Categories: हिन्दी-उर्दू कविता
rajesh arman
हर निभाने के दस्तूर क़र्ज़ है मुझ पे
गोया रसीद पे किया कोई दस्तखत हूँ मैं
राजेश'अरमान '
Related Articles
उम्र लग गई
ख्वाब छोटा-सा था, बस पूरा होने मे उम्र लग गईं! उसके घर का पता मालूम था , बस उसे ढूंढने मे उम्र लग गईं !…
कविता : वो सारे जज्बात बंट गए
गिरी इमारत कौन मर गया टूट गया पुल जाने कौन तर गया हक़ मार कर किसी का ये बताओ कौन बन गया जिहादी विचारों से…
जब किसी सितम की कभी इन्तहाँ होती है
जब किसी सितम की कभी इन्तहाँ होती है! सोती हैं ‘तकदीरें मगर आँख रोती है! वक्त के कदमों तले कुचल जाती हैं मंजिलें, डूबती तमन्नाओं…
किसी सितम की जब कभी इन्तहाँ होती है
किसी सितम की जब कभी इन्तहाँ होती है! सोती हैं ‘तकदीरें मगर आँख रोती है! वक्त के कदमों तले कुचल जाती हैं मंजिलें, डूबती तमन्नाओं…
मुद्दतें हो गईं
दोस्तों से मिले मुद्दतें हो गईं, देखे हुए चेहरे खिले, मुद्दतें हो गईं कोरोना ने जाल बिछाया ऐसा, बाहर ना निकल सके हम बाहर की…
वाह