हमारी रूह पर क़ब्ज़ा जमाने आ गई फिर से।

September 12, 2019 in ग़ज़ल

हमारी रूह पर क़ब्ज़ा जमाने आ गई फिर से।
ये लड़की प्यार में पागल बनाने आ गई फिर से।।
,
हमारे कब्र का रसता किसी से पूँछकर शायद।
वो पागल नींद से हमको जगाने आ गई फिर से।।
,
सुलाने को तो आई थी वो दुनियाँ साथ में लेकर।
मगर अब बात क्या है जो उठाने आ गई फिर से।।
,
सहारा हिज्र ने देकर हमें चलना सिखाया था।
मुहब्बत वस्ल के किस्से सुनाने आ गई फिर से।।
,
दफ़ा कोई करो उसको कहो ख़ुद सामने आये।
ग़ज़ल का हुश्न ले कर के मनाने आ गई फिर से।।
,
तुम्हारी रूह से साहिल उसे पीछा छुड़ाना है ।
तभी वो रूह को ज़िन्दा जलाने आ गई फिर से।।
#रमेश

उसी का शहर था उसी की अदालत।

June 23, 2017 in ग़ज़ल

उसी का शहर था उसी की अदालत।
वो ही था मुंसिफ उसी की वक़ालत।।
,
फिर होना था वो ही होता है अक्सर।
हमी को सजाएं हमी से ख़िलाफ़त।।
,
ये कैसा सहर है क्यू उजाला नहीं है।
अब अंधेरों से कैसे करेंगें हिफ़ाजत।।
,
चिरागों का जलना आसान नहीं था।
हवाओं ने रखा है उनको सलामत।।
,
तुमको फिक्र है न हमकों है फुरसत।
न है कोई मसला न कोई शिकायत।।
,
साहिल भँवर में है जिंदा अभी तक।
ये उसका करम है उसी की इनायत।।

#रमेश

इश्क़ करना बहुत आसान निभाना है बहुत मुश्किल।

June 13, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

इश्क़ करना बहुत आसान निभाना है बहुत मुश्किल।

किसी ने पा लिया सब कुछ किसी को है नही मंजिल।।

सफ़र में हम रहे तन्हा मिली तन्हाइयां हमको।

नहीं अफ़सोस इसका है हुए जो हम नहीं कामिल।।

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जिसकों कहतें थे हम हमसफ़र अपना।

June 11, 2017 in ग़ज़ल

जिसकों कहतें थे हम हमसफ़र अपना।

वो तो था ही नही कभी रहगुज़र अपना।।

,

तुमको मुबारक हो भीड़ इस दुनिया की।

हम काट लेंगे तन्हा ही ये सफर अपना।।

,

भूल गए हो यक़ीनन तुम अपने वादे सारे।

पर उदास रहता है वो गवाह शज़र अपना।।

,

न कोई मुन्तज़िर है न है कोई आहट तेरी।

फिर भी सजाता है कोई क्यू घर अपना।।

,

ऐ बादल बरसों ऐसे भीगों डालो सबकुछ।

की साहिल जलता बहुत है ये शहर अपना।

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जीने की ख्वाहिश न मरने का गम है!

May 21, 2017 in ग़ज़ल

जीने की ख्वाहिश न मरने का गम है!

है अधूरी कहानी जख्म ही जख्म है !!

.

न तुमने कहा कुछ न हमने कहा कुछ!

बढी फिर भी दूरी ये वहम ही वहम है‌‌‍!!

.

कहीं तिरगी है और कहीं तन्हा राते !

कहीं पर है महफिल जश्न ही जश्न है!!

.

न वक़्त तुमको मिला न हमको मिला!

जो दिल मे थी बातें दफ्न की दफ्न है!!

.

सदिया है गुजरी ना है आहट ही कोइ!

ना साहिल को ही कोई ‌रंज ओ गम है!!

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घर मेरा तुम्हें हवादार नहीं लगता।

May 21, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

घर मेरा तुम्हें हवादार नहीं

लगता।

मैने हकीकत कही तुम्हें असरदार

नहीं लगता।।

,

कि कशती कहीं डूब न जाए सफर

में मेरी।

तुम दुआ करो तूफान मेरा तरफदार

नहीं लगता।।

,

शक्ल से कहा हो पाएगा तुम्हें कुछ

अंदाजा।

मुसकुराता रहा हूँ जख्म है,पर बिमार

नहीं लगता।।

,

और ढूँढना पड़ता है जिंदगी में इक

इक लमहा।

सच है कि खुशियों का कहीं बाजार

नहीं लगता।।

,

वैसे तो खबरों की कोई कमी नहीं है

इनमें।

मगर क्या कहे साहिल ये अखबार

नहीं लगता।।

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बहुत परेशान करती है तन्हा रातें हमकों।

April 15, 2017 in ग़ज़ल

बहुत परेशान करती है तन्हा रातें हमकों।
मुसल्सल याद आती है मुलाकातें हमको।।
,
ऐसे क्यूँ ख़फ़ा हो गए बिना सबब के तुम।
क़ोई वजह थी जहन में तो बताते हमकों।।
,
ख़ुद मुज़रिम होके हमें गुनाहगार कह दिया।
अपनी बेगुनाही के सबूत तो दिखाते हमको।।
,
अश्कों की वज़ह बनते है ख़त मेरे अक्सर।
कहतें हो तो फ़िर क्यूँ नहीं जलातें हमकों।।
,
कहना आसान है ओ वादे भी तमाम होते है।
पर क़ोई रिश्ता कहा था तो निभाते हमकों।।
,
जिसे भूलना हो वो याद क्या रखता आखिर।
लेकिन कहता है तारीखें याद दिलाते हमकों।।
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“जिंदगी भर ये क्या इन्तेज़ाम किया हमनें”

April 9, 2017 in ग़ज़ल

जिंदगी भर ये क्या इन्तेज़ाम किया हमनें।
इक उम्र तो बस यूँ ही तमाम किया हमनें।।
,
पता नहीं किस ख़्वाहिश में दर ब दर हुए।
न सुकून ही मिला न आराम किया हमनें।।
,
लिखें कई अधूरे अफ़साने क्यूँ मैंने खुद से।
पढ़ के सोचतें है ये कोई काम किया हमनें।।
,
मिलने आती है मंजिलें ख़ुद हमसे अक्सर।
उन्हें पता है रास्ते को मकाम किया हमने।।
,
ये क्या फिर वही साहिल फिर वही संमदर।
चलों चले रोज़ की तरह शाम किया हमनें।।
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“खुद पे कुछ इस तरह से वार किया मैंने”

April 7, 2017 in ग़ज़ल

खुद पे कुछ इस तरह से वार किया मैंने।
तेरा न आना तय था इंतज़ार किया मैंने।।
,
जब थी फूलों सी फ़ितरत तो तोड़ा सबने।
अब तोहमतें है खुद को ख़ार किया मैंने।।
,
मौसम मेरे मुताबिक़ कहाँ होने वाला था।
नाहक ही हवाओं पे इख़्तियार किया मैंने।।
,
मुश्किले आती हैं दरिया की राह में अक्सर।
जब मुझकों बहना था सब पार किया मैंने।।
,
वहम था की हम नहीं कहतें हाल ए दिल।
जबकि लिख के सब अख़बार किया मैंने।।
,
जिसनें किया था बारहा नज़र अंदाज़ मुझे।
उसी का इल्ज़ाम उसे दरकिनार किया मैंने।।
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जो लिखा ही नहीं वो ख़्यालो में है।

April 6, 2017 in ग़ज़ल

जो लिखा ही नहीं वो ख़्यालो में है।
जिंदगी का मज़ा अब सवालों में है।।
,
जो जाता है उसको चले जानें दो।
देख लेंगे हम ग़म के जो प्यालों में है।।
,
तस्वीरों को तेरी मैं अब रखता नहीं।
बस तेरा चेहरा अंधेरे उजालों में है।।
,
आँखों में मेरी है मंजिल ही मंजिल।
फिर दर्द थोड़े न पैरो के छालों में है।।
,
मौसमो की तरह था जो बदलता रहा।
चर्चा उसी की वफ़ा के मिसालों में है।।
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“ख्वाब है जिंदगी,जिंदगी ख्वाब है”

April 5, 2017 in ग़ज़ल

ख़्वाब है जिंदगी,जिंदगी ख्वाब है।
चेहरे देखा है उसका अलग आब है।।
,
जिसको कहतें रहे उम्र भर हम दवा।
उसको सारा जहाँ कहता शराब है।।
,
खुद ही बदलें नहीं बस ये कहतें रहें।
वक़्त है ये बुरा जमाना भी खराब है।।
,
हो ख़्वाहिश वो मिलें फिर न पूँछिये।
ग़र न मिलें फिर जिंदगी अज़ाब है।।
,
हमनें जैसा किया हमकों वैसा मिला।
क़ोई देखता है हमकों सब हिसाब है।।
,
हमकों ऐसे भुला दोंगे मालूम न था।
जैसे इंसान नही साहिल किताब है।।
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“याद आती है वो जग़ह”

April 4, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

याद आती है वो जग़ह,
जब कभी पक्की सड़कों पे चलते चलते,
थक जाता हूँ मैं और मन होता है,
की इस शोर से दूर जाकर किसी पेड़,
की छाह में बैठ जाऊँ और मिलूँ खुद से,
इक अरसा हुआ खुद से पूछा ही नहीं मैंने,
मुझे कहाँ जाना था और कहाँ हूँ मैं,
याद आती है वो जगह जब ऐसे सवाल
उभरते है जहन में,
,
याद आती है वो जगह जब चाहता हूँ देखना
ओस की बुँदे जो फसलों को सजाती सवारती थी।
सूरज की किरणों से मिलकर बेरंग होने के बावजूद
सातों रंग का एहसास कराती थी,
जैसे सजा हो रंगो का मेला कही पर।
और मैं खड़ा हूँ उनके बीच में ,
पर अचानक जैसे ख्वाब से जगाती है कोई आवाज़
और नजर जाती है मेरी इक गमले में लगे,
छोटे से फ़ूल के पौधे पर,
जो मुझे आकर्षित करना चाह रहा था।
अपनी ओर की अकेला होने के बावजूद
वो भी है और मैं भी हूँ जैसे कहना चाह रहा था,
परिस्थितियों को स्वीकार करों।
परिस्तिथियों को स्वीकार करों।।
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“दिन भर अखबार लिए फिरता है”

April 4, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

दिन भर अखबार लिए फिरता है इक बच्चा
उसकी सुबह कब होती होगी,
उसकी शाम कब होती होगी,
शायद उसके लिए दोपहर न होती होगी,
क्योंकि एक अजब सी चमक थी,
उसकी आँखों में इतनी तपिश के बावजूद
जैसे कोई ख़्वाब हो जो उसे लगातार चला रहा था
कभी यहाँ कभी वहाँ।
कभी यहाँ कभी वहाँ।।
,
वही स्कूल से लौटते हुए बच्चे भी देखे मैंने,
चेहरे पे थकान भरी मुस्कराहट
घर पहुँचने की जल्दी भूख प्यास,
दूसरी तरफ़ उसी उम्र में चेहरे पे गंभीरता,
और कंधों पर ज़िम्मेदारी का एहसाह,
दिलाता वो बच्चा,
न जाने मुझसे कितना कुछ कह गया,
फिर मैं मंजिल की ओर चलने लगा,
जब कभी भी थकता हूँ तो याद आता है,
वो चेहरा जैसे सफर में बढ़ने को कह रहा हो,
और मैं चलता रहता हूँ चलता रहता हूँ।।
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“इक तारा आज फिर से टूटा बिखर गया”

April 4, 2017 in ग़ज़ल

इक तारा आज फिर से टूटा बिखर गया।
आसमान ने ये देखा वो फिर सिहर गया।।
,
किसकी है ये खता की वो छोड़ आया घर।
या खुद की ही वजह से वो यूँ बिखर गया।।
,
जब मंजिल ही नहीं फिर क्या थी जुस्तजू।
किसकी तलब में राही था लाखों शहर गया।।
,
लो माना की आदमी को मुश्किल है मंजिले।
पर जिसनें खाई ठोकरें आखिर निखर गया।।
,
तेरे शहर में हूँ मैं बस इतना सा ही है कसूर।
हम थे काफिले में ये काफिला जिधर गया।।
,
मुसल्सल वक़्त की घड़ी है चलती जा रही।
साहिल को खुद पता नही वो क्यूँ ठहर गया।।
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साहिल पे मैं आता हूँ अक़्सर,

April 3, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

साहिल पे मैं आता हूँ अक़्सर,
पता नहीं किस चाहत में ,
किसकी जुस्तजू में,
बस सुकून मिलता है।
,
समंदर की लहरें कभी शांत रहती है,
कभी कभी कुछ सवाल करती है,
जैसे मेरे आने का सबब जानना चाहती हो,
और मैं हमेशा की तरह खामोश,
उनको सुनता रहता हूँ सुनता रहता हूँ।
,
टहलते हुए हवाएँ भी जब छू कर गुजरती है,
अचानक से कई ख्याल आते है,
और चले जाते है उनके साथ
जैसे बहते हुए उड़ते है,
और मैं देख भी नहीं पता हूँ
बस महसूस करता हूँ।
इक तन्हाई इक ख़लिश।
इक तन्हाई इक खलिश।।
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इस क़ैद ए तन्हाई से कब रिहा होंगें हम।

April 3, 2017 in ग़ज़ल

इस क़ैद ए तन्हाई से कब रिहा होंगें हम।
सोचा तो था की मुकम्मल जहां होंगे हम।।
,
रोज़ आते है ख़्याल हमकों परेशान करने।
अब जितना कहेंगे उतने ही रवां होंगे हम।।
,
तुम फ़लक ए हुस्न हो हमसे क्या है वास्ता।
हुए जो जिंदगी से रूबरू क्या फ़ना होंगे हम।
,
खुशियों की फ़ेहरिस्त में नहीं कही नाम मेरा।
अब ग़मो से क्या कहें कोई सज़ा होंगे हम।।
,
हमकों मिली नहीं मंजिल इक अरसा हुआ।
साहिल मुमकिन ये है गुमनाम पता होंगे हम।।
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“ऐ फ़लक ऐ हवा वो नजारा क्या हुआ”

April 2, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

ऐ फ़लक ऐ हवा वो नजारा क्या हुआ।
हर शाम जो दिखा था वो सितारा क्या हुआ।।
,
हमसें निभाया न गया क़िरदार जिंदगी का।
जब छोड़ दी है दुनिया फिर तमाशा क्या हुआ।।
,
झूठी थी सारी कसमें फिर भी यक़ीन किया।
हमनें किया था ये क्यूँ अब इज़ाफ़ा क्या हुआ।।
,
ख़त में नहीं था कुछ भी तुमको भी था पता।
जो साथ गया था उसके वो लिफ़ाफ़ा क्या हुआ।।
,
साहिल से कह जो देते वो रह जाता भँवर में।
इरादतन डुबोके वैसे तुम्हारा मुनाफ़ा क्या हुआ।।
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“इक जमानें मे सच है शज़र हुआ था मैं”

March 31, 2017 in ग़ज़ल

इक जमानें मे सच है शज़र हुआ था मैं।
जानें कितने परिंदों का घर हुआ था मैं।।
,
अपनी छाह में बच्चों को खेलता देखके।
जरूर ही जमाने से बेखबर हुआ था मैं।।
,
मेरे सायें में बीती थी हाँ वैसे तो इक सदी।
याद है की अख़बार में खबर हुआ था मैं।।
,
पर राह ए जिंदगी में इक मोड़ ऐसा देखा।
सबने छोड़ा जब शाख़ ए बेसमर हुआ था मैं।
,
आखिरी वक़्त जब चली थी मुझपे आरिया।
ख़ून नहीं था मुझमे पर तरबतर हुआ था मैं।।
@@@@RK@@@@

माना तेरे काफ़िलो में शामिल नहीं हुए।

March 31, 2017 in ग़ज़ल

माना तेरे काफ़िलो में शामिल नहीं हुए।
पर ऐसा न था की हम मंजिल नहीं हुए।।
,
इक उम्र गुजरी यूँ ही ख्वाबो ख्यालों में।
कुछ देख न पाएं कुछ हासिल नहीं हुए।।
,
जिंदगी ने दी है जिंदगी तो शुक्रिया करो।
क्या करें अफ़सोस हम क़ामिल नहीं हुए।।
,
चंद लफ़्जो में कैसे लिखें अधूरी दास्तान।
यूँ कहें हम कश्ती थे जो साहिल नहीं हुए।।
,
जानते थे जीत के भी हार हम ही जाएंगे।
इसलिए उनके कभी मुक़ाबिल नहीं हुए।।
@@@@RK@@@@

“कब तक करोंगे यूँ बेईमानी खुद से”

March 26, 2017 in ग़ज़ल

कब तक करोंगे यूँ बेईमानी खुद से।
मुझे छोड़कर करोगे,नादानी खुद से।।
,
हमारी दास्तानों को फरेब कहने वाले।
लिख नहीं पाओगें ये,कहानी खुद से।
,
तन्हाई में मिलें है लोग जो समन्दर किनारे।
उनका अश्क़ है,या है यहाँ पानी खुद से।।
,
हमने बसर की जिंदगी ग़मो के दरम्यान।
हमें दुश्मनो से नहीं, है परेशानी खुद से।।
,
किताबो में हम तुमको नहीं मिलने वाले।
याद करना हो तो कर लो ज़ुबानी खुद से।।
,
बचपन ऐसे गुजरा की जैसे लम्हा हो कोई।
ये उम्र ठहरी तो हैरान है जिन्दगानी खुद से।।
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न”वो वक़्त रहा न याद है क़िस्सा कोई”

March 25, 2017 in ग़ज़ल

न वो वक़्त रहा न याद है क़िस्सा कोई।
मेरे हिस्से में ही नहीं है मेरा हिस्सा कोई।।
,
ये किया है ख़िज़ाँओ ने जहाँ घर अपना।
गुजरे जमानों में था यही गुलिस्ताँ कोई।।
,
उनसे कौन पूंछे की क्या मिला खफा होके।
अपनों को छोड़ता है क्या दानिस्ता कोई।।
,
छोड़ दिया मेहफिलो में मैंने आना जाना।
कही मिल न जाएँ शख़्स मुझे तुझसा कोई।।
,
ख्वाहिशों की ख़ातिर हम परेशां रहे ताउम्र।
पर जाते वक़्त साथ कहाँ गया खित्ता कोई।।
@@@@RK@@@@

हम तेरे वादों की जब गहराई में उतरे।

March 19, 2017 in ग़ज़ल

हम तेरे वादों की जब गहराई में उतरे।
सदमा सा लगा जब सच्चाई में उतरे।।
,
तुमको ढूंढते रहें थे महफिल महफिल।
पर सुकून मिला जब तन्हाई में उतरे।।
,
जिसनें चाहा जैसा वैसा बनाया खुद को।
कुछ ने बुरा किया कुछ अच्छाई में उतरे।।
,
हमे जो तजुर्बा हुआ वही लिखतें रहें है।
जो फुरसत दे जिंदगी तो रानाई में उतरे।।
,
अज़ीब है वो ही कहतें है बेवफा हमकों।
जिसने वफ़ा की ही नहीं,बेवफ़ाई में उतरे।
,
ज़िन्दगी तेरी तपिश में हम तो राख हो गए।
अब तो छाह कर जो बचे है परछाई में उतरे।।
@@@@RK@@@@

इक अरसे से कोई ख्वाब नहीं देखा हमने।

March 18, 2017 in ग़ज़ल

इक अरसे से कोई ख्वाब नहीं देखा हमने।
जब से तुम गए आफ़ताब नहीं देखा हमने।।
,
लफ्ज़ दर लफ्ज़ हम क्या क्या नहीं हुए थे।
पर खुद का लिखा किताब नहीं देखा हमने।।
,
हमारी मौत के बाद सजती रहती है महफिले।
मगर जीते जी कभी ख़िताब नहीं देखा हमनें।।
,
अब जिंदगी से नहीं है शिकवे शिकायत कोई।
बस अधूरे सवाल थे जवाब नहीं देखा हमनें।।
,
जिसकों जैसा देखना चाहा वैसा देखा ताउम्र।
साहिल कभी खुद को खराब नहीं देखा हमनें।।
@@@@RK@@@@

कुछ न कुछ दिल में चलता रहता है।

March 14, 2017 in ग़ज़ल

कुछ न कुछ दिल में चलता रहता है।
इक ख़्वाब अनदेखा पलता रहता है।।
,
क़िस्मत कहें की मुक़द्दर कहें उसको।
जो नाम सुबह शाम खलता रहता है।।
,
वक़्त गुजरा है कुछ इस तरह से जैसे।
मोम सी जिंदगी से मोम गलता रहता है।।
,
अब धुंआ धुंआ ही बचा हूँ आकर देखों।
वैसे मिटटी में राख़ कहाँ जलता रहता है।।
,
हमने जो कह दिया उस पर ही कायम है।
हम मौसम नहीं की जो बदलता रहता है।।
,
अपनों अश्क़ो पर गुमान करते हो ठीक है।
पर दरिया ए अश्क़ यहाँ भी निकलता रहता है।
,
उसके यहाँ न शाम हुई न वो मिलने आया।
यहाँ रोज सूरज निकलके ढ़लता रहता है।।
,
साहिल जिसकी जुस्तजू में जिंदगी गुजार दी।
वो बस हमको छोड़के सबसे मिलता रहता है।।
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दफ़न भी हुआ तो ज़िन्दा रहूँगा।

March 12, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

दफ़न भी हुआ तो ज़िन्दा रहूँगा।
कोई तो होगा जो पढेगा हमको।।
@@@@RK@@@@

जो भी तुम कहते हो वही होगा।

March 12, 2017 in ग़ज़ल

जो भी तुम कहते हो वही होगा।
ऐसा सोचते हो तो नही होगा।।
,
हमसें क्यूँ पूँछते हो पते ठिकाने।
मैं आसमाँ नहीं पता ज़मी होगा।।
,
किसकी राहों में अब पलकें बिछाएं।
हम समंदर है मिलेगा जो नदी होगा।।
,
ग़म जख़्म अश्क़ भरी दास्ताँने छोडो।
कौन अपना था जो अजनबी होगा।।
,
काफ़िलो में तेरे हम नहीं मिलने वाले।
हम तन्हा रहेंगे तो गुजर नहीं होगा।।
,
हमारी फ़ितरत में नहीं है मौसम होना।
जो आज तक यहाँ था कल कही होगा।।
@@@@RK@@@@

लफ्ज़ो के साथ ज़बरदस्ती नहीं करते।

March 12, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

लफ्ज़ो के साथ ज़बरदस्ती नहीं करते।
शायर कभी आबादी में बस्ती नहीं करते।।

करते है शायरी तो जिन्दा है हम

March 11, 2017 in हिन्दी-उर्दू कविता

करते है शायरी तो जिन्दा है हम।
वरना तो गुज़रे इक अरसा हो जाता।।

खुद पर तरस आ रहा है।

March 8, 2017 in शेर-ओ-शायरी

खुद पर तरस आ रहा है साहिल हमे।
अभी तो बाकि है जिंदगी और भी।।

चला जाऊँगा एक दिन मैं।।

March 8, 2017 in गीत

चला जाऊँगा एक दिन मैं तेरी मेहफिल से उठ करके।
हमारा काम ही क्या है क्या होगा अब यहाँ रुकके।।
मेरी यादो को आँखों में कभी आने न तुम देना।
जमाना जान जाएगा कभी रोना नहीं छुप के।।

सदियाँ बीती है पर मसला नहीं बदला।

March 8, 2017 in शेर-ओ-शायरी

सदियाँ बीती है पर मसला नहीं बदला।
उसूलों की बात थी मैंने फैसला नहीं बदला।।

रात अँधेरा ख़ामोशी तन्हाई,अश्क़ मिला

March 7, 2017 in ग़ज़ल

रात अँधेरा ख़ामोशी तन्हाई,अश्क़ मिला।
यादें वक़्त पल तस्वीरें बातें,अश्क़ मिला।
,
जिंदगी झूठ क्या वादें क्या क़समे इरादें।
मौत सच तन्हाई सच आँखें,अश्क़ मिला।
,
मिलना वादियां झरने ये पहाड़ ओ मौसम
वीरानी निशानी नादानी क्या अश्क़ मिला।।
,
जमी आसमाँ चाँद देखें हजारो तारे सितारें।
टूटे हुए ख़्वाब अधूरी सी बात,अश्क़ मिला।।
,
मासूम सी शक्ले फ़रेबी इरादें तज़ुर्बा हुआ है।
ख़ुद को किया है जो तेरे हवाले,अश्क़ मिला।।
@@@@RK@@@@

दर्द चोट आसूँ जख़्म अब मरहम चाहिए।

March 5, 2017 in ग़ज़ल

दर्द चोट आसूँ जख़्म अब मरहम चाहिए।
सफ़र में क्या कहें हमको हमदम चाहिए।।

मेरी मुस्कुराहट पर हैरत क्यूँ करते हो तुम।
बोल दो आँखों का मंजर नम नम चाहिए।।
,
अब तक जिन्दा हूँ सुनो मौत भी फरेबी है।
जिंदगी नादान को आवाज़ छमछम चाहिए।।
,
वफ़ा करो मगर वफ़ा की उम्मीद न रखना।
रखो अग़र ख़ुशी की जगह ग़म ग़म चाहिए।।
,
जब दिल में दर्द हो बातों से फिरआँसू आएं।
सच में कहूँ तो ऐसा मौसम कम कम चाहिए।।
,
कही रात है ख़ामोशी है तन्हाई है अँधेरा है।
कही मेहफिल सजी है रौशनी चमचम चाहिए।।
@@@@RK@@@@

देखना है की हिस्सों में कैसे बँट पाउँगा मैं। इक बूढ़ा शज़र हूँ लगता है कट जाऊंगा मैं।। ‘

March 5, 2017 in ग़ज़ल

देखना है की हिस्सों में कैसे बँट पाउँगा मैं।
इक बूढ़ा शज़र हूँ लगता है कट जाऊंगा मैं।।

मुझे सहारा देने में दिक्कतें तो है बच्चों को।
ख़ामोश ही रहूँगा की जब थक जाऊंगा मैं।।
,
सोचा नहीं था की मुझपे भी होगी पत्थर बाजी।
जब इक फल जैसा शाख पे पक जाऊंगा मैं।।
,
ज़मी ज़ायदाद तकसीम हुए तजुर्बे कौन रखेगा।
वक़्त है पूँछो अफसोस होगा जब मर जाऊंगा मैं।।
,
रूह भी मेरी माँगेगी तुम्हारी सलामती की दुआएँ।
रोना नहीं जब मौत की रस्सी से बन्ध जाऊंगा मैं।।
@@@@RK@@@@

दवा भी तुम दुआ भी तुम। हवा भी तुम फ़िजा भी तुम।।

March 5, 2017 in ग़ज़ल

दवा भी तुम दुआ भी तुम।
हवा भी तुम फ़िजा भी तुम।।
,
घटा भी तुम अदा भी तुम।
वफ़ा भी तुम सज़ा भी तुम।।
,
हँसी भी तुम ख़ुशी भी तुम।
कभी आँख में नमी भी तुम।।
,
नदी भी तुम ज़मी भी तुम।
कही भी तुम नहीं भी तुम।।
,
सफ़र भी तुम लहर भी तुम।
भँवर भी तुम शहर भी तुम।।
,
नज़र भी तुम असर भी तुम।
घड़ी भी तुम पहर भी तुम।।
,
सही भी तुम ग़लत भी तुम।
जमी भी तुम फलक भी तुम।।
,
अज़ीब सा ख़्याल हो,
हो करीब भी अलग भी तुम।।
@@@@RK@@@@

अधूरी सी जिंदगी का अधूरा फ़साना हूँ मैं।

December 31, 2016 in ग़ज़ल

अधूरी सी जिंदगी का अधूरा फ़साना हूँ मैं।
नई सी दुनिया में शख़्स कोई पुराना हूँ मैं।।
,
चल रही है सरहदों पे जंग न जाने कब से।
पता नहीं की किस गोली का निशाना हूँ मैं।।
,
मैंने भी देखी थी कई सदियां जिन्दा रहते।
आज क़ब्र में सोया इक शहर वीराना हूँ मैं।।
,
हमकों याद करके कभी गमज़दा न होना।
इस मिटटी में दफ़्न हुआ तो खजाना हूँ मैं।।
,
मुझको मेरी क़ीमत ख़ुद भी मालूम नहीं है।
वो इस्तेमाल करके छोड़ा गया पैमाना हूँ मैं।।
,
हमकों यूँ अलग किया जायेगा मालूम न था।
जैसे नए घरों में पड़ा बर्तन कोई पुराना हूँ मैं।।
,
अब तो मदद करती है आँधियाँ भी आ कर।
कभी जुड़ ही नहीं पाया वो आशियाना हूँ मैं।।
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कहाँ था क्या था और क्या हो गया हूँ मैं

December 25, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

कहाँ था क्या था और क्या हो गया हूँ मैं।
इस भीड़ में न जाने कहा खो गया हूँ मैं।।
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अब मुझको आवाज़ क्यूँ देती है जिंदगी।
जब मौत के आगोश में ही सो गया हूँ मैं।।
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मैं ये नहीं कहता की तुम भला नहीं करते।

December 25, 2016 in ग़ज़ल

मैं ये नहीं कहता की तुम भला नहीं करते।
पर बेबसों को रौंदकर अच्छा नहीं करते।।

मदद कर दिया करो कभी बेबसों की भी।
खुद के लिए तो हम क्या क्या नहीं करते।।

सच्चे दोस्त जिंदगी में होना बहुत जरुरी हैं।
हमारी गलतियों पे वो वाह वाह नहीं करते।।
,
मौसम मिज़ाजी को फ़िक्र है मौसमो की भी।
हम बहते हुए दरिया कभी सूखा नहीं करते।।
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आग के खेल का सुने ले असर क्या होता है।
घरौंदे जल जाते है परिंदे लौटा नहीं करते ।।
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देखना है की हिस्सों में कैसे बँट पाउँगा मैं।

December 25, 2016 in ग़ज़ल

देखना है की हिस्सों में कैसे बँट पाउँगा मैं।
इक बूढ़ा शज़र हूँ लगता है कट जाऊंगा मैं।।

मुझे सहारा देने में दिक्कतें तो है बच्चों को।
ख़ामोश ही रहूँगा की जब थक जाऊंगा मैं।।
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सोचा नहीं था की मुझपे भी होगी पत्थर बाजी।
जब इक फल जैसा शाख पे पक जाऊंगा मैं।।
,
ज़मी ज़ायदाद तकसीम हुए तजुर्बे कौन रखेगा।
वक़्त है पूँछो अफसोस होगा जब मर जाऊंगा मैं।।
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रूह भी मेरी माँगेगी तुम्हारी सलामती की दुआएँ।
रोना नहीं जब मौत की रस्सी से बन्ध जाऊंगा मैं।।
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कुछ इस तरह से भी मर जाता हूँ मैं।

December 24, 2016 in ग़ज़ल

कुछ इस तरह से भी मर जाता हूँ मैं।
जब सच होके झूठ से डर जाता हूँ मैं।।
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उम्र भर की दस्ताने जब याद आती है।
आसुंओं सा आँखों में भर जाता हूँ मैं।।
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तरक्की शोहरत और दौलत की चाह में।
अपनों को छोड़कर ये किधर जाता हूँ मैं।।
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दिनभर की मेहफिलो का अंदाज़ अलग है।
शबे तन्हाई में टुटके न बिखर जाता हूँ मैं।।
,
हमको नहीं है वैसे कोई आवाज़ देने वाला।
पर जब भी तुम दिखते हो ठहर जाता हूँ मैं।।
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सच है हम भी माँगते है दुआएँ जिंदगी की।
पर इसके पहलुओं को देख सिहर जाता हूँ मैं।
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अँधेरो से कभी हमको डर नहीं लगता।

December 23, 2016 in शेर-ओ-शायरी

अँधेरो से कभी हमको डर नहीं लगता।
पर तेरे बग़ैर ये घर भी घर नहीं लगता।।
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माना की तेरे अपनों से बेहतर नहीं हूँ मैं। मुझे कभी छूकर के देखो पत्थर नहीं हूँ मैं

December 23, 2016 in शेर-ओ-शायरी

माना की तेरे अपनों से बेहतर नहीं हूँ मैं।
मुझे कभी छूकर के देखो पत्थर नहीं हूँ मैं।।
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” जिसने बुजुर्गों की नसीहते नहीं सुनी”

December 23, 2016 in शेर-ओ-शायरी

जिसनें बुजुर्गों की नसीहते नहीं सुनी।
उसनें जिंदगी की हक़ीक़ते नहीं सुनी।।
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चलो अब तुमने कहा है तो मान लेते है

December 20, 2016 in ग़ज़ल

चलो अब तुमने कहा है तो मान लेते है।
पर ये बताओ अपने कहा जान लेते है।।

यू खौफ न दिखाओ हमें मुश्किलो का।
हम वो करते है कि जो हम ठान लेते है।।

मेरी समझ पर तेरा हैरत होना जायज है।
हम वो है जो बेवजह तेरा नाम लेते है।।

इस तनहाई की दवा बनाई है तेरी यादो से।
अब वही हम सुबह दोपहर शाम लेते है।।

साहिल मुफलिसी से बस जदोजहद करो।
ये दुनिया है जहाँ हर बात पे लोग दाम लेते है।।
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जिंदगी जिंदगी जिंदगी जिंदगी।

December 20, 2016 in गीत

जिंदगी जिंदगी जिंदगी जिंदगी।
बेबसी बेबसी बेबसी बेबसी।।
,
ख्वाहिशे ख्वाहिशें ख्वाहिशे ख्वाहिशे।
कुछ नहीं कुछ नहीं कुछ नहीं कुछ नहीं।।
,
काफिले काफिले काफिले काफिले।
हम नहीं हम नहीं हम नहीं हम नहीं।।
,
मंजिलो से फासले मंजिलोे से फासले।
गम नहीं गम नहीं गम नहीं गम नहीं।।
,
ख्वाब ही ख्वाब है ख्वाब ही ख्वाब है।
हर जगह हर पहर हर घडी हर घडी।।
,
रातो में काँपना काँपना जागना जागना।
थी भूख भी ठंड भी मुफलिसी मुफलिसी।।
,
क्या तुम्हे सोचना सोचना सोचना सोचना।
अजनबी अजनबी हम तो थे अजनबी।।
,
क्यों बारिशें बारिशें बारिशें हर जगह।
तुमको पानी लगा अश्को की है नदी।।
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थक गई है कलम थक गई है कलम।
सिलसिला है लफ्ज का आखिरी आखिरी।।
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हमकों भी हक़ है जिन्दा रहने का।

December 20, 2016 in शेर-ओ-शायरी

हमकों भी हक़ है जिन्दा रहने का।
यूँ देखते क्यूँ हो हमको तुम।।

तुमने कहा की मै नहीं कहता हाल ए दिल।

December 20, 2016 in शेर-ओ-शायरी

तुमने कहा की मै नहीं कहता हाल ए दिल।
जबकि इक जमाने से अख़बार हूँ मैं।।
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इक ज़माना था जब डरता था मैं।

December 19, 2016 in ग़ज़ल

इक ज़माना था जब डरता था मैं।
जब तेरी गलियों से गुजरता था मैं।।
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तुम बेख़बर थे तुमको क्या मालूम।
की कैसे ही पल भर में मरता था मैं।।
,
हालात बदल गए है मानता हूँ मैं भी।
पर बेवज़ह उन राहों पे ठहरता था मैं।।
,
ख़ुद की नाकामियों का सिला किसे दूँ।
यकीं किया तुझपे ये क्या करता था मैं।।
,
तुम्हारी आँखों में साफ़ था मंजर सारा।
इक सच होकर भी झूठ से डरता था मैं।।
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साथ रहने से दवाओं की तासीर नहीं बदलती

December 14, 2016 in शेर-ओ-शायरी

साथ रहने से दवाओं की तासीर नहीं बदलती।
असर तो होता ही है सबका अपना अपना।।
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तेरे बिना जिंदगी बस इतनी सी है।

December 14, 2016 in शेर-ओ-शायरी

तेरे बिना जिंदगी बस इतनी सी है।
बग़ैर रूह के इक ज़िस्म हो जैसे।।
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