दिल और कलम
दिल और कलम,
कलम कह रही है आज ,कि मोहब्बत पे किताब लिखूं।
दिल चाहता है मगर कि,मै गम बेशुमार लिखूं।।
कुछ यूं है दलील- ए- कलम ,मोहबब्त लिखे बीते हैं बरस।
दिल कहे कर ये रहम-ओ-करम,यूं ना छिड़क तू जले पे नमक।।
ऐ दिल, क्यूं जाता है वहां,जहां मिले हैं इश्क़ मे गम।
मिलेगी तुझको वहां मोहब्बत,क्यों है फिर भी ये भ्रम।।
ऐ कलम, जरा इज्जत से बात कर,मेरी मोहब्बत यूं ना बदनाम कर।
की है मोहब्बत,जख्मों से क्यूं डरूं,इन गमो को भी, मै उपहार लिखूं।।
कैसे करूं मै फैसला,और किसकी आज सुनूं।
लिख डालूं मोहब्बत पे किताब,या गम पे उपन्यास लिखूं।।
कलम कह रही है आज, कि मोहब्बत पे किताब लिखूं।
दिल चाहता है मगर कि,मै गम बेशुमार लिखूं।।
AK
बहुत खूब
धन्यवाद सर
क्या बात है बहुत खूब
धन्यवाद् जी
अतिसुन्दर
शुक्रिया सर
Bahut badia
Thanks sir