भले मानुष बनो
दिन पर दिन कर रहे व्यभिचार क्यों बढ़ा रहे हौं तुम ऐब,
खुद बीड़ी सिगरेट गुटखा खाए तम्बाकू पिये दारू, बच्चा खाए ना पावे एको सेब,
मक्कारी चोरी छल से ना धन जोड़िए , ना मिलिहै कफन में जेब,
उनका सबका पर्दाफाश करो ,जो तुम्हरा इस्तेमाल करि रहें अपनी रोटी सेंक,
कथनी करनी सब जन याद करिहै ,कहिहै तो बंदा रहै एक
व्यभिचार छोड़ भले मानुष बनो,इंसां बनो तुम नेक।।
—✍️–एकता—–
अतिसुंदर भाव
व्यभिचार छोड़ भले मानुष बनो, इंसान बनो तुम नेक।
मनुष्य को सही दिशा की ओर अग्रसर करती हुई आपकी यह रचना
बहुत खूब एकता जी👏👏
Good
Nice
आप सभी का धन्यवाद