आंखें बोझिल हैं मगर

February 5, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

आंखें बोझिल हैं मगर, नींद गई है रूठ,
लगता है कुछ आस भी, आज गई है टूट।
वो खर्राटे मार कर, उड़ा रहे हैं नींद,
हम कोशिश करते रहे, अपनी आंखें मीच।

कभी मीठा कभी खट्टा

February 3, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

कभी धूप सुहाती है
कभी भाती है छाया,
कभी विरक्ति आती है
कभी लुभाती है माया।
कभी मीठा कभी खट्टा
कभी कड़वा कसैला,
बदलते स्वाद भाते हैं
अलग से ख्वाब आते हैं।
समय अस्थिर, न कुछ स्थिर
न मैं स्थिर न तुम स्थिर
धरा भी घूमती रहती
सांस तक है पलक अस्थिर।
नजर जब दूर तक डाली
अंधेरा था उजाला था
सभी प्रकृति का सृजन
सभी उसका निवाला था।
आज जो पात गिरते हैं
वही तो खाद बनते हैं,
गिरे पत्ते बने माटी से
पौधे स्वाद लेते हैं।
चला है चक्र सृजन का
चला है चक्र मिटने का,
सभी अस्थिर नहीं फिर भी
किसी भान को झुकने का।

रोकना मत तुम कदम

February 2, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

लक्ष्य कहता है कि पथ में
लाख बाधाएं रहेंगी,
जब व्यथित हो जाओगे
टूटने वाले ही होगे,
तब समझना आ गए हो
पास मेरे,
सौ निराशा मार्ग घेरें,
रोकना मत तुम कदम को,
एक दिन पाओगे मंजिल
छू रहे अपने कदम को।
वो करो जो आज तक
कोई नहीं कर पाया था,
उसको पाओ आज तक
कोई नहीं पा पाया था।
मत रखो डर-भय किसी से
मार्ग यदि सदमार्ग है,
तुम चुनो उस राह में जो
सत्य का ही मार्ग है।

अंधेरे में उजाले सी

January 31, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

आपकी मुस्कुराहट है
अंधेरे में उजाले सी,
बिलखती भूख में पाये
उदर के लघु निवाले सी।
मिटाती मानसिक पीड़ा,
उगाती कुछ सुकूँ के पल,
यही तो है दवा मन की
यही दुश्वारियों का हल।

रखो मत संशय मन में

January 31, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

बीते दिन से सीख कर, कदम बढ़ा लो आज,
जीवन को भरपूर जियो, जी लो पल पल आज,
जी लो पल पल आज, रखो तुम आशा कल में,
आज बदल जाएगा, जल्दी से बीते कल में।
कहे कलम तुम आज न खोना कल के गम में,
बीते से लो सीख, रखो मत संशय मन में।

साझी साइकिल ले लेते

January 31, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

खेल चल रहा था बच्चों का
छोटे छोटे बच्चे थे,
आपस में वे प्यारी प्यारी
बातें बोल रहे थे।
कोई थे धनवान घरों के
कोई थे धन से कमजोर,
लेकिन बच्चे सभी बराबर
बात कर रहे थे दिल खोल,
एक बोला मेरे पापा
जन्मदिवस पर लाये हैं
गियर वाली साइकिल का तोहफा
सात हजार में लाये हैं,
दूजी बोली मैं भी जल्दी
साइकिल लेने वाली हूँ,
पांच हजार की सुन्दर सी
मैं साइकिल लेने वाली हूँ,
सात बरस की एक गुड़िया
ग्यारह की दीदी से बोली,
दीदी अगर दस रुपये की भी
साइकिल आती होती तो
तुम भी लेती मैं भी लेती,
इतनी सस्ती आती तो।
अगर बीस की भी आती तो
साझी साइकिल ले लेते,
खूब सवारी करते रहते
हम भी खूब मजे लेते।

तब कवि कहाँ हैं हम

January 30, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

गलत को यदि गलत बोलें नहीं
तब कवि कहाँ हैं हम,
बन्द आंखें कर चलें तब
कवि कहाँ हैं हम।
जी हुजूरी में रहे
आदत कलम की है नहीं
यदि किसी से दब गए
तब कवि कहाँ हैं हम।
झूठ की ताकत भले
छूने लगे ऊँचा गगन
साथ सच का छोड़ दें
तब कवि कहाँ हैं हम।
खेल हो जब दूसरे की
भावना से खेलने का
हम समझ पायें नहीं
तब कवि कहाँ हैं हम।
बह रहा हो अश्रुजल
छल-छल किसी मासूम का
पोंछ पायें गर नहीं
तब कवि कहाँ हैं हम।
छीनता कोई दिखे जब
हक किसी मासूम का
रोक पायें यदि नहीं
तब कवि कहाँ हैं हम।

मुस्कान बांधे जा रही है

January 29, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

तेरी मुस्कान बांधे जा रही है , हमें ………..
जिंदगी की डोर बनकर
रंगीन सुतली की तरह,
लिबास की बैल्ट समझ ले
या फिर आजकल का इलास्टिक
रम गई है उस तरह तू
जिस तरह से जिंदगी में
घुलमिल गया है प्लास्टिक,
………. डा0 सतीश पाण्डेय, चम्पावत

उमंग रोशनी है, उसे न मंद रखना

January 28, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

उमंग ऐसी जगाओ स्वयं के जीवन में,
फटक न पाए निराशा कभी भी जीवन में।
रखी नहीं रहती सजा के थाल में खुशियां,
वरन स्वयं की मेहनत से,
जीतनी आज हैं तुम्हें खुशियां।
उमंग रोशनी है, उसे न मंद रखना,
हौसले कम न हों बुलंद रखना।
फूल से बन सको, न बन पाओ,
मगर तहजीब में सुगंध रखना।
कष्ट को तेल की कढ़ाई सा
स्वयं को मानकर जलेबी सा
पहले तपना उबलना भीतर तक
खांड में जा मिठास पी लेना।
खुद के अनुकूल कर परिस्थिति को
कष्ट के बाद सुख से जी लेना।
उमंग बढ़ती रहे बढ़ती रहे
उमंग पर उमंग पा लेना।

स्वयं जल कर उजाला करना है

January 28, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

जिंदगी में अभाव रहते हैं
मगर तुझे अभाव में सँभलना है,
पैर रख कर कंटीली राहों में
लक्ष्य तक स्वयं पहुंचना है।
बाहरी छोड़ कर सारा दिखावा
आत्मा के स्वरों को सुनना है।
छोड़ कर उलझनें व घबराहट
खूब हिम्मत का मार्ग चुनना है।
ढक सके जो भी मन की पीड़ाएँ
इस तरह का लिबास बुनना है।
सब बढ़ें खूब सारी उन्नति को
तुझे नहीं जलन में भुनना है।
आँसुओं का बहाव आये तो
उसे सुखा सुखा के चलना है,
गर कभी क्रोध खुद में आये तो
उसे रुका रुका के चलना है।
यदि कभी पा सकें सफलता तब
तन जरा सा झुका के चलना है।
अभाव रोकें तेरी राह और भावों को,
तुझे किसी भी तरह भय से नहीं दबना है।
जब कभी घेर ले अंधेरा तब
स्वयं जल कर उजाला करना है,
खूब उत्साह भर निगाहों में
निराशा का दिवाला करना है।

किसकी उपमा दूँ

January 28, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

खूबसूरत हो मगर
कैसे कहूँ कैसे हो,
किसकी उपमा दूँ
और बोलूं कि ऐसे हो।
पुराने कवियों ने
कहा कि फूल हो तुम
अब बताओ नया
क्या कहूँ कि क्या हो तुम।
परन्तु कुछ तो कहूँ
लेखनी की जिद है यह,
कह रही श्वास का
सहारा हो, लिख दे यह।
जिन्दगी खूबसूरत है
कि आप हो इसमें,
मन रमा है सब खिला है
आप हो इसमें
कपोल आपके
जिन्दगी का दर्पण हैं,
नैन आशा है, मन की
नासिका गुमान सी है।
सुबह की लालिमा है
होंठ में सजी लाली,
नैन में रम रहा
जो काजल है
मनोहर सांझ का
लगता पल है।
समूचा चेहरा यह
क्या लिखूं किस कि कैसा है
पेड़ में लग रहे
लाली लिए फल जैसा है।

क्यों समझते हो नहीं

January 28, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

मजबूरियां तुम दूसरे की
क्यों समझते हो नहीं,
भाव दिखते वेदना के
क्यों समझते हो नहीं।
गोद में बच्चा पकड़कर
ठुस भरी बस में कोई
माँ खड़ी हो तो उसे
क्यों सीट देते हो नहीं।
यदि कोई बालक किसी का
हो भटकता राह में,
ला उसे सदमार्ग में
क्यों लीक देते हो नहीं।
गर कोई माने न माने
फर्ज अपना मानकर
पथ भटकते को भला
क्यों सीख देते हो नहीं।
जब कोई बच्ची दिखाती
खेल रस्सी में कदम रख
तालियों के साथ
मजबूरी समझते हो नहीं।
मूंगफलियां बेचते जो
दौड़ते हैं गाड़ियों में
उन निरीहों की व्यथा को
क्यों समझते हो नहीं।

मगर तुम पंख उगाओ(कुंडलिया छन्द)

January 27, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

ऊंचे उड़ना चाहता, है मेरा मन आज,
लेकिन पंख उगे नहीं, माने खुद को बाज।
माने खुद को बाज, हवा में उड़ता है बस,
भूल असलियत स्वयं, भूमि पर गिरता है बस।
कहे लेखनी उड़ो, मगर तुम पंख उगाओ,
निज मेहनत से तुम, सच्ची मंजिल को पाओ।
*************************
चादर छोटी रह गई, पैर देखते ख्वाब,
ठंड लग रही ठंड को, आग में है अब्वाब।
आग में है अब्वाब, मिटे अब कैसे ठिठुरन,
चादर छोटी नहीं, मगर उसमें है सिकुड़न।
कहती कलम जितनी, चादर है पैर खोलिए,
छोड़ सभी उलझनें, खुशी के बोल बोलिए।
—— डॉ0 सतीश चंद्र पाण्डेय
विशेष- कुंडलिया छन्द।

भूखा गली में सोया

January 27, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

दर्द आम जन का
समझो तो तब मनुज हो
आवाज बन सको तो
सचमुच में तब मनुज हो।
भूखा गली में सोया
पूछा नहीं किसी ने
बच्चा भी उसका रोया
पूछा नहीं किसी ने।
वो गिर पड़ा अचानक
पैरों में दम नहीं था,
लोगों ने समझा कोई
दारू पिया हुआ है।
पैसे का बल दिखा कर
शोषण किया था उसका
सब देख कर भी हमने
यह मुँह सिया हुआ है।
मतलब ही क्या है हमको
लूटे किसी को कोई,
यह सोच कर ही हमने
यह मुँह सिया हुआ है।
वो रो रही थी पथ में
हमने न पूछा कुछ भी
हम चल दिए फटाफट
यह मुँह सिया हुआ है।
ठंडा उसे लगा था,
चिपका हुआ था माँ से
हमने किया न कुछ भी
यह मुँह सिया हुआ है।
ऐसे में कैसे बोलें
हम दर्द जानते हैं,
इंसान-जानवर में
हम फर्क जानते हैं।
सचमुच में यदि मनुज हैं
मुँह खोलना ही होगा,
दर्द में मनुज के
कुछ बोलना ही होगा।

चुप रहे

January 27, 2021 in मुक्तक

वे न बोले हम न बोले
चुप रहे,
सच के आगे आज भी हम
छुप रहे,
रोशनी में डाल कर पर्दा बड़ा
बस अंधेरे के ही
नगमे लिख रहे।

लेकिन जो हुआ गलत ही था

January 27, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

गणतंत्र पर ऐसा होना
हम सबकी ही नाकामी है
सबका पत्थर हो जाना
हम सबकी ही नादानी है।
न इधर झुके न उधर झुके
सूखी लकड़ी से अड़े रहे,
अलग रंग के झण्डे क्यों
ऐसे राहों पर खड़े रहे।
दुनिया हँसती है इन सब से
ऐसी बातें तो उचित नहीं
ऐसे उलझन को देख देश की
जनता सारी व्यथित रही।
चाहे कमियां जिसकी भी हों
लेकिन जो हुआ गलत ही था
कहना क्या है सुनना क्या है,
यह राष्ट्र पर्व पर गलत ही था।
नाम देश का ऐसे कैसे
ऊँचा होगा मनन करो,
कुछ भी हो मिलजुल कर सारे
भारत माँ को नमन करो।

सच्ची श्रद्धांजलि होगी

January 26, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

सभी अपना काम
ईमानदारी से करें,
जो दायित्व हो अपना उसे
सच्चाई से पूरा करें,
भ्रष्टाचार न होने
सदाचार का मार्ग अपनाएं,
वही देश के अमर शहीदों को
सच्ची श्रद्धांजलि होगी,
वही गणतंत्र पर
देश के अमर शहीदों को
सच्ची सलामी होगी।

जय हिंद, जय हिंद

January 26, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

जय हिंद, जय हिंद, जय हिंद
जय भारत, जय भारत,
जय भारत, जय भारत,
जय हिंद, जय हिंद।
हम सबको मिलकर इसकी
उन्नति में जुट जाना है,
सब तरफ रहे खुशहाली,
हरियाली को पाना है।
सब ओर कुसुम खिल जायें
जन-जन के दिल मिल जायें,
गुंथ एक सूत्र में माला
भारत को मुस्काना है।
गणतंत्र का उजियारा
रोशन कर दे दुनिया को,
जन-जन हो जाये तत्पर
खुद की किस्मत लिखने को।
राजा खुद ही प्रजा खुद
सब राजा सब प्रजा हों
गणतंत्र खूब फले अब
सब बराबरी दर्जा हों।
कमियां सब दूर किए जा
उन्नति भरपूर किये जा,
जय हिन्द का कहकर नारा
भारत में नूर भरे जा।
आओ मिलजुल कर गायें
जय भारत के गीतों को,
जय हिंद, जय हिंद
जय हिंद के संगीतों को।

हार जाना नहीं

January 25, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

हार मिलती है मगर, हार जाना नहीं,
सैकड़ों हार से भी, हार जाना नहीं।
तोड़ दे यदि परिस्थिति, टूट जाना नहीं,
प्यार कर जिन्दगी से, रूठ जाना नहीं।
निराशा घेर लेगी, जब कभी भाव तेरे,
उठेगा दर्द मन मन में, छिलेगा घाव तेरे।
तब भी तू हौसले को, डिगाना मत स्वयं के,
सदा चलते रहें यह, कर्मपथ पांव तेरे।
अश्रु बाहर न निकलें, भाव बिल्कुल न बहकें,
तेरे आँगन में मन के, सदा उगड़न ही चहकें।
न हो सुनसान गालियाँ, न सुनसान आँगन,
सदा होता रहे मन, नया सा रंग रोगन।

खुद पर रखो पूर्ण विश्वास तुम

January 25, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

पहले खुद पर रखो
पूर्ण विश्वास तुम,
तब जमाने से मांगो
खुला साथ तुम।
हीन भावों को खुद से
करो दूर तुम,
शक की बातें स्वयं से
रखो दूर तुम।
हो गलत यदि कहीं पर
क्षमा मांग लो
दूसरों की कमी को
करो माफ तुम।
दाग अपने स्वयं ही
करो साफ तुम,
अपने अंतस से बाहर
करो नाग तुम।
खुद के व्यवहार को
तोलना है कठिन
खुद की कमियों में
खुद बोलना है कठिन।
तत्वदर्शी है वो जो
समझता है सब,
दूर वो करके कमी
वो निखरता है तब।
दम है विश्वास में
पहले खुद पर रखो,
हार का जीत का
स्वाद सबका चखो।
कह रही लेखनी
खूब उत्साह से
जिन्दगी को जियो
खूब उत्साह से।

पुण्य घर पर पड़ा है

January 24, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

वृद्ध माता पिता का सहारा बनो
है जरूरत उन्हें तुम सहारा बनो,
याद कर लो वे बचपन दिन आज तुम,
पाले-पोसे थे कितने सलीके से तुम।
आंच आने न दी जिसने तुम पर कभी,
पूरी करते थे तत्काल चाहत सभी,
आज बूढ़े हुए वे, भुलाओ न तुम,
आँसू पोंछो, न आने दो कोई भी गम।
ईश का रूप हैं वे उन्हें पूज लो,
पुण्य घर पर पड़ा है, उसे लूट लो,
कोई तीरथ नहीं, धाम कोई नहीं
सबसे बढ़कर हैं वे और कोई नहीं।

मधु छलके भीतर

January 24, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

कोई दिक्कत है अगर
सीधे सीधे बोल,
भीतर-भीतर विष जड़ी
मत रखना तू घोल।
मत रखना तू घोल
जहर दूजे को देने,
पड़ जायेंगे कभी
तुझे लेने के देने।
कहे लेखनी अमिय,
बाँट ले बाहर भीतर,
होंठों में हो हँसी
और मधु छलके भीतर।

धन उतना हो पास में

January 24, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

धन उतना हो पास में
जितने से हो शांति,
उस धन से क्या फायदा
मन में रहे अशांति।
शांति नहीं गर जिगर में
खो जाती है कांति
उल्टा-सीधा धन कमा
आ जाती है क्लान्ति।
जीवन भर संचित करे
खाऊंगा कल सोच,
खाते समय उदर नली
ले लेती है लोच।
धन ही जीवन लक्ष्य है,
इतना भी मत सोच,
कमा स्वयं की पूर्ति को
और शांत रख चोंच।

पैदा कर लो आग

January 23, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

अपनी आदत बदल कर,
पाओ खूब सुकून।
रोज सीखना है नया,
ऐसा रखो जुनून।
सोते समय नहीं कभी,
हो उलझन में ध्यान,
कभी कभी तलवार को
दे दो उसकी म्यान।
गुस्सा छोड़ो आप भी
नींद निकालो खूब
कभी कभी आनन्द लो
तुम सपनों में डूब।
छोड़ो सारी झंझटें
रातों को लो नींद,
वरना उलझन में समय
जायेगा फिर बीत।
कोशिश कर उम्मीद रख
बदलो खुद का भाग,
ठंडे-ठंडे मत रहो
पैदा कर लो आग।

पैदाइशी समझदार तो

January 23, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

पैदाइशी समझदार तो
हम भी न थे,
मगर परिस्थिति ने
समझने लायक बना दिया
पैदाइशी जिम्मेदार तो
हम भी न थे,
मगर छोटी सी उम्र में
आई जिम्मेदारी ने
जिम्मेदारी उठाने लायक बना दिया।
हमारी उम्र के बच्चे
गुड्डे-गुड़ियों से खेलते हैं
औऱ हम बचपन में ही
सयानी बन गई
अपनी किस्मत से खेलते हैं।
छाती से चिपका कर
छोटे से भैया बहनों को
फुटपाथ पर हम ठंड झेलते हैं।
सुना है बच्चे एक गिलास सुबह
एक शाम, दूध पीते हैं,
हम दूध कहाँ
आधा पेट रहकर जीते हैं।
लोग कहते हैं समाज बहुत आगे चला गया है।
लेकिन हमारा वक़्त वहीं का वहीं रह गया है।

आलस अब तो नैन से

January 23, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

आलस अब तो नैन से, दूर चले जा दूर,
आने दे अब ताजगी, आने दे अब नूर।
आने दे अब नूर, बिछी सूरज की किरणें,
नई रोशनी आज, ला रही मेरे मन में।
कहे लेखनी नींद, अभी तू दूर चले जा,
रात मिलेंगे अभी कहीं तू दूर चले जा।

सच का चिमटा साथ हो

January 22, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

आप इतने निडर बनो, डर डर से भग जाय,
सच का चिमटा साथ हो, भूत स्वयं भग जाय।
आगे ही बढ़ते रहो, पीछे मुड़ो न आप,
सच की माला हाथ में, राम नाम का जाप।
जोर लगाओ रगड़ में, दो पाथर के बीच,
पाथर का पानी करो, पथ को डालो सींच।
चलती चींटी मारकर, मत लेना तुम पाप,
साईं करते न्याय हैं, नहीं करेंगे माफ।

कर क्षण का उपयोग तू

January 22, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

क्षण में जीना सीख ले, क्षण जाता है बीत।
रुकता नहीं एक भी क्षण, चलना इसकी रीत।
कर क्षण का उपयोग तू, पीछे की सब भूल,
अभी अभी है जिन्दगी, आगे पीछे शूल।
क्षण मत खोना बावरे, नशे-नींद में चूर,
जग जा पल पल भोग ले, जी ले तू भरपूर।
आते रहते दिन सदा, जाती रहती रात,
बचपन यौवन बन रहे, बस बीती सी बात।
जो है सब कुछ अभी है, अभी आज में खेल,
अभी सजी है रोशनी, है दीपक में तेल।
कल का किसको ज्ञान है, दीपक रहे कि तेल,
अभी चल रही धड़कनें, अभी आज में खेल।

खूबसूरत है नजारा

January 22, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

पास बैठे हो
बहुत ही खूबसूरत है नजारा
कैद करना चाहता है
इन पलों को मन हमारा ।
जिन्दगी की खुशी
सबसे बड़ी तो आप हो
आज आई है खुशी जब
आप बैठे पास हो।
थे कहाँ अब तक
रहे क्यों, दूर दिल की वादियों से
अश्क की नदियों में रखकर
क्यों छुपे थे कातिलों से।
हम भी क्या बातें पुरानी
कर रहे हैं आज फिर से
ये नहीं लम्हें हैं ऐसे
हाथ से जाने दें फिर से।
आज आंगन खूबसूरत
लग रहा है खूब सारा,
खिल गये हैं फूल
गुलदस्ता हुआ है मन हमारा।
अब न जाना दूर
दिल के पास ही रखना बसेरा
रात बीती हो गया है
नेह का सच्चा सवेरा।

यौवन की तकदीर (दोहा छन्द)

January 22, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

सच्चा सच में रह गया, ठगा ठगा सा आज,
आशा चोरी कर गये, अपने धोखेबाज।
जिनके मन में जम रहा, काले धन पर नाज,
वे भी आज सफेद से, खूब दिखे नाराज।
भूखा चूहा रेंगता, देख रहा है बाज,
सोच रहा है चैन से, पेट भरूँगा आज।
आर्थिक हालत मंद है, यही सुना है आज,
बेकारी से गिर रही, है यौवन पर गाज।
पढ़ा-लिखा भूखा रहा, और खा रहे खीर,
कौन लिख रहा इस तरह, यौवन की तकदीर।
——— डॉ0 सतीश चन्द्र पाण्डेय
मात्रागत सुधार कर संशोधन प्रस्तुत।

संदेश

January 22, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

पुराने मित्र मेरे! जिंदगी की,
हर ख़ुशी तुझको मिले,
तेरी खुशियों से निकल
कुछ तार मुझ तक भी
जुड़े हैं, ठण्ड से सिकुड़े हुए से,
बेरहम यादें संजोये,
गाँठ बांधी हो किसी ने
संवेदनाओं के गले में,
सिर्फ सांसें ले रहा कुछ
बोल पाता हो नहीं,
बोलने की भी जहाँ
कुछ आवश्यकता हो नहीं,
बिन कहे बस सांस से
सन्देश कहता जा रहा हो ,
पुराने मित्र मेरे! जिंदगी की,
हर ख़ुशी तुझको मिले।
……………… डा. सतीश चन्द्र पाण्डेय, चम्पावत,
काव्य विशेषता- यह परकीय संवेदना है, पात्र के किसी बहुत पुराने मित्र से जुड़ी संवेदना है।

यौवन की तकदीर (दोहा छन्द)

January 21, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

सच्चा सच में रह गया, ठगा ठगा सा आज।
आशा चोरी कर गए, अपने धोखेबाज।।
जिनके हृदय में रहा, काले धन पर नाज।
वे क्यों ऐसे श्वेत से, आज हुए नाराज।।
भूखा चूहा रेंगता, देख रहा है बाज।
सोच रहा है चैन से, पेट भरूँगा आज।।
अर्थव्यवस्था मंद है, यही सुना है आज।
बेकारी से गिर रही, है यौवन पर गाज।।
मेहनतकश हैं भटक रहे, और खा रहे खीर।
कौन लिख रहा इस तरह, यौवन की तकदीर।।

खुद को कमतर आंक मत(कुंडलिया)

January 21, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

खुद को कमतर आंक मत, खुद पर रख विश्वास,
दूर रह उन चीजों से, जो देती हों त्रास,
जो देती हों त्रास, मार्ग तेरा रोकें जो,
उनसे मत कर नेह, तुझे कमतर मानें जो।
कहे कलम तू प्यार, कर ले पहले खुद से
मुश्किल सारी दूर, रहेंगी खुद ही तुझसे।
*************************
करना हो विश्वास जब, खुद में कर विश्वास।
बिना कर्म के फल खाऊँ, ऐसी मत कर आस।
ऐसी मत कर आस, कर्म ही सर्वोपरि है,
कर्म बिना इंसान, स्वयं का ही तो अरि है।
कहे लेखनी कर्म बिना कुछ नहीं जगत में,
राज कर्म ही चला रहा है सदा जगत में।
——– सतीश चंद्र पाण्डेय।

भलाई याद रखो

January 21, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

भलाई याद रखो
बुराई भूल जाओ
डिगो मत सत्यता से
भले सौ शूल पाओ।
कभी खुशियों के झूले
आप भी झूल जाओ,
अहो, चिंता की बातें
कभी तो भूल जाओ।
नजरअंदाज करना
कला है सीख लो तुम
आजमा कर इसे भी
निकलना सीख लो तुम।
कई मुश्किल मिलेंगी
कई दुश्वारियां भी
मगर मुश्किल समय में
निखरना सीख लो तुम।
कटो मत दोस्तों से
घुसो महफ़िल में उनकी
जिगर में दोस्तों के
चिपकना सीख लो तुम।

खुद की गलती देख ले(कुंडलिया छन्द)

January 21, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

खुद की गलती देख ले, गर अपनी यह आंख,
तब सुधार होगा सरल, खूब बढ़ेगी साख।
खूब बढ़ेगी साख, कमी खुद दूर रहेगी,
गलत दिशा में न जा, हमेशा यही कहेगी।
कहे लेखनी अगर, देख लो खुद की गलती,
तब पाओगे स्वयं , आप चारित्रिक बढ़ती।

गोदामों में अनाज न सड़े

January 20, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

गोदामों में अनाज न सड़े
बल्कि जरूरतमंद को मिले
गरीब के भूखे बच्चों को
पेट भरकर खाने को मिले।
सरकारी स्कूलों में
तगड़े नियम लगें,
गरीब के बच्चे भी
उच्चस्तरीय पढ़ें।
मध्याह्न भोजन योजना तक
सीमित न रहें सरकारी विद्यालय
बच्चों के भविष्य को
दिखावटीपन न कर सके घायल।
गरीबों की ओर प्राथमिकता की
दृष्टि रखी जाये,
गरीब गृहणी की भी
खनकती रहे पायल।

बेरोजगार की हालत कब सुधरेगी

January 20, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

बेरोजगार की हालत
कब सुधरेगी,
कैसे सुधरेगी,
कब बनेंगी नई नीतियाँ।
कब खुलेंगी खूब भर्तियां।
कोचिंग कर चुके
नौजवान को
कब मिलेगा परीक्षा देने का मौका
कब चलेगा उनका
चूल्हा चौका।
परीक्षा कोई पास कर पाए
या नहीं कर पाये
लेकिन पद तो आएं
परीक्षा तो हो,
निजी क्षेत्र की हो
या सार्वजनिक क्षेत्र की हो
लेकिन रोजगार की नीति तो हो।
परम्परागत शिक्षा के स्थान पर
आम आदमी की पहुँच तक
तकनीकी शिक्षा तो हो।
कुछ न हो लेकिन
युवाओं के लिए सही दिशा तो हो।

परहित

January 20, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

चोट दूजे को लगी हो
आपको यदि दर्द हो
तब समझना आप
सचमुच में भले इंसान हो।
आजकल सब को है मतलब
बस स्वयं के दर्द से
औऱ का भी दर्द देखे
यह मनुज का फर्ज है।
फर्ज अपना भूलकर हम
बस स्वयं में मुग्ध हैं
चाहना खुद जा भला ही
आजकल का मर्ज है।
वे हैं विरले जो स्वयं के
साथ परहित देखते हैं,
खुद के अर्जन से गरीबों का
भला भी सोचते हैं।

मुश्किलें हार जाएं

January 19, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

दर्द का घमंड चूर करो
दर्द में खूब हँसो
तोड़ पाये न हौसला अब यह
खूब हंसकर कर इसे तुम
दूर करो।
मुश्किलों से न घबराओ कभी
बल्कि आ जाओ जिद में
मुश्किलें हार जायें
उन्हें मजबूर कर दो।
समय विपरीत हो जब
हौसला साथ हो तब
बुरे हालात के भी
घमंड चूर कर दो।

दिया बनकर लड़ो अंधेरे

January 19, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

दिया बनकर लड़ो
अंधेरे से
खुद भी रोशन रहो
सभी को रोशनी दो,
किसी की जिन्दगी में
अगर हों स्याह रातें,
आप बनकर सहारा
उन्हें भी रोशनी दो।
प्रेम ही है उजाला
उसे बांटो सभी को,
और बदले में पाओ
मुस्कुराहट का उजाला।
अगर आंगन में घर
कोई पशु भी खड़ा
मिटाने भूख उसकी
दान कर लो निवाला।
जहाँ पर हो रही हो
निरीहों की मदद कुछ
वहीं अल्लाह बस्ते
वहीं सच्चा शिवाला।
बनाओ तन का दीपक
बनाओ मन की बाती
जलो बिंदास होकर
बांट लो अब उजाला।

लौट आओ

January 19, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

अंधेरी रात में यूँ छोड़कर
रूठ कर चल दिये थे
तुम अचानक
सोचते रह गए हम
कि आगे क्या होगा,
मगर देखा सुबह तो
रोज की ही भांति
सूरज उग आया।
उड़गनों ने सदा की
तरह ही गीत गाया।
जहाँ कल तक थी किरणें
अब भी हैं,
जहाँ रहती थी अब भी है छाया।
नलों में आज भी पानी आया
उदर की पूर्ति को है
आज भी खाना खाया।
धड़कनें आज भी हैं सीने में
जिन्दगी आज भी है जीने में।
चल रही हैं घड़ी की सुइयां भी
रोज की ही तरह
तुम नहीं हो कमी है इतनी सी,
मगर ये दुनिया चल रही है
रोज की ही तरह।
जरा सा आंगन उदास है,
गमले उदास हैं,
खिल रहे फूल थोड़ा सा निराश हैं,
हम भी उदास हैं।
इसलिए लौट आओ,
रूठने की अंधेरी रात थी जो
वो अब नहीं है
अब सवेरा है, वो बात थी जो
अब नहीं है।
लौट आओ
अब सवेरा है।

खूब निराश हो ना

January 19, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

हार गए
इसलिए उदास हो ना
खूब निराश हो ना
दिल टूट गया है ना
उत्साह रूठ गया है ना
सब तरफ से हताश हो ना,
हाथों में माथा टेककर
सोच रहे हो ना क्या करूँ
तो सुनो, सबसे पहले उदासी छोड़ो,
निराशा की कड़ी तोड़ो,
जीवन की दिशा को
आशा और उत्साह की तरफ मोड़ो।
जो हुआ सो हुआ,
अब करो दुआ
खुद के लिए भी
दूसरों के लिए भी।
ऐसे मथो माखन
कि उपजे सुगन्धित घी,
मन की हार है
अन्यथा कुछ नहीं है,
जन्म लेते समय कुछ नहीं लाये थे साथ,
तब क्या है हारने की बात।
समझ गए ना
तुम्हें निरुत्साह को है हराना,
जीवन का सच समझ कर
अपना मार्ग है बनाना।

वक्त को बदल ले मेहनत से

January 18, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

वक्त ऐसा है
हालात इस तरह के हैं
कैसे आगे बढूं
यह न सोच मन में।
वक्त को बदल ले मेहनत से,
न रख स्वयं को गफलत में,
कि खुद ब खुद होगा सब कुछ,
कर्म से
तुझे स्वयं की राह
बनानी होगी,
बहा पसीने को
ठंड भगानी होगी।
मन में जितनी भी हैं ग्रन्थियां
उनको झकझोर कर
नई उमंग जगानी होगी।
पाने को कल की मंजिल
आज ताकत लगानी होगी।

सच्चा संघर्ष तुम्हें जीत देगा

January 18, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

ओस की बूंद बनकर
सूरज के आने पर
छुप न जाया करो
वरन हिम्मत रखो।
रात ही है नहीं तुम्हारे लिए
दिवस भी है तुम्हारे लिए
मुकाबला कर लो
मुकाबला करो
हरेक स्थिति से
सच्चा संघर्ष तुम्हें जीत देगा
सच्चा सा प्रेम तुम्हें मीत देगा।
दिल का गुंजार तुम्हें गीत देगा।
उठो हौसला रखो
और जीत का स्वाद चखो।

ईश्वर केवल पूजा से

January 17, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

ईश्वर केवल पूजा से
प्रसन्न नहीं होते हैं,
वे प्राणिमात्र की सेवा से
प्रसन्न हुआ करते हैं।
किसी तड़पते राही को
गर बिना मदद के छोड़ दिया
फिर चाहे कितनी पूजा हो
मुँह मोड़ लिया करते हैं।
रोते दीन-हीन भूखे के
आँसू यदि हम पोछ सकें
दूजे के हित में भी यदि हम
थोड़ी बातें सोच सकें,
तब समझो सच्ची पूजा
करने में हुए सफल हम हैं,
अन्यथा ईश की सेवा और
पूजा में हुए विफल हम हैं।

रास्ता हूँ मैं

January 17, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

रास्ता हूँ मैं
युगों युगों से
लोग चलते आये हैं मुझ पर
न जाने कितने पदचापों की
ध्वनि को मैंने सुना है।
न जाने कितनों ने
चल कर मुझ पर सपनों को बुना है,
लोग आते रहे, जाते रहे
नए उगते रहे
पुराने विलीन होते रहे,
आने और जाने का गवाह हूँ मैं
चलती जिन्दगी का प्रवाह हूँ मैं
मैं देखता रहता हूँ
आते-जाते अस्थिर मानवों को
बनती बिगड़ती चाहतों को,
हर तरह की आहटों को।
उनका आना-जाना लगा रहा
मैं स्थिर रहा,
आने पर खुशी और
जाने पर आँसू बहता रहा
पदतलों से दबते-दबते
ठोस बनता रहा,
वे मुझे निर्जीव समझते रहे
मैं उन्हें अस्थिर समझता रहा।

अहो! ठंडक अब तो कम हो जा

January 17, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

अब सूर्य उत्तरायण में चले गए हैं,
अहो! ठंडक अब तो कम हो जा,
ठिठुरते हुए बडी मुश्किल से खुद की,
जिन्दगी को अब तक रख पाया हूँ बचा।
गलतियां जितनी भी हैं पूर्वजन्म की,
लेकिन अब तो बहुत हो गई
इस मौसम में सजा,
अब धीरे-धीरे गर्मी ला,
मच्छरों पर ताली पिटा।
इस सड़क के किनारे
बहुत हो गया मेरा सिकुड़ना,
अब पैर फैला कर लेटने दे,
अब बन्द कर दे
ठंडी ओस छिड़कना।

सत्य को भूलना मत

January 17, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

खिलौना मत समझना
किसी धनहीन को तुम
मन चले तोड़ दिया
मन चले जोड़ लिया।
भूख पर वार करके
दबाना मत उसे तुम,
दिखाकर लोभ-लिप्सा
दबाना मत उसे तुम।
सरल, कोमल व भोला
मुफलिसी का हृदय है,
दिखाकर शान अपनी
लुभाना मत उसे तुम।
अहमिका में स्वयं की
सत्य को भूलना मत
संपदा देखकर तुम
मनुज को तोलना मत।
अक्ल को साफ रखना
शक्ल मुस्कान रखना
धन नहीं मन का मानक
सदा यह भान रखना।

ध्येय ऊँचा ही रखो

January 17, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

बुलंद वाणी रखो
बुलंद सोच रखो
न रह किस्मत भरोसे
कर्म की ओर बढो।
ध्येय ऊँचा ही रखो
औऱ दिल साफ रखो
त्याग सब हीनता को
तेज नजरों में रखो।
भले तूफान आयें
या पड़े तेज बारिश
एक भी बूँद या कण
छूँ न पायेगा यह तन ।
न रोना है कभी भी
बुरे हालात पर अब
न जाने जोर पलटी
मार ले वक्त यह कब ।
नहीं मजबूरियों का
वश चले आज तुम पर
नहीं हो कंटकों का
बसेरा कर्मपथ पर।
नजर नित न्यूनता से
बढ़ाना उच्च पथ पर
निडर बढ़ते कदम हों
हौसला उच्च रख कर।

बताओ कैसे निभा सकोगे

January 17, 2021 in हिन्दी-उर्दू कविता

जो मन में है तुम उसे कहो ना
न बोलो चुपड़ी सी बात ऐसे
दिखावा करके दिलों का नाता
बताओ कैसे निभा सकोगे।
भरा है नफरत का भाव भीतर
अधर हैं बाहर खिले हुए से
ये दो तरह के दबाव लेकर
व्यवहार कैसे निभा सकोगे।
निभा लो चाहे किसी तरह से
मगर न सच्चे कहा सकोगे,
भरी है अंतस में आग अपने
उसे कहाँ तक छिपा सकोगे।
दिखावा करके सखा का फिर तुम
दगा करोगे, बताओ कैसे,
बिठा के दिल में छुरा चला दो
जमीर देगा सलाह कैसे।
सभी को धोखा सभी से नफरत
करोगे जीवन निबाह कैसे।

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