है शत शत बार प्रणाम तुझे माँ
” है शत शत बार प्रणाम तुझे माँ ”
जो शब्द था पहला बोला मैंने
वो शब्द था पहला बोला “माँ”
जो ऊँगली पहली थामी मैंने
वो ऊँगली थी पहली तेरी “माँ”
तेरे सीने लग कर बड़ा हुआ,
तूने अमृत से सींचा हैं माँ
है सबर सबूरी दिल में कितनी
कितनी ममता आँखों में,
तेरे कितने अरमाँ दिन में खोये
कितने सपने रातों में,
तेरी थपकी लेकर सो जाता था
और खो जाता था बातों में।
मैं कुछ भी बन जाऊँ दुनिया में
तेरे दूध का क़र्ज़ चुका नहीं सकता
हर रात सजा दूँ खुशियों से
पर उन रातों को ला नहीं सकता।
जो आँखों आँखों में गुज़रे थे
वो लम्हें लौटा नहीं सकता।
कर देना माफ़ गर खता हो जाए
तुम ममता की इक मूरत हो
उस जग जननी को देखा नहीं
तुम उस जननी की सूरत हो।
है शत शत बार प्रणाम तुझे माँ,
तुम इस सृष्टि की पूरक हो
है कोटि कोटि प्रणाम तुझे माँ
तुम इस सृष्टि की पूरक हो।
( आरज़ू )
aarzoo-e-arjun
वाह वाह
Great poem