सत्ता का खेल

कल भी वही दौर था, आज भी वही दौर है ।
पन्ने पलट लो, इतिहास गवाह बतौर है ।

तख्तो-ताज लूट गये ।
राजे-महराजे मिट गये ।
इस सियासती जंग में,
अपने अपनों से छुट गये ।
बेटा बाप को मारता, भाई-भाई को काटता,
सत्ता के खेल में बहता खून चारों ओर है ।
कल भी वही दौर था, आज भी वही दौर है ।

सत्ता पैसे वालों की ।
घोटाले और हवालों की ।
चोर-चोर मौसेरे भाई,
हम प्याले, हम निवालों की।
पूंजीपति और सत्ताधारी, देश के पालनहारी,
सत्ता से बढ़कर इनके लिए नहीं कुछ और है ।
कल भी वही दौर था, आज भी वही दौर है ।

सत्ता में आने से पहले ।
गधे को भी बाप कह लें ।
फिर वादे याद दिलाते,
लाख नाक आगे रगड़ लें ।
गरीबी और महंगाई, घरों के चुल्हे बुझाई,
छिनता गरीबों के मुँह से रोटी का कौर है ।
कल भी वही दौर था, आज भी वही दौर है ।

ये सियासती दाँव-पेंच ।
एक दुसरे की टाँग खींच ।
क्यों कर लेते इनपे यकीं,
बगैर सोचे आँखें भींच ।
साधनों संसाधनों का अभाव, हमारे मतों का प्रभाव,
सर पे छत नहीं, फुटपाथ ही ठौर है ।
कल भी वही दौर था, आज भी वही दौर है ।

देवेश साखरे ‘देव’

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