लाख अपने गिर्द हिफाजत की लकीरें खीचूँ

लाख अपने गिर्द हिफाजत की लकीरें खीचूँ,
एक भी उन में नहीं “माँ ” तेरी दुआओं जैसी,

लाख अपने को छिपाऊँ कितने ही पर्दों में,
एक भी उन में नहीं “माँ” तेरे आँचल जैसा,

लाख महगे बिस्तर पर सो जाऊँ मैं,
एक भी नहीं “माँ” उनमें तेरी गोद जैसा,

लाख देख लूँ आइनों में अक्स अपना,
एक आइना भी नहीं “माँ” तेरी आँखों जैसा,

लाख सर झुका लूँ उस मौला/भगवान के दर पर,
एक दरबार भीं नहीं “माँ” तेरे दर जैसा॥
राही

Related Articles

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-34

जो तुम चिर प्रतीक्षित  सहचर  मैं ये ज्ञात कराता हूँ, हर्ष  तुम्हे  होगा  निश्चय  ही प्रियकर  बात बताता हूँ। तुमसे  पहले तेरे शत्रु का शीश विच्छेदन कर धड़ से, कटे मुंड अर्पित करता…

वो शक्ति दे

दूर कर देना बुरी आदत मेरी मेरे मौला, किसी को दर्द न दूँ बल्कि उत्साह दूँ मेरे मौला। बह रहा हो हताशा की नदी में…

Responses

New Report

Close