ज़िंदगी कभी गूंथे हुए
ज़िंदगी कभी गूंथे हुए आटे की तरह लगती
कभी फायदे की कभी घाटे की तरह लगती
आस के फूल हर शाख पे खिलने दो
टूटी आस चुभते हुए काटें की तरह लगती
वक़्त की मार से कब कौन बचा यारों
कभी मुक्के तो कभी लातों की तरह लगती
ख्वाइश से उगती खवाइश का खेल ज़िंदगी’अरमान’
कभी चुप तो कभी चीखते सनाटे की तरह लगती
ज़िंदगी कभी गूंथे हुए आटे की तरह लगती
कभी फायदे की कभी घाटे की तरह लगती
राजेश ‘अरमान’
वाह