मत बर्बाद कर ए मेरे दोस्त नर तन
मत बर्बाद कर ए मेरे दोस्त नर तन
बड़े ही जतन से मिले है ये मानुष-जन्म।
कर ले दान-धर्म, दीन-दुःखी की सेवा कर ।
व्यर्थ मत गँवा जिन्दगी, कुछ तो ऐसे करम करें ।
जिसे सुफल हो तेरा मानव-जन्म ।।1।।
क्यूँ कब तक खूद को अंधियारा के गलियों में भटकायेगा ।
खूद को पहचान मेरे दोस्त, समय को मत कोस दोस्त ।
खूद को पहचान कर, खूद को संभाल दोस्त ।
ऐसे में ही ना बीत जाए जिन्दगी तेरी ।
इसलिए समय के साथ चल मेरे दोस्त ।।2।।
नर है तो नर को पहचान मेरे दोस्त ।
सज्जन ना मिले तो दुर्जनों को भी गले लगा दोस्त ।
खूद को इस ढ़ांचा में ढ़ाल दोस्त ।
कि जहां भी सलाम करे तुझे एक दिन मेरे दोस्त ।।
मत बर्बाद कर ए मेरे दोस्त नर तन ।।3।।
कवि विकास कुमार
वाह-वाह
अतिसुन्दर
सुंदर भाव