चल पड़ा फिर जिस्म
चल पड़ा फिर जिस्म
किसी राह में
मन को छोड़ अकेला
क्यों नहीं चलते
दोनों साथ -साथ
कोई रंजिश नहीं
फिर भी रंजिश
फूल की बगावत
किसी टहनी से
भवरे की शिकायत
किसी फूलों से
मन की तिजारत
किसी जिस्म से
मन रहता है
जिस्म में किसी
मुसाफिर की तरह
जिस्म की हसरत
जिस्म की तरह
नश्वर है
काश रग़ों में
मन दौड़ता
जिस्म की
उमंगों जैसा
किसी जिस्म
किसी मन
की राह अलग न होती
राजेश’अरमान’
अति सुंदर रचना