जब बात करो तो बातों से बातें निकलती हैं

May 30, 2018 in शेर-ओ-शायरी

जब बात करो तो बातों से बातें निकलती हैं,
उलझी हुई राहों से सुलझी राहें निकली हैं।।
– राही (अंजाना)

जानते हैं के सभी को बीमारी हो गई है

May 30, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

जानते हैं के सभी को बीमारी हो गई है,

रिश्तों के मध्य खड़ी चार दीवारी हो गई है,

कभी बैठ कर साथ में जो बना लेते थे बातें,

आज उन्हीं दोस्तों के मन में गद्दारी हो गई है,

कभी रचते थे जो किसी प्रेम के किस्से- कहानी,

आज मुश्किल में बहु बेटियों की जवानी हो गई है।।

– राही (अंजाना)

बड़ा अकड़ रहे थे वो चन्द बर्फ के टुकड़े बैठकर

May 30, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

बड़ा अकड़ रहे थे वो चन्द बर्फ के टुकड़े बैठकर,
जो मेरे सनम के हाथ लगते ही पानी पानी हो गये।।
– राही (अंजाना)

सारे प्रयास प्रत्यक्ष है के विफल हो रहे हैं,

May 30, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

सारे प्रयास प्रत्यक्ष है के विफल हो रहे हैं,
सभी अक्षर मुख से निकल अस्त वयस्त हो रहे हैं,
पहुँच ही नहीं रही है आवाज़ उस बालक तक,
जिसके मस्तिष्क में ठहरे प्रश्न चिह्न चल रहे हैं।।
– राही (अंजाना)

चेहरे के हर भाव पढ़ने लगती है,

May 30, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

चेहरे के हर भाव पढ़ने लगती है,
जब कोई लड़की बढ़ने लगती है,

कहती कुछ नहीं मुख से फिरभी,
चुप्पी आँखों में गढ़ने लगती है,

खेल खिलौनों संग खेलने वाली,
रिश्तों के अंदर ही कुढ़ने लगती है,

लेकर अपने स्वप्नों को संग में,
जीवन की सीढ़ी चढ़ने लगती है।।

राही (अंजाना)

ताल्लुक संस्कृति से अपना वो खुल के दिखाती है,

May 27, 2018 in शेर-ओ-शायरी

ताल्लुक संस्कृति से अपना वो खुल के दिखाती है,

बेटी इस घर की जब गुड़िया को भी दुप्पट्टा उढ़ाती है।।

राही (अंजाना)

मुकद्दर तेरा ज़रूर रंग लायेगा

May 26, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

मुकद्दर तेरा ज़रूर रंग लायेगा,
जब कोई जीत कर भी हार,
और तू हार कर भी चर्चा का मुद्दा बन जायेगा॥

चेहरे के हर भाव की जल्द ही कीमत लगने लगेगी

May 26, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

चेहरे के हर भाव की जल्द ही कीमत लगने लगेगी,

खामोशी, हंसी की दुकानों पर प्रदर्षनी लगने लगेगी,

जेब खाली हो जायेगी सिर्फ भावों को सुनकर इनके,

गहरी मगर ये मेरी बात सोंचो तो सच लगने लगेगी,

वयस्त है मस्त हैं सभी अपने ही आप में इस तरह.

के रिश्ते नातों की सबके बीच में छुटटी लगने लगेगी।।

– राही (अंजाना)

तुम अक्सर आकर अपने मन की खुल के मुझसे कह लेती हो

May 26, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम अक्सर आकर अपने मन की खुल के मुझसे कह लेती हो,

धूप लगे जब तुमको मेरी छाया में तुम सो लेती हो,

बहुत अकेला मैं भी सुनके चुप-चाप खड़ा रहा जाता हूँ,

जब मुझको कटता देख के भी तुम चुप्पी साधे रह लेती हो।।

– राही (अंजाना)

नया आसमां

May 24, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

कितने मजबूर होकर यूँ हाथ फैलाते होंगे

May 24, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

कितने मजबूर होकर यूँ हाथ फैलाते होंगे,

भला किस तरह ये बच्चे सर झुकाते होंगे,

उम्मीदों के जुगनू ही बस मंडराते होंगे,

बड़ी मशक्कत से कहीं ये पेट भर पाते होंगे,

तन पर चन्द कपड़े ही बस उतराते होंगे,

शायद सोंच समझ कर ही ये मुस्काते होंगे,

बहुत संग दिल होकर ही वो इतराते होंगे,

हालत देख कर भी जो न प्रेम भाव दिखलाते होंगे।।

राही (अंजाना)

मजबूर बच्चे

May 24, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

कितने मजबूर होकर यूँ हाथ फैलाते होंगे,

भला किस तरह ये बच्चे सर झुकाते होंगे,

उम्मीदों के जुगनू ही बस मंडराते होंगे,

बड़ी मशक्कत से कहीं ये पेट भर पाते होंगे,

तन पर चन्द कपड़े ही बस उतराते होंगे,

शायद सोंच समझ कर ही ये मुस्काते होंगे,

बहुत संग दिल होकर ही वो इतराते होंगे,

हालत देख कर भी जो न प्रेम भाव दिखलाते होंगे।।

राही (अंजाना)

कब तक मै यूँ ख़ामोश रहूँगा

May 24, 2018 in ग़ज़ल

कब तक मै यूँ ख़ामोश रहूँगा,
अब मुझे तू शब्दों में बयां हो जाने दे,

कब तक मै राहों में यूँ भटकता रहूँगा,
अब मुझे तू अपनी मन्ज़िल हो जाने दे,

कब तक मैं यूँ तेरे ख़्वाबों में रहूंगा,
अब तू मुझे अपनी हकीकत हो जाने दे,

कब तक में यूँ तनहा रहूंगा,
अब तू मुझे अपनी महफ़िल हो जाने दे,

कब तक मैं यूँ टूटता पत्थर रहूंगा,
अब तू मुझे अपनी रूह हो जाने दे॥
Raaही

ज़िन्दगी जैसे शतरंज की बिसात हो गई

May 24, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

ज़िन्दगी जैसे शतरंज की बिसात हो गई,
जिसने समझ ली उसकी जीत ना समझा जो उसकी मात हो गई,

ज़िन्दगी जैसे……

बंट गए हैं चौंसठ खानों में हम कुछ इस तरह,
जैसे खाने से हटते ही मोहरे की काट हो गई,
ज़िन्दगी जैसे….

तलाशते हैं खामियां अब लोग कुछ इस तरह,
जैसे किले से निकली और रानी कुरबान हो गई,

ज़िन्दगी जैसे….
राही (अंजाना)

भक्ति तुम बिन वैभव कहीं एक पल को रह न पाये

May 23, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

भक्ति तुम बिन वैभव कहीं एक पल को रह न पाये,

जबसे देखा तुमको मुझको कुछ और नज़र न आये,

कितने दिन से बैठा था मैं कितने राज़ छुपाये,

अब डरता हूँ कहीं आँखों से मेरी ये भेद न खुल जाए,

रोज नहीं मिल पाऊं तो तू ख़्वाबों में मिल जाए,

काश जनम जनम को तू बस मेरी ही बन जाए।।

– राही (अंजाना)

जब भी बादलों से उतर के आती है बारिश

May 23, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

जब भी बादलों से उतर के आती है बारिश,

ज़मी को खुल के गले से लगाती है बारिश,

भिगा देती है तन संग मन के मेरे आँगन को,

जब सब कुछ मुझको खुल के बता देती है बारिश,

दोस्ती है गहरी किससे कितनी पुरानी,

दिखता है हवाओं से जब हाथ मिला लेती है बारिश।।

– राही (अंजाना)

जड़ों को फैलाये मैं हर पल को पकड़ रहा हूँ

May 21, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

जड़ों को फैलाये मैं हर पल को पकड़ रहा हूँ,

देखो किस तरह मैं खुद पर ही अकड़ रहा हूँ,

आया तो था मैं कुछ दूरियाँ मिटाने की खातिर,

मगर आज मैं ही गहरे रिश्तों को जकड़ रहा हूँ।।

– राही (अंजाना)

उस रोज़ से रात भी दिन सी लगने लगी है

May 21, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

उस रोज़ से रात भी दिन सी लगने लगी है,

जिस रोज़ से आकर वो मुझसे मिलने लगी है,

पहले तो सो जाता था मैं तसल्ली की बाहों में,

आज मेरी नींदों को बेचैनी सी जकड़ने लगी हैं,

अब जिसे देखूं उसी चेहरे में वो दिखने लगी है,

जब से मेरे भावों को बखूबी वो पढ़ने लगी है।।

– राही (अंजाना)

सबकी रातों में ख्वाबों की पहरेदारी रहती है

May 20, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

सबकी रातों में ख्वाबों की पहरेदारी रहती है,

पर मेरी आँखों में खाली जिम्मेदारी रहती है,

कहता हर शख्स है खुल कर दिल की अपने,

पर मेरे चेहरे पे ठहरी सी दुनियाँदारी रहती है,

सुना है यहाँ सबको- सबकी पूरी चाल मिलती है,

पर खेल देखो हर बार एक मेरी ही बारी रहती है।।

राही (अंजाना)

डर के साये में

May 20, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

डर के साये में खुद को दबाये बेटियाँ रहती हैं,

बहुत कुछ है जो खुद ही छुपाये बेटियाँ रहती हैं,

अपने को अपनों से पल-पल बचाये बेटियाँ रहती हैं,

होठों को भला किस कदर सिलाए बेटियाँ रहती हैं,

कहीं कन्धे से कन्धा खुल के सटाये बेटियाँ रहती हैं,

कहीँ नज़रों को सहसा क्यों झुकाये बेटियाँ रहती हैं॥

– राही (अंजाना)

संस्कारों के बीज

May 20, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

संस्कारों के बीज यहाँ पर अक्सर बोये जाते हैं,

सम्बंधों के वृक्षों पर नये पुष्प संजोये जाते हैं,

मात-पिता, दादा-दादी और भाई बहन के नातों से,

हर एक क्षण में खुशियों के कई रंग पिरोये जाते हैं,

आन पड़े जब मुश्किल सिर तब रश्ते परखे जाते हैं,

लोग रहें मिल-जुल कर जिस घर परिवार बताये जाते हैं।।

– राही (अंजाना)

मिलने से पहले

May 20, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

मिलने से पहले इतना मत घबराया करो,

हर बात को यूँ मुझसे न बताया करो,

देखना है गर उस खुदा की रहमत तो,

सर ही नहीं दिल को भी तो झुकाया करो,

चुप रहकर ही चेहरे पर सब न दिखाया करो,

कुछ तो हवाओं के साथ उड़ाया करो,

अब इतना भी न हमको सताया करो,

सपनों में सही पर गले से तो लगाया करो।।

– राही (अंजाना)

छू कर नहीं देखोगे तो सपना ही लगेगा

May 20, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

छू कर नहीं देखोगे तो सपना ही लगेगा,
इस मिट्टी सा तुमको कोई अपना नहीं लगेगा।।

– राही (अंजाना)

अर्जियां लाया हूँ

May 20, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

अर्जियां लाया हूँ लिखकर चेहरे पर अपने,
कलम को अपनी ज़रा विश्राम दिया है,
झुकाया नहीं है आँखों को तेरे दर पर आज,
पलकों को अपनी ज़रा आराम दिया है,
छोड़ कर बैठा हूँ आज मन्ज़िल अपनी,
कदमों को अपने ज़रा ठहराव दिया है,
थक चुका हूँ बोलते बोलते कुछ इस तरह कि,
होंटो को खामोशी का अब, ज़रा हथियार दिया है॥
– राही

डिजिटली कैद जिंदगी

May 20, 2018 in शेर-ओ-शायरी

मोबाइल की उपस्थिति में किताबों की अनुपस्थिति लग रही है,

जिंदगी छोटे से गैजेट्स में डिजिटली कैद लग रही है।।

 – राही (अंजाना)

ख़्वाबों से बाहर निकल के देखते हैं

May 13, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

ख़्वाबों से बाहर निकल के देखते हैं,

चलो आज हकीकत से मिल के देखते हैं,

बहुत दिन हुए अब छुपाये खुद को,

चलो आज सबको रूबरू देखते हैं,

बड़ी भीड़ है जहाँ तलक नज़र जाती है,

चलो दूर कोई खाली शहर देखते हैं।।
– राही (अंजाना)

कुछ भी नहीं छुपाता हूँ मैं माँ को सब कुछ बताता हूँ

May 12, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुछ भी नहीं छुपाता हूँ मैं माँ को सब कुछ बताता हूँ,
माँ मुझ पर प्यार लुटाती है मैं सब कुछ भूल जाता हूँ,
मैं भूखा जब हो जाता हूँ माँ मुझको खूब खिलाती है,
पर कभी कभी माँ मेरी चुप के भूखी भी सो जाती है,
मैं दूर कहीँ भी जाता हूँ माँ मुझको पास बुलाती है,
मैं माँ को भूल न पाता हूँ माँ मुझको भूल न पाती है।।
– राही (अंजाना)

जिंदगी तो हर पल जंग सी लगती है

May 11, 2018 in शेर-ओ-शायरी

सवाल जीत का है या हार का न मालूम राही,
मगर जिंदगी तो हर पल जंग सी लगती है।।
– राही (अंजाना)

माँ मेरी

May 8, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

संघर्षों में जीवन की तू परिभाषा कहलाती है,

रंग बिरंगी तितली सी तू इधर उधर मंडराती है,

खुद को पल- पल उलझा कर तू हर मुश्किल सुलझाती है,

खुली हवा में खोल के बाहें तू मन ही मन मुस्काती है,

आँखे बड़ी दिखाकर तू जब खुद बच्ची बन जाती है,

मेरे ख़्वाबों को वहम नहीं तू लक्ष्य सही दिखलाती है।।

जो भी मिले किरदार निभा कर दृष्टि में सबकी आती है,

बस एक माँ ही है जो हर दिल की पूरी दुनियाँ कहलाती है।।

राही (अंजाना)

लाख अपने गिर्द हिफाजत की लकीरें खीचूँ

May 8, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

लाख अपने गिर्द हिफाजत की लकीरें खीचूँ,
एक भी उन में नहीं “माँ ” तेरी दुआओं जैसी,

लाख अपने को छिपाऊँ कितने ही पर्दों में,
एक भी उन में नहीं “माँ” तेरे आँचल जैसा,

लाख महगे बिस्तर पर सो जाऊँ मैं,
एक भी नहीं “माँ” उनमें तेरी गोद जैसा,

लाख देख लूँ आइनों में अक्स अपना,
एक आइना भी नहीं “माँ” तेरी आँखों जैसा,

लाख सर झुका लूँ उस मौला/भगवान के दर पर,
एक दरबार भीं नहीं “माँ” तेरे दर जैसा॥
राही

कितनी दफ़ा उँगलियाँ अपनी जला दी तूने

May 8, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

कितनी दफ़ा उँगलियाँ अपनी जला दी तूने…
‘माँ’ मेरे लिए चंद, रोटियाँ फुलाने में !

कितनी दफ़ा रातें गवां दी,
“माँ” तूने मुझे सुलाने में,

कितनी दफ़ा आँचल भिगा दिया,
“माँ” तूने मुझे चुपाने में,

कितनी दफ़ा छुपा लिया,
“माँ” बुरी नज़र से तूने मुझे बचाने में,

कितनी दफ़ा बचा लिया,
“माँ” गलत राह तूने मुझे जाने में,

कितनी दफ़ा लुटा दिया खुद को,
“माँ” तूने मुझे अमीर बनाने में॥

कितनी दफ़ा..
– राही

जो मन की बंजर धरती में फूल खिलाये तुम

May 8, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

जो मन की बंजर धरती में फूल खिलाये तुम,

टूटी मेरी हिम्मत को जो फिर से जागाये तुम,

बिखरे मेरे मन की चादर जो फिर से लगाये तुम,

उजड़ी हुई बगिया में भी जो सुगन्ध फैलाये तुम,

राहों के राही अनजाने को जो पहचाने तुम,

बेमेल शब्दों को मेरे जो अनमोल बताये तुम,

मेरे जीवन खण्डहर में जो रौशनी का दीप जलाये तुम।।

– राही (अंजाना)

बिसात शतरंज की आज भी लगा लेता हूँ

May 8, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

बिसात शतरंज की आज भी लगा लेता हूँ,

चाल अपने हुनर की आज भी दिखा लेता हूँ,

हाथी और घोड़ों की आज भी पहचान नहीं है मुझे,

तो अपने पैदल भी मैं बड़े मोहरों से भिड़ा देता हूँ,

छोड़ नहीं पाया हूँ एक आदत आज भी पुरानी,

तो दो कश लगा कर तुझे आज भी भुला लेता हूँ।।

राही (अंजाना)

Poetry with Picture

May 7, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

जिम्मेदारी

May 7, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

किसी को जिम्मेदारी की बेडियों ने जकड़ा है,
तो कोई मुक्त है बारिश में भीग जाने को।।।

लपेटकर कलाई में धागा जो रिश्ता बांधती है,

May 7, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

लपेटकर कलाई में धागा जो रिश्ता बांधती है,

जब कोई सुनता नहीं मेरी तो वो कहना मानती है,

सर पर तो रखता हूँ मैं हाथ उसके प्यार से,

मगर एक वो है जो मेरे लिए बस दुआ मांगती है,

बोलकर कह लेता हूँ यूँ तो हर बात मैं सबसे,

पर बहना मेरी खामोशी की भी ज़ुबानी जानती है॥

राही (अंजाना)

माना के ज़हरीली ज़िन्दगी है

May 7, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

माना के ज़हरीली ज़िन्दगी है मगर जिगर पाक रखते हैं,

हम इन्सा नहीं जो दिल में कोई बात रखते हैं,

यूँ तो गले लगाने की फितरत नहीं हमारी,

मगर इरादे जो भी हो हम साफ़ साफ़ रखते हैं॥

राही (अंजाना)

किसी कलमकार की कलम के नखरे हजार देखो

May 7, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

किसी कलमकार की कलम के नखरे हजार देखो,
कहीं बनाती किसी की ज़िन्दगी तो कहीं ये बिगाड़ देखो,

किसी अस्त्र से कम नहीं है वजूद इसका,
चाहे तो गिरा दे किसी के भी तख्तो ताज देखो,

अर्श से मिला दे तो कभी फर्श पर ये उतार फैंके,
कभी हकीकत तो कभी कोरे कागज़ पर दे ख्वाब उतार देखो॥

राही (अंजाना)

यूँ तो हर एक नज़र को किसी का इंतज़ार है

May 7, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

यूँ तो हर एक नज़र को किसी का इंतज़ार है,

किसे दिख जाये मन्ज़िल और कौन भटक जाए, कहना कुछ भी यहाँ दुशवार है,

एक ही नज़र है फिर भीे पड़े हैं पर्दे हजार आँखों पर,

यहाँ अपनों को छोड़ लोगों को दूसरों पर एतबार है,

तरीका ए इल्म भी आजमाने से चूकते नहीं देखो,

यहाँ अपने ही घर में छिपे बैठे कुछ कीड़े बीमार है॥

– राही (अंजाना)

माना के आँसूओ में वजन नहीं होता

May 7, 2018 in शेर-ओ-शायरी

माना के आँसूओ में वजन नहीं होता,
पर एक भी जो छलक जाए तो मन हल्का हो जाता है।।
– राही (अंजाना)

गुरु ज्ञान की पुस्तक

May 7, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

गुरु ज्ञान की पुस्तक हमको सही गलत का पाठ पढ़ाए,
अन्धकार के पर्दे को नज़रों से सहज भाव से खोल दिखाए,
जीवन एक जटिल पहेली जिसमें उलझे तो कोई सुलझ न पाए,
पर गुरु मार्गदर्शक हो जिसका हर मुश्किल राह आसान बनाए।।
– राही (अंजाना)

तुम्हारे जाने से…

May 7, 2018 in शेर-ओ-शायरी

तुम्हारे जाने से ज़िन्दगी उलझ सी गई है,
तुम्हारे साथ में कुछ तो सुलझा सा था।।
राही (अंजाना)

कभी सूनसान गली तो कभी…

May 7, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

कभी सूनसान गली तो कभी खुले मैदान में पकड़ ली जाती है,

तू क्यों कटी पतंग सी हर बार लूट ली जाती है,

वो चील कौवों से नोचते कभी जकड़ लेते हैं तुझे,

तू क्यों होठों को खामोशी के धागे से सी जाती है,

जन्म नहीं सम्भव तुझ बिन तू रिश्ते कई निभाती है,

तेरी पहचान क्यों इश्तेहार में मूक- वधिर बन जाती है।।

– राही (अंजाना)

उलझन

May 6, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम्हारे जाने से ज़िन्दगी उलझ सी गई है,
तुम्हारे साथ में कुछ तो सुलझा सा था।।
राही (अंजाना)

कलम के नखरे

May 6, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

किसी कलमकार की कलम के नखरे हजार देखो,
कहीं बनाती किसी की ज़िन्दगी तो कहीं ये बिगाड़ देखो,

किसी अस्त्र से कम नहीं है वजूद इसका,
चाहे तो गिरा दे किसी के भी तख्तो ताज देखो,

अर्श से मिला दे तो कभी फर्श पर ये उतार फैंके,
कभी हकीकत तो कभी कोरे कागज़ पर दे ख्वाब उतार देखो॥

राही (अंजाना)

खामोशियाँ

May 6, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

खामोशियाँ यूँही तो खामोश नहीं होती,
कोई वजह तलाशो क्यों इनमें आवाज नहीं होती।।
राही (अंजाना)

ज़िन्दगी

May 6, 2018 in शेर-ओ-शायरी

यूँ तो हल्की सी है ज़िन्दगी,
वजन तो बस ख्वाइशों का है।।
राही (अंजाना)

अन्धेरा

May 6, 2018 in शेर-ओ-शायरी

अँधेरे और रौशनी का कोई मलाल नहीं रखता,
मैं ‘राही’ अपने दिल में कोई सवाल नहीं रखता।।
राही (अंजाना)

संघर्षों में जीवन की तू परिभाषा कहलाती है

May 5, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

संघर्षों में जीवन की तू परिभाषा कहलाती है,

रंग बिरंगी तितली सी तू इधर उधर मंडराती है,

खुद को पल- पल उलझा कर तू हर मुश्किल सुलझाती है,

खुली हवा में खोल के बाहें तू मन ही मन मुस्काती है,

आँखे बड़ी दिखाकर तू जब खुद बच्ची बन जाती है,

मेरे ख़्वाबों को वहम नहीं तू लक्ष्य सही दिखलाती है।।

राही (अंजाना)

कुछ न कुछ टूटने का सिलसिला आज भी ज़ारी है

May 4, 2018 in ग़ज़ल

कुछ न कुछ टूटने का सिलसिला आज भी ज़ारी है
इस दुनिया का डर प्यार पे आज भी भारी है।।

टूटकर बिखरना, बिखरकर समिटना आज भी जारी है,
पर पड़ जाए ना दरार इस बात का डर आज भी भारी है।

झुकना गिरना हवाओं के झोंकों से आज भी जारी है,
टूट कर ना उखड़ जाऊं इस बात का डर आज भी भारी है,

कहना, सुनना, लड़ना, झगड़ना उनसे आज भी जारी है,
खामोश ना हो जाए वो कहीं इस बात का डर आज भी भारी है॥

बहुत कुछ कर गुजरने की कश्मकश आज भी जारी है,
पर ये वक्त का पहिया मेरी हर कश्मकश पर भारी है,

उड़ कर आकाश छू लेने की मेरी कोशिश आज भी जारी है,
पर लोगों की टांग खींच कर गिराने की कला आज भी भारी है॥

राही

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