहीं था जो मुझे बाँध पाता

June 14, 2018 in शेर-ओ-शायरी

शर्तिया ऐसा कोई बन्धन नहीं था जो मुझे बाँध पाता,
मगर तेरी जुल्फों से मैं अपनी ये शर्त हार गया।।
राही (अंजाना)

शब्दों की दुनियाँ का कोई साहिर मिले तो बताना

June 14, 2018 in शेर-ओ-शायरी

शब्दों की दुनियाँ का कोई साहिर मिले तो बताना,
किसी राह में मिल जाए गर वो ताहिर तो बताना।।
राही (अंजाना)

गर दिल नहीं होता तो ये दरार कहाँ होती

June 14, 2018 in शेर-ओ-शायरी

गर दिल नहीं होता तो ये दरार कहाँ होती,
मेरे जिस्म और रूह के बीच दीवार कहाँ होती।।।
राही (अंजाना)

बहुत कम वक्त लगा मुझे मकाँ मेरा बनाने में

June 14, 2018 in शेर-ओ-शायरी

बहुत कम वक्त लगा मुझे मकाँ मेरा बनाने में,

मगर एक मुद्दत लगी मुझे उसे घर बनाने में।।
राही (अंजाना)

दर ओ दिल दीवार को छू कर आया

June 9, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

दर ओ दिल दीवार को छू कर आया,
मेरा मन आज उसको छू कर आया।।
राही (अंजाना)

किनारे पर बैठे बैठे हम कैसे दरिया में डूब रहे हैं

June 9, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

किनारे पर बैठे बैठे हम कैसे दरिया में डूब रहे हैं,

न जाने इतना गहरा दरिया हम कैसे देख रहे हैं,

आरक्षण का पानी पीकर देखो कैसे फूल रहे हैं,

कैसे एकतरफा सिस्टम से हम बरसों से जूझ रहे हैं,

कुछ प्रतिशत लाकर ही नौकरी के मौके चूम रहे हैं,

और मेहनत करने वाले क्यों घर के पंखो पर झूल रहे हैं।।

राही (अंजाना)

चुप्पियों को मेरी कमजोरी न समझ ले कोई

June 9, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

चुप्पियों को मेरी कमजोरी न समझ ले कोई,
तो आज कल ज़रा ज्यादा बोलने लगा हूँ मैं।।
– राही (अंजाना)

बड़े दिनों के बाद बेचारी आँखों ने

June 8, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

बड़े दिनों के बाद बेचारी आँखों ने,

स्वप्नों भरी एक रात गुजारी आँखों ने,

बेचैनी भरपूर दिखाई आँखों ने,

जिस पल उनसे नज़र मिलाई आँखे ने,

कल्पनाओं की कलम चलाई आँखों ने,

हर दिन नई तस्वीर बनाई आँखों ने।।
राही (अंजाना)

मगर मुझे तो माँ का मैला आँचल ही सुहाता है

June 7, 2018 in शेर-ओ-शायरी

बेशक खुशबू से भरा होगा मेरे दोस्त तेरा सनम,
मगर मुझे तो माँ का मैला आँचल ही सुहाता है।।

– राही (अंजाना)

जब किसी ने ना देखा एक नज़र मुझे पलटकर

June 7, 2018 in शेर-ओ-शायरी

जब किसी ने ना देखा एक नज़र मुझे पलटकर,
तब आइना भी रो दिया मेरा चेहरा देखकर।।
– राही (अंजाना)

खामोश तस्वीरों की जैसे कोई आवाज बन गया हूँ,

June 7, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

खामोश तस्वीरों की जैसे कोई आवाज बन गया हूँ,
अनजाने में ही जैसे उनके अल्फ़ाज़ बन गया हूँ,
जो कह नहीं पाती वो अपनी आँखों से खुलकर,
मैं उनके कबीले का कोई सरदार बन गया हूँ,
छिपा नहीं पातीं वो जो दर्द अपने चेहरे पर,
मैं उन्ही के करीब का कोई रिश्तेदार बन गया हूँ।।

राही (अंजाना)

मैंने अपनी “मैं” को “हम” कर लिया है

June 6, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

मैंने अपनी “मैं” को “हम” कर लिया है,
जिस पल से तुमको अपने संग कर लिया है॥
राही (अंजाना)

रेत हाथों से यूँ ही न सरक पाएगा

June 6, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

रेत हाथों से यूँ ही न सरक पाएगा,

गर उँगलियों में दूरी रखोगे नहीं,

रंग चेहरे का फीका न हो पायेगा,

गर रिश्तों में किस्से रखोगे नहीं,

अब कुछ नहीं इन आँखों से हो पायेगा,

गर ज़ुबा से तुम कुछ भी कहोगे नहीं।।

राही (अंजाना)

माँ के दिल और पिता के दिमाग से परखा जाएगा

June 6, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

माँ के दिल और पिता के दिमाग से परखा जाएगा,

ये बचपन का पौधा बड़े हिसाब से ख़र्चा जाएगा,

मेहनत लगी है गहन किसकी परवरिश में कितनी,

दो एक रोज़ में सरेआम इसका चर्चा हो जाएगा।।

राही (अंजाना)

पत्थरों को भी खड़े होने का सलीका सिखाने में

June 6, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

पत्थरों को भी खड़े होने का सलीका सिखाने में,

कितना काबिल दिखता है वो पिरामिड बनाने में,

सन्तुलन कोई रखता नहीं दो रिश्ते निभाने में,

बेहद तस्सली सुझाता है वो शिलाओं को सिखाने में,

सहज नहीं होता कुछ भी जिस जालिम जमाने में,

भला किस कदर जमाये उसने कदम इस वीराने में।।

राही (अंजाना)

सिखाता कोई नहीं बस सीखना पड़ता है

June 6, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

सिखाता कोई नहीं बस सीखना पड़ता है,

अपने रिश्तों को खुद ही सूझना पड़ता है,

दिल की जितनी ही पहरेदारी की जाती है,

उसको उतनी ही बिमारी से जूझना पड़ता है।।

राही (अंजाना)

जब दिल नहीं कोई आत्मा दुखाने लगे

June 6, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

जब दिल नहीं कोई आत्मा दुखाने लगे,

आँखों में ठहरा वो पानी छलकाने लगे,

स्वप्नो की बनाई दुनियाँ को भुलाने लगे,

अपने ही रिश्ते का दीपक बुझाने लगे,

चेहरे से झलकते भावों से नज़र चुराने लगे,

कोई कहे कुछ ऐसा के अब सकूँ आने लगे।।

राही (अंजाना)

मेरे जिस्म से हर रोज़ मेरे वस्त्र उतारे जाते हैं

June 6, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेरे जिस्म से हर रोज़ मेरे वस्त्र उतारे जाते हैं,

दरख्त काटकर पंछियों के घर उजाड़े जाते हैं,

साँसे हैं मेरी ही बदौलत यहाँ जिनके जीवन की,

उन्हीं हाथों से अक्सर मेरे वजूद उखाड़े जाते हैं।।

राही (अंजाना)

एक जैसे हो गये हैं चेहरे सारे

June 6, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

जाने अनजाने रिश्तों के मध्य खड़ा नज़र मैं आता हूँ,

June 6, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

जाने अनजाने रिश्तों के मध्य खड़ा नज़र मैं आता हूँ,

मैं मतलब हूँ बेमतलब लोगों के साथ कभी जुड़ जाता हूँ,

कभी मैं आता काम बड़े कभी किसी मोल न भाता हूँ,

थाली के बैगन सा मैं जिधर वजन मुड़ जाता हूँ,

सीख मिली हो जितनी भी चक्कर में पड़ जाते हैं,

अक्सर मैं जब लोगों की सोहबत में घुल जाता हूँ।।

राही (अंजाना)

होंठो पर झूठी हंसी और आँखों में नमी लिए बैठी थी

June 6, 2018 in शेर-ओ-शायरी

होंठो पर झूठी हंसी और आँखों में नमी लिए बैठी थी,
वो अंदर से हजार बार टूटकर भी बाहर से जुडी बैठी थी।।
राही (अंजाना)

स्वप्नों के तराजू पर वजन मेरी जिम्मेदारी का ज्यादा निकला

June 6, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

स्वप्नों के तराजू पर वजन मेरी जिम्मेदारी का ज्यादा निकला,

मेहनत के कागज़ों पर नोटों का रंग थोड़ा ज्यादा निकला,

बहुत बहाया पसीना दो रोटी कमाने की खातिर मैंने,

मगर मेरे वजूद से मेरी कमर पे बोझ ज़रा ज्यादा निकला,

पानी बेशुमार मैंने समन्दर की बाहों में सिमट जाता देखा,

फिर कल्पना की तो साँसों पर मेरी जमाने का सितम ज़्यादा निकला।।

राही (अंजाना)

सारी यादें बन्द दरवाज़े के पीछे कैद कर रहा हूँ

June 1, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

सारी यादें बन्द दरवाज़े के पीछे कैद कर रहा हूँ,

हर एक निशानी को मैं कैसे सुफैद कर रहा हूँ,

कोई आंकलन ही नहीं मुझे इस सनक का मेरी,

क्यों सांकल लगा कर मैं खुद को ही मुस्तैद कर रहा हूँ।।

राही (अंजाना)

तेरे रवैये पे तू इतराया ना कर

May 31, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

तेरे रवैये पे तू इतराया ना कर,
ऐ दोस्त तू चेहरे को अपने यूँ बनाया ना कर,
तू झूठ पर पर्दा उढ़ाया ना कर,
यूँ सच को आईना दिखाया ना कर,
तेरे रवैये पे तू …..
जो उड़ता है तो उड़ जाने दे,
तू हर परिदें को यूँ उड़ना सिखाया ना कर॥
राही

अब डूबने के डर से बेखौफ हो गया हूँ मैं

May 31, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

अब डूबने के डर से बेखौफ हो गया हूँ मैं,
लहरों से सीख़ आया हूँ वापस लौट के आने का हुनर।।
– राही (अंजाना)

पेट भरने को कितनी जद्दोजहद दिखाता है

May 31, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

पेट भरने को कितनी जद्दोजहद दिखाता है,

जब कोई बच्चा सड़कों पर खेल दिखाता है,

चोट दिल पे लगे और जिस्म को झुकाता है,

क्यों पैसों की खातिर यूँ मासूम जज़्बा दिखाता है।।

राही (अंजाना)

जब देख ही लिया उनके चेहरे को जी भर के

May 31, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

जब देख ही लिया उनके चेहरे को जी भर के,

तो अब किसी तस्वीर को आढ़ा देख कर क्या होगा,

बदल ही गया जब वक्त के साथ रुख उनका,

तो अब किसी रिश्ते का रंग गाढ़ा देख कर क्या होगा।।
राही (अंजाना)

एहसासों की एक चादर को रोज़ बिछाया करता हूँ

May 31, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

एहसासों की एक चादर को रोज़ बिछाया करता हूँ,
अपने दिल के टुकड़ों को उसपे रोज़ सजाया करता हूँ,

बहुत अन्धेरा लगता है जब कभी मुझे अंतर्मन में,
मैं उसकी एक तस्वीर मात्र को देख उजाला करता हूँ,

चाँद सितारे आसमान के हाथों में न ले पाता हूँ,
तो सिरहाने तकिये पर उसकी यादों को लगाया करता हूँ।।

राही (अंजाना)

बात करते हैं मगर चेहरा छिपा लेते हैं लोग

May 31, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

बात करते हैं मगर चेहरा छिपा लेते हैं लोग,

अक्सर खुद पर ही पेहरा लगा लेते हैं लोग,

आते क्यों नहीं भला खुल के सामने सबके,

जो दर्द भी दूजे के अपना बना लेते हैं लोग,

फूल के मानिंद जब महकते रहते हैं यूँहीं,

तो क्यों न भवरों से अपना रिश्ता बना लेते हैं लोग।।

– राही (अंजाना)

भला मौन रहकर भी कैसे कोई गहरे तीर चला लेता है

May 31, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

भला मौन रहकर भी कैसे कोई गहरे तीर चला लेता है,

छोटी-छोटी बातों से ही मन की तस्वीर बना लेता है,

लगे चोट अपनों से तो खुद को ही समझा लेता है,

चेहरे पर झूठा चेहरा रख क्यों अपना दर्द छुपा लेता है,

जीवन की इस बगिया में मानों फूल खिला लेता है,

काँटो भरी इस दुनियॉ में वो कैसे कदम बढ़ा लेता है।।

– राही (अंजाना)

जो उड़ रहे थे परिंदे बेख़ौफ़ खुले आसमाँ में,

May 31, 2018 in शेर-ओ-शायरी

जो उड़ रहे थे परिंदे बेख़ौफ़ खुले आसमाँ में,
आज उस खुदा ने उन्हें ज़मी का मुरीद कर दिया॥
– राही

अब कोई तो बादल ही ढूंढ ले मुझको

May 31, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता


अब कोई तो बादल ही ढूंढ ले मुझको,

बारिश ए बून्द ही सही चूम ले मुझको,

एक अरसे से सूखी हैं ये आँखे मेरी,

कोई हवा का झोंका ही सूंघ ले मुझको।।

राही (अंजाना)

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