तेरी आवाज़ में
तेरी आवाज़ में अक्सर हम डूब जाते हैं,
तुझसे हम हमेशा कुछ कह नहीं पाते हैं।
हाल-ए-दिल कैसे करें हम बयाँ अपना,
दिल की धड़कन में तुझे ही सजाते हैं।
ग़ालिब बना दिया हमें तेरी मोहब्बत ने,
तनहाइयों में बस तुझे ही हम गाते हैं।
यक़ीन है एक दिन मिलेंगी निगाहें तुझसे,
हर लम्हा सोचकर यही हम बिताते हैं।
शम्मा से बस एक मुलाक़ात की ख़ातिर,
परवाने पागल पल भर में जल जाते हैं।
यह ग़ज़ल मेरी पुस्तक ‘इंतज़ार’ से ली गई है। इस किताब की स्याही में दिल के और भी कई राज़, अनकहे ख़यालात दफ़्न हैं। अगर ये शब्द आपसे जुड़ पाए, तो पूरी किताब आपका इंतज़ार कर रही है। – पन्ना
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