Ankit Bhadouria
February 16, 2017 in Poetry on Picture Contest
कितने ही दिन गुज़रे हैं पर, ना गुजरी वो शाम अभी तक;
तुम तो चले गए पर मैं हूँ, खुद में ही गुमनाम अभी तक!
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तुम्ही आदि हो,…तुम्ही अन्त हो,…तुमसे ही मैं हूँ, जो हूँ;
ये छोटी सी बात तुम्हें हूँ, समझाने में नाकाम अभी तक!
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कैसे कह दूँ, …तुम ना भटको, …मैं भी तो इक आवारा हूँ;
शाम ढले मैं घर न पहुँचा, है मुझपे ये इल्ज़ाम अभी तक!
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प्यार से, ‘पागल’ नाम दिया था, तूने जो इक रोज़ मुझे;
तुम तो बेशक़ भूले हो पर, सब लेते हैं वो नाम अभी तक!
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तूने जो भेजा था ख़त मुझको, मेरे इक ख़त के जवाब में;
पढ़ा नहीं, पर रक्खा है, ‘अक्स’ मैंने वो पैग़ाम अभी तक!!…#अक्स
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“ना पा सका “
November 26, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
ღ_ना ख़ुदी को पा सका, ना ख़ुदा को पा सका;
इस तरह से गुम हुआ, मैं मुझे ना पा सका!
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जिस मोड़ पे जुदा हुआ, तू हाथ मेरा छोड़ के;
मैं वहीँ खड़ा रहा, कि फिर कहीं ना जा सका!
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मुझसे इतर भला मेरे, अक्स का वजूद क्या;
जो रौशनी ही ना रही, साया भला कहाँ रहा!
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साथ है तो अक्स है, जुदा हुआ तो क्या रहा;
अरे मैं ही ग़र ना रहा, अक्स फिर कहाँ रहा!
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मेरे अक्स, पे ही मेरे, क़त्ल का इल्ज़ाम है;
जो आईना गवाह था, वो आईना तो तू रहा!
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अब ऐ मेरे हमनवा, ये फ़ैसला तुझ पर रहा;
कि दोनों ही का साथ दो, या कहो अलविदा!!…#अक्स
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“मैं कौन हूँ”
November 2, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
ღღ_मैं कौन हूँ आखिर, और कहाँ मेरा ठिकाना है;
कहाँ से आ रहा हूँ, और कहाँ मुझको जाना है!
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किसी मकड़ी के जाले-सा, उलझा है हर ख़याल;
जैसे ख़ुद के ही राज़ को, ख़ुद ही से छुपाना है!
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मेरी पहचान के सवालों पर; ख़ामोश हैं सब यूँ;
जैसे पोर-पोर दुखता हो, और बोझ भी उठाना है!
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वैसे तो इन गलियों से, मैं मिला ही नहीं कभी;
पर इस शहर से लगता है, रिश्ता कोई पुराना है!
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इक भूला हुआ फ़साना, ज़हन में उभर रहा है;
कोई जो मुझको पूछे, कहना कि ये दिवाना है!
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कोई शख्श हो शायद, मेरी पहचान का शहर में;
कि तलाश-ए-इश्क़ में हमने, छोड़ा आशियाना है!!…#अक्स
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“महबूब”
November 1, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
शबनम से भीगे लब हैं, और सुर्खरू से रुख़सार;
आवाज़ में खनक और, बदन महका हुआ सा है!
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इक झूलती सी लट है, लब चूमने को बेताब;
पलकें झुकी हया से, और लहजा ख़फ़ा सा है!
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मासूमियत है आँखों में, गहराई भी, तूफ़ान भी;
ये भी इक समन्दर है, ज़रा ठहरा हुआ सा है!
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बेमिसाल सा हुस्न है, और अदाएँ हैं लाजवाब;
जैसे ख़्वाबों में कोई ‘अक्स’, उभरा हुआ सा है!
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जाने वालों ज़रा सम्हल के, उनके सामने जाना;
मेरे महबूब के चेहरे से, नक़ाब सरका हुआ सा है!!
ღღ__अक्स__ღღ
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“मुलाकात रहने दो”
October 31, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
ღღ_आज ना ही आओ मिलने, ये मुलाकात रहने दो;
कुछ देर को मुझको, आज मेरे ही साथ रहने दो!
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अन्धेरों की, उजालों की, हवाओं की, चिरागों की;
या अपनी ही कोई बात छेड़ो, मेरी बात रहने दो!
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मैं सोया कि नहीं सोया, मैं रोया कि नहीं रोया;
और भी काम हैं तुमको, ये तहकीकात रहने दो!
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यूँ तो सैकड़ों रात जागा हूँ, तुम्हारे ही ख्यालों में;
पर सोना चाहता हूँ अब, आज की रात रहने दो!
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जाते-जाते ‘अक्स’, मेरा इक मशविरा है तुमको;
कि इश्क़ करो तो बे-हद, यूँ एहतियात रहने दो!!…#अक्स
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“देखा नहीं तुमने”
August 30, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
ღღ_ख़ुद से लेते हुए इन्तक़ाम, देखा नहीं तुमने;
अच्छा हुआ मेरा अस्क़ाम, देखा नहीं तुमने!
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उतर ही जाता चेहरा मेरा, शर्म से उसी दम;
अच्छा हुआ मेरा अन्जाम, देखा नहीं तुमने!
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कल रात को हर ख़्वाब से, लड़ गया था मैं;
अच्छा हुआ मेरा इत्माम, देखा नहीं तुमने!
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रोया था मैं ही चीखकर, ख़्वाबों की मौत पे;
अच्छा हुआ ये ग़म तमाम, देखा नहीं तुमने!
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सुबह तक पड़े रहे, टुकड़े ख्वाबों की लाश के;
अच्छा हुआ मुझे नाकाम, देखा नहीं तुमने!
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मैंने ही ‘अक्स’ आग दी, मैं ही था शमशान में;
अच्छा हुआ सोज़—ए-निहाँ, देखा नहीं तुमने!!…..#अक्स
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शब्द…………………..अर्थ
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अस्क़ाम = बुराईयाँ, कमियां
इत्माम = प्रवीणता, सिद्धि
सोज़-ए-निहाँ = जलने के निशान
“ग़ज़ल होती है”
August 28, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
ღღ_महबूब से मिलने की, हर तारीख़ ग़ज़ल होती है;
महफ़िल में उनके हुस्न की, तारीफ़ ग़ज़ल होती है!
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ग़ज़ल होती है महबूब की, बोली हुई हर बात;
आशिक के हर ख्वाब की, तकदीर ग़ज़ल होती है!
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गर आज़माओ तो ज़ंजीर से, मज़बूत है ग़ज़ल;
तोड़ना हो तो विश्वास से, बारीक़ ग़ज़ल होती है!
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आशिक़ के दिल की आह भी, होती है इक ग़ज़ल;
कहते हैं कि मोहब्बत की, तासीर ग़ज़ल होती है!
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‘अक्स’, कलमकार की कलम का, तावीज़ है ग़ज़ल;
अग़र नाम हो जाये, तो हर नाचीज़ ग़ज़ल होती है!!….#अक्स
“ग़ज़ल लिक्खूँगा!”
August 27, 2016 in ग़ज़ल
ღღ_मैं भी लिक्खूँगा किसी रोज़, दास्तान अपनी;
मैं भी किसी रोज़, तुझपे इक ग़ज़ल लिक्खूँगा!
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लिक्खूँगा कोई शख्स, तो परियों-सा लिक्खूँगा;
ग़र गुलों का ज़िक्र आया तो, कमल लिक्खूँगा!
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बात ग़र इश्क़ की होगी, तो बे-इन्तहा है तू;
ज़िक्र ग़र तारीख का होगा, तो अज़ल लिक्खूँगा!
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मैं लिक्खूँगा तेरी रातों की, मासूम-सी नींद;
और अपनी बेचैन करवटों की, नक़ल लिक्खूँगा!
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हाँ ज़रा मुश्किल है, तुझे लफ़्ज़ों में बयां करना;
फिर भी यकीन मानो साहब, मुकम्मल लिक्खूँगा!
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ये जानता हूँ “अक्स”, कि तुझे झूठ से नफरत है;
इसलिए जो भी लिक्खूँगा, सब असल लिक्खूँगा!!….#अक्स
“जाने दे!”
August 27, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
ღღ__महज़ एक लम्हा ही तो हूँ, गुज़र जाने दे;
इस तरह तू जिंदगी अपनी, संवर जाने दे!
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ले चलें जिस डगर, दुश्वारियाँ मोहब्बत की;
मेरे महबूब अब मुझको, बस उधर जाने दे!
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तुझे ठहरना है जिस ठौर, तू ठहर, जाने दे;
मुझे क़ुबूल है इश्क़ का, हर कहर, जाने दे!
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तू बोलता रहा, और मैं सुनता रहा, खामोश;
मुझे भी कहना है बहुत कुछ, मगर जाने दे!
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इससे पहले “अक्स”, तू अपना रास्ता बदले;
मैं ही मुड़ जाता हूँ, मेरे हमसफ़र, जाने दे!!….#अक्स
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मगर कब तक!
August 24, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
ღღ_कर तो लूँ मैं इन्तजार, मगर कब तक;
लौट आएगा बार-बार, मगर कब तक!
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उसे चाहने वालों की, कमी नहीं है दुनिया में;
याद आएगा मेरा प्यार, मगर कब तक!
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प्यार वो जिस्म से करता है, रूह से नहीं;
बिछड़कर रहेगा बे-क़रार, मगर कब तक!
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दर्द अहसास ही तो है, मर भी सकता है;
बहेंगे आँखों से आबशार, मगर कब तक!
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कहीं फिर से मोहब्बत, कर ना बैठे ‘अक्स’;
दिल पे रखता हूँ इख्तियार, मगर कब तक!!…..#अक्स
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“अलग है”
July 9, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
ღღ_यूँ हर एक शख्स में अब, मत ढूँढ तू मुझको;
मैं “अक्स” हूँ ‘साहब’, मेरा किरदार ही अलग है!
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झूठ के सिक्कों से, हर चीज़ मिल ही जाती है;
पर जहाँ मैं भी बिक जाऊं, वो बाज़ार ही अलग है!
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यूँ तो हुस्न वाले, कम नहीं हैं इस दुनिया में;
पर जिसपे मैं फ़ना हूँ, वो हुस्न-ए-यार ही अलग है!
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यूँ तो इन्तज़ार करना, मेरी फितरत में नहीं शामिल;
पर तेरी बात कुछ और है, तेरा इन्तज़ार ही अलग है!
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राँझा, फ़रहाद, मजनू अब, गुज़रा हुआ कल हैं;
मैं ख़ुद ही ख़ुद की मिसाल हूँ, मेरा प्यार ही अलग है!!….
#अक्स
ღღ_कभी यूँ भी तो हो
July 9, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
ღღ_कभी यूँ भी तो हो, कि दिल की अमीरी बनी रहे;
फिर चाहे तो ज़िन्दगानी, ग़ुरबत में बसर कर दे!
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कोई एक शाम फुरसत की, कभी मेरे लिए निकाल;
फिर उस मुलाकात में ही, तू शाम से सहर कर दे!
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तेरे होठों की मिठास तो, मुझे चख लेने दे एक बार;
फिर बाकी की उम्र सारी, गर चाहे तो ज़हर कर दे!
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दिन-रात माँगता हूँ, रब से बस तुझको दुआ में मैं;
ऐ-काश कि वो तुझको ही, मेरा हमसफ़र कर दे!
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सूना लगता है जहाँ सारा, तुझ बिन ऐ-साहिबा;
कभी यूँ भी तो हो, कि तू मेरे ख्वाबों में रंग भर दे!!….#अक्स
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“देर तलक”
July 4, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
ღღ_कल फ़िर से दोस्तों ने, तेरा ज़िक्र किया महफ़िल में;
कल फ़िर से अकेले में, तुझे सोंचता रहा मैं देर तलक!
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कल फ़िर से तेरी यादों ने, ख़्वाबों की जगह ले ली;
कल फ़िर से मेरे यार, तुझे देखता रहा मैं देर तलक!
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कल फ़िर से तेरी गली में, भटकने की आरज़ू हुई;
कल फिर से एक बार, ख़ुद को रोकता रहा मैं!
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कल फिर से तेरा एहसास, मुझे छूकर गुज़र गया;
कल फिर से तेरी तलाश में, यूँ ही भागता रहा मैं!
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कल फिर से मैंने नींद से, वादा कियां था सोने का;
कल फिर नींद में “अक्स”, जागता रहा मैं देर तलक!!…..
#अक्स
“ख़ुदा-ख़ुदा करके”
June 26, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
ღღ_तजुर्बे सब हुए मुझको, महज़ उससे वफ़ा करके;
दुआ जीने की दी उसने, मुझे खुद से जुदा करके!
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मैं कहना चाहता तो हूँ, यकीं उसको अगर हो तो;
ग़ैर का हो नहीं सकता, उससे अहद-ए-वफ़ा करके!
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मैं मुजरिम हूँ अगर तेरा, सजा जो चाहता हो दे;
न ख़ुद से दूर रख तू यूँ, मर जाऊंगा ज़रा-ज़रा करके!
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शिकायत है अगर मुझसे, तो बताते क्यूँ नहीं आख़िर;
सुकून थोडा तो मिल जाता, हाल-ए-दिल बयां करके!
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नज़र किसकी लगी है “अक्स”, ख़ुदाया प्यार को अपने;
कौन है अपना, जो मुझको लूटता है ख़ुदा-ख़ुदा करके!!…..#अक्स
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“नहीं होता”
June 26, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
ღღ_वो चाँद जो दिखता है, वो सबको ही दिखता है;
महज़ देख लेने भर से ही, वो हमारा नहीं होता!
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दिन तो कट ही जाता है, कश्मकश में जिंदगी की;
तेरे बिन एक पल भी, रातों में गुज़ारा नहीं होता!!
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कैसे कह दूँ कि मुझे तुमसे, मोहब्बत ही नहीं है;
आख़िर मैं यूँ ही तो बे-वजह, आवारा नहीं होता!!
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एक रिश्ता है कई जन्मों से, दरमियान अपने शायद;
वरना ज़रा-सी बात में तुम मेरी, मैं तुम्हारा नहीं होता!!
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मैं एक शायर हूँ “अक्स”, और वो मेरी ही गज़ल है;
ना इश्क़ होता और ना मैं, गर तेरा इशारा नहीं होता!!….#अक्स
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“कहाँ रहते हो”
June 23, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
ღღ_हम ढूँढ आए ये शहर-ए-तमाम, कहाँ रहते हो;
अरे अब आ जाओ कि हुई शाम, कहाँ रहते हो!
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इज्जत ख़ुद नहीं कमाई, विरासत ही सम्हाल लो;
कहीं हो जाए ना ये भी नीलाम, कहाँ रहते हो!
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रस्मो-रिवाज़ इस दुनिया के, तुझे जीने नहीं देंगे;
जब तक मिल जाए ना इक मुकाम, कहाँ रहते हो!
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तेरे दिल से जो कोई खेलेगा, तो समझ जाओगे;
किसे कहते हैं सुकून-ओ-आराम, कहाँ रहते हो!
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अब तुम्ही बताओ “अक्स”, और कैसे तुझे पाऊँ;
कि रब से माँगा है सुबह-ओ-शाम, कहाँ रहते हो!!….#अक्स
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“नहीं देखा”
June 22, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
ღღ_मोहब्बत करके नहीं देखी, तो ये जहाँ नहीं देखा;
मेरे महबूब तूने शायद, पूरा आसमां नहीं देखा!
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तुझमें खोया जो एक बार, फ़िर मिला नहीं कभी;
खुद की ही तलाश में मैंने, कहाँ-कहाँ नहीं देखा!
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मंज़िल की क्या ख़ता जो, भटकता रहा मैं ही;
की जिधर रास्ता सही था, मैंने वहाँ नहीं देखा!
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मेरे शहर के सब लोग, अमनपसंद हो गये शायद;
एक अरसे से किसी घर से, उठता धुआँ नहीं देखा!
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नासमझ हो तुम “अक्स”, जो मासूम समझते हो;
उनका हुस्न तो देखा तुमने, उनका गुमाँ नहीं देखा!!….#अक्स
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“बुरा लगता है”
June 19, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
ღღ__तेरे लब पे सिवा मेरे, कोई नाम आये तो बुरा लगता है;
इक वही मौसम, जब हर शाम, आये तो बुरा लगता है!
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जागते रहने की तो हमको, आदत हो गयी मोहब्बत में;
नींद अब किसी रोज़, सरे-शाम आये तो बुरा लगता है!
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गर इन तन्हाईयों में गुमनाम ही, मर जाऊं तो बेहतर है;
अब किसी महफ़िल में, मेरा नाम आये तो बुरा लगता है!
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ज़र्द पड़ चुके हैं सारे, वो टूटते पत्ते, बेजुबाँ मोहब्बत के;
अब इश्क़ के नाम से, कोई पयाम आये तो बुरा लगता है!
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ज़िन्दा हैं जब तक “अक्स”, उन लबों के बे-हिसाब पैमाने;
मेरे इन होठों पे कोई और, जाम आये तो बुरा लगता है!!…
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#अक्स
“रंग” #2Liner
June 18, 2016 in शेर-ओ-शायरी
ღღ__कुछ एक बे-रंग क़तरों में, बह गया ज़िन्दगी का हर एक रंग;
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सबक क्या-क्या नहीं सीखे, “अक्स” हमने आंसुओं की जानिब से!!…#अक्स
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“याद”#2Liner…..
June 17, 2016 in शेर-ओ-शायरी
ღღ__ना जाने आज इतना, क्यूँ याद आ रहे हो “साहब”;
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तुझे भूलने की कोशिश, तो हमने की ही नहीं कभी!!….#अक्स
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“कोई राब्ता तो हो!!.”
June 16, 2016 in ग़ज़ल
ღღ__ठहरा हुआ हूँ कब से, मैं तेरे इन्तज़ार में;
आख़िर सफ़र की मेरे, कोई इब्तिदा तो हो!
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मंजिल पे मेरी नज़र है, अरसे से टिकी हुई;
पहुँचूं मैं कैसे उस तक, कोई रास्ता तो हो!
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किस तरह छुपाऊँ, जो ज़ाहिर हो चुका उसपे;
मैं कहना चाहता भी हूँ, पर कोई वास्ता तो हो!
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वो कहता है ढूँढ लेंगे; तुझे दुनिया की भीड़ से;
मगर उससे पहले मेरे यार, तू लापता तो हो!!
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फिक्र तो बहुत होती है, “अक्स” उसको तेरी;
हाल पूछे भी तो भला कैसे, कोई राब्ता तो हो!!….#अक्स
“डर लगता है!!”
May 30, 2016 in ग़ज़ल
ღღ__जब दर्द भी दर्द ना दे पाए, तो डर लगता है;
आशिक़ी हद से गुज़र जाये, तो डर लगता है!!
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डर लगता है अक्सर, किसी के पास आने से;
पास आके वो गुज़र जाये, तो डर लगता है!!
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कुछ ख्वाहिशें बेशक़, मर जाएँ तो ही बेहतर है;
कुछ ज़रूरतें यूँ ही, मर जाएँ तो डर लगता है!!
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इक बार कहा था उसने, आशिक़ी बे-मतलब है;
ये मतलब गर समझ आ जाये, तो डर लगता है!!
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कोई ऐसा भी घाव होगा, जिससे मरने में हो मज़ा;
जो वही घाव भर जाए ‘अक्स’, तो डर लगता है!!…..#अक्स
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“इलाज” #2Liner-111
May 3, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
ღღ__कुछ इस तरह भी करता है “साहब”, वो मेरे दर्द का इलाज;
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कि पहले घाव देता है, फिर अपने आंसुओं से धोता है!!…..#अक्स
“चाँद” #2Liner-110
May 1, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
ღღ__कल शब मिला था इक चाँद, हाँ “साहब” चाँद ही रहा होगा;
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मिले भी तो दूर से, प्यार पर गुरूर से, और दोनों ही मजबूर से!!….#अक्स
“ना-समझ ख्वाब” #2Liner-109
April 29, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
ღღ__ब-मुश्किल थपकियाँ देकर सुलाती है, नींद मुझको “साहब”;
पर कुछ ना-समझ ख्वाब हैं उनके, जो बे-वक़्त जगा देते हैं!!…#अक्स
“मजबूरी” #2Liner-108
April 28, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
“गुफ्तगू” #2Liner-108
April 27, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता
ღღ__दुश्वारियाँ लाख सही लेकिन, गुफ्तगू करते रहो “साहब”;
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मुसलसल चुप रहने से भी कोई, मसला हल नहीं होता!!…..#अक्स
“आवाज़”
April 26, 2016 in शेर-ओ-शायरी
ღღ__कौन-सी दुनिया में रहते हो, तुम आज-कल “साहब”;
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जो सपनों में भी तुम तक, मेरी आवाज़ नहीं जाती!!….#अक्स
“मजबूरियाँ” #2Liner-107
April 21, 2016 in शेर-ओ-शायरी
ღღ__मजबूरियों का आलम कुछ ऐसा भी होता है “साहब”;
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मुसाफिर हूँ फिर भी, अपनी मंजिलें छोड़ आया हूँ!!….#अक्स
“ख़ामोशी” #2Liner-106
April 19, 2016 in शेर-ओ-शायरी
“चाँद” #2Liner-106
April 16, 2016 in शेर-ओ-शायरी
“दस्तक” #2Liner-105
April 15, 2016 in शेर-ओ-शायरी
ღღ__कल शब तुम्हारी यादों ने “साहब”, क्या दरवाज़े पर दस्तक दी थी?
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सुबह को मेरी गली में, कुछ क़दमों के निशान मिले थे आज!!…..#अक्स
“क़दमों के निशान” #2Liner-104
April 14, 2016 in शेर-ओ-शायरी
ღღ__कल भी आये थे “साहब”, घर तक उनके क़दमों के निशान;
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वो मुझसे मिलते तो नहीं लेकिन, मिलने आते ज़रूर हैं!!….#अक्स
“असर” #2Liner-104
April 13, 2016 in शेर-ओ-शायरी
ღღ__आपकी मोहब्बत का, इतना तो असर हुआ है “साहब”;
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कि अब अक्सर वहाँ होता हूँ, जहाँ होता नहीं हूँ मैं !!….#अक्स
“ख्वाब” #2Liner-103
April 12, 2016 in शेर-ओ-शायरी
ღღ__गर इजाज़त हो आपकी, तो कुछ ख्वाब देख लूँ “साहब”;
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यूँ तो अरसा गुज़र चुका है, आप सुलाने नहीं आये !!….#अक्स
“ख़त” #2Liner-102
April 11, 2016 in शेर-ओ-शायरी
“ख़ुदकुशी” #2Liner-101
April 9, 2016 in शेर-ओ-शायरी
ღღ__न जाने किस कशिश से कब्र ने, पुकारा था आज “साहब”;
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कि ना चाहते हुए भी मुझको, आज ख़ुदकुशी करनी पड़ी!!…#अक्स
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गुफ्तगू #2Liner-100
April 8, 2016 in शेर-ओ-शायरी
ღღ__गुफ्तगू बेशक नहीं करते, निगाहें फिर भी रखते हैं;
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ना जाने प्यार है कैसा, जो कभी बयाँ नहीं होता!!…..#अक्स
कहाँ रहते हो #2Liner-96
April 7, 2016 in शेर-ओ-शायरी
ღღ__कहाँ रहते हो तुम भी, आज-कल “साहब”;
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बात-बिन-बात, दिल दुखाने नहीं आते!!….#अक्स
याद #2Liner-97
April 7, 2016 in शेर-ओ-शायरी
ღღ__कोई याद ही ना करे, ये तो हो सकता है “साहब”;
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मगर भूल जाए मुझको, भला ये कहाँ मुमकिन है!!….#अक्स
“फुरसत” #2Liner-97
April 6, 2016 in शेर-ओ-शायरी
ღღ__कई बार खुद को, यूँ भी बहलाया है हमने “साहब”;
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कि वो आते तो ज़रूर, मगर फुरसत ही कहाँ होगी!!…..#अक्स
“तजुर्बा” #2Liner-96
April 5, 2016 in शेर-ओ-शायरी
ज़िद #2Liner-95
April 4, 2016 in शेर-ओ-शायरी
“वहम” #2Liner-94
April 3, 2016 in शेर-ओ-शायरी
ღღ__ये भी हो सकता है मुझको, फिर से वहम हुआ हो “साहब”
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फिर भी पूछ लो ना दिल से, क्यूँ मुझे आवाज़ देता है!!…#अक्स
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“ख़ानाबदोश-सी ज़िन्दगी” #2Liner-94
April 2, 2016 in शेर-ओ-शायरी
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ღღ__ख़ानाबदोश-सी ज़िन्दगी ही, लिखी है नसीब में “साहब”;
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कुछ लोगों का इस जहाँ में, अपना ठिकाना नहीं होता!!…..#अक्स
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“इंतज़ार” #2Liner-93
April 2, 2016 in शेर-ओ-शायरी
ღღ__इंतज़ार लम्बा ही सही “साहब”, पर मैं समझौता नहीं करता ;
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हमसफ़र वो ही बनेगा मेरा, जिसे भी मेरी ज़रूरत हो!!…..#अक्स
“ख़याल” #2Liner-92
April 2, 2016 in शेर-ओ-शायरी
ღღ__सुना है कि तुमको, बहुत ख़याल है मेरा “साहब”;
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मैं भी जा रहा हूँ खुद को, तेरे पास छोड़ के आज!!….#अक्स
“गुफ्तगू” #2Liner-82
March 30, 2016 in शेर-ओ-शायरी