मेरे बाबू जी

जिनके बिना मेरा नाम अधूरा
जिनके साथ मेरा परिवार पूरा

वो छत है बाकी सब दीवारें है
एक उन्होंने पूरे घर के सपने सँवारे है

वो माँ से कम दिखते है घर मे
कितना कुछ कह देते है छोटी छोटी बातों में

उनके हाथों से बहुत मार खाई है
सख्ती में भी उनके प्यार की मिठाई है

बहन को इतना ज्यादा प्यार जताते है
इसी तरह नारी की इज्जत करना सिखाते है

कुछ पैसो को देने के लिये कितना टहलाते है
दुनिया मे पैसो की अहमियत इसी तरह बताते है

उन्हें कुछ पता नही होता, पूछते है शाम को माँ से
फिर भी बचा लेते है, इस काटो भरे जहाँ से

और कुछ नही बस कहना इतना है
मुझे बड़े होकर बस उनके जैसा बनना है

प्रवीन शर्मा
मौलिक स्वरचित

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Responses

  1. पिता के लिए बहुत ही सुन्दर रचना प्रस्तुति भावपूर्ण अभिव्यक्ति।।

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