क्या बताएँ आपको
क्या बताएँ आपको दास्ताँ-ए-दिल 1 अब हम, क़त्ल कर के ख़ुद का, हुए क़ातिल अब हम। तमीज़दार ख़ल्क़ 2 में तमाशबीन 3 हम बन गए,…
क्या बताएँ आपको दास्ताँ-ए-दिल 1 अब हम, क़त्ल कर के ख़ुद का, हुए क़ातिल अब हम। तमीज़दार ख़ल्क़ 2 में तमाशबीन 3 हम बन गए,…
आपकी बेरहम यादें और मैं, बहुत सारी फरियादें और मैं। चुप रहेंगी खींचकर आज साँसें, मेरी बेबस निनादें 1 और मैं। इंतज़ार कर रही हैं…
मर्ज़ 1 नहीं मालूम गर तो दवा न दीजिए, बुझा न सको आग तो, हवा न दीजिये। छुपा लो जख्म-ओ-दर्द ज़ेहन 2 में कहीं, यूँ…
साथ तो सब हैं, फिर भी तनहा सफ़र अपना, हज़ारों मकाँ की बस्ती में, अकेला घर अपना। तुम हो ख़ामोश, मैं भी गुमशुम-सा हूँ यहाँ,…
शजर1 सूखा है, खिज़ाँ2 अरसे से ठहरी है, लगेगा वक़्त कुछ और, चोट ज़रा गहरी है। लगता है एक और बम पड़ेगा फोड़ना, सुना है…
बेवजह उनका नाम बार-बार याद आता है, ज़ेहन में जमा दर्द आँखों में पिघल जाता है। अब निगाहों ने भी पकड़ ली है दिल की…
मुस्कुराता हूँ ग़म को, लिखता जाता हूँ, क़त्ल कर जिंदगी को, मैं जीता जाता हूँ। पन्ने पलटता हूँ जब जिंदगी की किताब के, तेरा नाम…
अपने फ़साने-ए-ग़म मैं किसको सुनाऊँ, हाल-ए-दिल-ए-हस्सास1 किसको बताऊँ। ये दिल की उलझन, ये सितम-ए-हयात2, अब इन हालातों को मैं कैसे सुलझाऊँ। हर शख़्स ख़ुश है,…
ये ग़म मेरे प्यार का उन्वान 1 बन गया, जो था अपना आज अनजान बन गया। मलहम की चाह में सूखे सारे ज़ख़्म, हर ज़ख़्म…
मेरी आँखों से इतना बहा है तू, देखूँ मैं जिस जगह, वहाँ है तू। मुबालग़ा1 नहीं है ये मोहब्बत का, मुत्तसिल 2 है मेरा मकाँ,…
जिंदगी कैसे – कैसे जली देखो, कुंदन – सी 1 निखर चली देखो। ख़िज़ाँ-दीदा2 काँटों से सँवर कर, गुलशन हो गई मेरी गली देखो। मीठी…
जिक्र करता हूँ बस हिज़्र1 का, ऐसी बात नहीं, कभी वस्ल2 का कुछ न कहा, ऐसी बात नहीं। ठहरे हुए हैं कई ख़्याल, आकर ज़ेहन3…
मु’अय्यन 1 मंज़िल न सही, कहीं तो पहुँच जाऊँ, मुकम्मल2 नज़्म न सही, चंद लफ़्ज़ में ढल जाऊँ। इक मुब्हम3 मुअम्मा4 सी हो गई है…
लिखा है बस वही, जो दिल पे गुज़री है, कैसे कहें ये शब 1, कैसे अकेले गुज़री है। ओढ़ कर आ गए वो आज मेरे…
दर-दर गिरते रहते हैं, अक्सर संभलने वाले, खाते हैं अक्सर घाव, मरहम रखने वाले। कर लिया था तौबा इश्क़ की गलियों से, मगर मिले हर…
जिंदगी अंधेरों में तो हमें गँवानी थी, रोशनी दो पल की जो कमानी थी। जिन्हें हमने ख़ुद से भी करीब माना, वो शख़्सियत असल में…
इंतज़ार के बाद की कैसी सहर 1 होगी, बिन तनहाई के जिंदगी कैसे बसर2 होगी। 1. सुबह; 2. गुज़ारना।
अपने अश्क़ो को हम दफ़नाने आए हैं, दर्द की नई फसल हम उगाने आए हैं। चुनावी वादों को पूरा करेंगे आज वो, अंधी भीड़ को…
चंद सिक्के मिले हैं मुझे दिनभर की मज़दूरी के, आँखों में आँसू आते हैं मेरी मजबूर मजबूरी के। कौन उठाए आवाज़ आज नाइंसाफ़ी के खिलाफ़,…
अब कहाँ वो ज़माना रहा जाँ लुटाने का, रिवाज़¹ नहीं अब रूठे को मनाने का। किसके हवाले करें आज दिल हम अपना, गुज़र गया वह वक़्त…
बेगाने है वो तो फिर अपने से लगते हैं क्यों, आने से उनके मौसम आख़िर बदलते हैं क्यों। आँखों में जो जम गए थे हिज्र…
लब भी न हिले और हमारी बात हो गई, आधी-अधूरी ही सही, मुलाक़ात हो गई।
आपकी यादों को अश्कों में मिला पीते रहे, एक मुलाक़ात की तमन्ना में हम जीते रहे। आप हमारी हक़ीक़त तो कभी बन न सके, ख़्वाबों…
क्यों याद आता है वो सब, जो कभी हुआ ही नहीं, इक रिश्ता थाम लेता है हाथ, जो कभी था भी नहीं।
आज की शाम, शमा से मैं बातें कर लूँ, उनके चेहरे को अपनी आँखों में भर लूँ। फ़ासले बचे हैं क्यों उनके मेरे दरमियान1, चल…
जब ज़माने ने उसको सताया होगा, मेरा नाम कैसे होंठों में दबाया होगा। सवालों की जब झड़ी लगी होगी, जवाब में कैसे मुझको छुपाया होगा।…
दो पल में लगी आग, ज़माने में बुझती है, रिश्तों में पड़ी गाँठ, कब-कहाँ खुलती है। जो दे गया दग़ा हमें, वादा-ए-वस्ल 1करके, तुम्हारी शक्ल…
बिछड़ने के ख़्याल से हम मिलने से डरते हैं, मगर कैसे बताएँ किस कदर तनहा मरते हैं। देख न ले वो हमें, कहीं पुकार न…
आज कुरेद गया वो अरसे से जमे जज़्बातों को, कुछ बूँदें फिर से भिगो गईं सूखे रुख़सारों 1 को। दर्द आज फिर से झाँकने लगा…
तेरी आवाज़ में अक्सर हम डूब जाते हैं, तुझसे हम हमेशा कुछ कह नहीं पाते हैं। हाल-ए-दिल कैसे करें हम बयाँ अपना, दिल की धड़कन…
घुल गया उनका अक्स कुछ इस तरह अक्स में मेरे, आईना अब ज़रा सा भी न काबिल-ए-ऐतबार रहा। हमारी मोहब्बत का असर, हुआ उन पर…
हम अपना हाल-ए-दिल आपसे कहते रहे, बेगाना आप हमको जाने क्यों समझते रहे। आज तक कोई सबक पढ़ा न ज़िंदगी में, आपकी आँखों में जाने…
तुझसे रू-ब-रू1 हो लूँ, दिल की आरज़ू2 है, कह दूँ तुझसे एक बार, तू मेरी जुस्तुजू3 है। भँवरा बनकर भटकता रहा तेरे तसव्वुर 4में, चमन…
उनके चेहरे से नज़र है कि हटती नहीं, वो जो मिल जाए अगर, चहकती कहीं। वो जो हँसी जब, नज़रें मेरी बहकने लगीं, मन की…
बर्बाद-ओ-बेकस1 दिल का कोई सहारा भी हो, उनके मकाँ-ए-दिल में एक कोना हमारा भी हो। जो बात ज़ेहन 2 में थी, वो ज़ुबाँ पर आ…
‘इंतज़ार’ कवि पन्ना की एक मर्मस्पर्शी और गहन भावनात्मक यात्रा पर ले जाने वाली काव्य पुस्तक है। यह संग्रह न केवल कवि के व्यक्तिगत अनुभवों,…
अक्स¹ सारे गुम हैं कहीं, आईने अकेले हैं, साथ चलते हैं लेकिन, काफ़िले² अकेले हैं। 1. प्रतिबिम्ब; 2. यात्रीदल।
इक मुखौटा है, जिसे लगा कर रखता हूँ, जमाने से ख़ुद को मैं छुपा कर रखता हूँ। दुनिया को सच सुनने की आदत नहीं, सच्चाई…
सवा ले चल हमें भी उस निशाँ तक उमीदें रक़्स करती हैं जहाँ तक तसव्वुर की रसाई है जहाँ तक किसी दिन तो मैं पहुँचूंगा…
अब पैकर-ए-ख़्याल-ए-सनम बन गया हूँ मैं यानी वजूद-ए-लुत्फ़-ओ-करम बन गया हूँ मैं اب پیکرِ خیالِ صنم بن گیا ہوں میں یعنی وجودِ لُطف و کرم…
रस्ता मिला न मंज़िल रहबर की रहबरी में । हम यूँ भटक रहे हैं सहरा-ए-जिंदगी में ।। तुम तैर कर तो देखो सूखी हुई नदी…
वो खिड़की के जानिब अगर देखते है हर एक बार मुझको मगर देखते है जो कूचे से निकला हूँ कल परसो मै वो दीदार को…
जो उस के, महल में जाते हैं उसे देख के, फिसल जाते हैं हवा का रुख, जो बदलता है सियासतदाँ, बदल जाते हैं जो ठोकर,…
जिस तरह मुझ पे तोहमत लगा रही है वो शायद मेरे किरदार से वाक़िफ़ नहीं है वो झूठों के इस बाज़ार में मुंसिफ भी बैठ…
उस के साथ चलने, का मसअला नहीं ये बात और है के, अब हौसला नहीं कुछ बात तो होगी, के उसने दगा दिया उससे मुझे…
जिसको देख, डर गया कोई उससे इश्क, कर गया कोई वो ग़मज़दा, हो के बैठे थे उसका ग़म भी, हर गया कोई लोग जिससे, किनारा…
मुस्कुरा के दिखाने, से क्या फ़ायदा दर्द ए दिल को छुपाने, से क्या फ़ायदा उसने नज़रों से, नज़रों पे जो वार की अब यूं नज़रे…
उसका आमद, इस पार है क्या, क्या मेरा, इन्तेजार है क्या? हर पल वो, रंग बदलता है, गिरगिट का, रिश्तेदार है क्या दिल ने दिल…
कल मैंने अपनी खिड़की से अपना बीता हुआ कल देखा… उस कल में था वो लड़का, जिसे देखकर मेरी सुबह मुस्कुराती थी, शाम संवर जाती…
ये दुनिया को मेरी हकीकत कुछ भी नहीं पता है इलजाम हजारों हैं मुझपर तो और मेरी खता कुछ भी नहीं मेरे दिल में क्या…
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