मुखौटा

February 3, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

बड़े सलीके से मुखौटे के पीछे वो अपना चेहरा छुपा लेता है,
अपनों की हंसी की खातिर वो अपना दर्द भुला लेता है,

कितना मुश्किल है किरदार उस गरीब का यारों,
जो गरीबी की एक चादर में अपना जीवन गुजार लेता है,

यूँही होती नहीं पहचान उस जिस्म के अक्स की हमसे,
जिस चेहरे से मुखौटे वो अपना आईना उतार लेता है।।

राही (अंजाना)

परिस्थिति

February 2, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

परिस्थियों के एक जाले में बचपन बुना दिखता है,
लकड़ी के फट्टे जैसा ये जीवन घुना दिखता है,

लेखनी पकड़ने वाले हाथों का किस्सा ऐसा,
मानो हर क्षण खुशियों का ईंटों से चुना दिखता है।।

राही (अंजाना)

हाथों की लकीरें

January 30, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

हाथों की लकीरें बनाकर भूल बैठा है,
शायद खुदा मुझसे रूठ के बैठा है,

कहानी में मेरा किरदार ‘गरीब’ लिखकर,
वो मिट्टी से मेरा जीवन जोड़ बैठा है॥
राही (अंजाना)

बात कह रहे हैं

January 28, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

छोटे हैं मगर ये बड़ी बात कह रहे हैं,
दो रोटी को तरसते ये हालात कह रहे हैं,

छोड़ने को तैयार नहीं एक दूजे को अकेला,
हाथों में डाले ये हाथ कह रहे हैं,

ये लम्हा बड़ी मशक्कत से कमाया है राही,
चेहरे ये जिद्दी सब साफ़-साफ़ कह रहे हैं॥
राही (अंजाना)

छोड़ कर एक घर को

January 24, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

छोड़ कर एक घर को मैं एक घर चला आता हूँ,
जाने कैसे इस सफर को मैं रोज़ दोहराता हूँ,
उलझनों में जिंदगी के कितने तर्क सुलझाता हूँ,
जाने कैसे इस जंग को मैं रोज लड़ पाता हूँ,
रस्म के बन्धन के ताले खोलने की चाह में,
जाने कैसे इस गुनाह में मैं रोज़ फंस जाता हूँ।।
~ राही (अंजाना)

गणतन्त्र

January 24, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

1857 में अंग्रेजों से लड़ कर एक जीती जंग निराली थी,
जिसमे शामिल भगत राज गुरु झांसी वाली रानी थी,
देश को स्वतंत्र कराने की जैसे सबने मन में ठानी थी,
फिर गणतंत्र राज में लहराने को तिरंगा लिखी गई कहानी थी ,
संविधान में शामिल कर अधिकारों की रक्खी गई नीव सयानी थी,
गणतन्त्र राज लोकतन्त्र ग्रन्थ की गुत्थी जब सुलझानी थी,
सबसे बड़े लिखित संविधान की रचना में अम्बेडकर को कलम चलानी थी,
खुले आसमाँ में हम सबको जब लम्बी सांस दिलानी थी,
तब धर्मनिरपेक्ष गणतन्त्र बनाकर हमने 26 जनवरी मनानी थी।।

बात करूँगा दिल से दिल को छू कर

January 24, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

बात करूँगा दिल से, दिल को,
छू कर जाने वालों की,
आजादी की जंग में शामिल दिलवाले दीवानों की,
आजाद,भगत सिंह, राज गुरु और झांसी वाली रानी की,
बात करूँगा दिल से, दिल को,
छू कर जाने वालों की,
स्वतंत्र राज, गणतन्त्र मन्त्र की माला जपने वालों की,
लोकतन्त्र के हित में जमकर मन्थन करने वालों की,
बात करूँगा दिल से, दिल को,
छू कर जाने वालों की,
2 वर्ष 11 माह दिन 18 में
संविधान की रचना करने वाले की,
संसद् पर अपनी शान तिरंगा, प्रथम फहराने वालों की,
मूल बीज मौलिक अधिकारों का बोध कराने वालों की,
बात करूँगा दिल से, दिल को,
छू कर जाने वालों की,
ये बेला है शहीदी के रंग से माँ का चोला रँगने वालों की,
गणतंत्र दिवस की मशाल समय पर हाथों में उठाने वालों की,
बात करूँगा दिल से, दिल को,
छू कर जाने वालो की।।

~ राही (अंजाना)

ठेस लगती है

January 20, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

जरूरत पे ली गई क़िस्त की कीमत, जान देकर जब किसी को चुकानी पड़े,

बह रहे यूँही जल को बचाने की खातिर किसी को, नल पर भी जब ताले लगाने पड़े,

प्यास पानी की हो जब बुझानी किसी को, तो चन्द बूंदों के पैसे चुकाने पड़े,

ठेस लगती है मन के उजालों को तब, जब रात अँधेरे में किसीको बितानी पड़े,

बिखर जाते हैं ख्वाब टूट कर धरती पर जब किसीको, फिर से घोंसले जब बनाने पड़े,

आँखें हो जाती हैं नम यकीनन सुनो जब किसी को, बात दिल की ज़ुबाँ से बतानी पड़े॥

राही (अंजाना)

अभी बाकी है

January 20, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

दिल है धड़कन है अभी तो जान है बाकी,
जन्दगी के सफर में कई इम्तेहान हैं बाकी,

जो प्रश्न हैं पूछे बड़े ज़ालिम ज़माने ने,
निरउत्तर कर दिखाने का अभी अभिमान है बाकी,

डुबाने को जो बैठे है तुम्हें पल पल समन्दर में,
किनारे तैर कर छू जाने का अभी ईनाम है बाकी॥

राही (अंजाना)

कैसा रस्ता

January 15, 2018 in शेर-ओ-शायरी

ये कैसा तसव्वुर, कैसा रब्त, कैसा वक्त है,
जो कभी होता भी नहीं, कभी गुजरता भी नहीं,
ये कैसा रंग, कैसा वर्ण, कैसा रोगन है,
जो कभी चढ़ता भी नहीं, कभी उतरता भी नहीं,
ये कैसा सफर, कैसा रस्ता, कैसा मन्ज़र है,
जो कभी मिलता भी नही, कभी सुलझता भी नहीं।।
राही (अंजाना)

इश्तेहार सी ज़िंदगी

January 11, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

इश्तेहार सी हो गयी है ज़िंदगी मेरी
जैसी दिखती है, होती नहीं कभी,

सभी के हाथों में सुबह सवेरे पहुंच जाती है,
मगर नज़रों में किसी के होती नहीं कभी,

हर रोज पढ़े जाते है पन्ने इसके इस जहाँ में,
मगर सुलह किसी से होती नहीं कभी॥
राही (अंजाना)

साया

January 8, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

तेरा साया मेरे साये में कुछ ऐसे समा जायेगा,
के तेरे चेहरे में मेरा चेहरा कोई ढूंढ नहीं पायेगा,
जिस तरह रहती है हवा दरमियाँ हर किसी के,
हमारा वजूद भी हर किसी के चेहरे से बयाँ हो जायेगा॥
राही (अंजाना)

आंसू

January 7, 2018 in हिन्दी-उर्दू कविता

रहता है कहाँ है कहाँ घर तेरा,

नाम आंसु से परिचय हुआ क्यों तेरा,

ख़ुशी-ग़म का आँखों से रिश्ता तेरा,

हर इंसा से नाता जुड़ा क्यों तेरा,

समझ के रंग सा न किसी अंग सा,

यूँ रूप पानी के जैसा बना क्यों तेरा॥
राही (अंजाना)

डूबना तय है

December 31, 2017 in शेर-ओ-शायरी

डूबना तय है हर किसी का जिस समन्दर में,
काश उसी समन्दर के ऊपर तैर जाऊँ मैं।।
राही (अंजाना) शकुन सक्सेना

कोई मिट्टी बता रहा है

December 31, 2017 in शेर-ओ-शायरी

कोई मिट्टी बता रहा है कोई मुक्ति बता रहा है,
जीवन की इस उलझन को वो छुप के सुलझा रहा है॥

राही (अंजाना)

नव वर्ष आने को है

December 21, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

नव वर्ष आने को है,
कुछ भुलाने को है कुछ याद दिलाने को है,
सच कहूँ तो बहुत कुछ सिखाने को है,
छुप गई थीं जो बादल के पीछे कहीँ,
उन उम्मीदों से पर्दा हटाने को है,
नया वर्ष आने को है,
सपनों की हकीकत बताने को है,
नए रिश्तों के चेहरा दिखाने को है,
टूट गई थी कभी जो राहें कहीँ,
उन राहों पर पगडण्डी बनाने को है,
नव वर्ष आने को है,
उड़ने को काफी नहीं पंख देखो,
हौंसलो के घने पंख फैलाने को है,
बीती बातों का आँगन भुलाने को है,
फिर नई आशा मन में जगाने को है,
नव वर्ष आने को है।।
राही (अंजाना)

इलज़ाम

April 30, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

उसने बेबुनियाद इल्जामों की मुझपर फहरिस्त लगा दी,

जीवन कटघरे को मानों जैसे हथकड़ी लगा दी,

छटपटाते रहे मेरे जवाब किसी मछली से तड़पकर,

और सवालों की उसने मानों कीलें सी चुभा दी,

बेगुनाह था मगर फिर भी खामोशी साधे रहा,

मग़र उसने तो सारे लहजों की धज्जियाँ उड़ा दी॥
राही (अंजाना)

सरेआम रक्खे हैं।

April 17, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

बड़े इत्मिनान से मेरे जहन में कुछ सवाल रक्खे थे,

हो जाने को ज़माने से रूबरू मेरे खयाल रक्खे थे,

बड़ी बेचैनी से एक नज़र जब पड़ी उनकी हम पर,

खुद को यूँ लुटा बैठे जैसे के बिकने को हम खुलेआम रक्खे थे,

दर्द बहुत थे छिपे मेरी पलकों के पीछे पर नज़र में किसी के नहीं थे,

एक ज़रा सी आहट क्या हुई यारों निकल आये सारेआम आँसू जो तमाम रक्खे थे॥
राही (अंजाना)

बैठी है

April 13, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

देखकर जिसको जुड़ जाते हैं हाँथ अक्सर,
आज वही फैला कर दोनों हाँथ बैठी है,
झुकाकर निकलते हैं हम जिसके आगे सर अपना,
आज वही सरेबाजार सर झुकाकर बैठी है,
टूटने नहीं देती है जो कभी नींद हमारी,
आज भूल कर सभी ख्वाब वो नींद उड़ा कर बैठी है,
बचाकर हर नज़र से जो हमे छिपाती रही उम्र भर,
आज सफ़र ऐ सहर से वही नज़र मिलाकर बैठी है॥
राही (अंजाना)

जवाब माँगता है

April 12, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

जो करता रहा इंतज़ार पल पल,
आज हर पल का वो हिसाब माँगता है,
दिल के रिश्तों की कीमत और प्यार का खिताब माँगता हैं,
कितना बदल गया है वो,
हर बात पर अब ईनाम माँगता है,
तरसता था मिलने को हर दिन कभी, आज वही हर दिन वो इतवार माँगता है,
बिन कुछ कहे चलता रहा साथ जो, वो आज दो कदम पर विश्राम माँगता है,
पूछा ना सवाल कोई जिसने एक क्षण भी कभी,
वो आज छोटी छोटी बात पर जवाब माँगता है॥
#राही#

मेरी आँखों में

April 10, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

जाने कब से हैं मेरी आँखों में,
ये ख्वाब किसके हैं मेरी आँखों में।
मैं तो सूखा हुआ सा दरिया था,
ये मौज किसकी है मेरी बाहों में।।
मैं तो सोया था तन्हा रातों में,
ये पाँव किसके हैं मेरे हाथों में।
यूँ तो रहता था सूने आँगन में,
ये बोल किसके हैं मेरे आँगन में।।
सूखा बादल था मैं तो राहों का,
ये बून्द किसकी है मेरी राहों में,
चुप ही रहते थे शब्द नज़्मों में,
ये होंठ किसके हैं मेरी ग़ज़लों में॥
राही (अंजाना)

बखूबी

April 9, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

बहुत ही बखूबी से तुमने मुझे नज़रन्दाज़ किया,
जानते हुए भी मुझको क्यूँ अनजान किया,
जब खामोश मोहब्बत ही हमारी जुबान थी,
तो क्यों रिश्तों को अपने यूँ अज़ान किया॥
To be cont..
राही (अंजाना)

माँ

April 9, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

ममता के आइने मे प्यारी सी सूरत है माँ,
सूरज की धूप मे छाया का आँचल है माँ,
दुखों के समन्दर में सुख का किनारा है माँ,
दुनियॉ की भीड़ में सकून का ठिकना है माँ,
अँधेरी कोठरी में रौशनी का उजाला है माँ,
प्रेम और स्नेह में प्रकर्ति की गोद है माँ।
बेमोल अलंकारों में अनमोल नगीना है माँ,
निराकार भगवान की साकार प्रतिमा है माँ॥
राही#

छुपा लूँ क्या

April 8, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

तेरी आँखों के बिस्तर पर अपने प्यार की चादर बिछा दूँ क्या?
तेरे ख़्वाबों के तकिये के सिरहाने मैं सर टिका लूँ क्या?
कर दूँ मैं मेरे दिल के जज़्बात तेरे नाम सारे,
दे इजाज़त के तेरी आँखों से मेरी आँखें मिला लूँ क्या?
अच्छा लगता है मुझे तेरी पलकों का आँचल,
तू कहे तो खुद को इस आँचल में छुपा लूँ क्या?
राही (अंजाना)

कुछ कह नहीं सकता

April 2, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

मिल जायेगी ताबीर मेरे ख्वाबों की एक दिन,
या ख्वाब बिखर जायें कुछ कह नहीं सकता।

बह जाउं समंदर में तिनके की तरहं या फ़िर,
मिल जाये मुझे साहिल कुछ कह नहीं सकता।

इस पार तो रौशन है ये मेरी राह कहकशा सी,
मेरे उस पार अंधेरा हो कुछ कह नहीं सकता।

गुमनाम है ठिकाना और गुमनाम मेरी मंजिल,
किस दर पे ठहर जाउं, कुछ कह नहीं सकता।

एक बेनाम मुसाफिर हूँ और बेनाम सफर मेरा,
किस राह निकल जाउं, कुछ कह नहीं सकता।
कर दी है दिन रात एक रौशन होने की ख़ातिर,
पर किस कोठरी का अँधेरा मिटाऊँ कुछ कह नहीं सकता।
बन कर बहता रहा हूँ फ़िज़ाओं में हवाओं की तरह,
पर किसे कब छू जाऊं कुछ कह नहीं सकता।
करता हूँ फरियाद मन्दिर, मस्ज़िद गुरुद्वारे में सर झुकाकर,
किस दर पर हो जाए सुनवाई कुछ कह नहीं सकता।
राही (अंजाना)

राही बेनाम

March 28, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

न ये ज़ुबाँ किसी की गुलाम है न मेरी कलम को कोई गुमान है,

छुपी रही बहुत अरसे तक पहचान मेरी,
आज हवाओं पर नज़र आते मेरे निशान है,

जहाँ खो गईं हैं मेरे ख़्वाबों की कश्तियाँ सारी,
वहीं अंधेरों में जगमगाता आज भी एक जुगनू इमाम है,

कुछ न करके भी जहाँ लोगों के नाम हैं इसी ज़माने में,
वहीं बनाकर भी राह कई ये राही बेनाम है॥
राही (अंजाना)

पापा

March 28, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

माँ के लिया बहुत सुना पढ़ा लिखा है सभी ने। कुछ पंक्तियाँ पापा के नाम।

छुटपन से हर रोज पापा मेरे मुझे टहलाने ले जाते रहे,

ऊँगली पकड़ कर मेरी मुझे वो रास्ता दिखाते रहे,

मैं करके शैतानी उनको बहुत सताता रहा,

वो भुलाकर शरारत मेरी मुझे गोद में उठाते रहे,

मैं करके सौ इशारे उनकी राह भटकाता रहा,

वो हर बढ़ते कदम पर मुझे सही बात बताते रहे,

इस सोंच में के मैं उनका सहारा बनूगा,

वो मुझको हर दिन नया पाठ पढ़ाते रहे॥

राही (अंजाना)

बिखरा हूँ

March 23, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

टूट कर ही जुड़ा हूँ यूँही नहीं बना हूँ मैं,
गिरा हूँ सौ बार फिर सौ बार उठा हूँ,
यूँही नहीं सीधा खड़ा हूँ मैं,
बिखरा हूँ कभी सूखे पत्तों की तरह,
तो काटों सा किसी को चुभा हूँ मैं,
लहर नदिया संग बहा हूँ फिर भी प्यासा रहा हूँ मैं,
डर कर सहमा सा छुपा था कहीं,
आज की भीड़ में भी डटा हूँ मैं॥
राही (अंजाना)

कैद आजादी

March 21, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

कैद अपने ही घरों में हमारी आजादी रही थी,
सूनी परिचय के बिन जैसे कोई कहानी रही थी,
आसमाँ खाली रहा हो परिंदों की मौजूदगी के बगैर,
कुछ इसी तरह मेरे भारत की जवानी रही थी,
हिला कर रख देने में फिर वजूद ब्रिटिश सरकार के पीछे,
तब भगत सिंह और राज गुरु संग कई क्रांतिकारियों की कुर्बानी रही थी॥
राही (अंजाना)

शहीद हुए मतवाले

March 18, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

। भगत सिंह और राजगुरु के संघर्षों बलिदानों की,
ये धरती है वीर बहादुर चौड़ी छाती वालों की,
ब्रिटिश राज को धूमिल कर मिट्टी में मिलाने वालों की,
माँ के आँचल को छोड़ तिरंगे की शान में मिटने वालों की,
ये कविता नहीं कहानी है उन माँ के प्यारे लालों की,
खोकर अपनी हस्ती को भी अमर हुए जवानों की,
झुककर नमन करने फिर आँखों में अश्रु आने की,
लो फिर से आई है बेला याद करें हम,
देश की खातिर लड़ते लड़ते जो शहीद हुए उन मतवालों की॥
राही (अंजाना)

चील कौवो सा नोचता ये संसार

March 18, 2017 in Poetry on Picture Contest

चील और कौवो सा नोचता रहता संसार है,
ये कैसा चोरों का फैला व्यापार है,
दहेज के नाम पर बिक रही हैं नारियाँ कैसे,
ये कैसा नारियों को गिरा कर झुका देने वाला हथियार है,
न चाह कर भी बिक जाती है जहाँ अपनी ही हस्ती,
ये मोल भाव का जबरन फैला कैसा बाज़ार है॥
राही (अंजाना)

माँ के लाल

March 16, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

भगत सिंह, शिव राज गुरु, सुखदेव सभी बलिदान हुए,
इस धरती माँ की खातिर कितने ही अमर नाम हुए,
ब्रिटिश राज की साख मिटाने को एक जुट मिटटी के लाल हुए,
कभी सीने पर गोली खाकर कभी फांसी पर लटक काल के गाल हुए,
इंकलाब के नारों से भगवा रंग मिलकर लाल हुए,
तिरंगे को लहराने की चाहत में शहीद माँ के लाल हुए॥
राही (अंजाना)

रंग गुलाल

March 8, 2017 in Poetry on Picture Contest

रंग गुलाल के बादल छाये
रंगो में सब लोग नहाये
देवर भाभी जीजा साली
करें ठिठोली खेलें होली

बोले होली है भई होली
खायें गुजिया और मिठाई
घुटे भांग और पिये ठंडाई
गले मिलें जैसे सब भाई

भांति भांति के रंग लुभावन
प्रेम का रंग सबसे मन भावन
प्रेम के रंग में सब रंग जाएँ
जीवन को खुशहाल बनाएँ

खेलें सभी प्रेम से होली
बोलें सभी स्नेह की बोली
मिलें गले बन के हमजोली
ऐसी है अनुपम ये होली

होली की टोली

March 7, 2017 in Poetry on Picture Contest

होली पे मस्तों की देखो टोली चली,
रँगने को एक दूजे की चोली चली,
भुलाकर गमों के भँवर को भी देखो,
आज गले से लगाने को दुनीयाँ चली,
हरे लाल पिले गुलाबी और नीले,
अबीर रंग खुशयों के उड़ाने चली,
भरकर पिचकारी गुब्बारे पानी के,
तन मन को सबके भिगाने ज़माने के,
हर गली घर से देखो ये दुनियां चली॥
राही (अंजाना)

जो भी दिल में है छिपा बयां कीजे

March 3, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

जो भी दिल में है छुपा मुझको तो दिखा दीजे,
जो ज़ुबा तक न आ सके तो आँखों से जता दीजे,

प्यार है हमसे तो खुल कर के ही बयां कीजे,
न हो कोई बात तो इशारे में ही ये खता कीजे,

यूँ तो ख़्वाबों में बनाई हैं बातें कितनी,
न हो मंज़ूर तो गुज़ारिश है के भुला दीजे,

रखके सीने से लगाई हैं यादे तेरी,
अब सरेआम न इनको यूँ हवा दीजे,

जो भी दिल में है छुपा मुझको तो दिखा दीजे॥
राही (अंजाना)

बारिश का इंतज़ार

March 1, 2017 in Poetry on Picture Contest

लगाकर टकटकी मैं किसी के इंतज़ार बैठा हूँ,
भिगा देगी जो मुझ किसान की धरती मैं उसी के एहतराम में बैठा हूँ,
बेसर्ब बंज़र सी पड़ी है मेरे खेतों की मिट्टी,
मैं आँखों में हरियाले ख़्वाबों के मन्ज़र तमाम लिए बैठा हूँ॥
राही (अंजाना)

ख़्वाबों की बंज़र ज़मी

February 27, 2017 in Poetry on Picture Contest

देख लूँ एक बार इन आँखों से बारिश को,
तो फिर इन आँखों से कोई काम नहीं लेना है,
बंजर पडे मेरे ख़्वाबों की बस्ती भीग जाए एक बार,
तो फिर इस बस्ती के सूखे हुए ख़्वाबों को कोई नाम नहीं देना है,
चटकता सा खटकता है ये दामन माँ मेरी धरती,
सम्भल कर के बहल जाए फसल जो रूप खिल जाए,
तो फिर धरती के आँगन से कोई ईनाम नही लेना है॥
राही (अंजाना)

बचपन गरीब

February 20, 2017 in Poetry on Picture Contest

यूँ तो हर रोज गुजर जाते हैं कितने ही लोग करीब से,
पर नज़र ही नहीँ मिलाते कोई इस बचपन गरीब से,
रखते हैं ढककर वो जो पुतले भी अपनी दुकानों में,
वो देखकर भी नहीं उढ़ाते एक कतरन भी किसी गरीब पे,
बचाते तो अक्सर दिख जाते हैं दो पैसे फकीर से,
पर लगाते नहीं मुँह को दो रोटी भी किसी बच्चे गरीब के॥
राही (अंजाना)

गरीबी का बिस्तर

February 20, 2017 in Poetry on Picture Contest

गरीबी है कोई तो बिस्तर तलाश करो,
रास्तों पर बचपन है कोई घर तलाश करो,
कचरे में गुजर रही है ज़िन्दगी हमारी,
कोई तो दो रोटी का ज़रिया तलाश करो,
यूँ तो बहुत हैं इस ज़मी पर बाशिन्दे,
मगर इस भीड़ में कोई अपनों का चेहरा तलाश करो,
खड़े हैं पुतले भी ढ़के पूरे बदन को दुकानों में,
जो ढ़क दे हमारे नंगे तन को वो कतरन तलाश करो॥
राही (अंजाना)

गरीबी में जलते बदन

February 20, 2017 in Poetry on Picture Contest

दे कर मिट्टी के खिलौने मेरे हाथ में मुझे बहकाओ न तुम,

मैं शतरंज का खिलाड़ी हूँ सुनो, मुझे सांप सीढ़ी में उलझाओ न तुम,

जानता हूँ बड़ा मुश्किल है यहाँ तेरे शहर में अपने पैर जमाना,

मगर मैं भी ज़िद्दी “राही” हूँ मुझे न भटकाओ तुम,

बेशक होंगे मजबूरियों पर टिके संबंधों के घर तुम्हारे,
मगर मजबूत है रिश्तों पर पकड़ मेरी इसे छुड़ाओ न तुम,

माना पत्थर दिल हैं लोग बड़े इस ज़माने में तोड़ना मुश्किल है,

मगर महज मोम हूँ मैं तो पिघल ही जाऊंगा, मुझे इस बेरहमी से जलाओ न तुम॥

राही (अनजाना)

आयत की तरह

February 19, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

किसी आयत की तरह रात दिन गुनगुनाता रहा हूँ तुझे,
सबकी नज़रो से बचाकर अपनी पलकों में छिपाता रहा हूँ तुझे,
मेरे हर सवाल का जबाब तू ही है मगर,
फिर भी एक उलझे सवाल सा सुलझाता रहा हूँ तुझे,
यूँ तो बसी है तू मेरी दिल की बस्ती में,
मगर फिर भी दर बदर तलाशता रहा हूँ तुझे॥
राही (अंजाना)

बाहर निकल आया

February 19, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

गुजरता रहा उसकी आँखों से हर रात किसी भरम सा मैं,
फिर एक रोज़ खुद ब खुद उसके ख्वाबों से बाहर निकल आया मैं,
छुप कर बैठा रहा मैं एक झूठ की आड़ में बरसों,
फिर एक रोज किसी सच्ची ज़ुबान सा बाहर निकल आया मैं,
ईमारत ए नीव सा दबा बैठा रहा वजूद मेरा,
फिर एक रोज़ किसी मस्ज़िद की अज़ान सा बाहर निकल आया मैं॥
राही (अंजाना)

चाय का बहाना

February 16, 2017 in Poetry on Picture Contest

आओ बैठो संग मेरे एक एक कप चाय हो जाए,
फिर से बीते लम्हों की चर्चा खुले आम हो जाए,
कह दूँ मैं भी अपने दिल की, कहदो तुम भी अपने दिल की,
और फिर तेरे मेरे दिल का रिश्ता सरेआम हो जाए,
वैसे तो हर रात होती रहती है ख़्वाबों में मुलाक़ात तुझसे,
चल आज चाय की चुस्की के बहाने नज़ारा कुछ ख़ास हो जाए॥
राही (अंजाना)

छोड़ कर जा

February 15, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

बेशक छोड़ दे मगर खुद से मुझे कुछ इस तरह जोड़ कर जा,

के भले आसमाँ न रहे मेरे हाथों की पहुंच में मगर अपने आँचल की ज़मी मेरे पैरों में छोड़ कर जा,

सूखा है सदियों से मेरी आँखों में एक दरिया बेसबर,

डूब न सही मेरी आँखों में मगर बेखबर थोड़ी सी नमी छोड़ कर जा,

यूँ तो खामोश ही हूँ मगर पुतला ही न बन जाऊं कहीं मैं,

सो गुजारिश है तुझसे मुझे तोड़ कर जाने वाले,

के मिट जाए हस्ती भी मेरी तो क्या तू रस्म ए रूह को मेरी खुद में छोड़ कर जा॥

राही (अंजाना)

चुस्की चाय की

February 15, 2017 in Poetry on Picture Contest

वही चाय के दो कप और एक प्लेट लौटा दे,
कोई तो तेरे साथ बीते पलों को वापस लौटा दे,
एक चाय के कप का बना कर झूठा बहाना,
वो तेरा रोज रोज मेरे घर चले आना लौटा दे,
तेरे साथ बैठ कर वो नज़रें मिलाना,
वो चाय की चुस्की वो वक्त पुराना लौटा दे॥
राही (अंजाना)

चाय की प्याली

February 15, 2017 in Poetry on Picture Contest

तेरे साथ बिताई मस्ती और चाय की वो चुस्की याद आई है,
लो आज फिर से बीते लम्हों की एक बात याद आई है,
तेरे साथ बैठ कर जो बनाई थी बातें,
उन बातों से फिर से दो कपों के टकराने की आवाज आई है,
छोड़ दी थी चाय की प्याली कभी की हमने,
मगर आज फिर से तेरे साथ चाय पीने की इच्छा बाहर आई है॥
राही (अंजाना)

तस्वीर तेरी

February 9, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

अपनी पलकों के बिस्तर पर मैं तुझको हर रोज सुलाता हूँ,

तू जग न जाए कहीं इस डर से पलकों को ज़रा धीरे झपकाता हूँ,

तेरे संग ही मैं अपने सभी ख़्वाबों को सजाता हूँ,

तू भूल न जाए मुझे इस डर से मैं हकीकत से नज़रें चुराता हूँ,

यूँ तो मेरे दिल में ही घर है तेरी हस्ती का मगर,

फिर भी आए दिन कागज़ पर तेरी नई तस्वीर बनाता हूँ।।
राही (अंजाना)

मिट्टी से जुड़े सैनिक

February 8, 2017 in Poetry on Picture Contest

आंधी और तूफानों में भी डटे रहते हैं,
हम वो हैं जो हर मौसम में खड़े रहते हैं,
उखड़ते हैं तो उखड़ जायें पेड़ और पौधे जड़ों से,
हम तो वो हैं जो देश की ज़मी से जुड़े रहते हैं,
आजाद दिख जाते हैं उड़ते परिंदे कभी,
तो कभी बिगड़े हालात नज़र आते हैं,
पर हम तो वो हैं जो हर हाल में तिरंगे की शान बने रहते हैं,
धुंधली नज़र आती है जहाँ से सरहद के उस पार की धरती,
उसी हिन्दुस्तान की मिटटी से हम हर पल जुड़े रहते हैं॥
राही (अंजाना)

फौलादी फौजी

February 7, 2017 in Poetry on Picture Contest

हाथ में हथियार और दिल को फौलाद किये बैठे हैं,
सरहद के हर चप्पे पर हम बाज की नज़र लिये बैठे हैं,
जहाँ सो जाता है चाँद भी चैन से हर रात में,
वहीं खुली आँखों में अमन का हम सपना लिए बैठे हैं,
ठण्ड से सिकुड़कर सिमट जाते हैं हौंसले जहाँ,
वहीं बर्फीली चादर में भी उबलता जिगर लिए बैठे हैं,
डर कर अँधेरी गलियों से भी नहीं गुजरते जहाँ कुछ लोग,
वहीं हम सैनिक हर लम्हा दुश्मनों के बीच फंसे बैठे हैं॥
राही (अंजाना)

सैनिक कहलाते हैं हम

February 6, 2017 in Poetry on Picture Contest

माँ की गोद छोड़, माँ के लिये ही वो लड़ते हैं,
हर पल हर लम्हां वो चिरागों से कहीं जलते हैं,
भेजकर पैगाम वो हवाओं के ज़रिये सपनों में अपनी माँ से मिलते हैं,
हो हाल गम्भीर जब कभी कहीं वो,
चुप रहकर ही खामोशी से सरहद के हर पल को बयाँ करते हैं,
लड़कर तिरंगे की शान की खातिर,
वो तिरंगे में ही लिपट कर अपना जिस्म छोड़ते हैं,
जो करते हैं बलिदान सरहद पर,
वो सैनिक सैनिक सैनिक कहलाते हैं हम॥

राही (अंजाना)

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