तुम अक्सर आकर अपने मन की खुल के मुझसे कह लेती हो
तुम अक्सर आकर अपने मन की खुल के मुझसे कह लेती हो,
धूप लगे जब तुमको मेरी छाया में तुम सो लेती हो,
बहुत अकेला मैं भी सुनके चुप-चाप खड़ा रहा जाता हूँ,
जब मुझको कटता देख के भी तुम चुप्पी साधे रह लेती हो।।
– राही (अंजाना)
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