हर चेहरे अपने पर
हर चेहरे अपने पर कोई आश्ना न मिला
गिला खुद से मगर कोई आईना न मिला
अपनी तक़दीर-बुलंदी का क्या कहना
बर्क़ को जब कोई आशियाँ न मिला
फ़िज़ां मिली तो मगर खुशगवार न थी
तल्खियों भरा कोई सेहरा न मिला
हस्ती अपनी जमाने में जुदा निकली
कोई शख्स शहर में जब बेजुबान न मिला
एक चुप से लिपट बैठा ‘अरमान’
क्यों कहते हो कोई तज़ुर्बा न मिला
राजेश’अरमान’
वाह