जुर्म यह था
जुर्म यह था, कि कोई जुर्म नहीं किया….
गलती यह थी, कि गल नहीं की
सजा यूं है मानो प्राण निकल गए
काश! कर ले ते हर्फ़, तो सजा भी शोभित होती
हृदय की वादियों की रूह भी सुहानी होती……..
जिन्दंगी यह हैं कि, जिया नहीं जा रहा
बे-ऐब की सजा को सहा नहीं जा रहा
सजा यूं मिली है, बे कुसूर का आलम……….
~कान्हा27
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