कभी बन्द कमरे भी छोड़
कभी बन्द कमरे भी छोड़ कुछ और भी है इसके आगे क्यूँ तू वक्त खपा रहा फिजूल में, कोई और भी देता है जवाब निकल…
कभी बन्द कमरे भी छोड़ कुछ और भी है इसके आगे क्यूँ तू वक्त खपा रहा फिजूल में, कोई और भी देता है जवाब निकल…
अपनों को दूर से रू-ब-रू 1 होते हुए देखा है, हमने अपनी तमन्ना को लहू होते हुए देखा है। इक कसक जो दिल में दफ़न…
अँधेरी बस्ती में रोशनी राशन में बाँटी जाती है, लोहे के हार पहनकर, ज़िंदगी काटी जाती है। आजकल आफ़ताब1भी आता नहीं है नज़र, हुकूमत चाँद-सितारों…
शोले से जलते जिगर¹, जुगनू से टिमटिमाने लगे, तूफ़ान भी अब यहाँ, झोंके हवा के खाने लगे। तेग़-ए-पुश्त² शायद हो गई है गायब उनकी, जो…
सख़्त मग़रूर 1 चश्म 2 में ज़रा इंतज़ार तो हो इश्क़ उनके लिए भी ज़रा दुस्वार3 तो हो। बता दे अपनी हक़ीक़त जल्दी ही हम…
जाने कैसा शहर था, हर तरफ़ कहर था, धूप ही धूप मिली, दोपहर का पहर था। ख़ामोशी हर तरफ़, ख़ाक-सी फैली हुई, कैसे हो गुफ़्तगू…
बहुत याद आते हैं, सफ़र में बेवक्त बिछड़ने वाले। छोड़ जाते हैं हृदय में बहुत सी यादें और रह जाती हैं तन्हाइयाँ और खामोशियाँ। ऑंख…
वक्त की फ़ितरत में तब्दीली है, जो आज हमारा है वो कल किसी और का होगा। न कर ग़रूर आज पर अपने। आने वाला कल…
वो लड़की सोलह की बातें सत्रह की क्या अजीब थी वो, पर नसीब थी वो, जिसे भूलना अब तो नामुमकिन है लहज़े बड़े नाज़ुक से…
जिन्दगी उम्र भर की सहेली है एक उलझी हुई पहेली है दरिया है ये समंदर की पूछो न तुम फिर भी प्यासी है ये अकेली…
ओ देस से आने वाले बता… क्या लाए हो मेरी ऐसी ख़बर जो झूम उठे दिल के मंज़र और दिल हो ये बेखबर… क्या अब…
वो पान की दुकान वो बरगद की छाँव जहाँ हम मिले.. क्या याद है तुम्हें वो बारिश के छीटें लब पे तेरे जो गिरे सनसनाती…
तू मेरे पहले, मैं तेरे बाद हूँ ये शर्त भी है हार जीत कौन किसके साथ है जज़्बात से छूटकर, लब खोल बोल तू ये…
काव्य में कवि मर गया, जब दुनिया उसे बेवफ़ा कह दिया, कोई रत्जगे क्यों करेगा इस मुर्दे पे, उसका जिस्म भी अब मिट्टी हो गया।…
भ्रष्टाचार के खिलाफ शिकायत करने के लिए सरकार ने कई सेल और पोर्टल बनाए हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ने जनसुनवाई पोर्टल बनाया है, जहां नागरिक…
समय सब को प्यारा है, लेकिन खुद का
सो जाते हैं फ़ुटपाथ पर आसमाँ को ओढ़कर, मरे हुए जिस्म कभी ठंड से ठिठुरा नहीं करते।
आह निकली है बहुत यहाँ तक आते-आते, बच आए हैं ज़रा सा, जाँ तक जाते-जाते।
मिज़ाज-ए-गर्दिश-ए-दौराँ1 बदल गया होगा, जो आया है दर पे आज, कल गया होगा। मकाँ-ए-रंक2 में जो आया है इतराता हुआ, ज़रूर वो कल किसी के…
लफ़्ज़ 1 लहूलुहान हैं, कैसे उठाएँगे दर्द का बोझ, हर्फ़2 हसरत लिए किसी की, सो जाते हैं हर रोज़। 1. शब्द; 2. अक्षर।
मेरी नज़्म को अपने ज़ेहन 1 में उतर जाने दे, अहसासों को मेरे ज़रा सा असर कर जाने दे। भटकता रहा हूँ ताउम्र अजनबी दुनिया…
जुगनुओं का क़त्ल करने, काली रात आई है, माहताबों 1 ने अपनी सूरत, बादलों में छुपाई है। सहर का नाम मत लो, शब न ख़त्म…
इतराता फिरता है हर शख़्स भरे बाज़ार में, बिकने वाले सब ख़रीदार का लिबास1 पहने हैं। 1. पोशाक।
जिंदगी को जिंदगी से जुदा कर रखा है, हमने अपनी मौत का गुनाह कर रखा है। बस्ती को रोशन करने की ख़ातिर हमने, अपना घर…
चंद सिक्के हैं जेब में और बेशुमार जरूरतें, चलो चलकर बाज़ार से कुछ ख़्वाहिशें ख़रीद लें।
क्या बताएँ आपको दास्ताँ-ए-दिल 1 अब हम, क़त्ल कर के ख़ुद का, हुए क़ातिल अब हम। तमीज़दार ख़ल्क़ 2 में तमाशबीन 3 हम बन गए,…
आपकी बेरहम यादें और मैं, बहुत सारी फरियादें और मैं। चुप रहेंगी खींचकर आज साँसें, मेरी बेबस निनादें 1 और मैं। इंतज़ार कर रही हैं…
मर्ज़ 1 नहीं मालूम गर तो दवा न दीजिए, बुझा न सको आग तो, हवा न दीजिये। छुपा लो जख्म-ओ-दर्द ज़ेहन 2 में कहीं, यूँ…
साथ तो सब हैं, फिर भी तनहा सफ़र अपना, हज़ारों मकाँ की बस्ती में, अकेला घर अपना। तुम हो ख़ामोश, मैं भी गुमशुम-सा हूँ यहाँ,…
शजर1 सूखा है, खिज़ाँ2 अरसे से ठहरी है, लगेगा वक़्त कुछ और, चोट ज़रा गहरी है। लगता है एक और बम पड़ेगा फोड़ना, सुना है…
बेवजह उनका नाम बार-बार याद आता है, ज़ेहन में जमा दर्द आँखों में पिघल जाता है। अब निगाहों ने भी पकड़ ली है दिल की…
मुस्कुराता हूँ ग़म को, लिखता जाता हूँ, क़त्ल कर जिंदगी को, मैं जीता जाता हूँ। पन्ने पलटता हूँ जब जिंदगी की किताब के, तेरा नाम…
अपने फ़साने-ए-ग़म मैं किसको सुनाऊँ, हाल-ए-दिल-ए-हस्सास1 किसको बताऊँ। ये दिल की उलझन, ये सितम-ए-हयात2, अब इन हालातों को मैं कैसे सुलझाऊँ। हर शख़्स ख़ुश है,…
ये ग़म मेरे प्यार का उन्वान 1 बन गया, जो था अपना आज अनजान बन गया। मलहम की चाह में सूखे सारे ज़ख़्म, हर ज़ख़्म…
मेरी आँखों से इतना बहा है तू, देखूँ मैं जिस जगह, वहाँ है तू। मुबालग़ा1 नहीं है ये मोहब्बत का, मुत्तसिल 2 है मेरा मकाँ,…
जिंदगी कैसे – कैसे जली देखो, कुंदन – सी 1 निखर चली देखो। ख़िज़ाँ-दीदा2 काँटों से सँवर कर, गुलशन हो गई मेरी गली देखो। मीठी…
जिक्र करता हूँ बस हिज़्र1 का, ऐसी बात नहीं, कभी वस्ल2 का कुछ न कहा, ऐसी बात नहीं। ठहरे हुए हैं कई ख़्याल, आकर ज़ेहन3…
मु’अय्यन 1 मंज़िल न सही, कहीं तो पहुँच जाऊँ, मुकम्मल2 नज़्म न सही, चंद लफ़्ज़ में ढल जाऊँ। इक मुब्हम3 मुअम्मा4 सी हो गई है…
लिखा है बस वही, जो दिल पे गुज़री है, कैसे कहें ये शब 1, कैसे अकेले गुज़री है। ओढ़ कर आ गए वो आज मेरे…
दर-दर गिरते रहते हैं, अक्सर संभलने वाले, खाते हैं अक्सर घाव, मरहम रखने वाले। कर लिया था तौबा इश्क़ की गलियों से, मगर मिले हर…
जिंदगी अंधेरों में तो हमें गँवानी थी, रोशनी दो पल की जो कमानी थी। जिन्हें हमने ख़ुद से भी करीब माना, वो शख़्सियत असल में…
इंतज़ार के बाद की कैसी सहर 1 होगी, बिन तनहाई के जिंदगी कैसे बसर2 होगी। 1. सुबह; 2. गुज़ारना।
अपने अश्क़ो को हम दफ़नाने आए हैं, दर्द की नई फसल हम उगाने आए हैं। चुनावी वादों को पूरा करेंगे आज वो, अंधी भीड़ को…
चंद सिक्के मिले हैं मुझे दिनभर की मज़दूरी के, आँखों में आँसू आते हैं मेरी मजबूर मजबूरी के। कौन उठाए आवाज़ आज नाइंसाफ़ी के खिलाफ़,…
अब कहाँ वो ज़माना रहा जाँ लुटाने का, रिवाज़¹ नहीं अब रूठे को मनाने का। किसके हवाले करें आज दिल हम अपना, गुज़र गया वह वक़्त…
बेगाने है वो तो फिर अपने से लगते हैं क्यों, आने से उनके मौसम आख़िर बदलते हैं क्यों। आँखों में जो जम गए थे हिज्र…
लब भी न हिले और हमारी बात हो गई, आधी-अधूरी ही सही, मुलाक़ात हो गई।
आपकी यादों को अश्कों में मिला पीते रहे, एक मुलाक़ात की तमन्ना में हम जीते रहे। आप हमारी हक़ीक़त तो कभी बन न सके, ख़्वाबों…
क्यों याद आता है वो सब, जो कभी हुआ ही नहीं, इक रिश्ता थाम लेता है हाथ, जो कभी था भी नहीं।
आज की शाम, शमा से मैं बातें कर लूँ, उनके चेहरे को अपनी आँखों में भर लूँ। फ़ासले बचे हैं क्यों उनके मेरे दरमियान1, चल…
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