दास्ता

दांस्ता सुनाऊं और मज़ाक बन जाऊं,

बेहतर है मुस्कुराऊं और खामोश रह जाऊं….!!

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ग़ज़ल

२१२२ १२१२ २२ अपने ही क़ौल से मुकर जाऊँ । इससे बेहतर है खुद में (खुद ही) मर जाऊँ ।। तू मेरी रूह की हिफ़ाजत…

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