लम्बे लम्बे हो गए दिन
लम्बे- लम्बे हो गए दिन ,
रात समुन्दर जैसी हैं ,
तेरे बिन; इश्क के मंजर में,
हालत बंजर जैसी हैं ।
किया है तूमने जादू हम पर,
तेरी आंखों में मदहोशी है,
कैसे ना बहक जाए हम,
सुरत जो अप्सरा जैसी हैं ।
लम्बे लम्बे हो गए दिन,
रात समुन्दर जैसी हैं……
—-मोहन सिंह मानुष
उपमा अलंकार का सुंदर प्रयोग कवि की कल्पना उच्चतम है भाव पक्ष तथा कला पक्ष दोनों बहुत ही सुंदर है
धन्यवाद जी
आपकी यह कविता मैं 5 बार पढ़ चुका हूं पता नहीं क्यों?
बहुत दिल छू रही हैं।
इतना सम्मान देने के लिए बहुत-बहुत आभार सर
🙏🙏
सुंदर
धन्यवाद सर
Very nice lines