संभव-असंभव
सोच रही हूँ डालने को बालू समंदर में
ताकि राह खुल जाये मुसाफिर की;
अजीब दास्ता है ये, हो सकता नहीं ये संभव,
पर है ये दुनिया असंभव को संभव करने वाली,
हर सपने की है इसके पास चाभी निराली,
लोगों ने तो चाँद मंगल तक की राह बना ली
तो अब तो बस सपने देखने की ही थी देरी,
क्या पता कब कौन सी चाभी हाथ लग जाये!
©अनुपम मिश्र
सुंदर
Beautiful lines