
Pragya
दिखे राह में श्याम..!!!
May 22, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
तन मन में ऐसो रमो
राम- श्याम का नाम
काया हो गई श्याम रंग
मन में राम का नाम,
मन में राम का नाम
लगन अब प्रेम की लागी
राम से मिलने शबरी जैसी
पीछे भागी
दिखे राह में श्याम हाय!
मैं बन गई राधा
बईयाँ पकड़ी मोरि
रह गया सपना आधा।।
आकाश गंगा में…
May 22, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
मित्रता करने को
हाँथ फ़ैल जाते हैं
उड़ने को आसमान में
पंख खुल जाते हैं
जी करता है एक लम्बी साँस लूँ
उड़ चलूँ गगन में
बादलों से करूं आँख मिचौली
बैठूँ सितारों के साथ
चाँद से नूर चुरा लूँ
आकाश गंगा में थोड़ा तैर लूँ।।
बांहे फैलाये आसमान…
May 22, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
देखा बांहे फैलाये
आसमान खड़ा है
गुलाब में कुछ नई कोपलें फूटी,
अजूबा सर उठाये खड़ा है
शायद ये कल की बारिश का
नतीजा है,
जो सूखे पत्तों में भी जान फूंक दी।।
मन के अन्दर बैठा पापी…
May 22, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
बुरा कोई नहीं,
बुरी हमारी सोंच है
मन के अन्दर ही बैठा पापी,
कहने में क्या संकोच है।
ढूँढ़ोगे जहान में
यदि तुम अच्छा इन्सान,
मिलना तब तो मुश्किल है
जब बुरी तुम्हारी सोंच है।।
बादलों के पीछे…
May 21, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
आसमान में स्याह
बादलों के पीछे,
मैने तुम्हें देखा
सफेद रंग की टोपी लगाए
लाल रंग की शर्ट पहने
तुम कोई चित्र बना रहे थे
किसी की घनी जुल्फें,
गोरी रंगत, पैरों में पायल
होंठो पे लाली
तुम्हारी पेंटिंग देखकर
लगा जैसे तुम मेरा ही चेहरा
उतार रहे हो,
पर तुम्हारे चित्र में और मुझमें
बस एक अन्तर था,
वो तुम्हारी कल्पना थी
और मैं तुम्हारी प्रेयसी…
एक लम्बी साँस लेकर°°°
May 21, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
सो जाते हैं हम
एक लम्बी साँस लेकर,
नींद में तुम्हें देखने की
तमन्ना रखते हैं ।
बार-बार खोलते हैं हम आँखें,
इस तरह तुम्हारे इन्तज़ार में
हम पूरी रात नहीं सोते हैं।।
कविता मन तक आती है
May 21, 2021 in मुक्तक
तुम्हें बोलने को कुछ
कविता मन तक आती है
पर संस्कार हमारे
हमें गूंगा बना देते हैं…
मैं भारत माँ की जाई हूँ….
May 21, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
ये भारत भूमि है अपनी
मैं भारत माँ की जाई हूँ
किसी दीवाने के दिल की
मैं मीठी सी रुबाई हूँ
मेरे संबंध है सब कुछ
यही अब मेरी दौलत हैं
नहीं ये पूंछो अब मुझसे
मैं कितनी चोट खाई हूँ ।।
“वो अब कहते हैं मत बोलो” (छंद बद्ध)
May 21, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
तबाही मेरे मन की तुम
हंसी में लेके मत डोलो
मेरे गीतों को अपने
प्रेम के भेंट मत बोलो
जो कभी मरते-मिटते थे
मेरे अल्फाजों के दम पर,
कि अब देकर हमें कसमें
वो अब कहते हैं मत बोलो।।
“सुख की प्राप्ति”
May 21, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
आज अर्ध-निद्रा में ही
कुछ जागने की चेष्टा की
जाने कितनी दूर चलकर
मैं जाने कहाँ पहुँच गई !
अर्द्ध विक्षिप्त अवस्था में,
देखा तो हजारों पुष्प
सोने के सरोवर में स्नान करके
पूजा करने जा रहे हैं
माँ गौरी की पूजा
मैने भी उस स्वर्ण सरोवर में
स्नान किया और
पूजा की,
मन को शांति मिली
सुख की प्राप्ति हुई।।
आकांक्षाओं की माला
May 21, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
आकांक्षाओं माला
इतनी वृहद होती है कि
उनकी एक माला जपते-जपते
हीरे जैसे कीमती संबंध
बिखर जाते हैं ।।

अक्सर बंद कमरे में सिसकियाँ निकल जाती हैं…
May 20, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
हम महफिल में रकीबों से
घिरे रहते हैं,
अक्सर बंद कमरे में
सिसकियाँ निकल जाती हैं।।
हिसाब नहीं••••
May 20, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
हृदय पर कितने पत्थर रखे हैं
हिसाब नहीं
हम तुम्हें याद कर कितना रोए हैं हिसाब नहीं।
तुम देते रहे सितम अपनी मदहोशी में
हमारे जमीर को कितनी चोट लगी हिसाब नहीं।।

कुष्ठ रोग:- मन बूढ़ा हो गया….
May 20, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
मन बूढ़ा हो गया
मगर ना मन की
पीर गई
सडकों पर ही
जन्म लिया और
सड़कों पर ही
मर गई,
कोढ़ की काठी,
कोढ़ की काया,
कोढ़ हुआ यह जीवन
मन खनके कितने
कंगना
मिल पाये ना साजन,
मिल पाये ना साजन
ऐसा रूप ही पाया
देखा सबने हँसकर
बस माखौल उड़ाया
अब भी दिल के अंगारे
अक्सर जल पड़ते हैं
ना मिलते दो पैसे
भूख से हम
मरते हैं।।
“भारतीय संस्कृति”
May 20, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
भारतीय संस्कृति,
अमिट
अडिग
अति सुन्दर
मनभावन,
स्वीकृत भावों की
भंगिमा है
जिसे अपनाया
सहेजा
संवारा और
ह्रदय तल से
स्वीकृत किया जाता है
जो सदा सबका
हित
लिये रहती है और
संस्कारों की धरोहर
हर मनुष्य को देती है
जिससे सुदृढ़ होता है,
मन
वचन
कर्म
व्यक्तित्व,
जो समयानुसार
परिवर्तित भी होती है
अपने अन्दर
सर्व धर्म समभाव
की भावना लिये रहती है।।
अंतर्राष्ट्रीय शांति:- इजराइल और हमास”
May 20, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
बीच सड़क पर जलते देखो
शोले और अंगारे,
बूढ़े बच्चे और जवान
इस अशांति से हारे।
प्रेम से रहने का पाठ पढ़ाती
है हमारी संस्कृति,
अंतरराष्ट्रीय शांति पर कितनी
लिखी जा चुकी हैं कृति।
पर निस-दिन इस विश्व में देखो
होता रहता है युद्ध,
इतनी अशांति देखकर जग में
प्रज्ञा’ का मन है क्षुब्ध।
इजरायल और हमास को
जाने क्या है सूझा !
ऐसी महामारी के चलते भी
आपस में लड़-जूझा।
बंद करो यह लड़ना-भिड़ना
आपस में सौहार्द बढ़ाओ,
प्रेम से मिलकर रहो और
मित्रता का हाथ बढ़ाओ।।
इसे वर्षों में मत तोलो।।
May 20, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
ये रिश्ते अब अमानत
इन्हें तुम ऐसे मत तोड़ो
अगर कोई शिकायत है
तो हमसे बेझिझक बोलो
मगर ए हुस्न के मालिक !
ना इतरा तू इस तरह से
क्षणिक है हुस्न की महफिल
इसे वर्षों में मत तोलो।।
एकाकीपन…
May 20, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
दिल के दर्मियां कुछ जख्म
हरे हो रहे हैं
वो हमारे और करीब हो रहे हैं
वह अब यह नहीं जानते
इन रिश्तों से मेरा दम घुटने लगा है
हमें अब उनके सहारे से ज्यादा, एकाकीपन भाने लगा है।।
“रिश्तों का यह मेला”
May 20, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
फूलों से भी प्यारा लगता
रिश्तों का यह मेला
जिन रिश्तों ने मुझको पाला
दिया जीवन को नया सवेरा
कुछ रिश्ते दम घोंट रहे
जो स्वार्थ की करते
सवारी हैं
जो देते हैं मुझे प्रेरणा
हम उनके आभारी हैं।।
गौ माता
May 20, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
रुदन कर रही देखो प्यारे
गौ माता निज राहों में
अपने बछड़े को मनुहार से बुलाती
आजा प्यारे बाहों में
अब यह दुनिया नहीं रही
विश्वास के लायक
गौ माता बस एक जानवर
हो चाहे जितनी फलदायक
मिले अगर मौका तो मुझको
मार मार खा जाते हैं
दुनिया के सामने मगर
गौ रक्षा चिल्लाते हैं
पापी दुनिया, पापी पालक
पापी इनकी सोंच है
गौ माता निकले राहों में
दिल में लिये संकोच है।।
“प्रारब्ध की ऊँघ”
May 18, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
अदृश्य,
अकल्पनीय,
प्रारब्ध की ऊँघ,
उच्छ्वास प्रकृति का
है मां का प्यार
प्रभाकर की रोशनी
से भी तीव्र है
ममता की लौ
जिसमें पुलकित होते हैं
नन्हें सुमन
और देते हैं जहान को
सुन्दर सुगंध
प्रदीप्त हो जाती हैं
जीवन की लडियाँ
भर जाता है
जीवन का हर कोना-कोना।।

प्रकृति भी रो रही है…
May 16, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
विश्वास रखते हैं पर फिर भी
टूट जाता है
जब कोई जनाजा
सामने से गुजरता है
क्या कमी थी इस जहान में
सब कुछ तो था
इतनी खूबसूरत थी दुनिया
कोरोना का डर ना था
अब तो चंद मिनटों में ही आदमी
सिमटता जाता है
हर रोज किसी का
अपना चला जाता है
जनाजे दफनाने को भी
जमी कम पड़ रही है
प्रकृति भी यह सब देखकर
रो रही है।।
कुछ उम्मीदों के सिक्के…
May 15, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
कुछ उम्मीदों के सिक्के
यूं ही खनकते रहते हैं
हम आगे बढ़े, तुम आगे बढ़ो
ये ही कहते रहते हैं
पर क्या करें
पैरों में बेड़ियां हैं
सपने बड़े हैं पर
रास्ते में रोड़ियां हैं
इसीलिए पैर थम जाते हैं
जो करना चाहते हैं हम
नहीं कर पाते हैं।।

ऐ खुदा ! तू ही बचा….
May 14, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
चांद आया है जमीं पर
आज मिलने को गले
रमजान पूरे हो गए और
ईद मिलने हम चले
रोंकती राहें हमें है
मिलने जा तू ना कहीं
खौफ दिल में ये भरा है
साँस थम जाए ना कहीं
जो होगा देखा जाएगा
हम ईद मिलने जाएंगे
सवाल उठता है बार-बार
क्या घर लौट के फिर आएंगे ?
कैसा वक्त आया है खुदा ?
इंसान ही बैरी बना
कैसी दूरियां ये आ गईं ?
सब कहते हैं इसे कोरोना
ऐ खुदा ! अब तू ही बचा
अपने मासूम बंदो को
फिर जलाकर के चिराग
रौशन कर दे चमन को।।

शेषनाग पर सोते हैं….
May 14, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
ना सोचा था हमने कभी भी
ऐसे दिन में आएंगे
घर में बैठकर तोडेंगे रोटी
कमाने कहीं ना जाएंगे
होंगे इतने आराम पसंद
दरवाजे पर ही सब्जी लेंगे
जो बन जाएगा वह खा लेंगे
दिन में भी खर्राटे लेंगे
फोन उठाने में भी आलस
हमको अब आ जाएगा
लेटे-लेटे कमर दुखेगी
बिजली का बिल बढ़ जाएगा
लॉकडाउन ने हमें सिखाया
एक दिन में कितने सेकंड होते हैं
घर की महिलाएं काम करें और हम
विष्णु जी के जैसे शेषनाग पर सोते हैं।।

“ईद मुबारक”
May 14, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
मोहब्बत का पैगाम लेकर
आया है यह चांद
अम्मी, अब्बू, खाला और
आओ भाई जान
बड़े तसव्वुर से गुजरे
रोजे-रमजान
ईद मुबारक हो सबको
हिंदू हो या मुसलमान
मस्जिद से आया बंदों
एक जरुरी पैगाम
अपने घर में ही नमाज पढ़ो
है यह अल्लाह का फरमान।।

सड़क दुर्घटना:- मानवता निष्प्राण पड़ी है…
May 13, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
मानवता निष्प्राण पड़ी है
कब से देखो तड़प रही है
कोई सहारा देने ना आया
कितने लोगों की भीड़ लगी है
कोई खींचता फोन से फोटो
मेरी लाईव वीडियो वायरल हुई है
हाय करे कोई तौबा बोले
मेले जैसी भीड़ लगी है
नहीं सहारा दिया किसी ने
हाथ भी लगाया नहीं किसी ने
मेरी आत्मा सिसक रही है
मानवता निष्प्राण पड़ी है
कब से देखो तड़प रही है।।

कितनी रातें…
May 13, 2021 in शेर-ओ-शायरी
जाने कितनी रातें रो कर बता देती हूं
तेरी याद में खुद को भी भुला देती हूं

कौन मुझे अब अपनाएगा…???
May 12, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
कोरोना से सिमटते परिवारों की व्यथा:-
कैसा जीवन हाय ! हमारा
लगता ना कोई भी प्यारा
मम्मी, पापा, दादी, बाबा
भाई जो कल ही था
दुनिया में आया,
चले गए सब छोड़ मुझे अब
कौन करेगा प्यार मुझे अब !
कौन बलाएं मेरी लेगा ?
कौन अब मेरे संग खेलेगा ?
किसको अब मैं तंग करूंगी ?
किसकी गोदी में खेलूंगी ?
सोच रही है यह प्यारी गुड़िया
जो कल तक थी आफत की पुड़िया आज बैठी है चुप्पी बांधे
निज आँखों के अश्रु साधे
शेष बची बस एक ही दौलत-
गोद में गुड़िया और साँसों की मोहलत
कैसे जीवन जिया जायेगा !
कौन मुझे अब अपनायेगा…!!

दिन गुजरेंगे ये दुखदाई….
May 12, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
असमंजस में जीवन गुजरा
विपरीत दिशा जाती सांसें
कोहराम मचा चहुँ ओर
रोती बिलखती दिखती आंखें
पीर उठे दिल में ‘प्रज्ञा
चीख उठे पत्थर दिल भी
ऐसे दृश्य ना देखे हमने
कल्पना भी कभी न की
दिन गुजरेंगे ये दुखदाई
होगा फिर से नया सवेरा
विनती करते हैं ईश्वर से
मिट जाएगा यह घोर अंधेरा

सवाल उठाते रहे…
May 10, 2021 in शेर-ओ-शायरी
मेरी मोहब्बत पर तुम
सवाल उठाते रहे
ऐसा तुम यार बार-बार
करते रहे
तुम आओगे मुझे मिलने…..
May 10, 2021 in मुक्तक
तुम आओगे मुझे मिलने
खबर ये जब से सुन ली है
अपने अरमानों की डोली
हमने फिर से बुन ली है….
है नामुमकिन मिटा पाना…..
May 10, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
है नामुमकिन
मिटा पाना
मेरे दिल से
मोहब्बत को
तेरी नजरों की
शोखी को
होंठों के हस्ताक्षर को
जो तन से लेकर
मन तक छपे उन
मौनी चुंबनो के ठप्पे
मिट कैसे पाएगें
लगे तन से जो मन तक हैं
छपे तन पे जो छापे हैं
वो अब हरगिज
ना जाएगे
बड़ी मुश्किल में
अब हैं हम
मिटा अब कैसे पायेंगे…. !!!
कलम और स्याही°°°
May 10, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
मेरी कलम और मेरी स्याही
लिखते लिखते बोल रही
ओ सखि ! तू किन ख्वाबों को
पन्नों पर उकेरती रहती है ?
रातों को जगकर
खामोंखा जाने क्या लिखती रहती है!
मैं बोली-
ओ बावरी कलम और स्याही!
लिखती मैं दिल के जज्बातों को
तू ना समझी क्यों ना समझी
मेरे ऐसे हालातों को
बातें जो रह जाती हैं दिल में
होंठों तक ना आती हैं
मेरे दिल में पावस बनकर
दिल में ही रह जाती हैं
मैं उन बातों जज्बातों को
पन्नों पर लिख देती हूँ और
इसी बहाने से खुद को कवयित्री कह लेती हूँ…
तू किसी रेल-सी गुजरती है…!!
May 10, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
तू किसी रेल-सी गुजरती है
मैं पटरी-सा थरथराता हूँ
दूर तुझसे नहीं रहता
तेरा स्पर्श पाता हूँ
जवाबों की सवालों की
कहाँ बातें रहीं अब तो
तू मेरी साँसों जैसी है
मैं जीवनदान पाता हूँ
बरस कर बूंद-सी तू मिलती
मेरी सर- जमीं पर है
बना मैं सीप से मोती मगर
बिखरा-सा जाता हूँ
धूप हो चाहें गर्मीं हो
तू पीपल-सी घनेरी है
तेरा आगोश में आकर ही मैं
आराम पाता हूँ…
जो गज़लों में मोहब्बत हो !!!
May 10, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
जो गज़लों में मोहब्बत हो
तो कैसा हो ?
तो कैसा हो ?
जो आँखों में शरारत हो
तो कैसा हो ?
तो कैसा हो ?
छनक कर तू मिले लफ्जों-सा मुझसे
चूम ले मुझको
तुझी में डूब जाऊं मैं
तो कैसा हो ?
तो कैसा हो ?
दिलों की रेलगाड़ी में
सफर करके तू जब थक जा
मेरे कांधे पे सुस्ता ले
तो कैसा हो ?
तो कैसा हो ?
रमजान आया है…
May 10, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
हमसे करो वफा
कि अब वो वक्त आया है
चांद की ओढ़नी ढक कर
मेरा महबूब आया है
है दिन बीत ना कुछ खाया
रहा प्यासा ही पूरा दिन
कि अब रमजा़न आया है
तुम्हारी सूरत दिखी जिस दिन
समझ लूंगा उसी दिन ईद
जुल्फों की ओट में छिपकर
ऐ प्रज्ञा! मेरा चांद आया है….
पन्ना:- “मोहब्बत की तालीम”
May 10, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
हर पन्ने पर तुम मोहब्बत को लिखते हो
किसी की मोहब्बत में खोए से
लगते हो
आज पढ़ी तुम्हारे दिल की डायरी उलटकर
मोहब्बत की तालीम लिये से
लगते हो
यूं तो हमारे बीच कोई रिश्ता नहीं फिर भी,
मेरी तरह मोहब्बत में तुम बर्बाद लगते हो….
“रावण का अहंकार”
May 10, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
जो मनुज होते हैं धरातल पर ही रहते हैं
जो दनुज होते हैं पवन में उड़ते रहते हैं
रावण का अहंकार जब हद से बढ़ता है,
लेकर धनुष और तीर राम संहार करते हैं
यह मत समझ तू मूढ़ बुद्धी है नहीं मेरे
बहरूपियों के हर रूप से हम परिचित रहते हैं..

मां तेरे आंचल में छुप जाने को जी चाहता है
May 9, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
मदर्स डे स्पेशल:-
माँ तेरे आँचल में
छुप जाने को जी चाहता है
थक कर चूर हूँ मैं आज जिंदगी से
तेरी गोद में सर रखकर
सो जाने को जी चाहता है
कोई नहीं डाटता अब
देर रात तक जागने पर
माँ तेरी वही डाट खाने को जी चाहता है
आज है मेरी थाली 5 star जैसी
पर माँ तेरे हाथ से रोटी खाने को जी चाहता है।।
अर्धागिंनी बन जाऊंगी
May 8, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
जरा- सा वक्त लगेगा
तुमको समझने में, जान पाने में
पर जब तक दिलों के बीच
दूरियां हैं तब तक
नजदीक ना आना…
जब तुम्हारी सांसों की खुशबू
मेरा मन भिगाएगी,
तुम्हारी रूह की गर्मी
मेरे तन को तपाएगी
तब तुम्हें अपनी निगाहों में
छुपाऊंगी,
तब तुम्हें परमेश्वर बना,
अर्धांगिनी बन जाऊंगी….
वो हमसे कहते हैं
May 8, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
वो हमसे कहते हैं कुछ ढंग का लिखा करो प्रज्ञा,
जिन्हें खुद कलम पकड़ना नहीं आता.
आज वो हमको बेशर्म कह रहे हैं
जिन्हें खुद शर्माना नहीं आता
कैसे कैसे दिन देखने पड़ रहे हैं प्रज्ञा,
वो हमें हद में रहना सिखा रहे हैं, जिसे खुद हद में रहना नहीं आता
हमें मोहब्बत का पाठ पढ़ाने चले हैं वो,
जिन्हें खुद मोहब्बत करना नहीं आता….
रद्दी है सरकार…..
April 30, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
रद्दी है सरकार
बदल डालो तुम इसको
सिस्टम है लंगड़ा
पकड़ा लाठी दो उसको
विकलांग हो गई सोंच
सोंच को बदलो अपनी
वोट की खातिर तुम
जान जोखिम में ना डालो अपनी
क्या हो गया भला
तुम्हारा इन नेताओं से
घर में रहो सुरक्षित
बहिष्कृत करो इन्हें जग से
कोरोना हो गया तो क्या
तुम जी पाओगे ?
नेता होंगे विजयी भला तुम क्या पाओगे ????
लोकतंत्र का पर्व है ( व्यंगात्मक छंद)
April 30, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
कोरोना का कहर है
हर गली हर शहर है
फिर भी लोकतंत्र का पर्व है
सोशल डिस्टेंसिग किधर है ?
वोट पड़ रहे हैं धड़ाधड़
वो कहाँ है जिन्हें कोरोना से लगता डर है
कैसा बनाते हैं नेता बेवकूफ
अपने स्वार्थ हेतु
और हम बन जाते हैं
लाइन में लगकर बेखौफ हम
वोट देने जाते हैं
नजर आता हमें अपना फायदा
पर होता किधर है ??
फिर भी…
कोरोना का कहर है
हर गली हर शहर है….
इस जीवन की कुछ कविताएं…
April 30, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
इस जीवन की कुछ कविताएं
तुमको आज सुनाती हूँ
बैठी-बैठी सोती हूँ और
सोती-जगती रह जाती हूँ
सहमी-सहमी हुई हवाएं
मेरे इस जीवन पथ की
धूप लगे कष्टों की और
छांव लगे मनुहारों की
कविता की कुछ पंक्ति लेकर मैं
तुमको आज सुनाती हूँ
इस जीवन की व्यथा मैं मित्रों
तुमको कहके सुनाती हूँ….
कुछ कल्पनाएं…
April 30, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
कुछ कल्पनाएं
कविता का रूप लेती हैं
कुछ विस्मृत हो जाती हैं
कुछ सपनों में मिलती हैं तो
कुछ मद में बह जाती हैं
लेकिन कुछ कल्पनाएं
कल्पानाएं ही रह जाती हैं
सुबक-सुबक कर रोती हैं
सिसक-सिसक रह जाती हैं….
स्याही मेरी सूख गई अब
April 27, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
कुछ लिखने का मन ना करता
शब्द न जाने छीने किसने
बिखरी-बिखरी मेरी कल्पनाएं
रूढ़ हुए जाते सपने
प्यारी लगती अब तो तन्हाई
मीठी मीठी तेरी यादें
पर फिर भी ना लिख पाऊं मैं
स्याही मेरी सूख गई अब
कलम भी ना अब डिग पाए
“पृथ्वी दिवस”
April 21, 2021 in Poetry on Picture Contest
पृथ्वी दिवस (22 अप्रैल) स्पेशल
——————————–
इन दो हाथों के बीच में पृथ्वी
निश्चित ही मुसकाती है
पर यथार्थ में वसुंधरा यह
सिसक-सिसक रह जाती है
जा रही है पृथ्वी अब
प्रदूषण के हाथों में
कितना सुंदर रचा था इसको
लेकर ईश्वर ने अपने हाथों में
कैसा था इसका रूप सलोना
कैसा विकृत रूप हुआ
रे मानव ! तेरे कृत्यों से
धरती का यह स्वरूप हुआ
उगल रही है पवन खफा हो
गर्म-गर्म से गोलों
बुझा ना पाती नदियां अब तो
प्यासे कंठ के शोलों को
ध्वनियों के यह शोर-शराबे
अब ना मन को भाते हैं
दिन प्रतिदिन कर खनन पृथ्वी का
मानव कैसे इतराते हैं
कोप ना देखे पृथ्वी का यह
रहते अपने मद में चूर
जितना सुख पाते हैं भौतिकता से
उतना होते जाते प्रकृति से दूर
कोरोना सम रोग है आया
प्रकृति ने है रोष दिखाया
हे मानव ! अब संभल जा जरा तू
अब तो थोड़ी अकल लगा तू
वृक्ष लगा धरा सुंदर कर दे
पशु-पक्षियों को फिर से घर दे
कल-कल करके नदी बहेगी
जिससे प्राणियों की प्यास बुझेगी
काले-काले मेघ घिरेंगे
धरती सोना फिर उगलेगी
पृथ्वी दिवस* पर प्रण यह कर लो
धरती को फिर से पुलकित कर दो
एक-एक पौधा सभी लगाओ
प्रदूषण को जड़-मूल मिटाओ।।
काव्यगत सौंदर्य एवं प्रतियोगिता के मापदंड:-
यह कविता मैंने सावन द्वारा प्रायोजित ‘पोएट्री ऑन पिक्चर कॉन्टेस्ट में दी गई फोटो को देखकर लिखी है।
जिसमें दर्शाया गया है-
“दो हाथों के बीच में पृथ्वी है तथा तो छोटे-छोटे हाथों को सामने दिखाया गया है”
जिसे देखकर मेरे कविमन ऐसा लगा जैसे:-
ईश्वर के सुंदर हाथों से पृथ्वी, प्रदूषण के
नन्हे-नन्हे हाथों में जा रही है।
मैंने उस चित्र को देखकर अपने दिमाग में स्थापित किया और उसके बाद इस कविता का निर्माण किया।
आपको कैसी लगी जरूर बताइएगा।।
जहां तक बात भाव की है तो यह चित्र भावना प्रधान है।जिसे देखकर अपने आप भावनाएं जागृत हो जाती हैं।क्योंकि पृथ्वी दिवस सिर्फ एक दिवस नहीं है यह एक त्योहार के रूप में मनाया जाना चाहिए।
क्योंकि धरती को हम अपनी मां कहते हैं उसे
स्वच्छ रखना हमारी जिम्मेदारी है।
मैंने चित्र की समग्रता का ध्यान रखा है और साथ ही समाज में एक अच्छा संदेश जाए, इसलिए अपनी कविता को एक संदेशात्मक भाषा में विराम दिया है
पाठक को पृथ्वी के प्रति संवेदनशील बनाकर तथा अपनी गलतियों का एहसास कराकर पेड़ पौधे लगाने के लिए प्रेरित किया है।
ताकि उसमें आंतरिक प्रेरणा जागृत हो और वह पृथ्वी की देखरेख करे, ऐसे काम करे जिससे हमारी पृथ्वी प्रदूषण के हाथों में नहीं बल्कि सुरक्षित हाथों में रहे।
समग्रता, भाव- प्रगढ़ता तथा शब्द-चयन में, मैं कितनी कारगर रही यह तो मैं नहीं जानती !
परंतु मैंने यह कविता बहुत ही भावुक होकर लिखी है ताकि समाज को एक नई दिशा मिले।।
पृथ्वी दिवस’ पर सावन द्वारा प्रतियोगिता
रखने के लिए मैं सावन का धन्यवाद करती हूं।।
होते त्योहार कोई भी मिलकर सभी मनाओ
April 19, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता
यह जीवन है अजर-अमर तो
क्यों द्वेष-भाव तुम रखते हो
वाचन से तो अच्छे हो पर
मन में विष क्यों रखते हो,
मन में विष क्यों रखते हो
जीवन चार दिनों का
जीवन ना देता है
फिर मिलने का मौका
मिलकर रहो सभी
और प्रेम के दीप जलाओ
हो त्यौहार कोई भी
मिलकर सभी मनाओ ।।