मैं अन्नदाता
मैं अन्नदाता देख अपनी थाली में खाना रूखा सूखा, हो उदास सोचे किसान फ़िर एक बार, हूँ किसान कहलाता मैं जग में अन्नदाता, रहता साथ अन्न के, मिले मुझे ये मुश्किलों से, मेहनत मेरी रोटी बन भूख मिटाती जग की, न देख सके वो सुबह सुहावनी सब सी, पसीना मेरा शर्माए गर्मी जेठ बैसाख की, बैलों संग मेरे हल के धरा मेरी निखरती, बीज लिए आशाएं धरा के मैं बोता, आशाएं अब मेरी देखें बादल वो चंचल, आता सावन घुमड़ घुमड़ लाये मुस्... »