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एक ऐसी ईद

एक ऐसी ईद भी आई एक ऐसी नवरात गई जब न मंदिरों में घंटे बजे न मस्जिदों में चहल कदमी हुई बाँध रखा था हमने…

खता

लम्हों ने खता की है सजा हमको मिल रही है ये मौसम की बेरुखी है खिजां हमको मिल रही है सोचा था लौटकर फिर ना…

जिक्र करता हूँ

जिक्र करता हूँ बस हिज़्र1 का, ऐसी बात नहीं, कभी वस्ल2 का कुछ न कहा, ऐसी बात नहीं। ठहरे हुए हैं कई ख़्याल, आकर ज़ेहन3…

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