मैं निरीह…

August 25, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

वह मुझे बताता है  निरीह  निर्जन  निरवता वासी हूँ

जब से मानव मानव न रहा मै बना हुआ वनवासी हूँ |

अवतरण हुआ जब कुष्ठमनन कुंठा व्याप्त हुआ जग में

तब विलग हो गया मै जग से अब एकांत का वासी हूँ ||

मैं शुन्यकाल के अनुभव का साक्षी क्या तुमको बतलाऊँ

मैं साधक सूने का मतिहीन मैं आत्मदर्श अभिलाषी हूँ |

तुम तीर्थभ्रमण करते हो व्यर्थ सब व्याप्त तुम्हारे अंतर में

आए जो हुए मुझ में विलिन  देखे मै मथुरा काशी हूँ ||

उपाध्याय…

चंद शेर और मतले

August 16, 2016 in शेर-ओ-शायरी

समेटता हूँ बिखरते ख्वाब को सजाता हूँ
रोज तकदीर को लिखता हूँ और मिटाता हूँ |
जो मद में चूर हो भूले है अपने ओहदे को
आईना देकर उन्हे उनकी जगह दिखाता हूँ ||
हवा हूँ मैं खुला ये आसमा वतन है मेरा
घरौदें फिर भी रोज रेत का बनाता हूँ |
मै आसमां का एक टूटा हुआ सितारा हूँ
वजूद कुछ भी नही है फिर भी जगमगाता हूँ ||
उपाध्याय…

मुक्तक

August 16, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

फिरे तो सरफिरे है आग ही लगा देंगे
पाक नापाक का नामो निशां मिटा देंगे |
हमें ना खौफ कोई तोप या संगीनों का
लडे तो ईंट से फिर ईंट ही बजा देंगे ||
भारत माता की जय
उपाध्याय…

आज इम्तेहां है

August 5, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज जज्बे का इम्तेहा होगा
कल कदमों में ये जहाँ होगा |
आज काश्मीर जीत लेना है
कल कब्जे में पाकिस्तां होगा ||
न धौंस दे मुझे ऐ दहशतगर्दी
कल न तेरा नमो निशां होगा |
जब भी इतिहास कोई देखेगा
पाक नापाक था बयां होगा ||
मेरे दीवार से टकरा ले मगर
कल तू इसमें कही दबा होगा |
किया पैदा तुझे जिसने बेअदब
उसके कदमों में तू पडा होगा ||
लहू से खेलने का शौक तूझे
कल लहू में तू नहा रहा होगा |
हमे मिटाने का सपना ना देख
कल दुनियां से तू फना होगा ||
जय हिन्द
उपाध्याय

कविता

July 29, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेरा देश महान
घनघोर घटा में अलख जगा कर देख रहा मतिहीन,
जाग सका ना घन गर्जन पर जग सोने में लीन,
इस निस्तब्ध रजनी में मै और मेरा स्वप्न महान,
खोज रहा अधिगम जिससे जग सच को लेता जान !
देह थकी तो बहुत जरूरी है उसको विश्राम
किन्तु न चिंतन को निद्रा गति इसकी है अभिराम |
जला हुआ है दीप तो एक दिन उजियाली लायेगा
अंधकार से मुक्त मही को लौ भी दिखलायेगा
गंगा के तट बैठ पुरवैया के मस्त हिलोरे
माँझी की गीतो में कृष्ण ज्यों लगा लिये हो डेरे,
करुणां प्रेम रस में डूबे यह देश हमारी आन,
पड़े जरुरत इसकी खातिर तज देंगे हम प्राण,
हे हरि सबल समर्थ आप कर दो इतना बरदान
फूले फले बढे विकसे यह मेरा देश महान ||

आपका उपाध्याय…

मुक्तक

July 20, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

“मुक्तक”

आओ अतीत के हम झरोखो में झांक लें जरा
उनके और अपने करम को हम आंक लें जरा |
जो मर मिटे वतन पे हमे स्वाधीन करने के लिये
आओ शहीदों को हम आज याद तो कर लें जरा ||
उपाध्याय…

झूकने न देंगे तिरंगे को हम

July 20, 2016 in गीत

दिनांक-२०-७-२०१६

विधा- गीत

संदर्भ- स्वतंत्रता दीवस

तर्ज- बहुत प्यार करते है तुझसे सनम…

……………………………………………………

झूकने न देंगे तिरंगे को हम-२

हमको हमारी भारत माता की कसम -२

झूकने न देंगे तिरंगे को हम-२

हमे मातृभूमि अपने प्राणों से प्यारी-२

हम है दुलारे ये है माता हमारी -२

सब कुछ न्योछावर इस पर पाये जनम…

झूकने न देंगे तिरंगे को हम-२

प्यार में इसके हम लोग दीवाने -२

हंस के है जाते इस पर प्राण गवाने-२

इसे जो झुकाएगा हो जाएगा खतम…

झूकने न देंगे तिरंगे को हम…

इसी हेतु भगत आजाद चले आये

लडते हुए गोरों से जान गंवाए -२

हमे प्राण से प्यारा है अपना वतन…

झूकने न देंगे तिरंगे को हम…

जीना सिखाया हमे मरना सिखाया-२

मातृभूमि हेतु कुछ करना सिखाया

हमे याद रखने है हमे याद रखने है

अपने करम्…..

झुकने न देंगे तिरंगे को हम..-३

मनोज उपाध्याय (मतिहीन)

हमको हमारी भारत माता की कसम…

कविता

July 4, 2016 in हाइकु

चलो चले …
किसी नदी के किनारे
किसी झरने के नीचें |
जहाँ तुम कल कल बहना
झर झर गिरना और…
और मैं मंत्रमुग्ध हो झरनों की
लहरों की अंतर्धव्नि से राग लेकर
लिखता जाऊँगा |
चलो चले…
किसी उपवन में
या कानन में !
वहाँ तुम कोयल से
राग मेल करना या
पपीहे के संयम को टटोलना
और मैं उन संवेदनाओं की लडी
अपनी कविता रूपी माला में
पीरो कर तुम्हारा श्रृंगार करता रहुंगा |
चलो चले…
सागर के तट पर
तुम उसकी लहरों के साथ
अठखेलिया करना |
और मैं उसके किनारों के
संस्कारों का वर्णन करता रहुंगा !
उसमें दिखने वाले पीले
चमकीले मोतियों को
समेटते समेटते स्वयं ही
लहरों में डूबता उतराता रहुंगा !
चलो चले…
किसी के दर्द में आह् में
किसी कटीले पथ में राह में |
तुम किसी पीडा की आँखे पोछना
मैं उन आसूओं के उद्गम की वेदना
को अपने श्वासों का सुर देता रहुंगा !
चलो चले…
किसी वियोगिनी के वियोग में
उसकी तपश्या के प्रासाद में
उठने वाली कुहुकों को टीसों को
अपने अंत:करण से सूनने |
तुम कुछ उदास होना और
मैं चित्कारे मार मार कर रो लुंगा !
चलो चले…
किसी रणभूमि में
जहाँ दु:शासन दुर्योधन हो
श्री कृष्ण और सुयोधन हो |
मैं भी तलवार उठा लुंगा
तुम नाचना रणचण्डी बनकर
मैं अर्जून कुछ क्षंण बन जाऊँगा !
तब कविता पूरी हो जायेगी
मैं दुष्ट दलन कहलाऊँगा !!
फिर कुम्हलाये देख कपोलों को
दुति दामिनी तुम्हे पुकारुंगा !
तुम सूनती रहना मुझे सदा
और मैं तुझको ही गा लुंगा !!
उपाध्याय…

मुक्तक

July 4, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

मित्रता बड़ा अनमोल रतन
मैं कर्ण और तु दूर्योधन |
मैं बंधा हुआ एक अनुशासन
तु परम् स्वतंत्र दु:शासन ||
उपाध्याय…

मुक्तक

July 4, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

विविध उलझनों में जीवन फंसा हुआ है
किंचित ही दिखने में सुलझे हुए है लोग |
स्वार्थ की पराकाष्ठा पर सांसे है चल रही
अपने बुने जंजाल में उलझे हुए है लोग ||
उपाध्याय…

मुक्तक

July 4, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

विविध उलझनों में जीवन फंसा हुआ है
किंचित ही दिखने में सुलझे हुए है लोग |
स्वार्थ की पराकाष्ठा पर सांसे है चल रही
अपने बुने जंजाल में उलझे हुए है लोग ||
उपाध्याय…

मुक्तक

July 4, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

जमीं वही है मगर लोग है पराये से
जो मिल रहे है लग रहे है आजमाये से!
शफक नही नकॉब में फरेब है मतिहीन
सभी दिखते मुझे हमाम में नहाये से!!
उपाध्याय…

कविता

July 4, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

मस्जिदों में काश की भगवान हो जायें
मंदिरों में या खुदा आजान हो जाये !
ईद में मिल के गले होली मना लेते
काश दिवाली में भी रमजान हो जाये !!
बाअदब मतिहीन मिलते मौलवी साहब
पूरोहित पंडित का भी सम्मान हो जाये
जुर्मकारी को जेहादों को दफन कर दें
इंसा अल्ला ये पुरा अरमान हो जाये ||
उपाध्याय…

मुक्तक

July 4, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

चुभेगा पांव में कांटा तो खुद ही जान जायेगा
जो दिल में दर्द पालेगा तड़प पहचान जायेगा |
किसी की आह चीखों को तवज्जो जो नही देता
जलेगा जब कदम अपना तपन वह जान जायेगा ||
उपाध्याय…

Shayari

July 4, 2016 in शेर-ओ-शायरी

दर्द है आह! है मोहब्बत में मजा भी तो है
इश्क गुनाह है मुसीबत है सजा भी तो है !
दो दो जिस्म में एक जान है रजा भी तो है
जिन्दगी है यही फिर भी ये कजा भी तो है !!
उपाध्याय…

मुक्तक

July 4, 2016 in शेर-ओ-शायरी, हिन्दी-उर्दू कविता

थी मोहब्बत दिल में पहले हो गई नासूर अब
पूछता न था कोई पर हो गई मशहूर अब !
उसका दिल रखने हजारों दे दिया कुर्बानियाँ
और ओ फितरत से अपने हो गई मगरूर अब !!
उपाध्याय….

मुक्तक

July 4, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

लोगों की बातों में आकर मुझको ना तुम निराश करो
मैं प्रणय निवेदन करता हूँ बस इतनी पूरी आश करो |
वे भी उन्मादी प्रेम रथी पर में पर वंचन करते है
सो हृदयंगम कर प्रीत मेरी मत इसका उपहास करो ||
उपाध्याय…

मुक्तक

July 4, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

एक मुक्तक

चढा सूरज भी उतर जायेगा
तपन पर मेघ बरस जायेगा |
देख अंधेरा धैर्य को रखना
तिमिर को चीर प्रकाश आयेगा ||
उपाध्याय…

मुक्तक

July 4, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

ये आँखे मेरी निर्झर जैसे झर जाती तो अच्छा होता
जिग्यासा दर्शन की मन में मर जाती तो अच्छा होता |
तुम पथिक मेरे पथ के ही नही तुम दूजे पथगामी हो
मेरे पागल मन से यह प्रीत उतर जाती तो अच्छा होता ||
उपाध्याय…

कविता

July 4, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

खुली हुई खिड़कियों से झांकते ही रह गये
कट गया कोई मनहूस ताकते ही रह गये |
गिरने का हद बढता गया जाना नही कभी
गैरों की बस औकात आंकते ही रह गये ||
अपने भले की बात में कुछ ना रहा खयाल
औरों की हसरतों कुचलते ही रह गये |
ऊँचाइयों पर पहुंच देखा पैरहन मतिहीन
कुछ भी न आया हाथ बस मलते ही रह गये ||
उपाध्याय…

कविता-पानी बचा लो

July 4, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

………पानी बचा लो……..
पानी नही बचा तो धन करोगे क्या बटोर कर
पानी बचा लो अपना कोई जतन निहोर कर |
कब तक पिलाएगी धरा छाती निचोड़ कर
गिरते ही जा रहे हो सब सरहदों को तोड़ कर||
पानी नही सूखी पड़ी नदियाँ हैं हर कही
गुस्सा निकालते क्या गगरी घड़े को तोड़ !
तुम भी दरक्खतों से दिल लगा लो दोस्तों
एक पेड़ लगा लो तुम सब उलझनों को छोड़ !!
उपाध्याय…

मुक्तक-पुष्प की अभिलाषा

July 4, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

पुष्प की अभिलाषा -(एक मुक्तक)
……………………………………………..
टूट कर शाख से शायद बिखर गया होगा
कुचल कर और ओ गुल निखर गया होगा |
जिसके जज्बे में वतन पे शहीद था होना
मुल्क के वास्ते मर कर ओ तर गया होगा ||
उपाध्याय…

कविता

July 4, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

प्राण प्रग्या को बचाये चल रहा हूँ
कर प्रकाशित मै तिमिर को जल रहा हूँ |
अल्प गम्य पथ प्रेरणा देता मनुज
मैं उतुंग गिरि सा शिखर अविचल रहा हूँ ||
शिथिल वेग स्निग्ध परियों का शरन है
मै नही मतिहीन इसमें पल रहा हूँ |
मैं गिरा गति लय प्रौढ़ाधार में बहता हुआ
भूत से चल आज भी अविरल रहा हूँ ||
उपाध्याय…

मुक्तक

July 4, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

रूह उठती है काँप जमाने की तस्वीर देख कर
खुशनसीब और बदनसीब की तकदीर देख कर |
कोई हाजमे को परेशां है कोई रोटी की खातिर
बहुत हैरत में हूँ हथेलियों की लकीर देख कर ||
उपाध्याय…

मुक्तक-मनहरण घनाक्षरी

July 4, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

अनुभव कंटक-जालों का बस उसी पथिक को होता है
जिसका चरण अग्निपथ चलकर कभी जला होता है |
मखमल और कंचन पर सोने वालों पता तुम्हें क्या है
जीवन सच में आतप अंधड़ में जीने वालों का होता है ||
उपाध्याय…

मुक्तक

July 4, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

बिस्तर से उठ चुके हैं मगर अब भी सोये है
न जाने कैसे ख़्वाब में मतिहीन खोये है |
गैरत ईमान का खतना बदस्तूर है जारी
आँखों ने कर दिया बयां छुप छुप के रोये है ||
फिर भी लगे है दाग के दामन से धोये है
सब कुछ लगा है दाव पर सपने संजोये है |
उम्मीद फिर लगी उसी साहिल से आज भी
जिसने कि बार हां मेरी कश्ती डूबोये है ||
उपाध्याय…

मुक्तक-घनाक्षरी

July 4, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुछ अंध बधिर उन्मूलन किया करते है
अथवा पंगु गिरि शिखर चढा करते है |
कुछ सीमित आय बंधन में बांध हवा को
क्षैतिज उदीप्त किरिचों पर चाम मढते हैं ||
लेकिन कौन जो रोक सका शशि रवि को
लेखक विचारक और भला किस कवि को !
यह अनमोल धरोहर है स्वच्छंद धरा की
मति मूढ सहज सीमा इनकी तय करते है ||
ललचाते नयन लिये पैसों पर बिक जाते है
जो शिक्षा बेच मदिरालय में मदिरा पी जाते है |
जिनकी बुद्धि छोटी जीवन का मूल न जाने
चाटुकार को महामहिम का आसन दे जाते है ||
उपाध्याय…

कविता

July 4, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

“गान मेरे रुदन करते”(मेरी पुरानी रचना)
गान मेरे रुदन करते कैसे मैं गीत सुनाऊँ
जैसे भी हो हंस लेते तुम क्यों मैं तुझे रुलाऊँ |
हृदय वेदना बतलाऊँ या जीवन सार सुनाऊँ
दोनों का रिश्ता सांसो से छोड़ूं किसको अपनाऊँ ||
तुमने दिया गरल तो क्या मैं नित नित विष पीता हुँ
गिन गिन के जीवन के पल मरता हुँ और जीता हुँ|
यदि मैं तुझे सूना दुँ तो क्या तुम मुझे समझ पाओगे
डरता हुँ तुम भी तज दोगे क्या तुम अपनाओगे !!
मैं निज व्यथा किसे कैसे किस रस के साथ सुनाऊँ
सुंदर रचना कहते है जब मैं अपनी तपन बताऊँ !
मन में जीवन नद धारा की तुझको क्या गति बतलाऊँ
डुबूं और उतराऊँ मतिहीन लेकिन पार ना पाऊँ !!
उपाध्याय (मतिहीन)

कविता

July 4, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

“बच्चे के जीवन में माँ का महत्व”
………………………………………….
माँ तपती धूप में ओस की फुहार है
माँ ममता है धरती का सबसे सच्चा प्यार है |
माँ है तो बचपन खिलखिलाता फूल है
माँ नही है तो जीवन में पग पग पर शूल है ||
इसलिए दुनिया मे भगवान का स्थान दूजा है
सच में माँ सर्वप्रथम घर की आरती है पूजा है ¦|
तो माँ का सम्मान ही नही पूजा करो
इससे बेहतर न कुछ है न कुछ दूजा करो..
संसार की सारी खुशियां तुम्हारी है
जब तक माँ तुम्हारे पास है
माँ नही है तो जीवन उदास है निराश है||
भगवान ने मनुष्य जीवन में वेदना बनाया
और उस पर मरहम के लिये ममता की संवेदना बनाया |
हमारे जीवन में ईश्वर का सबसे बड़ा उपहार है
यदि हमारे शीश पर माँ के हाथों का स्पर्श है दुलार है ||
उपाध्याय…

गजल

July 4, 2016 in ग़ज़ल

मस्जिदों में काश की भगवान हो जायें
मंदिरों में या खुदा आजान हो जाये !
ईद में मिल के गले होली मना लेते
काश दिवाली में भी रमजान हो जाये !!
बाअदब मतिहीन मिलते मौलवी साहब
पूरोहित पंडित का भी सम्मान हो जाये
जुर्मकारी को जेहादों को दफन कर दें
इंसा अल्ला ये पुरा अरमान हो जाये ||
उपाध्याय…

गजल

July 4, 2016 in ग़ज़ल

“मातृ दिवस पर चंद पंक्तियां ”
……………………………………………..
जमाने में जो सच है जरा उसको बताइए
दौर-ए भरम है युं नही बातें बनाईए |
युं कहकहे लगा करार आये कब तलक
चेहरे से बंया है न हकीकत छिपाईए||
माँ बाप को रखें है कही घर से बहुत दूर
त्योहार ना अवसर का तमाशा दिखाईए |
पाला है जितना आप भी उनको तो पाल दो
माँ-बाप आप भी है ये मत भूल जाईए||
उपाध्याय…

गजल

July 4, 2016 in ग़ज़ल

मेरी पुरानी रचना…
………………………..
खाक पर बैठ कर
इतना भी इतराना क्या
दर्द चेहरे पे लिखा है
इसे छिपाना क्या…!
कब कहां किस तरह
से क्या होगा ,
जब चले जाना है जहाँ से
तो घबराना क्या !!
मै तो मतिहीन चेहरों को
पढा करता हुँ,
इस फरेब जमाने से
दिल लगाना क्या !!
उपाध्याय…

मुक्तक

July 4, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

“अशिक्षा पर एक छोटा सा व्यंग मुक्तक ”

हिन्दी लिखते शर्म आती है अंग्रेजी में लोला राम
चुप है जब तक छुपा हुआ है खुला मुंह बकलोला राम
अकल बडी या भैस समझ पाया ना काला अक्षर क्या
तुतली भाषा जान गये सब बोल पडे बडबोला राम
अंधो में काना राजा बन चले पहन यह चोला राम
देख प्रतीत होता कि पडा है सीर मुडाते ओला राम !
शिक्षा का आडंबर रचकर करते फिरते बंडोला राम
अधजल गगरी हाल बना खाते फिरते हिचकोला राम
उपाध्याय…

मुक्तक

July 4, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

उष्णत्तर उरदाह की अनुभूति क्या तुम कर सकोगे
कृत्य नीज संज्ञान कर अभिशप्तता मे तर सकोगे !
एक एक प्रकृति की विमुखता पर पांव धर कर
जी लिये अपने लिये तो दुसरों पर मर सकोगे !!
पतवार बिन मजधार में टूटी फुटी नैया फंसी जो
क्या करूं प्रत्यय कि उससे पार तुम उतर सकोगे |
बस तनिक स्पर्श बोधित कामना जाग्रत भई जो
सुमन निशि कंटक सघन में क्या कभी निखर सकोगे!!
… उपाध्याय…

गजल

July 4, 2016 in ग़ज़ल

भूल कर भूल से ये भूल मत किया किजे
कभी किसी को भरोसा नही दिया किजे |
मुकर गर जाइये करके करार दिलवर से
इस अदावत पे कभी प्यार मत किया किजे ||
जो पीछे आ रहा तेरे उसे जरूरत है तेरी
पल दो पल ठहर उसकी खबर लिया किजे |
जो रूकता नही आवाज लगाते मतिहीन
उसके पीछे कभी न देर तक फिरा किजे ||
उपाध्याय…

गजल

July 4, 2016 in ग़ज़ल

……………गजल………….
हम समंदर को समेटे चल रहे है
ठंडे पानी में भी हम उबल रहे है !
दुश्मनों के पर निकलते जा रहे है
देख अपनो की खुशी हम जल रहे है ||

है बडी मुश्किल उन्हे समझाये क्या
जो नादानों की तरह बस पल रहे है |
ये उन्हे शायद नही मालूम हो
हम तो उनके ही सदा कायल रहे है ||

आईनों से क्या करे शिकवा कोई
दाग ही चेहरे से नही निकल रहे है |
गैर तो मतिहीन होते गैर है लेकिन
आज अपनो को ही अपने छल रहे है
उपाध्याय…

गजल

July 4, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

……………..गजल…………….
चल नही सकते तो टहल कर देखो
तुम अपनी सोच बदल कर देखो !
दर्द के फूल किस तरह निखर जाते है
आ मेरे बज्म किसी दिन गजल पर देखो ||

ओ बुरा मान न जाये कही मोहब्बत में
तुम जरा महफिलों में उनको संभल कर देखो |
गम किसे है नही कि तुम ही मरे जाते हो
बात बनती है जरा दिल से पहल कर देखो ||
उपाध्याय…

मुक्तक

July 4, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

नही नव्य कुछ पास में मेरे सपने सभी पुराने है
आधे और अधूरे है पर अपने सभी पुराने है |
कुछ विस्मृत हो गये बचे कुछ यादों के गलियारों में
आज भी मतिहीन की आँखों में गुजरे वही जमाने है
मन में उठती टीसों को मैं गीत बना कर गा लेता
मेरी गीतों की माला में बिखरे हुए तराने है |
सच ये है कि हर मोती को टूट टूट गिर जाना है
लिये दिये जो यहीं पे उसके सारे कर्ज चुकाने है ||
उपाध्याय…

मुक्तक

July 4, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

नही नव्य कुछ पास में मेरे सपने सभी पुराने है
आधे और अधूरे है पर अपने सभी पुराने है |
कुछ विस्मृत हो गये बचे कुछ यादों के गलियारों में
आज भी मतिहीन की आँखों में गुजरे वही जमाने है
मन में उठती टीसों को मैं गीत बना कर गा लेता
मेरी गीतों की माला में बिखरे हुए तराने है |
सच ये है कि हर मोती को टूट टूट गिर जाना है
लिये दिये जो यहीं पे उसके सारे कर्ज चुकाने है ||
उपाध्याय…

मुक्तक

July 4, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

चुप रहते है तो अंजान समझ लेते है
बोल देते है तो नादान समझ लेते है |
बात न माने तो कहते है मानता ही नही
मान लेते है तो फरमान समझ लेते है ||
अगर हम तोड दें छोटे से काँच के टुकडे
नासाज हो उसे आसमान समझ लेते है |
पकड लेते है जब कंधा कभी समझाने को
ओ इत्तेफाक से गिरेबान समझ लेते है ||
उपाध्याय…

गीतिका-मुक्तक

July 4, 2016 in गीत

…………गीतिका………..

श्रृंगार उत्पति वही होती जब खिली फूल की डाली हो
कुछ हास्य विनोद तभी भाता हंसता बगिया का माली हो |
कलरव करते विहगों की जब ध्वनि प्रात:कान में आती है
बरसाती मधुरसकंण कोयल जब बागों में हरियाली हो
कृषकों के कंधो पर हल और होठों पर जब मुस्कान खिले
क्लांतमयी ग्लांनिण चित्त को होता सुख जब खुशिहाली हो |
कान्हा की बंशी की धून लगती मन को जब मतवाली हो
मलयांचल भी शोभित होता जब आरुणिमा की लाली हो ||
उपाध्याय…

मुक्तक

July 4, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

सूख गई धरती दाने दाने को पंछी भटक रहा
झंझावात में बिन पानी सांसे लेने में अटक रहा |
तिस पर भी प्रतिदिन मानव संवेदन शुन्य हुआ जाता संस्कार प्रकृति नियम अब भी उसके मन खटक रहा
यह विभत्स दृश्यांक मनुज ने गरल वमन कर लाया है
अब भी मानव नीज हाथों विष का प्याला गटक रहा
सदियों से पर्यावरण में व्याप्त उपद्रव के चलते
खड्ग गले पर जन जन के असुरक्षा की लटक रहा||
उपाध्याय….

गीतिका

July 4, 2016 in गीत

संदर्भ:- वर्तमान में परिवार की परिभाषा …
………………………………………………….
बदल गये रिश्ते नाते बदल गया परिवार
बदल गये रीति रिवाज बदल गया घरबार |
सिमित हुआ संबंध नही पहले वाली बात
गांठ पाल मन में रखते पर करे प्रेम उद्गार ||

मियां बीबी बच्चे साला साली साढू के साथ
छूट गये माता पिता और भाई बहन के हाथ |
परिचर्चा झूठी कहते कि थकी बहू कर काज
फुरसत नही जिनको ब्यूटी पार्लर से आज ||

है अपवाद कोई जो खाते इक थाली मे आज
करते साले और ससुर के बदले भाई पर नाज |
भेद – भाव की बनी हुई है वृहदाकार दीवार
हम दो और हमारे दो बस यही सकल संसार ||
उपाध्याय…

गजल

July 4, 2016 in ग़ज़ल

“गजल”

चलो इक बार हम एक दुसरे में खो कर देख लें
चलो इक बार हम एक दुसरे के होकर देख लें !

बिताएँ है बहुत लमहा अजाब-ए तन्हाई के हम
चलो हरेक पल को फिर से संजो कर देख लें !!

है टूटी प्रीत की माला कि बिखरे है सभी मोती
चलो एक बार मिल के मोतियाँ पिरोकर देख लें!

बहुत बेताब है रोने को आँखे दिल तडपता है
चलो जी भर गले मिल इनको भिंगोकर देख लें!!

उपाध्याय…

कविता

July 4, 2016 in हाइकु

” मै ही तो हूँ- तेरा अहम्
…………………………..
मै ही तो हूँ
तुम्हारे अंतरात्मा में
रोम रोम में तुम्हारे |
मैं ही बसा हूँ हर पल
तुम्हारे निद्रा में जागरण में |
प्रेम में घृणां में उसांसो से
लेकर तुम्हारे उर्मियों तक |
मैं हूँ बस मैं ही हूँ
न पुर्व न पश्चात तेरा
कोई था न होगा |
एक मेरे सिवा तुम्हारे
एहसास के परिसीमन
के दायरे का कोई अंत नही.
और उस अंतहीन मर्यादा की
आखरी रेखा तक विराजमान हूँ |
मैं मेरा अस्तित्व अनादि है
कुरूवंश से लेकर प्रत्येक
विनाश की जड हूँ मैं
सृष्टि की रचना का द्योतक हूँ मैं|
अंगार हूँ श्रृंगार हूँ मै
अमृत हूँ अवतार हूँ मैं |
तुम्हारे त्याग में तपश्या में
ग्यान में अनुराग में
मैं हूँ मैं हूँ मैं ही तो हूँ |
तुम सदा सर्वदा हर सांस के साथ
मै मै मै करते रहते हो
फिर भी मुझे पहचानते नही !
तुम्हारे आज में कल में घर में
बाहर में जीवन में मृत्यु में |
मैं ही तो हूँ |
सबने त्याग दिया मानव तुझको
पर मै ने आलिंगन बद्ध रखा तुझे
प्रारंभ से प्रारब्ध तक |
मैं हूँ मैं ही तो हूँ तेरा अहंकार ||
उपाध्याय…

कविता

July 4, 2016 in हाइकु

चलो चले …
किसी नदी के किनारे
किसी झरने के नीचें |
जहाँ तुम कल कल बहना
झर झर गिरना और…
और मैं मंत्रमुग्ध हो झरनों की
लहरों की अंतर्धव्नि से राग लेकर
लिखता जाऊँगा |
चलो चले…
किसी उपवन में
या कानन में !
वहाँ तुम कोयल से
राग मेल करना या
पपीहे के संयम को टटोलना
और मैं उन संवेदनाओं की लडी
अपनी कविता रूपी माला में
पीरो कर तुम्हारा श्रृंगार करता रहुंगा |
चलो चले…
सागर के तट पर
तुम उसकी लहरों के साथ
अठखेलिया करना |
और मैं उसके किनारों के
संस्कारों का वर्णन करता रहुंगा !
उसमें दिखने वाले पीले
चमकीले मोतियों को
समेटते समेटते स्वयं ही
लहरों में डूबता उतराता रहुंगा !
चलो चले…
किसी के दर्द में आह् में
किसी कटीले पथ में राह में |
तुम किसी पीडा की आँखे पोछना
मैं उन आसूओं के उद्गम की वेदना
को अपने श्वासों का सुर देता रहुंगा !
चलो चले…
किसी वियोगिनी के वियोग में
उसकी तपश्या के प्रासाद में
उठने वाली कुहुकों को टीसों को
अपने अंत:करण से सूनने |
तुम कुछ उदास होना और
मैं चित्कारे मार मार कर रो लुंगा !
चलो चले…
किसी रणभूमि में
जहाँ दु:शासन दुर्योधन हो
श्री कृष्ण और सुयोधन हो |
मैं भी तलवार उठा लुंगा
तुम नाचना रणचण्डी बनकर
मैं अर्जून कुछ क्षंण बन जाऊँगा !
तब कविता पूरी हो जायेगी
मैं दुष्ट दलन कहलाऊँगा !!
फिर कुम्हलाये देख कपोलों को
दुति दामिनी तुम्हे पुकारुंगा !
तुम सूनती रहना मुझे सदा
और मैं तुझको ही गा लुंगा !!
उपाध्याय…

गजल

July 4, 2016 in ग़ज़ल

जिन्दगी जब भी मुस्कुराती है
गीत उनके ही गुनगुनाती है |
पलक गीरते जो पास होती है
आँख खुलते ही चली जाती है ||
कदम-कदम पे मुश्किलें मिलती
जिन्दगी हमको आजमाती है |
आशना जिसको बना रखा था
ओ नही याद उनकी आती है ||
नजर बचा के निकलने वाले
तेरी हसरत बहुत सताती है ||
दम तोडा है किसी ने शायद
सलवटे गम की ये बताती है ||
उपाध्याय…

मुक्तक

July 4, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

” मुक्तक ”

आँखों से आंशुओं को यूँ जाया नहीं करते।
हर बात पर बच्चो को रुलाया नहीं करते।।
खुशिंया नहीं दे सकते ना सही मगर कभी
जो दिल से चाहे उसको सताया नहीं करते।।
उपाध्याय…

एक शेर एक कताअत्

July 4, 2016 in शेर-ओ-शायरी

ये गुलदान खाली है थोडे गुलाब दे देते
मेरा गिलास खाली है थोडी शराब दे देते |
कब से खडा मतिहीन है तेरे दीदार को
जो दिल में है ओ सामने जवाब दे देते ||
मै मुफलिस सही मुझको आजमा लिया होता
मेरी खुशामदी में ही सही आदाब दे देते |
अंधेरा है खुदा बख्सा मुझे तो गम नही कोई
तुम अपने हुश्न रौशन का ही माहताब दे देते ||
उपाध्याय…

कविता

July 4, 2016 in हिन्दी-उर्दू कविता

कोई भी तीर चला ले मगर एक
बात है खासिद,
हमें भी चोट खाने में महारत
कम नही हासिल |
कहा मतिहीन करते है तजूर्बें से
बडे होना
भले ही उम्र कल की है तजूर्बा
कम नही हासिल ||
उपाध्याय…

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