मेरी पंक्तियां
वाकया : बुरे फंसे…
वो हमें लंबी सैर पे ले गए,
माना, अच्छे – से घूमा लाए।
ये उनका शहर था जो ले गए,
फिर हमारे यहां आए, चले गए।
हां वो सैर वाले, नहीं मिल पाए,
हम वो दोबारा नहीं पलट पाए।
खुशनसीब हैं ये रंग भी, अपने रंगीन होने से नहीं ।
इसका राज भी तुम्हारा खूबसूरत होना ही है….
“बुरे फंसे…” एक गंभीर और सोचने-समझने योग्य कविता है जो आवेगपूर्णता और निराशा की भावना में डूबती है। प्रखर चित्रण और संक्षेपशील भाषा के माध्यम से, कवि व्यक्त करता है कि एक यात्रा में भटक जाने और खो देने की भावना। अंतिम पंक्तियों में उम्मीद की एक किरण आती है, जो मुश्किल संदर्भ में अपनी विशेषता की सुंदरता को बलिदान करती है। समग्र रूप से, यह कविता संक्षेप में जटिल भावनाओं को पकड़ती है और पाठकों को वात्सल्य, प्रतिरोध और आत्मस्वीकृति के विषयों पर विचार करने पर मजबूर करती है।