
Neha
शीत ऋतु
February 9, 2024 in हिन्दी-उर्दू कविता
शीत ऋतु की घटा धरा पर
धुंध गगन पर छाई है
ओस की नम बूंदे पत्तों पर
प्रेम का सार लाई है
झाँके भास्कर जब पृथ्वी पर
अमृत सी बन वो आई है
बर्फ की चादर पड़े शैल पर
मन में उल्लास छाई है
कोयला डले जब अंगीठी पर
गरमाहट सी फिर आई है
रात्रि लंबी हों भोर दूर पर
चिड़ियों की आवाज आई है
बच्चों के शीतावकाश पर
नानी घर खुशियाँ छाई हैं
मौज मस्ती का मौसम भू पर
पहाड़ों में रौनक आई है
वर्षा की ठंडी ठंडी बूँद पर
सुख राज़ साथ ले आई है
खुली जो रहती रजाई घर पर
अंदर छिपाये हमको आई है
शीत लहर जब चले गगन पर
चुभन शूल सी लाई है
आगमन शरद ऋतु का है पर
जोश तो फिर भी लाई है।।
वर्णों से सुशोभित आखर
September 14, 2023 in हिन्दी-उर्दू कविता
ज़रा ध्यान से देखो हिंदी हमारी
भारतीयता की गौरव की कहानी
स्वयं माथे बिंदिया चुनरिया ओढ़कर
भारतीय सभ्यता संस्कृति दर्शाती
दिन प्रितिदिन की बोलचाल में
मुहावरे,लोकोक्ति भी शान से बोले
वेद, पुराण, रामायण ,महाभारत
हिंदी भावार्थ से सबको समझ आती
आधे अधूरे का साथ न छोड़े
मिलाकर अपने में पूर्ण बनादे
अ से अनार से शुरुआत कराकर
ज्ञानी बनाकर व्याकरण सिखलाती
वर्णों से सुशोभित आखर बन जाती
आखर से मिलकर वाक्य बनाती
वाक्य से जुड़ें जब भाव सजाती
भावों से जुड़ भावनात्मकता फैलाती
छोटी बड़ी मात्रा जब मिल जाती
नि:स्वार्थ प्रेम का ज्ञान कराती
ऊँच नीच का भेदभाव मिटाकर
जीवन जीने का सार बतलाती।।
सभी हिंदुस्तानियों को हिंदी दिवस की शुभकामनाएं।
नेहा सक्सेना
वर्णों से सुशोभित आखर
September 14, 2023 in हिन्दी-उर्दू कविता
ज़रा ध्यान से देखो हिंदी हमारी
भारतीयता की गौरव की कहानी
स्वयं माथे बिंदिया चुनरिया ओढ़कर
भारतीय सभ्यता संस्कृति दर्शाती
दिन प्रितिदिन की बोलचाल में
मुहावरे,लोकोक्ति भी शान से बोले
वेद, पुराण, रामायण ,महाभारत
हिंदी भावार्थ से सबको समझ आती
आधे अधूरे का साथ न छोड़े
मिलाकर अपने में पूर्ण बनादे
अ से अनार से शुरुआत कराकर
ज्ञानी बनाकर व्याकरण सिखलाती
वर्णों से सुशोभित आखर बन जाती
आखर से मिलकर वाक्य बनाती
वाक्य से जुड़ें जब भाव सजाती
भावों से जुड़ भावनात्मकता फैलाती
छोटी बड़ी मात्रा जब मिल जाती
नि:स्वार्थ प्रेम का ज्ञान कराती
ऊँच नीच का भेदभाव मिटाकर
जीवन जीने का सार बतलाती।।
सभी हिंदुस्तानियों को हिंदी दिवस की शुभकामनाएं।
नेहा सक्सेना
सावन
July 11, 2023 in हिन्दी-उर्दू कविता
गूँज उठा है ये संसार
चारों ओर है जय जयकार
मग्न हो करके थिरक रहे हैं
शंकर शम्भू के शिवगण आज
जाते हर वर्ष हरि के द्वार
बहती है जहाँ गंगधार
कांवड़ लेने कावड़ियों की
लगती है सावन में बहार
हरियाली है चारों ओर तो
हरी चूड़ियों की खनकार
हरि के रंग में रंग जाने को
हर मन है अब तो तैयार
पेड़ों पर झूले अब पड़ गए
बच्चों में है हर्षउल्लास
कोयल की कुहू कुहू भी
मानो कह रही जय महाकाल
हर मंदिर में प्रातः से संध्या
भजनों से हो रही है शुरुआत
भोले बाबा का नाम ले लेकर
चलती है कण-कण की स्वांस।।
प्राणों से प्रिय प्राणप्रिय
July 1, 2023 in हिन्दी-उर्दू कविता
प्राणों से प्रिय प्राण प्रिय हमारे
जीवन की नैया के रखवाले
सात वचनों से जुड़े डोर हमारे
ईश्वर अनुकम्पा के मतवारे।
चूड़ी की खनक बिंदी है साजे
माथे चमके चाँद सितारे
माँग में मेरे मोती जड़े जैसे
ऐसे हैं मेरे प्राण के प्यारे।
सुख दुःख में साथ निभाते
उलझन कहीं तो सुलझा देते
प्रश्नों का मेरे उत्तर बन जाते
ऐसे हैं मेरे प्राण के प्यारे।
हृदय की झंकार हमारे
स्वासों की माला के रखवाले
मान हमारा अभिमान हमारे
ऐसे हैं मेरे प्राण के प्यारे।।
प्रश्नों का जमावड़ा
June 30, 2023 in Poetry on Picture Contest
दुनिया की अंधाधुंध गाड़ियों की भीड़ में
एक नन्हीं सी परी को खड़ा जो देखा
पाँव से रुक गए देख कर उसको
फिर मन में प्रश्नों का जमावड़ा देखा
कैसा ये जीवन कैसी ये पीड़ा
फिर सपनों का महल संजोते देखा
मानो भूख लगी हो खुद को भी
पर अपनी भूख को दबाते देखा
हाथ में पत्तल , न ही पैरों में चप्पल
इशारे में उंगली उठाये हुए देखा
एक किनारे खड़ी थी मासूम
मासूमियत को मैंने गौर से देखा
नज़र पड़ी फिर भाई पर उसके
इशारे से भाई को संभालते देखा
कच्ची उम्र में ही पापा की परी में
बड़ों का सा भवसागर देखा
विद्यालयी शिक्षा से तो रही वंचित
जिंदगी की परीक्षा में खड़ा उसको देखा
नम हो गईं आँखे मेरी उस वक़्त
जब सब नज़राना अपनी आंखों से देखा
गर हो गरीबी घर आंगन में कली के
तो खिलौने नहीं जिम्मेदारी का बोझ भी देखा
हो जाते हैं बड़े समय से पहले
समझदारी की उम्र का कोई पैमाना न देखा।।
प्रश्नों का जमावड़ा
June 30, 2023 in Poetry on Picture Contest
दुनिया की अंधाधुंध गाड़ियों की भीड़ में
एक नन्हीं सी परी को खड़ा जो देखा
पाँव से रुक गए देख कर उसको
फिर मन में प्रश्नों का जमावड़ा देखा
कैसा ये जीवन कैसी ये पीड़ा
फिर सपनों का महल संजोते देखा
मानो भूख लगी हो खुद को भी
पर अपनी भूख को दबाते देखा
हाथ में पत्तल , न ही पैरों में चप्पल
इशारे में उंगली उठाये हुए देखा
एक किनारे खड़ी थी मासूम
मासूमियत को मैंने गौर से देखा
नज़र पड़ी फिर भाई पर उसके
इशारे से भाई को संभालते देखा
कच्ची उम्र में ही पापा की परी में
बड़ों का सा भवसागर देखा
विद्यालयी शिक्षा से तो रही वंचित
जिंदगी की परीक्षा में खड़ा उसको देखा
नम हो गईं आँखे मेरी उस वक़्त
जब सब नज़राना अपनी आंखों से देखा
गर हो गरीबी घर आंगन में कली के
तो खिलौने नहीं जिम्मेदारी का बोझ भी देखा
हो जाते हैं बड़े समय से पहले
समझदारी की उम्र का कोई पैमाना न देखा।।जमावड़ा
पापा
June 22, 2023 in हिन्दी-उर्दू कविता
उठा के फर्श से अर्श तक के सफर में
हर कदम साथ चलते हैं पापा
डर हो मन में किसी बात का हममें
उंगली थाम के डर पार कराते हैं पापा
मंजिल हो चाहें कितनी भी मुश्किल
राह तो ढूंढ ही लाते हैं पापा
समुंदर की गहराई सी खाली जेब से भी
खिलौना तो ले ही आते हैं पापा
भागदौड़ भरी जिंदगी से अपनी
शाम का वक़्त ले आते हैं पापा
कमाई चाहें कितनी भी हो पापाकी
शहजादी सी जिंदगी देते हैं पापा।
गरिमामयी माँ
May 14, 2023 in हिन्दी-उर्दू कविता
एक ही शब्द में ब्रह्मांड समाये
देवों ने भी मस्तक हैं झुकाये
अपने अंदर नव जीव बनाये
अंधा निःस्वार्थ प्रेम भी समाये
जीवन में हर पल साथ निभाये
हर कठिनाई में खड़ी हो जाये
यमराज से भी जो लड़ जाए
हर परीक्षा में सफल हो जाये
जीवन के नए पाठ भी पढ़ाये
अपने अनुभव से हमको सिखाये
पहली गुरु माता भी कहलाये
जीवन हम सबका उज्ज्वल कराये
ऐसी गरिमामयी माता को हम भी
शत बार अपना शीश झुकाये।।
अनजानों का रिश्ता
March 17, 2023 in हिन्दी-उर्दू कविता
दो अनजानों का ये रिश्ता,
प्रभु आशीष से जुड़ता है
सात वचनों और सात फेरों का,
रिश्ता प्रेम से बंधता है।
गाँठ रिश्ते की गठबंधन के साथ,
विश्वास के साथ जुड़ जाती है
कभी नोक – झोंक जो होती
रिश्ता और गहरा करती है।
रिश्ते की कच्ची इस माला को
पक्की जब दोनों करते हैं
विश्वास, प्रेम, सम्मान भाव से
एक दूजे के संग मिलती है।
एक हार को मान भी ले तो
दूजा हौसला बन जाता है
जीवन की कठिन राह भी
मिलकर सरल फिर बनती है।
साथ एक दूजे का हरदम
रिश्ते की बगिया महकाता है
हाथ थाम जीवन की नैया
पार भी मिलकर कर जाता है।।
जीवनसाथी
June 16, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
इस बेरंग सी जिंदगी में मानो,
रंग जो आप भर रहे
कल की इस कोमल कली को
हाथ थाम कर सिखला रहे
जब बाहें हो आपकी शाम सिरहाने
रात की अंधियारी भी रोशन सी लगे
हर धूप- छांव में हमेशा मुझको,
आपका ही बस साथ मिले
गिरूँ कभी या हार मैं मानूँ ,
हिम्मत मुझको आपसे ही मिले
आप दिया मैं बाती बनकर,
दिन रात यूँ ही रोशन करें
साथ दूर से या पास से,
हर पल आपका बस मिलता रहे
नहीं अभिलाषा इतनी बड़ी कोई,
बस हाथ में आपका हाथ रहे।।
साँवला सलोना
August 6, 2020 in Poetry on Picture Contest
साँवला सलोना चला, माखन चुराने को।
मैया ने देख लिया, रंगे हाथ गिरधारी को।
कान पकड़ के मैया, कहती हैं नंद से।
क्यों चुराए है तू?, माखन यूँ मटकी से।
इतने में बोलते हैं, कन्हैया यूँ मैया से..
मैंने न चुराया माखन, पूछ लो तुम ग्वालों से।
मैया कहती हैं मैंने, तुझको ही देखा है।
माखन की मटकी से, माखन चुराते हुए।
बोल कन्हैया मेरा, क्यों तू ये करता है?
क्या मैं न देती तुझे?, जी भर खाने के लिए।
छुप – छुप देखें हैं सखा, कुछ न फिर बोलते हैं।
कान्हा को मैया आज, डाँट खूब लगाती हैं।
नटखट कन्हैया फिर, अश्रु बहाते हैं।
मैया को मीठी बातों में, फिर से फँसाते हैं।
कहते हैं मैया से, अब.. न मैं चुराऊं माखन।
एक बार मेरी मैया, बात मेरी भी मान ले तू।
मीठी – मीठी बातों से, मैया को रिझाते हैं।
लेकिन कहाँ ये कान्हा, किसी की भी माने हैं।
नटखट अठखेलियों से, लीलाएं दिखाते हैं।
मनमोहक अदाओं से, सबको रिझाते हैं।।
श्यामल रूप है
August 5, 2020 in Poetry on Picture Contest
श्यामल रूप है,नंद को लाल है।
मोर मुकुट संग, पायल झंकायो है।
नटखट अठखेलियों से, गोपियाँ रिझायो है।
माखन खायो है, रास रचायो है।
यमुना नदी किनारे, बंसी बजायो है।
मटकियाँ फोड़त है, गौये चरायो है।
घर – घर जाए के, माखन चुरायो है।
मैया के डाँटन पर, झूठ खूब बोलयो है।
मीठी – मीठी बातों में, सबको फँसायो है।
मिट्टी जब खाये तो, ब्रह्मांड दिखायो है।
पालना में झूलकर, राक्षस भगायो है।
मैया के बाँधन पर, रो कर दिखायो है।
संकट जब आयो है, गोबर्धन उठायो है।
गोकुल का श्याम ये, मथुरा से आयो है।
बाल्य अवस्था में, खूब खेल दिखायो है।
मित्रों के संग-संग, वस्त्र भी चुरायो है।
मुरली की तान से, राधा बुलायो है।
नटखट शैतानियों से, मन को लुभायो है।
रक्षाकवच
August 1, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
राखी का त्योहार है आया
भाई बहन का प्यार समाया
रोली, चंदन,मीठा, अक्षत
रक्षाकवच के साथ सजाया
सूनी कलाई पर बहन ने अपना
स्नेह भरा एक धागा बाँधा
भाई ने अपनी बहना को सारा
आशीषों का हार पहनाया
सारी बलाओं से दूर रह भईया
बहन ने प्रभु से यह वर मांगा
भाई ने अपनी बहन से अपना
अंगरक्षक सा साथ निभाया
राखी पर यही दुआ हमारी
सूनी न रह कलाई तुम्हारी
रहे सदा अनमोल ये बन्धन
शुभकामनाएं यही दिल से हमारी।।
मित्रता
July 29, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता
इंद्रधनुष के सात रंगों सी,
अपनी हो ये यारी।
रहो सदा आप मेरे हृदय में,
बनकर दिल की रानी।
साथ तेरा हो मेरे साथ में,
बनकर सूरज की लाली।
हाथ तेरा हो मेरे हाथ में,
कृष्णा मुरली हो थामी।
रहे अटूट ये रिश्ता हमारा,
चोली दामन के जैसे।
होठों पर मुस्कान सदा हो,
राम चन्द्र के जैसे।
स्नेह गरिमा हो मेरी आपको,
दीपक में बाती हो जैसे।
सम्मान करूँ मैं हर पल आपका,
हरिप्रिया के जैसे।
*मित्रता* हो अपनी भी ऐसी,
कृष्ण और सुदामा जैसे।
मनोकामना है बस इतनी
साथ रहो आप मेरे।।
महादेव का साथ
May 18, 2020 in Other
पल पल हर दिन बीत रहे हैं
बस इसी सोच को अपनाए हुए
है अगर साथ महादेव तुम्हारा
जियेंगे पुनः हम आशीष लिए।।
एक बेटी
May 16, 2020 in Other
एक घर में जन्म लिया तो
दूजे घर में ब्याही गई
एक घर मे पाली बड़ी हुई
दूजे घर की रानी बनी
एक घर में खेली कूदी तो
दूजे घर की रखवाली बनी
एक घर में शरारती रही तो
दूजे घर मे सयानी बनी
एक घर में पढ़ लिख पाई तो
दूजे घर में कमाई में लगी
एक घर में संस्कारी बनी तो
दूजे घर संस्कार देने में लगी
एक घर सब कुछ सीखा तो
दूजे घर जिम्मेदारी में लगी
एक घर में बचपन छोड़ा तो
दूसरे घर में ताउम्र रही
लेकिन वो एक नन्ही सी कली
दोनों घर का मान रही।।
क्या ऐसा भी सोच था
May 6, 2020 in Other
क्या कभी ये सोचा था तुमने
ऐसा वक़्त भी आएगा
घर की चारदीवारी के भीतर
जीवन बिताना पड़ जायेगा
न ही मिलना होगा किसी से
न ही घूमना होगा
अपनों से मिलने को एक दिन
इतना तरसना होगा
मिलेंगी छुट्टी गर्मियों की फिर भी
नानी घर जाना न होगा
घर मे बैठे बैठे ही हर दिन
ऐसे ही बिताना होगा।।
कोरोना सतर्क
May 5, 2020 in Other
ग्रीन जोन में आये हो भैया
फिर भी संभल कर रहना भैया
बीमारी है ये छुआछूत की
दूरी फिर भी बनाना भैया
मास्क हमेशा लगाना मुख पर
हाथ को धोते रहना भैया
जब तक हो सके घर पर रहना
जरूरत पर ही निकलना भैया
जीत जाएंगे इस बीमारी से भी
हिम्मत नहीं तुम हारना भैया।।
जन्मदिन शुभकामना
May 5, 2020 in Other
तेरे हाथ की हथेली पर मैं
क्या उपहार की भेंट करूँ
काबिल नहीं हूं इतना मैं आज
जो तुझको कुछ भेंट करूँ।
देने को बस मेरे पास में
तुझको प्यार और सम्मान है
प्रार्थना है बस इतनी ईश्वर से
आशीषों से वर्षा फुहार करें।
उम्र तेरी हो इतनी लंबी
जितनी सूर्य से पृथ्वी है
पैरों में हो फूलों की चादर
काँटों से कभी न पार करें।
आज आपके जन्मदिवस पर
बस इतनी सी है अभिलाषा
रहो सदा खुश अपने जीवन में
गमों का कहीं न नाम रहे।।
माता सीता
May 5, 2020 in Other
वो प्यारी सी नन्ही सी कली थी
धरती से वो जन्मी थी
जनक जी के महल में लेकिन
पाली पोसी और बड़ी हुई थी
मखमल पर ही सोती थी वो
कुछ भी कष्ट न देखे थी
जैसे ही वो बियाही गई फिर
कष्टों में ही वो जीती रही
न सुख पाया उसने रानी का
न पाया सुख कोई और
रही भटकी फिर वन वन सीता
बाल्मीकि जी की शरण मिली
फूल उठाना भी भारी था जिसको
वन से लकड़ी काटती रहीं
स्वयं ही अपनी रसोई बना कर
अपने बच्चों में खोई रहीं
देकर प्रमाण वो आई थी महल में
फिर भी किसी ने मानी थी
किया विरोध सभी ने उसका
निष्पाप को पापी मानती रही
कष्टों को ही झेल रही थी
फिर प्रमाण की बारी आई
दिया प्रमाण फिर सीते ने ऐसा
सबकी बोलती बंद करी
चली गई जहां से आई थी
पृथ्वी माँ को गोद में
देकर प्रमाण वो अपने जीवन का
सदा के लिए वो सो गई।।
दुबली पतली काया
September 27, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
हाथ मे डंडा, बदन पर धोती
ऐनक पहने रहते थे
दुबली पतली काया थी पर
देश प्रेम में रहते थे
दो ही शब्दों को ही लेकर
विजय पथ पर निकले थे
सत्य अहिंसा के ही मार्ग को
अपनाते, मनवाते थे
विदेशी वस्तु को त्याग कर
स्वदेशी ही अपनाते थे
बहिष्कार करते थे स्वयं भी
दूरसों से भी करवाते थे
एक के बाद एक, आंदोलन लेकर
सीना ताने निकलते थे
अपने साथ मे औरों में भी
देशप्रेम जगाते थे
ठान लिया था अपने मन मे
विदेशी बाहर निकालेंगे
अपने इस भारत को मिलकर
आजादी अवश्य दिलाएंगे
आज़ादी के लिए न जाने
कितने कष्टों को झेला था
लेकिन देश प्रेम की भक्ति ने
हर पल हिम्मत बाँधे रक्खा था
कमजोर भले ही काया थी पर
दृढ़ विश्वास में अडिग रहे
जो चाहा था किया उन्होंने
देश की खातिर अड़े रहे
दिला आज़ादी दिखा दिया फिर
हौसलों से उड़ान होती है
जैसी भी स्थिति हो फिर
एकता में शक्ति होती है।।
रविवार
September 8, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
घर से बाहर काम करने वालों का, होता है रविवार,
घर में काम करने वाली माँ का, नहीं होता कोई रविवार,
लगे रहती है वो सुबह से लेकर शाम तक, हर रोज की तरह,
क्या रविवार ,क्या सोमवार हर दिन की तरह होता है उसका रविवार।।
तू भी कम नहीं
September 8, 2019 in शेर-ओ-शायरी
दूसरों की तरक्की की देख,
न जल ओ खुदा के बन्दे।
तू भी कम नहीं है किसी से,
इस बात को हमेशा याद रख।।
माँ
September 8, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
इस काँटो भरी दुनिया में माँ
आपका ही तो सहारा है
इस तपती जलती धूप में माँ
आपका ही आँचल ठंडा पाया है
दौड़ भाग की इस जिंदगी में
एक आपने ही तो संभाला है
चाहें जितनी भी मुसीबत हो माँ
आपने ही तो निकाला है
दुनिया वालों की बलाओं को माँ
आपने ही झाड़ फूक निकाला है
अपने बच्चों की हर पल चिंता कर
ईश्वरीय आशीष भी दिलाया है।।
रख हौसला
September 8, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
रख हौसला, वो दिन भी आएगा
जब तू अपने सपने सच कर जाएगा
मत हताश हो नाकामयाबी से
कामयाबी का रास्ता खुद चल कर आएगा
बस तू देखते रह सपने
और बुलंदियों को छूने के
खुली आँखों से देखा सपना है
एक दिन तू सच कर दिखायेगा।।
पापा
September 8, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
गर देती है जन्म माँ तो
जिंदगी संवारते हैं पापा
जेब खाली हो फिर भी
झोली भर देते हैं पापा।
अपनी हर ख्वाइशों पर पर्दा डाल
हमारी हर इच्छाओं को पूरा करते हैं
गर रखते हैं झोपड़ी में तो
उसको भी महल बना देते हैं।।
अपने हर गम को भुला, खुशियाँ बिखेर देते हैं
गर डाँटते भी हैं तो ,पल में ही मना लेते हैं
आँख में गर दिख जाए आँसू
तो जमीन आसमाँ भी एक कर देते हैं।।
सूरज सा तप रखते हैं तो, चंद्र से शीतल भी हो जाते हैं
एक पापा ही हैं हमारे जो ,
अपने से ऊँचा पद पाने में,
सच में गर्व महसूस करते हैं।।
🙏🏻
कलम की ताक़त
September 7, 2019 in शेर-ओ-शायरी
ये जो कलम की ताकत है ज़नाब,
ख़ाक से उठा, आसमां तक पहुँचा सकती है।।
किताब
September 7, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
शब्दों का भंडार लिए
ज्ञान का प्रकाश लिए
हर घर आंगन दिखती है
जीवन का सारांश लिए।
यूँ तो रहती मौन है
फिर भी बहुत वाचाल है
नेत्रहीन है स्वयं में लेकिन
सबको दिखाती संसार है।
इसके ही चार आखर पढ़कर
दुनिया बनती विद्वान है
चाहें हो कोई भी ईमान धर्म फिर
दिलाती सबको सम्मान है।।
तुम्ही ने दिया सहारा
September 7, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
जब भी खुद को मुश्किलों में पाया है,
ये मालिक तुम्ही ने दिया सहारा है,
भले ही नज़रों से नज़र नहीं आते हो,
यकीनन तुमने ही हरदम मेरा हाथ थामा है।
ठान लूँ गर
September 7, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
ठान लूँ गर मैं तो कुछ भी कर सकती हूँ
ठान लूँ गर मैं तो असंभव भी संभव कर सकती हूँ
ठान लूँ गर मैं तो बुलंदियाँ छू सकती हूँ
ठान लूँ गर मैं तो बिन पंख भी उड़ सकती हूँ
ठान लूँ गर मैं तो हर हार ,जीत में परिवर्तित कर सकती हूँ
ठान लूँ गर मैं तो चीते से तेज़ दौड़ सकती हूँ
ठान लूँ गर मैं तो भारत की शान बन सकती हूँ
ठान लूँ गर मैं तो आतंकियों को मार सकती हूँ
ठान लूँ गर मैं तो स्वर्ण भी ला सकती हूँ
ठान लूँ गर मैं तो दुनिया भी चल सकती हूँ
ठान लूँ गर मैं तो तिरंगा आसमाँ में भी लहरा सकती हूँ
ठान लूँ गर मैं तो सब कुछ हासिल कर सकती हूँ।।
देश की नारी को समर्पित🙏
तुम्हारा साथ
September 7, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
यूँ गर हाथों में हाथ तुम्हारा होगा
जिंदगी का हर सफर सुहाना होगा
बिता जाएंगे अंतिम लम्हों को भी मुस्कुराके
गर आखिरी साँस तक साथ तुम्हारा होगा।।
आँखों ही आँखों में
September 6, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
आँखों ही आँखों में, जाने कब बड़ी हो जाती है
देखते ही देखते, वो घड़ी भी आ जाती है
न चाहते हुए भी, अपने दिल के टुकड़े को
खुद से जुदा करने की, बारी आ जाती है
कैसा होता है ये पल, उस पिता के लिए
बस अंदर ही अंदर भावनाएँ, दबा दी जाती हैं
कल जिस घर आँगन, खेलती कूदती थी
आज उसी आँगन से विदा की जाती है
लड़ती थी ,जिन चीजों के लिए
आज बिन बोले, यूँ ही छोड़ जाती है
रोने न देती थी, किसी को भी एक पल
आज सबको रोता बिलखता, छोड़ चली जाती है।।
अज्ञानता का मिटा अंधेरा
September 1, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
अज्ञानता का मिटा अंधेरा
ज्ञान की ज्योत जलाते हैं
अथाह शब्दों का भंडार लिए
जीवन पथ सुगम बनाते हैं
बाधाओं से पार कराते
ज्ञान का चक्षु खुलवाते हैं
प्रतिदिन विद्यालय में आकर
नित नवीनता से मिलाते हैं
कभी विनम्र ,कभी दृढ़ता से
प्रकाश ही प्रकाश फैलाते हैं
चारों धर्मों की एकता की शक्ति को
छात्रों के अंतर्मन, पहुँचाते हैं
कभी मित्रवत व्यवहार वो करके
कभी माँ की ममता से मिल जाते हैं
सर्वश्व निछावर कर देते हैं
उज्जवल भविष्य बनाते हैं
ऐसे हमारे शिक्षक शिक्षिका को
शत बार नमन हम दोहराते हैं
शत बार नमन हम दोहराते हैं।।
नमन वीर
March 20, 2019 in हिन्दी-उर्दू कविता
भारत माँ के प्यारे वीरो
मेरा आप सबको प्रणाम है
जो हो गए शहीद, देश की खातिर
वीर तुम्हे सलाम है
घर छोड़ा ,संग छोड़ी मोह माया
सर्वस्व निछावर कर दिया
ऐसे मेरे भारत के वीरों
मेरा शत शत प्रणाम है
आँधी झेली तूफ़ां झेले
झेलीं राहों में मुश्किलें
फिर भी अडिग खड़े रहे तुम
देश की सीमा पर डटे हुए
नमन करें हम उन सबको मिलकर
जिनके खातिर हम सलामत हैं
चैन की नींद से सुला रहें हैं
खुद रातों को जाग रहें।।