माटी के दीपक
मै नन्हा सा दीपक माटी का
घी संग बाती जब दहकूं
खिलखिला कर हसूं
चांद के जैसे इतराऊं
तम को गटागट पी जाऊँ
शांत नदिया सा जगमगाऊं
आखिरी सांस तक सपने सींचू……
तु भी तो पुतला माटी का
तु मन में आशा का दीप जला
प्रेम का घी, सदकर्मो की बाती दहका
भीतर के तम से लड़ जा
खुशियाँ जी भर के बिखरा
किसी के गमों मे शरीक हो जा
बैर-भाव मिटा
तु भी मुझ-सा कर्म कमा
दीपावली का सच्चा अर्थ समझा ।
दीपावली की आप सभी को हार्दिक शुभकामनायें
सुधार के लिए सुझाव का स्वागत है
आपको भी दीपावली की बहुत-बहुत शुभकामनाएं अनु..
आपके जीवन में सुख समृद्धि आये और लक्ष्मी जी की कृपा सदैव बनी रहे
धन्यवाद प्रज्ञा जी
यह दीपावली आपके जीवन में बहार लाऐ।
बहुत सुंदर कविता है अनु जी । माटी के दीपक की तुलना इंसान से की है । बहुत सुंदर भाव ।
आपको मेरी ओर से दीवाली की बहुत बहुत शुभकामनाएं
धन्यवाद गीता जी
दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें
बहुत खूब
शुक्रिया जी
बहुत सुंदर अनु जी
धन्यवाद जी
गुण:-
वाह अनु! मन खुश हो गया
मैंने तो कविता पढ़ी ही नहीं थी..
वाकई में आपके भाव मेरे मन तक पहुंचे
एक सकारात्मक संदेश देते हुए आपने
दीपक और मनुष्य को एक तराजू पर
तौलते हुए, दीपक से मनुष्य को अच्छे कर्म करने
की तथा प्रेम से रहने की सलाह दी है वह
रेखांकित करने वाली तथा तारीफ के काबिल है..
दोष:-
कुछ व्याकरण सम्बंधी त्रुटियां नजर आईं
जो बताऊंगी नहीं..
सुझाव:-
सकारात्मक बदलाव आया है आपके लेखन में मैं चाहती हूँ आप और आगे जायें अनु..
कृपया व्याकरण पर थोड़ा ध्यान दें..
समीक्षा के लिए धन्यवाद प्रज्ञा
अगर आप त्रुटियां बताएंगे नही तो सुधार कैसे होगा।
कमियां निकालना अच्छी बात नहीं होती..
हीन भावना पनप उठती है..
Nice
Thanks