लाइफ इन सिटी

थकी – थकी – सी है यह बेज़ार ज़िंदगी

अब इसे थोड़े आराम की ज़रूरत है

पसीने – पसीने हो गई है जल – जल के

इसे ठंडी सुहानी शाम की ज़रूरत है !

अरसा हो गया है

अपनों से मिले हुए

फिर होली या दिवाली की ज़रूरत है !

अकेले हैं हम

हज़ारो की भीड़ में

हमसफर की नहीं

अब साथी की ज़रूरत है !

आवाज़ें तो रोज़ ही सुनता हूँ अपनों की

अब सामने बैठ के

बतियाने की ज़रूरत है !

“हेलो ! हाय !” – से अब सुकून मिलता ही नहीं

किसी से गले मिल के

रोने की ज़रूरत है !

थक जाता हूँ

दो रोटी कमाने के चक्कर में

कहीं दूर पहाड़ों में

भटक जाने की ज़रूरत है !

बस करवटें बदल – बदल के

गुज़रती है रात

लगता है फिर से

माँ की लोरी की ज़रूरत है !

किराए के मकान में

बिखरा हुआ सामान

फिर से छोटी बहन के

आने की ज़रूरत है !

क्या खाया, कब खाया, क्यों खाया

खबर नहीं !

लगता है फिर से

पापा की डांट की ज़रूरत है !

आते – जाते बस भीड़ का

समंदर ही समंदर

आज फिर गांव की

कच्ची सड़कों की ज़रूरत है !

कोई समझता नहीं

तो कोई समझाता नहीं

फिर पेड़ की नीचे लगी

चौपाल की ज़रूरत है !

ज़रूरतें ही ले आई थीं

मुझे अपनों से दूर

अब मुझे फिर से

अपनों की ही ज़रूरत है !

अब किस तरफ जाऊं

समझ आता ही नहीं

इस तरफ घर की

उस तरफ मेरी ज़रूरत है !

https://storymirror.com/read/poem/hindi/yt3xwuot/laaiph-in-sittii/detail

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

प्यार अंधा होता है (Love Is Blind) सत्य पर आधारित Full Story

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ Anu Mehta’s Dairy About me परिचय (Introduction) नमस्‍कार दोस्‍तो, मेरा नाम अनु मेहता है। मैं…

Responses

+

New Report

Close