सवा ले चल हमें भी उस निशाँ तक

सवा ले चल हमें भी उस निशाँ तक
उमीदें रक़्स करती हैं जहाँ तक

तसव्वुर की रसाई है जहाँ तक
किसी दिन तो मैं पहुँचूंगा वहाँ तक

हमारी ज़िन्दगी की दास्ताँ तक
ना पहुँचा कोई भी आहो-फुगाँ तक

ज़माना ज़ुल्म ढाएगा कहाँ तक
वफ़ा की है रसाई आसमाँ तक

उड़ा कर ले गईं ज़िद्दी हवाएँ
मिरे जलते नशेमन का धुआँ तक

हज़ारों ज़ख़्म हैं सीने के अन्दर
कोई मरहम लगाएगा कहाँ तक

हमें तामीर करना था नशेमन
तिरे पाबन्द रहते हम कहाँ तक

मदावा कैसे हो जाता ग़मों का
कोई पहुँचा नहीं दर्दे-निहाँ तक

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Responses

  1. ग़ज़ल अपनी पूरी शिद्दत के साथ दिल में उतर जाती है। हर एक शेर अपने साथ जीवन की एक गहरी सच्चाई, टूटन, उम्मीद और इंसानी जज़्बात की एक दास्तान लेकर आता है। शायर ने बहुत ही बारीकी से दर्द और उम्मीद के रंगों को एक साथ बुना है। बधाई हो, यह एक बेहतरीन रचना है।

  2. *प्यारा बचपन*
    *प्यारा बचपन*

    बचपन शब्द सुनते ही मन में एक ख़ुशबू, एक रंग‑रंगीली तस्वीर उभर आती है—गुज़रते धूप‑छाँव वाले गलियों में बेफ़िक्री से खेलते बच्चे, चेहरे पर निश्छल मुस्कान और दिल में अनंत आशाएँ। यही वह दौर है, जब हर छोटी‑छोटी चीज़ में बड़ी खुशी मिलती है और दुनिया को देखना एक नई खोज जैसा लगता है।

    पहला पहलू है *अनभिज्ञता की मिठास*। बच्चा न तो भविष्य की चिंता करता है, न ही अतीत की बोझ। वह आज में जीता है—पहली बारिश में भीगते‑भीगते नाचना, कागज़ की नाव को नदी में चलाते‑चलाते सपने देखना। इस अनभिज्ञता में ही जीवन की सच्ची सरलता छिपी होती है।

    दूसरा महत्वपूर्ण तत्व है *साथ‑साथियों का संग*। पड़ोस के दोस्त, गली के पेड़, और कभी‑कभी तो चिड़ियों की चहचहाहट भी साथी बन जाती है। इन रिश्तों में न कोई शर्त होती है, न कोई फ़ायदा। बस एक‑दूसरे की कंपनी में खुश रहना, खेल‑खेल में सीखना और कभी‑कभी झगड़े के बाद फिर से गले मिलना—यह सब बचपन की अनमोल धरोहर है।

    तीसरा पहलू है *कल्पना की उड़ान*। एक साधारण लट्ठा भी तलवार बन जाता है, एक खाली कागज़ पर बनते रेखाएँ महाकाव्य कहानी बन जाती हैं। इस कल्पनाशीलता से ही भविष्य के कलाकार, वैज्ञानिक और लेखक जन्म लेते हैं। जब बच्चा अपने ही बनाए संसार में खो जाता है, तो वह असंभव को संभव बनाने की शक्ति सीखता है।

    परिवार का *सुरक्षा कवच* भी बचपन को प्यारा बनाता है। माँ‑बाप की गोद में मिलने वाला स्नेह, दादा‑दादी की कहानियाँ, और बड़े भाई‑बहनों की मार्गदर्शन—इन सबका मिलन बचपन को एक सुरक्षित पोर्टेबल बनाता है, जहाँ बच्चा बिना डर के गिर‑गिर कर उठना सीखता है।

    आज के तेज़‑तर्रार युग में तकनीक ने बचपन के कुछ पहलुओं को बदल दिया है, पर मूल भावनाएँ वही हैं—शुद्धता, उत्सुकता और प्रेम। यदि हम अपने भीतर के बच्चे को जीवित रखें, तो हर दिन एक नई शुरुआत बन जाता है।

    *निष्कर्ष* यह है कि प्यारा बचपन सिर्फ एक समय नहीं, बल्कि एक भावना है, जो हमें जीवन भर सिखाती है कि खुशी छोटे‑छोटे क्षणों में ही बसी होती है। इस भावना को याद रखकर हम अपने वर्तमान को और भी उज्ज्वल बना सकते हैं।
    बचपन शब्द सुनते ही मन में एक ख़ुशबू, एक रंग‑रंगीली तस्वीर उभर आती है—गुज़रते धूप‑छाँव वाले गलियों में बेफ़िक्री से खेलते बच्चे, चेहरे पर निश्छल मुस्कान और दिल में अनंत आशाएँ। यही वह दौर है, जब हर छोटी‑छोटी चीज़ में बड़ी खुशी मिलती है और दुनिया को देखना एक नई खोज जैसा लगता है।

    पहला पहलू है *अनभिज्ञता की मिठास*। बच्चा न तो भविष्य की चिंता करता है, न ही अतीत की बोझ। वह आज में जीता है—पहली बारिश में भीगते‑भीगते नाचना, कागज़ की नाव को नदी में चलाते‑चलाते सपने देखना। इस अनभिज्ञता में ही जीवन की सच्ची सरलता छिपी होती है।

    दूसरा महत्वपूर्ण तत्व है *साथ‑साथियों का संग*। पड़ोस के दोस्त, गली के पेड़, और कभी‑कभी तो चिड़ियों की चहचहाहट भी साथी बन जाती है। इन रिश्तों में न कोई शर्त होती है, न कोई फ़ायदा। बस एक‑दूसरे की कंपनी में खुश रहना, खेल‑खेल में सीखना और कभी‑कभी झगड़े के बाद फिर से गले मिलना—यह सब बचपन की अनमोल धरोहर है।

    तीसरा पहलू है *कल्पना की उड़ान*। एक साधारण लट्ठा भी तलवार बन जाता है, एक खाली कागज़ पर बनते रेखाएँ महाकाव्य कहानी बन जाती हैं। इस कल्पनाशीलता से ही भविष्य के कलाकार, वैज्ञानिक और लेखक जन्म लेते हैं। जब बच्चा अपने ही बनाए संसार में खो जाता है, तो वह असंभव को संभव बनाने की शक्ति सीखता है।

    परिवार का *सुरक्षा कवच* भी बचपन को प्यारा बनाता है। माँ‑बाप की गोद में मिलने वाला स्नेह, दादा‑दादी की कहानियाँ, और बड़े भाई‑बहनों की मार्गदर्शन—इन सबका मिलन बचपन को एक सुरक्षित पोर्टेबल बनाता है, जहाँ बच्चा बिना डर के गिर‑गिर कर उठना सीखता है।

    आज के तेज़‑तर्रार युग में तकनीक ने बचपन के कुछ पहलुओं को बदल दिया है, पर मूल भावनाएँ वही हैं—शुद्धता, उत्सुकता और प्रेम। यदि हम अपने भीतर के बच्चे को जीवित रखें, तो हर दिन एक नई शुरुआत बन जाता है।

    *निष्कर्ष* यह है कि प्यारा बचपन सिर्फ एक समय नहीं, बल्कि एक भावना है, जो हमें जीवन भर सिखाती है कि खुशी छोटे‑छोटे क्षणों में ही बसी होती है। इस भावना को याद रखकर हम अपने वर्तमान को और भी उज्ज्वल बना सकते हैं। – सुख मंगल सिंह

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