सुबह होगी:- स्वर्ण रश्मियों को झोले में लेकर….
सुबह होगी
हाँ, सुबह होगी
लेकर स्वर्ण रश्मियों को
अपने झोले में
कुछ खंगालेगी
गेहूं की अधपकी बालियों को
लहलायेगी
उलझी हुई वृक्षों की लटों को
सुलझाकर
नदियों को काला टीका लगाकर
कुछ गुनगुनाएगी
समुंदर में स्नान कर
अपनी भीगी जुल्फों को
पुष्पों पर झटक कर
इतराएगी….
कुछ इस तरह से
कल सुबह होगी…..
हाँ, सुबह होगी लेकर स्वर्ण रश्मियों को
अपने झोले में कुछ खंगालेगी
गेहूं की अधपकी बालियों को
लहलायेगी
_______प्रा:त काल की बेला का प्राकृतिक वर्णन करते हुए, खेतों में पकी गेहूं की बालियों का सुंदर चित्रण करती हुई प्रज्ञा जी की अति सुंदर कविता
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सुबह होगी
हाँ, सुबह होगी
लेकर स्वर्ण रश्मियों को
अपने झोले में
कुछ खंगालेगी
गेहूं की अधपकी बालियों को
लहलायेगी
उलझी हुई वृक्षों की लटों को
सुलझाकर।।
सुबह का सुंदर वर्णन करती हुई रचना
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बहुत सुंदर
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