बचपन

वो मां का हाथ पकड़कर चलना,
वो दौड़कर भाई का पकड़ना।

वो दादी के किस्से कहानी सुनना,
वो धागे में हाथ पिरोना।

वो गर्मी में नानी के घर जाना,
वो मामा का गोद में उठाना ।

वो दोस्तो के साथ दिनभर खेलना,
वो चिंतामुक्त शरारती जीवन जीना।

वो सुबह उठकर स्कूल जाना,
वो बहाना बनाकर वापस आना।

वो स्कूल में तिरछी आंखों से उसे निहारते रहना,
वो शक्तिमान का नाटक देखते रहना।

वो रूठकर कोने में बैठ जाना,
वो मां का दुलार पाकर मान जाना।

कोई बतलाए क्या हम पानी में आग लगा सकते है?
क्या फिर से  बचपन पा सकते है-2?

मेरी बस यही गुजारिश है ,
अपनी उम्मीदों का बोझ तुम बच्चो पर मत डालो,
तुम बच्चो का बचपन मत मारो।

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