किन्नर

प्यार दूर की बात
सम्मान कभी सपने में भी ना सोचूं
तुम तो देखने से भी कतराए
देख कर नज़र फेर ली
फिर कहते हो
मेरी दुआओं मे बड़ी ताकत हैं
जल्दी कबूल हो जाती है
अगर तुम कहो
दुआओं के मैं बादल बरसा दूं
बस एक बार
जो जन्म से मिला अधूरापन
तुम उसे भुला
इन्सान समझ लेना
कभी बदन से नजरें उठा
तानों से छलनी रूह को निहारना
कभी सम्मान की नजरों से देख
पड़ना हमारी नज़रों की बेबसी
किन्नर नही हमें हमारे नाम से पुकारना
भगवान् ने बनाया होगा कुछ सोच
उसका मान रख
हमें इज्जत से जीने का हक दे देना।

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Responses

  1. वाह अनु…
    बेहद संवेदनशील मुद्दे पर आवाज उठाई है आपने..
    मुझे सच में बहुत बुरा लगता है जब कोई ऐसे लोगों का मजाक उड़ाता है…
    आपकी कविता पढ़कर मुझे निमिषा सिंहल की कविता याद आ गई..

    1. धन्यवाद प्रज्ञा जी
      कविता में सुधार के लिए सुझाव का स्वागत है

      1. अगर सुधार की बात करूं तो आप निपात शब्दों का प्रयोग नहीं करती हो..यदि करो तो वाक्य पर बल पड़ता है..क्योंकि निपात के प्रयोग बिना वाक्य अधूरा लगता है अनु….
        एक बात और अनु आप कविता लिखकर एक बार पढ़ लिया करो…
        गलती स्वयं नजर आ जाएगी..
        बाकी भाव आपके उच्च स्तरीय होते ही जा रहे हैं काफी सकारात्मक बदलाव देखा है मैंने…

  2. धन्यवाद प्रज्ञा जी मार्ग दर्शन के लिए
    उम्मीद करती हूँ कि आप आगे भी मेरा मार्गदर्शन करती रहेगी।

  3. किन्नरों को समाज में सम्मान दिलवाने हेतु लिखी गई बहुत सुंदर रचना बहुत ही भाव पूर्ण और उच्च स्तरीय विचारों से सुसज्जित बहुत संवेदनशील रचना

  4. किन्नर कहाँ, अक्सर लोग हिजरे कहा करते हैं।
    इनके कुछ भी मांगने पर नखरे किया करते हैं।।
    दुआओं में बल हैं इनके तो भला संताप क्यों कहते हो?
    सम्मान करो इनका कुछ पूर्वाजित पाप क्यों कहते हो?

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