हसींन चेहरे

February 2, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

बर्बाद कर बैठ जाते हैं अक्सर वो चेहरे हसीन होते हैं,
पर अंधेरों की सरपरस्ती में ही वो खुद का वजूद लिए होते हैं,
अब क्या बद्दुआयें दें हम उन आइना ऐ हुस्नों को,
जो अपनी ही रूह का अक्सर अक्स लिए होते हैं॥
राही (अंजाना)

बेटी की चाहत

February 1, 2017 in Poetry on Picture Contest

अँधेरे कमरे से बाहर अब मैं निकलना चाहती हूँ,
माँ की नज़रों में रहकर अब मैं बढ़ना चाहती हूँ,
धुंधली न रह जाए ये जिन्दगी मेरी, यही वजह है के मैं अब पढ़ना चाहती हूँ,
खड़ी हैं भेदभावों की दीवारें यहाँ अपनों के ही मध्य,
मैं मिटा कर मतभेद सबसे जुड़ना चाहती हूँ,
दबा रहे हैं जो आज मेरी देह की आवाज को,
अब धड़कन ऐ रूह भी मैं उनको सुनाना चाहती हूँ॥
राही (अंजाना)

समय लगेगा

January 31, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

सोये होते तो उठ जाते बेहोश हैं लोग अभी उठाने में ज़रा समय लगेगा,
गहरे हैं रिश्ते मगर फिर भी दूरियां हैं,
बीच में हैं खड़ी दीवारों को गिराने में ज़रा समय लगेगा।।
आँखों में दरिया है और पैरों में समन्दर बिछा है,
डूबकर उस पार निकल जाने में ज़रा समय लगेगा॥
खेल है अजीब और खिलाड़ी गजब हैं इस शतरंजी ज़माने में,
अभी मुक्कमल चाल लगा कर हराने में ज़रा समय लगेगा॥
राही (अंजाना)

सम्भाल कर

January 31, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

रक्खे तो हैं कुछ टुकड़े सम्भाल कर,
प्यारे से दिल के चन्द हिस्से सम्भाल कर,
बनाते थे लोग पल पल बात कई,
आज बस छिपा के रक्खे हैं कुछ किस्से सम्भाल कर,
बहुत सारे तोहफा ऐ यादें बनी थी मगर,
अब किताबों में दबा रक्खे हैं सूखे गुलाब सम्भाल कर॥
राही (अंजाना)

बेटी हूँ हां बेटी हूँ

January 31, 2017 in Poetry on Picture Contest

बचपन से ही सहती हूँ,
मैं सहमी सहमी रहती हूँ,
छुटपन में कन्या बन कर संग माँ के मैं रहती हूँ,
पढ़ लिखकर मैं कन्धा बन परिवार सम्भाले रखती हूँ,
फिर छोड़ घोंसला अगले पल मैं पति घर में जा बसती हूँ,
पत्नी रूप में भी मैं हर बन्धन में बन्ध कर रहती हूँ,
खुद के ही पेट से फिर माँ बनकर मैं (बेटी) जन्म अनोखा लेती हूँ,
पढ़ जाऊ तो नाम सफल और जीवन सरल कर देती हूँ॥
बचपन से ही सहती हूँ,
मैं सहमी सहमी रहती हूँ,
मैं बेटी हूँ मैं बेटी हूँ मैं हर रंग में ढलकर रहती हूँ॥
राही (अंजाना)

बेटी की आवाज

January 30, 2017 in Poetry on Picture Contest

माँ की कोख में ही दबा देते हो,
मुझको रोने से पहले चुपा देते हो,
आँख खुलने से पहले सुला देता हो,
मुझको दुनियां की नज़र से छुपा देते हो,
रख भी देती हूँ गर मैं कदम धरती पर,
मुझको दिल में न तुम जगह देता हो,
आगे बढ़ने की जब भी मै देखूं डगर,
मेरे पैरों में बेडी लगा देते हो,
पढ़ लिख कर खड़ी हो न जाऊं कहीं,
मुझको पढ़ाने से जी तुम चुरा लेते हो,
क्यों दोनों हाथों में मुझको उठाते नहीं,
आँखों से अपनी मुझको बहा देते हो॥
राही (अन्जाना)

मुझको बचाओ मुझको पढ़ाओ

January 30, 2017 in Poetry on Picture Contest

कन्या बचाओ
खुद कन्या कहती है-

मुझको बचाओ तुम मुझको बचाओ,
सपना नहीं अब हकीकत बनाओ,
बेटा और बेटी का फर्क मिटाओ,
बेटी बचाओ अब बेटी पढ़ाओ,
बेटे के प्रति प्यार और बेटी को समझें भार,
ऐसे लोगों की गलत सोंच भगाओ,
मुझको बचाओ तुम मुझको बचाओ,
रखने से पहले कदम ना मेरे निशाँ मिटाओ,
आने दो मुझको तुम सीने से लगाओ,
फैंको ना मुझको कचरे के देर में,
मारो ना मुझको तुम ममता की कोख में,
घर के अपने तुम लक्ष्मी बनाओ,
मुझको बचाओ तुम मुझको बचाओ,
कन्धे से कन्धा मिलाकर चलूंगी,
कभी तुमको नज़र मैं झुकाने ना दूंगी,
हाथों में मुझको तुम अपने उठाओ,
मुझको बचाओ तुम मुझको बचाओ,
दुनियां के रंग तुम मुझको दिखाओ,
मैं गर्व् से तुम्हारे सर को उठा दूंगी,
एक बार तो मुझमें तुम विश्वार जगाओ,
मुझको बचाओ तुम मुझको पढ़ाओ॥
राही (अंजाना)

अभी बाकी है।

January 28, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

तेरी काया नहीं तो तेरा साया ही सही कुछ तो है जो मेरे साथ बाकी है,
कभी मेरे ख़्वाबों में तेरे अक्स का मुझे छू कर चले जाना,
तो कभी तेरे संग बीते लम्हों का गुजर जाना,
आज भी मेरी जुबां से अक्सर तेरा नाम निकल जाना बाकी है,
तुझे याद नहीं है बेशक मेरी पहचान भी तो क्या,
मेरी आँखों से निकलते अश्कों से तेरी तस्वीर का बन जाना अभी बाकी है॥
राही (अंजाना)

तिरंगे के रंग

January 27, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

अपनी हथेली पर शहीदों के नाम की मेंहदी रचाता रहा हूँ मैं,
तिरंगे के रंग में शहादत का रंग मिलाता रहा हूँ मैं,
हार कर सिमट जाते हैं जहाँ हौंसले सभी के,
वहीं हर मौसम में सरहद पर लहराता रहा हूँ मैं,
सो जाती है जहाँ रात भी किसी सैनिक को सुलाने में,
अक्सर उस सैनिक को हर पल जगाता रहा हूँ मैं,
दूर रहकर जो अपनों से चन्द स्वप्नों में मिलते हैं,
उन्हें दिन रात माँ के आँचल का एहसास कराता रहा हूँ मैं॥
राही (अंजाना)

सपना

January 27, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

काश सपना मेरा ये हकीकत हो जाए,
मैं बाहर और तू यूँही अंदर हो जाए,
रख कर बर्तन में तुमने मुझे बहुत सताया है,
अब तुमको भी सताने की कुछ खुरापात हो जाए,
खेले हो खेल तुम मुझे फंसाकर साहिब,
अब तुमको फांस कर भी एक खेला हो जाय, काश ये सपना मेरा हकीकत हो जाए तो कैसा हो जाए॥

राही (अंजाना)

बन्द मुट्ठी

January 26, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

बन्द मुट्ठी में कई राज़ दबाये बैठा हूँ,
अनगिनत शहीदों के कई नाम छुपाये बैठा हूँ,

मेरी खातिर होती रही हैं कितनी ही कुर्बानी,
मैं बेज़ुबान सही पर हर जवान की पहचान सजाये बैठा हूँ,

रंग भी गजब हैं और रूह भी अजब हैं ज़माने मे साहिब,
मगर मैं (तिरंगा)तीन रंगों में ही सारा हिन्दुस्तान समाये बैठा हूँ॥
राही (अंजाना)

इंकलाब ए कहानी

January 24, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

मैं हक़ीक़त में आजादी का एहसास करने ही लगा था के बस।
फिर से मुझे ज़ंजीरों में जकड़ा जाने लगा।।

आ ही गया था के वो लम्हा ए इमकान (सम्भावना) खुशनसीब,
के बस यह एक ख़वाब है मेरा मुझे ये दिन रात जताया जाने लगा,

उठाकर हाथ में तिरंगा जब भी मैं अपने हाथ उठाने लगा,
सरहद पर मर मिटने वालों की सबको मैं याद दिलाने लगा,

धरती माँ के आँचल में है कितना सुकून ये हर हिन्दुस्तानी को मैं फिर बताने लगा,
आजादी की खातिर जो मिट गया शहीद वो हिन्दू और मुस्लिम के लाल रक्त की कहानी “एकता” का इंकलाबी नारे लगाने लगा॥

राही (अंजाना)

तिरंगा ए शान

January 24, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

रंग हैं विभिन्न देखो फिर भी एक नाम है,
एक ही है माटी अपनी एक ही तो शान है,
बीच में चक्र जो वो जीत का अभिमान है,
मुठ्ठी में है बन्द जो तिरंगा अपनी जान है,
रंग हैं विभिन्न देखो फिर भी एक नाम है,
सरहद पर मिटने वालों की दस्तक का ये निशान है,
भरे फक्र से जो छाती माँ की गर्व् और अभिमान है,
ऐसी हस्ती रखता ये तिरंगा मेरा महान है,
रंग हैं विभिन्न देखो फिर भी एक नाम है,
दिल में और दिमाग में जो बसे वो हिन्दुस्तान है॥
राही (अंजाना)

धुँए में जीवन

January 23, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

तू जला कर मुझे धुंए के छल्ले बना कर खुश है,
तो मैं भी खुश हूँ हर रोज तुझे झुलसता देख कर,
तू सुलगाकर मुझे दे रहा है हर लम्हा हवा,
तो मैं भी निगल रही हूँ तुझे तेरी ज़िन्दगी घुला कर।।
राही (अंजाना)

सामने तो आ

January 20, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

शब्दों में नहीं तो खामोशी ही सही,
किसी ज़ुबां में तो तू निकल कर सामने आ,
कब तलक छुपता रहेगा तू राज़ अब दिल में,
खुल कर अब किसी सच सा तू निकल कर सामने आ,
खेल हैं कई और खिलौने भी बहुत हैं ज़माने में,
छोड़ कर बचपना तू अब हकीकत में निकल कर सामने आ॥
राही (अंजाना)

तलाश

January 20, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

न दिल तलाश कर न धड़कन तलाश कर,
जो रूह में घर कर जाए वो दरिया तलाश कर,
झुकता नहीं है आज कोई सर किसी के आगे,
जहाँ हर आदमी झुक जाए वो चौखट तलाश कर,
शर्म के तकिये पर अब कोई सिमटता कहाँ हैं,
जो हर सिलबट मिटा दे वो बिस्तर तलाश कर॥
राही (अंजाना)

खबर ए लापता

January 19, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

सबके ज़हन में आने की ये तरकीब निकाली हमने,
के खुद ही के लापता होने की खबर फैला डाली हमने,

बिक गया जब हर ज़रा ज़मी पर कुछ खाली न बचा,
छोड़ कर ज़मी चाँद पर ही अपनी खोली बना डाली हमने॥
राही (अंजाना)

आवाज़ तेरी

January 18, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

जब सुनाई नहीं देती यहाँ किसी को चीख भी किसी की,
तो कौन सुनकर आऐगा आगे यहाँ अब खामोशी की आवाज तेरी,

जिस तरह मुश्किल है बहती हवा को छू पाना,
उसी तरह मुम्किन नहीं सुन पाना साँसों की आवाज तेरी,

जो देख कर भी कर रहे हैं अनदेखा तुझे,
उन्हें कहाँ सुनाई देगी ख़्वाबों की आवाज तेरी,

भुला कर सो गए हैं चैन की नींद जो तेरा वजूद,
तो क्या बना पाएंगे वो तेरी तस्वीर भूल कर यादों की आवाज तेरी॥
राही (अंजाना)

सिर्फ देख लू एक बार

January 18, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

सिर्फ देख लूँ एक बार उसे करीब से,

फिर इन हाथों में मैंने कोई जाम नहीं लेना है॥

 

छलक जाए गर मेरी आँखों से अश्क तो समझ लेना,

उसी ने कहा था के मेरा नाम नहीं लेना है॥

 

राही (अंजाना)

माँ

January 16, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

माँ ही एक ऐसा बैंक है यारों,
जो हर दुःख सुख के भाव सहेजे,
कभी भी देदे नोट पुराने रक्खे जो पल्लू में लपेटे,
पापा मानो क्रेडिट कार्ड कभी न करते जो इनकार,
खुद वो टूटा जूता पहने हमको लादें सब कुछ यार,
हम करते हर पल कितनी मांगे, जब तब पापा की जेब झांके,
पापा बस रखकर उधार की पर्चा,
चेहरे पर छिपाते धर मुस्कान का कर्जा, मुँह से न बोले वो कुछ भी यार,
अब कुछ भी तुम समझो मेरे यार, करलो जी भर कर उनसे प्यार॥
राही (अंजाना)

हाथों से बनाया जिनको

January 16, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

हाथों से बनाया जिनको मैंने आज वही मुझको बनाने लगे,
बनाकर मूरत मेरी दुकानों में मुझको वो सजाने लगे,
कितनी बदल गई उस इंसा की नियत जो
मोल लगाकर मेरा खुद को अमीर बनाने लगे,
खेल है मेरा और सब खिलौने हैं मेरे हाथ के,
जो आज मुझको ही खेल सिखाने लगे॥
राही (अंजाना)

बन्द कर अपने जज़्बातों के सभी दरवाजों को

January 16, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

बन्द कर अपने जज़्बातों के सभी दरवाजों को,
लगाये लब्जों पर हम खांमोशी के बड़े तालों को।

देखो किस तरह ढूंढने में लगे हैं हम कचरे में छिपी अपनी जिंदगी की चाबियों को॥

यूँ तो तमाम रिश्तों के धागों में बंधे हुए हैं हम भी मगर,
नज़र आते हैं दो रोटी की खातिर खोजते हम न जाने कितने ही कचरे के ढेर मकानों को॥

जहाँ तलक भी नजर जाती है फैली गन्दगी ही नज़र आती है,
फिर भी ढूढ़ते हैं कूड़ा कवाड़ा हम रखकर सब्र अपने जिस्म ऐ ज़ुबानों को॥

~ राही (अंजाना)

कचरे में छिपी ज़िन्दगी की चाबियाँ

January 16, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

बन्द कर अपने जज़्बातों के सभी दरवाजों को,

लगाये लब्जों पर हम खांमोशी के बड़े तालों को।

 

देखो किस तरह ढूंढने में लगे हैं हम कचरे में छिपी अपनी जिंदगी की चाबियों को॥

 

यूँ तो तमाम रिश्तों के धागों में बंधे हुए हैं हम भी मगर,

नज़र आते हैं दो रोटी की खातिर खोजते हम न जाने कितने ही कचरे के ढेर मकानों को॥

 

जहाँ तलक भी नजर जाती है फैली गन्दगी ही नज़र आती है,

फिर भी ढूढ़ते हैं कूड़ा कवाड़ा हम रखकर सब्र अपने जिस्म ऐ ज़ुबानों को॥

 

राही (अंजाना)

कचरे में खोयी जिंदगी

January 16, 2017 in Poetry on Picture Contest

चुन कर कचरे से कुछ चन्द टुकड़ों को,
जिंदगी को अपनी चलाते हुए,
अक्सर देखे जाते हैं कुछ लोग थैलो में जीवन जुटाते हुए॥
थम जाती है जहाँ एक पल में साँसों की डोरी,
वहीं बच्चों को अक्सर चुपाते हुए, दो रोटी को कचरा उठाते हुए॥
अक्सर देखे जाते हैं कुछ लोग थैलो में जीवन जुटाते हुए॥
जहाँ बन्द होती है आँखे हमारी, जहाँ भूल कर भी हम रुकते नहीं हैं,
लगाते हैं खुद ही जहाँ ढ़ेर इतने, एक लम्हा भी जहाँ हम ठहरते नहीं हैं,
करते काम गन्दा खुद ही हम जहाँ पर,
चेहरे भी अपने छुपाते नहीं,
वहीं से ही अक्सर देखे जाते हैं कुछ लोग थैलो में जीवन जुटाते हुए॥

~ राही (अंजाना)

कहीं कोहरे की धुंध के पीछे छुप गए हैं …

January 16, 2017 in शेर-ओ-शायरी

कहीं कोहरे की धुंध के पीछे छुप गए हैं मेरी सफलता के सभी रास्ते,
जितना भी करीब जाता हूँ उतने ही दूर मेरे रास्ते नज़र आते हैं,
यूँ तो दायरा है मेरे इर्द गिर्द कितनी ही दुआओं का मगर,
मन्ज़िल पर मेरे पहुंचने से पहले शायद किसी की बद्दुआयें पहुंच जाती हैं॥
~ राही (अंजाना)

वो सुबह न आये जिसमे तुझको टूट कर बिखरता देखूं

January 15, 2017 in शेर-ओ-शायरी

वो सुबह न आये जिसमे तुझको टूट कर बिखरता देखूं,
तेरे रगो में न कभी मैं जुदाई का जहर उतरता देखूं,
मांगा है जिसे मैंने भी हर चौखट पर खुदा की,
वो पल ही न आये जिसमें मैं तुझको सिसकता देखूं॥
राही(अंजाना)

मेरा मन ये कहता था…

January 15, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेरा मन ये कहता था के यह फिर इस बार नहीं होगा,

मैं आगे बढ़ गया हूँ अब फिर पीछे कदम नहीं होगा,

फिर मन में जिज्ञासा थी फिर कुछ पाने की आशा थी,

एक बार गिरा फिर उठ बैठा और उठकर फिर मैं चलने लगा,

पर चलते चलते मेरे मन में फिर संशय सा पलने लगा,

मेरा मन ये कहता था के यह फिर इस बार नहीं होगा,

मैं भी ज़िद्दी था बचपन से फिर अपनों से भिड़ने लगा,

जो देखे थे सपने मैने फिर उनको मैं बुनने लगा,

जगते जगते जब मैं अपने स्वप्नों की चादर चुनने लगा,

फिर आकाश से वापस गिरकर मैं धरती से मिलने लगा,

मेरा मन ये कहता था के यह फिर इस बार नहीं होगा,

सूरज की किरणों सा जब भी मैं उज्ज्वल जल होने लगा,

फिर सहसा साँझ दूजे पल से मैं धुन्धला धुन्धला होने लगा,

मेरा मन ये कहता था के यह फिर इस बार नहीं होगा॥
~ राही (अंजाना)

सम्भाल कर रक्खी थीं जो तेरी यादें

January 15, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

सम्भाल कर रक्खी थीं जो तेरी यादें,
चलो आज उनको सरेआम करते हैं।

मन ही मन में जो बस गई है दिल में,
आओ अब तेरी उस तस्वीर को खुलेआम करते हैं।

तेरी इजाजत के बगैर ही लिख दी है जो जागीर मैने तेरे नाम।

आज खुलकर हम अपना सब कुछ तेरे नाम करते हैं,

जो हर पल हर लम्हें पर हो ही गया है इख़्तेहार तेरा,

तो छोड़ कर हम अपनी रूह तेरे हाथ बाकी ज़माने के नाम करते हैं॥

~ राही (अंजाना)

कलम

January 15, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेरे दिल और दिमाग की जद्दोजहद में कलम की स्थिति गम्भीर देखो,
दोनों अपनी अपनी ओर खींचे कैसे कलम की डोर देखो,
लिखने को लिख दूँ मैं अपने मन की हर एक पीर देखो,
पर असमन्जस की स्याही से खिंचे न कोई लकीर देखो॥
~ राही (अंजाना)

रौंद कर निकल भी जाऊ आगे सबसे

January 15, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

रौंद कर निकल भी जाऊ आगे सबसे,
मगर अपनों के ऊपर चलने का हुनर कहाँ से लाऊँ,
बनाने को तो बनाए रहूँ रिश्ते सभी,
मगर जो रिश्तों को जोड़े रक्खे वो डोर कहाँ से लाऊ,
कह दूँ हर बात ज़ुबाँ से सुन लेते है सभी,
मगर जो खामोश जज़्बात भी पढ़ ले वो नज़र कहाँ से लाऊ,
जख्म बन चुके हैं नासूर मेरे,
मगर जो आराम दे जाए वो दवा कहाँ से लाऊँ।
~ राही (अंजाना)

औरत

January 15, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

कभी सूनसान गली तो कभी खुले मैदान में पकड़ ली जाती है,
तू क्यों कटी पतंग सी हर बार लूट ली जाती है,
वो चील कौवों से नोचते कभी जकड़ लेते हैं तुझे,
तू क्यों होठों को खामोशी के धागे से यूँ सी जाती है,
किस्से कहानियों, किताबों में रखती थी तू वजूद अपना,
तो आज हर इश्तेहार में तू अपनी हार क्यों दिखाती है॥
~ राही (अंजाना)

ता उम्र

October 3, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

ता उम्र मैं इक अनजान सी राह में रहा,

जागते हुए भी मैं सफ़र ए ख़्वाब में रहा,

वो जिसे पाने को भटका मैं दर बदर ज़माने में,

अंत समय में जाना वो मेरी जिस्मों जान में रहा,

पार नहीं कर पाया जिस समन्दर को मैं,

हर रोज उसी समन्दर के मैं बहाव में रहा,

चुभती रही जो दूर रहकर भी बात मुझे सनम की,

हकीकत में मैं हर मोड़ पर उसी के साथ में रहा॥

राही (अंजाना)

चेहरे

October 3, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक जैसे हो गए हैं चेहरे सारे,
मेरी आँखों से कहीं खो गया है चेहरा तेरा,

मुद्दते बीत गयी हैं सपना तुम्हारा देखे,
जागता रहता है हर रोज बिस्तर पर तकिया मेरा,

फ़हरिस्त होगी मरने वालों की कातिलों के पास मगर,
मेरे जिस्म ही नहीं रूह पर भी हो गया है इख़्तियार तेरा,

तेरी ही जुस्तजू में लगा हूँ मैं हर पल,
सच ये के अब हद से जादा हो गया है इंतज़ार तेरा॥

राही (अंजाना)

आहट

October 3, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

तेरे कदमों की आहट से खुश होती थी माँ तेरी,

आज लगे रहते हैं लोग तेरे कदम उखाड़ने के लिए,

कोई खुश नहीं होता आज तरक्की से तेरी,

लोग मौका ढूंढते हैं आज हर कदम काट खाने के लिए,

मिल रहा था लाखों का ताज मुझे सर पर लगाने को,

मैंने सर नहीं झुकाया अपना सम्मान गिराने के लिए,

कोई अक्स नहीं कोई साया नहीं,

कुछ लोग आते हैं ज़माने में बस आईना दिखाने के लिए,

बात सबको न बताओ अपने दिल की सुनो,

कोई आएगा नहीं आगे मरहम लगाने के लिए,

“राही” अनजाना है अभी अपनी पहचान के लिए,

निकला है अभी सफर में मन्ज़िल पाने के लिए॥

राही (अंजाना)

राही

October 3, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

थक कर के बैठ जाऊँ वो “राही” मैं नहीं,

आँखों में ठहर जाऊँ वो आँसु मै नहीं,

चिराग हूँ माना बुझना है मुझे मगर,

रौशन ज़माना जो ना कर पाऊँ वो मैं नहीं,

दिखता हूँ कविताओ में झलक अपनी,
अपनी जो पहचान ना छोड़ पाऊँ वो मैं नहीं,

अकसर होता है खामोशियों में भी ज़िक्र मेरा,

तस्वीर अपनी सबके दिलों में ना बना पाऊँ वो मै नहीं।

राही (अंजाना)

ज़िन्दगी का खेल

September 28, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

तेरा डूबना मुश्किल था “राही” मगर,

क्या करते जब दूर तक साहिल नहीं था,

कहाँ कब किससे गुफ्तगू करते “राही”,

जब दूर तलक कोई सफर में मुसाफिर नहीं था,

सबसे ज्यादा उसके करीब था “राही” मगर,

शायद वो तुमसे मुखातिब नहीं था,
ज़माने से अनजान थी “राही” तेरी राहें मगर,

तू लोगों की नज़र में अंजाना नहीं था,

वो जो टूट गया “राही” आइना था मगर,
सच ये है के वो कोई दिल नहीं था,

हम उस ज़िन्दगी की शतरंज की बिसात हैं “राही”,

जहाँ खेल तो था मगर कोई पक्का नियम नहीं था॥

राही (अंजाना)

कमाल

September 28, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

खुली जब आँख तो कमाल ये देखा,

वो मेरी रूह में था और मैं मकान में था,

सीखा ज़माने में बहुत कुछ
हमने यारों,

पर स्वाद मेरी जुबान में उसका ईमान से था,

यकीन इतना था मुझे उसपर के मैं उड़ान में था,

डुबो दी कश्ती जब उसने तब जाना मैं बस यूँही गुमान में था,

था खुद से जो “राही” अनजाना कभी,

पीछे मुड़ कर जो देखा तो लोगों की पहचान में था॥
राही (अंजाना)

अफ़वाह

September 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

ये अफवाह थी के समन्दर में डूब जाना था मुझे,

सच तो ये है के तैर कर उबर ही आना था मुझे,

ये ज़िद थी लोगों की के बाँध कर बेड़ियों में बाँधना था मुझे,

मगर तय था के हर बन्धन तोड़ कर उड़ ही जाना था मुझे,

लाख कोशिशे की शायद दोषी ठहराना था मुझे,

पर बेगुनाह ही था तो हर इल्जाम से बरी हो ही जाना था मुझे,

किसी की शय पर लगाकर राहों में रोड़े राहों से भटकाना था मुझे,

मगर ज़िन्दगी के सफर का “राही” था मैं तो गुजर ही जाना था मुझे॥

राही (अंजाना)

समय

September 17, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

समय बदलने लगा तो खेल बदलने लगे,

दोस्त साथ घूमना और बाहर निकलना भूलने लगे,

खिलौने भी बदलने लगे खिलाड़ी भी बदलने लगे,

जो संग साथ लगाते थे मेले खुले आंसमा के निचे,

आज अकेले ही बन्द कमरों में मिलकर वो परिंदे रोने लगे,

जो दिखती थीं महफिले शाम ओ खटियो पर बस्ती में,

आज शहरों में लोग सभी अपनी ही मस्ती में रहने लगे॥

राही (अंजाना)

वक्त

September 12, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

शाम गुजार देते हैं लोग गुजरती नहीं,

बरसात से कभी किसी राही की प्यास बुझती नहीं,

कहे ना कहे कोई बुलाये ना बुलाये खुद ही चली आती हैं यादें,

जिस तरह सोते हैं हम तो ख़्वाबों में खुद बा खुद चले आते हैं लोग॥

राही (अंजाना)

थकान राही की

September 12, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज ओढ़ ली थकान की चादर कुछ इस तरह,

के हफ़्तों बाद मिली हो किसी को फुरसत जिस तरह,

जागता ही रहा हो सफर में ज़िन्दगी के कोई जिस तरह,

आज सोया हूँ ऐसे के बरसों से करवट बदली ही ना हो किसी ने जिस तरह,

देखे ही ना हों नींदों में ख्वाब किसी ने उम्र भर जिस तरह,

आज जागते हुए भी ख़्वाबों में भटकता है ‘राही’ उस तरह॥

राही (अंजाना)

परछाई

September 11, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

तेरी आदत सी मुझे जब होने लगी,

तेरी परछाईं मुझमें ही खोने लगी,

तू जो रूठे तो शाम होने लगी,

मेरे ख़्वाबों में तू आके सोने लगी,

धूप सी मेरे चेहरे पे खिलने लगी,

तू दिन रात संग मेरे रहने लगी,

कभी बारिश बनके तू मुझपर बरसने लगी,

कभी तू कोहरे सी धुधली होने लगी,

सच कहूँ तुझसे रिश्ता जुड़ा मेरा ऐसा,

के हर जगह तू ही मुझको अब दिखने लगी॥

राही (अंजाना)

दीमक

September 7, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

पढ़ना नहीं जानती फिर भी चाट जाती हैं दीमकें जाने कैसे सारी किताबों को,

रौशनी क्या है नहीं जानते फिर भी कर देते हैं जाने कैसे रौशन जुगनू सारे ज़माने को,

नहीं जानते जिद्दी हवाओं को फिर भी रख लेते हैं ना जाने कैसे परिंदे साथ हवाओं को,

उड़ना नहीं जानते फिर भी छू लेते हैं जाने कैसे कुछ लोग ऊँचे आसमानो को॥

राही(अंजाना)

गुरु माँ

September 5, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

कोई भी कमी कोई भी शिकायत नहीं छोड़ती,

अपने बच्चे की परवरिश में वो माँ कोई खामी नहीं छोड़ती,

खुद रह भी ले भूखी पर वो माँ किसी दिन भी बच्चे को भूखा नहीं छोड़ती,

लड़ जाती है कलयुगी काल से भी पर,

वो माँ अपने बच्चे की खातिर कोई कसर नहीं छोड़ती,

खुद जागती रहती है पूरी रात चिन्ता में फिर भी,

पर वो माँ हमे सुलाने को कोई लोरी नहीं छोड़ती,

करती है दिन रात मेहनत हर तरह से देखो,

पर वो माँ हमारे ऐशो आराम में कोई कमी नहीं छोड़ती॥
राही (अंजाना)

माँ की करनी

September 3, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

कोई भी कमी कोई भी शिकायत नहीं छोड़ती,

अपने बच्चे की परवरिश में वो माँ कोई खामी नहीं छोड़ती,

खुद रह भी ले भूखी पर वो माँ किसी दिन भी बच्चे को भूखा नहीं छोड़ती,

लड़ जाती है कलयुगी काल से भी पर,

वो माँ अपने बच्चे की खातिर कोई कसर नहीं छोड़ती,

खुद जागती रहती है पूरी रात चिन्ता में फिर भी,

पर वो माँ हमे सुलाने को कोई लोरी नहीं छोड़ती,

करती है दिन रात मेहनत हर तरह से देखो,

पर वो माँ हमारे ऐशो आराम में कोई कमी नहीं छोड़ती॥
राही (अंजाना)

मेरी परछांई

September 3, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

तू मेरे जिस्म मेरी जान जैसा है,

कभी दिल की जुबां तो खुदा की अज़ान जैसा है,

कभी हर प्रश्न का उत्तर तो कभी गणित के सवाल जैसा है,

तू मेरी आँखों का ख़्वाब तो कभी हकीकत का ताज जैसा है,

यूँ तो बनाई थी पहचान कभी अपनी,

आज मेरे ही अक्स की तू परछाईं जैसा है॥
राही (अंजाना)

कोई डर कर

September 3, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

कोई डरा कर किसी का मन बदल देता है,
कोई डर कर अपना शहर बदल देता है,
कोई सब कहकर कुछ बदल नहीं पाता,
तो कोई खामोश रहकर भी बहुत कुछ बदल देता है,
कोई तोहफे देकर हज़ार भी किसी को बदल नहीं पाता,
तो कोई ज़रा सी मुस्कराहट से किसी की दुनिया बदल देता है॥

राही (अंजाना)

कीमत खुद की

September 1, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

जो समझते नहीं कीमत खुद अपनी,

अक्सर बिक जाते हैं वो सस्ते में बाज़ारों में,

कहीं लगते हैं ऊँचे दाम किसी की काबलियत के,

तो कहीं बेमोल खरीद लिए जाते हैं शख्स यहाँ ज़माने में,

कहीं तो परख लिए जाते हैं हुनर दिखाए बिना भी यहाँ,

कहीं सारे हुनरो को दिखाकर भी कुछ पाते नहीं हम ज़माने में॥

-राही (अंजाना)

खिड़की

August 31, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

देख कर ही मेरे घर की टूटी हुई खिड़की,

जो फेर लिया मुँह तो अच्छा ही किया तुमने,

छोड़ दिया साथ जब इतनी सी ही बात पर,

अच्छा ही किया मेरा टूटा हुआ मकाँ देखा ही नहीं तुमने॥

राही (अंजाना)

ये कैसी ज़िद

August 31, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

हर एक कश के साथ धुंए में अपनी ज़िन्दगी उड़ाते हैं,
देखो आजकल के मनचले कैसे अपने कदम भटकाते हैं,

पाते हैं कितने ही संस्कार अपने घरों से मगर,

हर सिगरट के साथ वो रोज उनका अंतिम संस्कार कर आते हैं,

जिस दिन हो जाती हैं खत्म उनकी ज़िन्दगी की साँसे,

वही सिगरट की राख वो अपनी चिता में पाते हैं॥

राही (अंजाना)

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