पाकीज़गी अब दिखती नहीं।
पाकीज़गी अब दिखती नहीं ,
इन आबो-हवा में भी ।
कभी दम घुटता है तो,
कभी मन ।
कभी सास भी बेपरवाह हो जाती है ,
हां, यह रुख भी बदला है ,
अब सुकून देती नहीं,
चैन छीन लेती है ,तो कभी नींद।
परिवेश बदला है, या हम ।
पाकीज़गी अब दिखती नहीं,
इन आबो-हवा में भी।
सुन्दर पं्तियां
बहुत बहुत धन्यवाद मैम
बड़ी सुन्दर रचना है आपकी
बहुत बहुत धन्यवाद
अतिसुंदर भाव
बहुत बहुत आभार 🙏
Nice
Thank you
सुन्दर पं्तियां
Thanks