by Pragya

‘विचारों का मंथन’

December 15, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

उत्प्लावन करती
हृदय में,
अतृप्त अवांछित आकांक्षाएं
संकीर्ण एवं सूक्ष्म
वेग के व्याकरण’ गढ़ती हैं
असंतृप्त आस्थाओं का प्रतीत प्रेम
मधुमास की मधुर
गर्जना करता है और
ले जाता है
पीपल की घनी छांव में,
जहाँ मधुर गुञ्जन करती हुई
मधुप यौवनीय मधुयामिनी
संगिनी सुंदरियां
प्रेम के भावातिरेक में
मधुर-मधुर कल्पनाएं करती हैं
वही से प्रस्फुटित होती हैं
हृदय में सृजन की
असीमित, अनसुलझी,
अलिखित, अव्यक्त भावनाएं और
आरम्भ होता है
विचारों का मंथन…!!

by Pragya

दर्द की फलियों में बंद थे दंश जो !!

December 15, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जाने क्यूं आजकल
खुद पर प्यार आने लगा है
अपना ही चेहरा
अब हमको रिझाने लगा है
पहले डूबे रहते थे हम
किसी की आँखों की मदहोशी में
अब तो अपना चेहरा ही
हमको भाने लगा है
आँखों से टपकते हैं जब मेरे आँसू
दर्द दिल को अब जियादा
सताने लगा है
है ये साजिश या कोई करिश्मा !
रूबरू मेरे,
मेरा ख्वाब आने लगा है
दर्द की फलियों में
बंद थे दंश जो
अब उन्हीं में हमको बेहद मजा आने लगा है…

by Pragya

हम तुम्हारे हैं

December 15, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम्हारे कानों के झुमके
बहुत ही प्यारे हैं
तुमने मुस्कुरा के जब कहा
हम तुम्हारे हैं
तुम्हारी बोली मुझको भजन-सी लगी
तुम्हारी हँसी भी
फूलों से प्यारी लगी
तुमने जब कहा हम
बहुत प्यारे हैं
थोड़ी-सी हँसी आ गई मुझको
लाज के मारे
छुप गई मैं तो
तुम्हारे इशारे मुझको प्यारे हैं
चलो कह देते हैं हम भी
हम तुम्हारे हैं….

by Pragya

‘मातृभाषा एकमात्र विकल्प’

December 15, 2020 in Other

लेख:- ‘मातृभाषा एकमात्र विकल्प’

मनुष्य ही एकमात्र ऐसा प्राणी है जो अपनी बात दूसरों तक पहुँचाने के लिये भाषा का प्रयोग करता है। वह अपनी बात लिखित,मौखिक व सांकेतिक रूप मे दूसरे तक प्रेषित करता है। भाषा संप्रेषण का कार्य करती है। यह आवश्यक वार्तालाप,भावनाओं,सुख- दुख और विषाद को प्रकट करने मे सहयोग देती है। भारत देश मे लगभग तीन हजार से ज्यादा क्षेत्रीय व स्थानीय भाषाओं का प्रयोग लोगो द्वारा किया जाता है। भारतीय सविंधान मे इक्कीस भाषाओ को मानक स्थान प्रदान किया गया है।
शिक्षा के क्षेत्र मे भाषा का अतिमहत्वपूर्ण योगदान है। भाषा के बिना किसी पाठ्यक्रम व विषय ज्ञान की कल्पना भी नही की जा सकती है। भारत के इतिहास का अध्ययन करने पर हम संस्कृत,पालि,अरबी,फ़ारसी आदि अनेकानेक भाषाओं के बारे मे पढ़ते है। संस्कृत भाषा की महत्ता हमे उसके उन्नत,समृद्ध साहित्य और व्याकरण से ज्ञात होता है।
भारत विविधताओ का देश है। ऐसे मे बहुभाषिता का होना कोई बड़ी बात नही है। बच्चे अपने आस-पास के परिवेश मे प्रचलित भाषा को आसानी से सीख लेते है। जिस भाषा को उनकी मातृभाषा कहा जाता है। इस भाषा को सीखने के लिये बच्चों को कोई विशेष प्रयास नही करने पड़ते। यह उनके द्वारा सीखी गयी पहली भाषा होती है। अपनी मात्रभाषा का प्रयोग अपने दैनिक जीवन मे आसानी से करते है। बच्चे अपनी पहली भाषा यानी मातृभाषा के साथ विद्यालय मे प्रवेश करते है और वहाँ पर दूसरी और तीसरी भाषा को सीखते है।
बच्चों को विद्यालय मे पाठ्यक्रम सीखने मे कठिनाई होती है। विद्यालय मे प्रयोग होने वाली भाषा उनके परिवेश की भाषा से भिन्न होती है। पाठ्यक्रम की भाषा उच्चस्तरीय व क्लिष्टता से परिपूर्ण होती है। उसमे मानक शब्दों का प्रयोग होता है। कभी- कभी तो भाषा ही पूरी तरह बदली हुयी होती है। ऐसे मे ज्वलंत प्रश्न यह उठता है कि बच्चों को अन्य भाषाओं और विषयों का ज्ञान कैसे कराया जाये?
किसी भी भाषा का विकास सुबोपलि यानी सुनना,बोलना,पढ़ना और लिखना पर निर्भर करता है। इसलिये प्राथमिक कक्षाओं मे सुबोपलि का प्रयोग करते हुये बच्चों मे भाषा का विकास करना चाहिये।
कविता पाठ और सस्वर वाचन सुनने की क्षमता का विकास का एक सशक्त माध्यम है। कक्षा मे अध्यापक द्वारा किसी कविता का पाठ करना चाहिये और उसमे प्रयुक्त शब्दों को स्थानीय शब्दो मे वर्णित करना चाहिये। प्रारंभ मे विद्यालय मे बच्चों की स्थानीय भाषा का प्रयोग करते हुये उन्हे अन्य विषयो से जोड़ने का प्रयास करना चाहिये। उसके उपरांत ही बच्चों मे अन्य विषयों की समझ विकसित की जा सकती है।
शिक्षक के सामने तब गम्भीर समस्या आती है जब बच्चे की मातृभाषा, शिक्षक की स्वयं की मातृभाषा और पाठ्यक्रम की भाषा अलग- अलग हो। ऐसी परिस्थिति मे शिक्षक को स्वयं मे सर्वप्रथम बच्चों की मातृभाषा की समझ विकसित करनी चाहिये।
बहुभाषी कक्षाओं का संचालन करके बच्चों मे उनकी मातृभाषा के सहयोग से दूसरी और तीसरी भाषा को विकसित करना चाहिये।
शिक्षकों को भाषा शिक्षण करते समय उच्चारण शुद्ध रखना चाहिए। प्राथमिक कक्षाओं मे बच्चों को सुलेख लिखने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये ताकि उनका लेखन सुन्दर और त्रुटिरहित हो सके। श्रुतलेख भी बच्चों के लिये अनिवार्य होना चाहिये।
भाषा से ही अन्य विषयों की समझ बच्चों मे विकसित होती है तथा अन्य विषयों के सहयोग से भाषा का भी विकास होता है।
शिक्षक को यह जान लेना नितान्त आवश्यक है कि बच्चों की मातृभाषा के सहयोग से ही उन्हे विद्यालय से जोड़ा जा सकता है। मातृभाषा की बच्चों के ज्ञान के विकास का एकमात्र विकल्प है। मातृभाषा के प्रयोग को कक्षा मे प्रयोग करके बच्चों को भयमुक्त वातावरण प्रदान किया जा सकता है। शिक्षा ही जीवन का आधार है। इसलिये बच्चों को बहुभाषी कक्षाओं के माध्यम से ज्ञान प्रदान करते हुये उन्हे सुनहरा भविष्य प्रदान करना ही शिक्षक का पावन कर्त्तव्य है।

by Pragya

‘मधुयामिनी’

December 14, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

रात थी बात थी एक मुलाकात की

तू मेरे साथ था मैं तेरे साथ थी

पढ़ रहे थे तुम रात्रि में रश्मियां

आँच में तेरी मैं फिर पिघलती रही

चूड़ियों ने कहा जो था कहना हमें

पायलों की झनक में था सोना तुम्हें

जुल्फों की छांव में तुम सिमटते रहे

हम तो खोते गये तुमको पाते हुये

चुम्बनी बारिशों में था भीगा बदन

हम तुम्हारी रगों में समाते गये

रातभर ना करी हमनें बातें कोई

गहरे समुन्दर में दोनों नहाते रहे

प्रिय! तुम्हारी- हमारी मधुयामिनी’

हम बिखरते रहे तुम तुमको पाते रहे

by Pragya

मेरी आँखों को ऐसी हँसी आ रही है

December 14, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मेरी आँखों को ऐसी
हँसी आ रही है
जैसे मोमबत्ती जलकर
पिघलती जा रही है
कुछ जल गई रौशनी की फिक्र में
कुछ बेखबर-सी
पिघलती जा रही है
पिघल गई
धागे को जलाने के जश्न में
आधी जली तम मिटाने के लिए
आधी पिघलकर
खुदी में लिपटती जा रही है
नश्वर है
ये अंधेरा और रात का साया,
बता रही है ये और
मचलती जा रही है….

by Pragya

सूर्य की लावण्यता से

December 14, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

लौट चल साथी !
यहाँ गम सबसे जियादा (ज्यादा) है
बेबुनियादी रस्मोरिवाज में
मन उलझा जाता है

करते रहे कोशिश लाख
जिंदगी संवारने की
पर तरुवर में पीत पत्र
फल से जियादा है

नई सुबह की तलाश में
जागे तमाम रात
सूर्य की लावण्यता से
मन ये जागा है

by Pragya

कुछ तो रिश्ता है दीवारों से…..

December 14, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

बेईमान-सा मन
गिरती-उठती दीवारें
आज सिर उठाकर खड़ी हैं
यूँ तो सरचढ़ी हैं
पर कुछ जिम्मेंदारियां भी हैं
छत को संभाले हुए
दिन भर खड़ी रहती हैं
शाम को थककर चूर हो जाती हैं
रात के एकाकीपन में
मेरी नज़रों से फिसलती हैं
सुबह उठकर
मेरी ओर बढ़ती हैं
कुछ तो रिश्ता है दीवारों से
शायद कुछ कहना चाहती हैं!!

by Pragya

प्रेम का बीज

December 14, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

बोया था एक रोज
बड़े नाजोअंदाज से
प्रेम का बीज’
आज उसमें फल पके हैं
मायूसी और बेबसी के
बहुत लदा है वो वृक्ष
माँ अक्सर कहा करती थी
तुम्हारा बोया बीज
एक पुष्ट पौधा बनकर
बहुत फलता-फूलता है
सही कहा करती थीं माँ..!!

by Pragya

कविता: मनमर्जियाँ

December 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

चाहती हूँ एक कविता लिखना
मगर नाकाम हो जाती हूँ
विषय चुनने के लिए
छटपटाती हूँ
शब्द कुछ ऐसे हों
भावनायें मेरी व्यक्त करें
और कह दें
वह जो मैं कह नहीं पाती हूँ
निरर्थक है लेखन
जब तक भाव ना सिमटें
कविता में,
पल्लवित ना हों इरादे
प्रस्फुटित ना हों आकांक्षाएं और
ना चल पायें
मेरी मनमर्जियां….

by Pragya

‘दुःख की गगरी’

December 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मुश्किल बहुत है
खुशियों की तिजोरी भरना
दुःख की गगरी भरने में
दो पल नहीं लगते
झूम जाता है मन
जब कोई अपना कह देता है…

अपनेपन के लिए
तरसता रहता है जीवन
नये सिक्के की तरह है
हमारा ये रिश्ता
थोड़ा घिस जाये
तब पता चल जायेगा कि
कैसा है ???

by Pragya

मुझे लिख लो कहीं !!

December 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मुझे लिख लो कहीं
निकलने लगी हूँ
तुम्हारी स्मृति से…

खयालातों की दुनिया से
बेदखल होने लगी हूँ
मुझे छुपा लो कहीं…

तुम जवाब दो हमको
हम जवाब दें तुमको
बातचीत का सिलसिला
नजरों से शुरू हो तो अच्छा है…

चुप हो जाते हो
जब पूंछती हूँ
मुझसे प्यार है या नहीं
तुम्हारी खामोशी को ही
इजहार समझती हूँ
इसमें बुरा क्या है!!

by Pragya

जुनून था तुमको हरगिज यार !!

December 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

गज़ल
******************
सुना तुमने नहीं हमको,
सुना हमने नहीं तुमको
मगर महसूस करते थे
हर एहसास में तुमको
जुनून था तुमको हरगिज यार!
औरों की मोहब्बत का,
सब कुछ जानते थे हम
मगर रोंका नहीं तुमको
सोंचा था ये हमने
तुम मेरी परवाह करते हो
जताते हो नहीं लेकिन
मुझी से प्यार करते हो
मगर जब तोड़ डाला दिल
तो यह आया समझ हमको
फकत तुम अच्छे लगते हो
मगर ना दिल के अच्छे हो…

by Pragya

तुम्हारा प्यार से बोलना अच्छा लगा मुझे

December 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुमने कहा तो कम से कम
मैं हूँ ना
यही सोंच रही थी मैं
कि कोई है ही नहीं अपना
जो पूंछे हाल हमारा और कहे अपना
लगाई थी आस अपनों से
पर बेगानों ने दर्द बांटा,
तुम नहीं हो अपने
पर फिर भी तुमने हाथ थामा
लगाकर गले से
दी दिल को सांत्वना
थोड़ा आराम आया दिल को मेरे
तुम्हारा प्यार बोलना
अच्छा लगा मुझे…

by Pragya

हम माझी हैं मजधार के

December 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

पत्थर में डाल प्राण
सेतु हम बनायेंगे
माझी हैं मजधार के
पार ही हो जायेगे
ना रुकेंगे हम कभी
आगे बढ़ते ही जायेगे
सूर्य की आँखों से
आँख हम मिलायेगे
और चल पड़ेगे हम
पवन से भी तेज फिर
बालू के ढेर पर
घरौंदा हम बनायेंगे
आसमानी पंख से
भर लेंगे उड़ान हम
अपने हौसलों से
आगे बढ़ते ही जायेंगे

by Pragya

*आँसू मेरे प्राणाधार*

December 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

लिखकर अपने मन की पीर
बोझ करूं मैं हल्का
रोकर मिलता बड़ा सुकून
लगता दिल को अच्छा
आँसू से सींचू मैं जख्म
हरे-भरे लहूलुहान हुए
लेप लगाकर वही जख्म
मेरे प्राणाधार हुए
गटक लिए जो गले में आए
पोंछ लिए जो आँख में आए
दिल से जो बह निकले आँसू
छुपा लिए
कोई देख ना पाए
आँसू ही जीवन का आधार
आँसू मेरे प्राणाधार….

by Pragya

“कुदरत का अनमोल रत्न”

December 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

कुदरत का अनमोल रत्न
********************
कुदरत का अनमोल रत्न है ये जीवन
जब हों फूल से रिश्ते तो
महकता है जीवन
अगर हों बेनाम से रिश्ते तो
सुगंध ही दुर्गंध बन जाती है
फिर बोझिल- सा लगने लगता है जीवन
स्वार्थ की पैनी दृष्टि जब
पड़ती है रिश्तों पर
कंकड़ की तरह
चुभने लगता है जीवन
बेबुनियाद जब अविश्वास
पनप उठता है
ताश के पत्तों के माफिक
बिखर जाता है जीवन…

by Pragya

“अवसाद का सुंदर स्वरूप”

December 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मुझे लिखना कैसे आया ?
अक्सर ये सवाल कर बैठते हैं लोग
मैं कवियित्री क्यों बनी
यही जानना चाहते हैं लोग
पर कोई ये क्यों नहीं समझता
ये कुदरत का वरदान नहीं
मानवता का दिया दर्द है
रिश्तों में बनी गांठ है
मेरे दिल में बनी पस है
ये अवसाद का ही सुंदर स्वरूप है
आत्महत्या का विकृत रूप है
मेरी कवितायें,
मेरी काव्य प्रतिभा को नहीं दर्शाती
ये लोगों द्वारा मुझे नवाजा गया
पीर का सर्वोत्तम तोहफा है….
जो लेखनी के माध्यम से प्रस्फुटित होता है
फलता है, फूलता है..

by Pragya

ये रिश्ता क्या कहलाता है ???

December 12, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आँसू बहाते रहे हम रातभर
इन्तजार करते रहे
कोई आकर पोंछेगा !
कोई हाल तक पूंछने नहीं आया
सिस्कियां कमरे के बाहर तक
जाती रहीं
तड़पकर चीख भी निकलती रही
पर अनदेखा ही कर दिया सबने
हमें ऐतबार था कोई तो आएगा
जो सिर पर हाथ रखेगा,
संभालेगा, पुचकारेगा
पोंछेगा अश्क गालों से
देगा प्यार- दुलार बेशुमार
पूंछेगा रोने की वजह
कम करेगा दिल का दर्द
पर सब सुनते रहे
कोई नहीं आया
सब अपने ही हैं
रिश्ते तो हैं,
मगर कैसे हैं यही दिल सोंचता रहा…!!

by Pragya

आत्मा की संतुष्टि

December 11, 2020 in शेर-ओ-शायरी

सुख की तलाश में हम
अनगिनत इच्छाओं की पूर्ति करते रहे
आशाओं के अम्बार
लगाते रहे
परंतु सुख तो केवल
आत्मा की संतुष्टि से ही मिलता है…

by Pragya

दिल दुःखाने लगे हैं लोग

December 11, 2020 in शेर-ओ-शायरी

बेगाने हो गये हैं लोग
अब कतराने लगे हैं लोग
अपने साये से भी
अब कोई उम्मीद ना रही
जाने क्यूं इतना दिल दुःखाने लगे हैं लोग…

by Pragya

“आत्मीयता का अभाव”

December 10, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

प्यार के हजारों रंग देखे
मगर उन सभी रंगों में
आत्मीयता का अभाव ही मिलता है
लौटकर फिर
तुम्हारे पास आ जाती हूँ
फिर से उलझ जाती हूँ मैं
बातों के जंजाल में,
दुनिया के अनसुलझे प्रपंच में,
ना पूरी हो सकने वाली अकाक्षाओं में….

और बटोरने लग जाती हूँ
दर्द, सिस्कियां, वैमनस्य भरे चेहरों की परछाईयां !!

by Pragya

“विश्व मानवाधिकार दिवस”

December 10, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

१० दिसम्बर १९४८ ई० को
संयुक्त राष्ट्र सभा ने
संयुक्त रुप से मानवाधिकारों की
घोषणा को अंगीकृत किया गया…
जिसमें प्रस्तावना और ३० अनुच्छेद हैं
प्रस्तावना में कहा गया:-
हर मनुष्य को समानता एवं
स्वतंत्रता का समान अधिकार मिलेगा
उसे गौरवपूर्ण जीवन जीने का अधिकार है
मानव अपने हित के लिए
लड़ेगा,
उसके हितों की रक्षा संविधान करेगा..
आज हम मानवाधिकार दिवस मना रहे हैं
पर क्या सच में
अपने हितों की रक्षा कर पा रहे हैं ?????

by Pragya

*मांग की सिन्दूर रेखा*

December 8, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

मांग की सिन्दूर रेखा
******************
हर सुबह बड़े
स्वाभिमान से सजाती हूँ
अपनी मांग में लाल सिन्दूर
मेरे रूप लावण्य में
मैं स्वयं एक
वृहद परिवर्तन पाती हूँ….
मांग की सिन्दूर रेखा
खूब लम्बी सजाती हूँ और
मैं आत्मिक संतोष पाती हूँ
यह मांग की सिन्दूर रेखा
मेरे परिणय के
सुंदर वट के समान है
यह महावर
मेरे आत्मगौरव का मान है…..
मेरी मांग का सिन्दूर
अन्तरिक्ष का ज्ञान है,
मनचलों के प्रेम का
अन्त है,
लौकिक प्रेम की पराकाष्ठा है
मेरे जीवन का मधुर आधार है
ये मेरी मांग की सिन्दूर रेखा……

by Pragya

ढूंढो मेरा प्रेम पथिक !

December 8, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

ढूंढो मेरा प्रेम पथिक !
जाने कहाँ खो गया है
कंकड़ीली-पथरीली राहों में
विस्मृत-सा हो गया है
उदासीन राहों में राही
तुम भी भटक ना जाना
मेरा प्रेम मिले जो कहीं
उसे मेरी याद दिलाना
देना मेरा हाल पता
उसकी भी सुध लेते आना
यदि वह माने बात तुम्हारी
तो अपने संग ही ले आना…

by Pragya

मैं चाँद निचोड़ के लाया हूँ…

December 8, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

पलकों पर सजे थे सपनें
मैं थी नींद के आगोश में,
वो आया सपनों में मेरे
बोला मुझसे हौले से;
पी लो रानी! प्रेम का प्याला
मैं चाँद निचोड़ के लाया हूँ
तेरी खातिर आसमान से
तारे भी ले आया हूँ
मांग सजा दूं आ तेरी
मैं रंगीन सितारों से
तेरे आँचल में रख दूं
तोड़ के फूल बहारों से
रजनीगन्धा महकेगा
नित तेरी जुल्फों में
यह कहकर वो अदृश्य हो गया
मेरी सोई पलकों में,
जब खोली आँखें मैंने
अश्क जमे थे अलकों में……

by Pragya

“मैं हलधर हूँ कहलाता”

December 8, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

नाखूनों से नोंच जमीं
मैंने बोया है
मेहनत का बीज
हलधर हूँ कहलाता
चाहे कह लो
पीर-फकीर
पीता हूँ कुआं खोदकर पानी
बीती निर्धनता में जवानी
पर अपनी मेहनत से
भरता हूँ
मैं सबका पेट
आज मुसीबत
आन पड़ी
हक पे अपनी बात अड़ी
‘भारत बंद है’ तो क्या हुआ ?
कुएं में अभी भी भांग पड़ी
जो होना होगा सह लेंगे
छीन के अपना हक लेंगे
खोदेंगे हम सूखी जमीं
अश्रुओं से अपने सींचेंगे
जो लेकर चाँदी का चम्मच
पैदा हुए हैं राजकुमार
वह हम क्षेत्रपाल की
व्यथा को क्या समझेंगे..!!

by Pragya

और बेधड़ फिर धड़कता है दिल..!!

December 8, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम्हारी मौजूदगी को
नजरंदाज करता है दिल
बड़ी मुश्किल से
संभलता है दिल
साँसों से ज्यादा
तेरी धड़कन में हूँ
यही आजकल
महसूस करता है दिल
जब तू होता करीब तो
थमती हैं साँसें
और बेधड़ फिर धड़कता है दिल..!!

by Pragya

आज की रात रहने दो

December 8, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज अपनी बात करो
मेरी बात रहने दो
नींद नहीं है आती
एक अर्से से मुझे
जुल्फों में सुला लो
तहकीकात रहने दो
मुलाकातों के गुल
खिला लेंगे किसी और दिन
मुझे अपने ख्वाबों में
आज की रात रहने दो’..
यूँ तो तुम्हारी पायल
मेरी हर धड़कन में
झनकती है
मगर जाओ !
आज ऐसी बात रहने दो
बड़ा अंधेरा है
मेरे दिल की गलियों में साहब !
उजाले अपनी यादों के
मेरे साथ रहने दो…

by Pragya

हम बेवफा हो गये’

December 7, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आवारगी में हम
क्या से क्या कर गये !
देते रहे मोहब्बत और
हम बेवफा हो गये,
जाने कैसे डूबा तेरी आँखों में मैं !
सपने सारे टूटे,
हम जुदा हो गये
अब डर नहीं है
खोने का तुझको
तुझसे बिछड़ के हम
लापरवाह हो गये…

by Pragya

आज उठाई कलम है मैंने वीरों की तलवारों-सी

December 6, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज उठाई कलम है मैंने
वीरों की तलवारों-सी
पंक्ति है मेरी इतनी पैनी
नैनों की तेज कटारी-सी
चलती है जब कलम हमारी
स्याही कम पड़ी जाती है
लफ्ज हैं इतने भावुक मेरे
कलम भी रोने लग जाती है
पर ना प्रेम की बात करूं
अब देश को जगाने की बारी है
लेखन हो या नौ सेना हो
हर क्षेत्र में नारी ही नारी है…

by Pragya

आवाज दूं अगर तुम सुनो !

December 6, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हाथ पकड़ा दो कलम
मैं लिखती जाऊं
हर लफ्ज को
तेरे हर एहसास को,
मेरी हर एक पीर को
आवाज दूं गर तुम सुनो !
मैं गायिका बन जाऊंगी
तुम्हारी इक मुस्कान पर
मैं सौ दफा वारी जाऊंगी
है सृजनशक्ति
इतनी मुझमें
लिख सकती हूँ हर
एक चीख को
तेरी बुझती आस को
मेरी ढलती उम्र को…!!

by Pragya

निम्नकोटि की कवि हूँ मैं !!

December 6, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

निम्नकोटि की कवि हूँ मैं !!
हाँ, थोड़ी पागल हूँ मैं
जाने कितनी खामियां मुझमें
फिर भी सब कहते हैं
अच्छी हूँ मैं !
मैं ना लिखती गज़ल कभी
ना लिख पाती नज्म, रुबाई
पद भी मेरे टूटे-फूटे
शब्दों से भी ना बन पाई
उलझी रहती
हर एक पंक्ति
मेरी ओछी भावनाओं से
बन ना पाती एक भी कविता
दूर है मन के भावों से
सड़कछाप है मेरी भाषा
थोड़ी-सी तन्हा हूँ मैं
मेरी कविता है
लक्ष्यहीन !
निम्नकोटि की कवि हूँ मैं !!

by Pragya

गरीब की कुटिया में…!!

December 6, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हो जाए जो तेरी मेहर तो
चमक उठेगी किस्मत मेरी
पड़ा तम में स्वप्न जो
दीप्तिमान हो जायेगा
इस गरीब की कुटिया में
आशा का दीपक
टिमटिमायेगा
पर तू ऐसा कहाँ करेगा !
भरा है जिसका पेट नोट से
उसी का तू भी भरेगा
तन पे जिसके फटे चीथड़े,
उसको कहाँ तू
चादर देगा!!
जो पहने कपड़े मलमल के
तू भी उसी का बदन ढकेगा…

by Pragya

मैं तुम्हारी भार्या हूँ…**

December 6, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

भार्या
**********
मैं तुम्हारी भार्या हूँ
संगिनी पथ की रहूंगी
कष्ट ना होगा तुम्हें
सारे दुःख
मैं खुद सहूंगी
बोलता है मन ये मेरा
तुम व्यथित हो आजकल
डूबते सपनें तुम्हारे
तैरते हैं पलकों पर
प्रिय सवेरा
लायेगा
नई उम्मीद,
नई रौशनी
तुम बनोगे राग मेरे
मैं तुम्हारी रागिनी
सुमन बिछ जायें धरा पर
यदि तुम मुस्कुरा कहीं
कुतर दो यदि नाखून तो
पिघल जायेगी ये जमीं…

by Pragya

पीर-फकीर-सा मेरा जीवन

December 6, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जब-जब चलना सीखा हमने
लोगों ने रोड़े ही लगाये
खुशी के आँसू निकल ना पाए
दुःख ही दुःख
हमने अपनाए
जाने क्या है भाग्य में मेरे
जो मैं करती
सबकुछ उल्टा
पीर-फकीर सा मेरा जीवन
उल्टी नदिया में ही बहता रहता….

by Pragya

दम टूटता गया उम्मीदों का…

December 6, 2020 in शेर-ओ-शायरी

सिलसिले वार दम टूटता गया
उम्मीदों का
अब क्या करेंगे हम
सुनहरे सपनों का
अब तो अपना जीवन भी
किराये का लगता है
क्या करेंगे अब हौसलों के पंखों का ???

by Pragya

बाँसुरी की तान पर राधा दीवानी हो गई

December 6, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

बाँसुरी की तान पर
राधा दीवानी हो गई
मीरा दीवानी हो गई
प्रज्ञा’ दीवानी हो गई
छेंड़ता मुझको है नटखट
नंदबाबा का दुलारा
छोंड़े ना मोरी कलाई
ब्रज की गोपिन का है प्यारा
प्रज्ञा लिखकर प्रेम पाती
अपने मोहन को मनाती
सारी-सारी रात राधा
वृंदावन में रास रचाती
प्रीत में सुधबुध को खोकर
हरि की प्यारी हो गई
बाँसुरी की तान पर
राधा दीवानी हो गई…

by Pragya

नेह का नीर

December 6, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

छलना ही सीखा जीवन भर
अच्छे कर्म कहाँ कर पाए
जीवित होते पौधों को हम
नेह का नीर कहाँ दे पाए
पीर की चादर तान के हम तो
रातोंरात कवि बन गये
और ना कुछ सीखा जीवन में
केवल हमनें अश्क बहाये…

by Pragya

बेजान हुए पत्तों-सा जीवन

December 6, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

बेजान हुए पत्तों-सा जीवन
भूमि पर आकर बिखर गया
वृक्ष की डाली रही अकेली
पत्ता भी पीला पड़ गया
यह सब देख के वृक्ष ने बोला-
ओ डाली ! तू क्यूं
इतना संताप करे
रोज ही गिरकर जाने कितने
पत्ते मिट्टी में मिल गये
मैं कितनों पर आँसू बहाऊं
और कितना विलाप करूं
एक पत्ते के गिर जाने पर
क्यों अपना जीवन बर्बाद करूं
आज गिरा है जो पत्ता तो कल फिर से किसलय होगा
तेरे अधूरे तन पर डाली !
कल फूलों का सहरा होगा

by Pragya

जीवन की आड़ी-सीधी रेखाएं

December 3, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जीवन की आड़ी-सीधी रेखाएं
बनती और बिगड़ती रहती हैं…
देख के कर्मों की गति ये
कभी हँसतीं तो कभी रुवासी रहती हैं…
पथ पर अपने चलने को आतुर
रहती हैं
समय की गति से सौदेबाजी करती रहती हैं…
जीवन की आड़ी-सीधी रेखाएं
बनती और बिगड़ती रहती हैं….

by Pragya

ऐ काश! कोई तो होता…

December 3, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

ऐ काश! कोई तो होता
जो बांहों में ले लेता
कहता मुझसे दो बातें
सबकुछ मेरा ले लेता
मुझ बिन ना कटती रातें
मुझ बिन ना सवेरा होता..
कभी रोती तो रोने ना देता
सारे आँसू पी लेता
जब हँसती तो खुश होता
जब रोती तो रो लेता..
ना करता परवाह जहान की
मेरे पीछे पागल रहता..
मुझे करता प्यार टूटकर
बर्बाद मुझे कर देता..

by Pragya

“हाय रे ! कितनी लोभी दुनिया”

December 2, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

हाय रे ! कितनी लोभी दुनिया
हाय रे ! कितनी लोभी…
अपनी इज्जत बाजारू कर
घर की चलती रोटी…
हाय रे ! कितनी लोभी दुनिया
हाय रे ! कितनी लोभी….
बेंचकर अपने बाप का कफन
खाते हैं देखो रोटी…
हाय रे ! कितनी लोभी दुनिया
हाय रे ! कितनी लोभी…
बच्चे को अपनी ओट बनाकर
मांगे दर-दर रोटी…
हाय रे ! कितनी लोभी दुनिया
हाय रे ! कितनी लोभी….
रिश्ते अब तो काँच से नाजुक
जान से मंहगी रोटी…
हाय रे ! कितनी लोभी दुनिया
हाय रे ! कितनी लोभी….

by Pragya

क्यूं इतना वैमनस्य बढ़ा है ??

December 2, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

क्यूं इतना वैमनस्य बढ़ा है ??
दिल में बम-बारूद भरा है..
मुँह से तो बोले मीठा-मीठा
मन में कितना पाप भरा है
लुटा दी हमनें प्रेम की गागर
फिर क्यों मन में जहर भरा है
जान-बूझकर मुझको वह
महफिल में रुसवाकर रहा है
तिनका-तिनका जोड़ के हमनें
प्यारा-सा आशियां बनाया
वह कौन है जो मेरी छाती को
चाकू से खदखोर (कुरेदना) रहा है !!

by Pragya

माँ ने आखिर विजयश्री पाई..

December 2, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

बिटियारानी ! अब तो आओ
कहां छुपी हो ये तो बताओ
ढूंढ नहीं पाऊंगी अब तो
नहीं सताओ सामने आओ
लुका-छिपी अब बहुत हुई
तेरी माँ बहुत थक गई
कुछ तो खा लो कुछ तो पी लो
सामने आकर दूध ही पी लो
देखो माँ क्या हाथ में लाई !
चॉकलेट, मैगी, आइसक्रीम, मलाई
यह सुनकर फिर लाडली आई
माँ की ममता ने विजयश्री पाई…

by Pragya

‘रोटी की कीमत’

December 2, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

रोटी की लालसा में
भटकते रहते हैं
दर-दर की ठोकरें खाते रहते हैं
रोटी की कीमत क्या होती है
यह सिर्फ हम ही समझते हैं
दिन भर उठाते हैं बोझा
तब रात को दो निवालों से
पेट भरते हैं
किस्मत वाले हैं वो लोग
जो दो वक्त की रोटी का जुगाड़
आराम से करते हैं…

by Pragya

‘तलाशती हूँ मैं जमीं अपनी’

December 1, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

जिम्मेदारी के बोझ तले
दबा रहता है जीवन
जाने किन खयालों में
खोया रहता है जीवन
उठकर तलाशती हूँ मैं जमीं अपनी
आसमां जाने क्या
ढूंढा करता है जीवन…

by Pragya

‘विश्व एड्स दिवस’

December 1, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

आज विश्व एड्स दिवस है
जो HIV के संक्रमण से
जागरुकता हेतु मनाया जाता है…
यह आठ सरकारी स्वास्थ्य
दिवसों में से एक कहलाया जाता है….
सबसे पहले १९८७ में
जेम्स डब्ल्यू बुन और थॉमस नेटर नामक व्यक्तियों यह दिवस मनाया था…
फिर (WHO) के सामने
‘विश्व एड्स दिवस’ मनाने का विचार रखा था…
१ दिसंबर १९८८ के बाद से
यह दिवस हर वर्ष मनाया जाता है..
सरकारी एवं गैरसरकारी संगठनों
द्वारा एड्स से बचाव के लिए
जागरुक किया जाता है….
थोड़ी सुरक्षा और थोड़ी सावधानी,
HIV एड्स से बचाये हमारी जिंदगानी…
यह छूने और साथ खाने से नहीं फैलता है,
एड्स संक्रमित व्यक्ति से प्रेम जताओ यही मानवता है….

विशेष जानकारी:-
एड्स का पूरा नाम:- ‘एक्वायर्ड इम्यूलनो डेफिसिएंशी सिंड्रोम’ है और
यह एक तरह का विषाणु है,
जिसका नाम HIV (Human immunodeficiency virus) है…
विश्व एड्स दिवस’ मनाने का उद्देश्य एचआईवी संक्रमण की वजह से होने वाली बीमारी एड्स के बारे में जागरुकता बढ़ाना है…
एड्स वर्तमान युग की सबसे बड़ी स्वास्थ्य समस्याओं में से एक है. UNICEF की रिपोर्ट के मुताबिक 37.9 मिलियन लोग HIV के शिकार हो चुके हैं. दुनिया में रोज़ाना हर दिन 980 बच्चों एचआईवी वायरस के संक्रमित होते हैं, जिनमें से 320 की मौत हो जाती है. साल 1986 में भारत में पहला एड्स का मामला सामने आया था. भारत सरकार द्वारा जारी किए गए आकड़ों के अनुसार भारत में एचआईवी (HIV) के रोगियों की संख्या लगभग 2.1 मिलियन है…

इसीलिए इसका बचाव व उपचार करना जरूरी है..

क्यों होता है एड्स ??

१-अनसेफ सेक्स करने से.
२-संक्रमित खून चढ़ाने से.
३-HIV पॉजिटिव महिला के बच्चे में.
४-एक बार इस्तेमाल की जानी वाली सुई को दूसरी बार यूज करने से.
५-इन्फेक्टेड ब्लेड यूज करने से…

लक्षण:-
-बुखार, पसीना आना,ठंड लगना, थकान, भूख कम लगना, वजन घटा,उल्टी आना, गले में खराश रहना, दस्त होना, खांसी होना
सांस लेने में समस्‍या, शरीर पर चकत्ते होना, स्किन प्रॉब्‍लम…

by Pragya

कफन भी बाँध लेंगे…

December 1, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

ऐ वतन !
तुझ पर हम अपनी जान लुटा देंगे
तेरे कदमों में आसमां भी झुका देंगे
गर आबरू पर तेरी आँच आई कभी
दुश्मन को हम चीर-फाड़ देंगे
है जुनून हमको तेरी मोहब्बत का
तेरा तिरंगा ओढ़कर जय हिंद बोलेंगे
गर दुश्मन हमारी सरहद पर
आया कभी लड़ने !
तिरंगा क्या हम कफन भी बाँध लेंगे..

by Pragya

तुम्हारा वो सॉरी वाला मैसेज

December 1, 2020 in हिन्दी-उर्दू कविता

तुम्हारा वो sorry वाला मैसेज पढ़कर
जाने क्यूं आँख में आँसू आ गये !
सुनने में तो बहुत अच्छा लगा
कि तुम्हें अपनी गलती का एहसास तो हुआ !
पर जाने क्यूं एक टीस-सी
उठी दिल में…
शायद तुम्हारा स्वाभिमान से उठा सिर
ही मुझे पसंद है
तुम्हारा झुका हुआ सिर मुझे
बिल्कुल अच्छा नहीं लगता
अब कभी मुझे sorry’ मत बोलना
वरना मुझे रोता हुआ पाओगे…

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