सीतापुर का वो लड़का
नहीं दिल से गया है यार सीतापुर का वो लड़का
आज भी याद आता है सीतापुर का वो लड़का।
देखता था मुझे ऐसे कोई एहसान करता हो
बड़ा मासूम लगता था सीतापुर का वो लड़का ।
पीर अंतस में ही रखकर रो लेता था अकेले में
हमेशा मुस्कुराता था सीतापुर का वो लड़का।
मोहब्बत तो बहुत करता था पर मुझसे छुपाता था
बड़ा नादान था यारों सीतापुर का वो लड़का।
मैं दिल की बात ना कहती मगर वो जान जाता था
समझदार था यारों सीतापुर का वो लड़का।
बड़ी खामोशी से मेरी वो हर एक बात सुनता था
ठहाके फिर लगाता था सीतापुर का वो लड़का।
सुकून को ढूंढता फिरता था जिस्मों के लिफाफों में
मगर फिर लौट आता था सीतापुर का वो लड़का।
मैं तिल तिल मर रही हूं पर वही अनजान है इससे
मेरी हर सांस गिनता था सीतापुर का वो लड़का।
नहीं है गम मगर मुझको फकत इतनी शिकायत है
क्यों मेरी नींद ले बैठा है सीतापुर का वो लड़का।
मेरी रूह से दामन छुड़ा कर के जो जाना था
क्यों मेरे पास आया था सीतापुर का वो लड़का।
है उसकी मांग में सिंदूर और दुल्हन बनी हूं मैं
सुहागन कर गया मुझको सीतापुर का वो लड़का।
यकीं तो है नहीं फिर भी दिले उम्मीद है लेकिन
मुझे भी याद करता है सीतापुर का वो लड़का।
ये नोजोतो के लड़के महज जुगनू बराबर हैं
सूरज चांद जैसा है सीतापुर का वो लड़का।
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