बदलने चले थे हम संसार

मेरे कलम से…….

बदलने चले थे हम संसार
दो कदम में हो गये बेकार

नसीहत से बदल देते
बुरे को अच्छा बना देते

ख्वाब हर पल देखते थे
सुनहरे संसार को बदलने को

बदल ना सका मैं
लोगो की हालातो को

खुशिया भी ना दे सका
अपने चाहने वालो को

हसरते बहुत थी
ख्वाब को अपना बनाने की

लेकिन ना मंजिल साथ दी
ना मेरे अपने

सपने मेरे टुटते गये
बिखरे मोती की तरह

अच्छा सच्चा बनना चाहा
मगर मोल नहीं जमाने में

झुठ्ठा बनकर खेला होता
चाहने वालो की भीड़ लगती

कायरता को अपनाया नहीं
इसलिए नजरो में गिरा पड़ा हूँ

सच्चाई की ढ़ाल ढ़ोकर
मैं बहुत थक गया हूँ

रिस्ते को जोड़ने में
रास्ते से भटक गया हूँ

बदलने चला था संसार
लेकिन मैं खुद बदल गया हूँ

महेश गुप्ता जौनपुरी

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