जिक्र करता हूँ
जिक्र करता हूँ बस हिज़्र1 का, ऐसी बात नहीं,
कभी वस्ल2 का कुछ न कहा, ऐसी बात नहीं।
ठहरे हुए हैं कई ख़्याल, आकर ज़ेहन3 में मेरे,
कोई ख़्याल आँखों से न बहा, ऐसी बात नहीं।
छुपाता हूँ अपनी शख़्सियत दुनिया से दोस्तों,
कभी ख़ुद को किया न बयाँ, ऐसी बात नहीं।
मेरी चुप्पी को सुन सको तो कोई बात बने,
ख़ामोश है मेरे दिल का जहाँ, ऐसी बात नहीं।
मुकम्मल4 ज़िन्दगी की तलाश है दिल को मिरे,
मुकम्मल नहीं कुछ भी यहाँ, ऐसी बात नहीं।
चार दीवारों के दरमियान 5 मैं रहा करता हूँ,
छत भी नहीं नसीब-ए-मकाँ6, ऐसी बात नहीं।
कट कर गिरती रहती है पतंग आसमाँ से,
कभी भी मैं उड़ न सका, ऐसी बात नहीं।
1. जुदाई; 2. मिलन; 3. मन; 4. संपूर्ण; 5. बीच में; 6. घर का भाग्य।
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